Jeevan Darshan: दुनिया के एकजुट होने का महापर्व है महाकुंभ, जानें इससे जुड़ी प्रमुख बातें
प्रयागराज में सिर्फ गंगा यमुना और अदृश्य सरस्वती जैसी पावन नदियों का ही संगम नहीं है बल्कि यह पूरे विश्व को एक करने और मिलाने की भूमि है। यहां का हर घर तीर्थ है। आज के दौर में इतने विघटन तथाकथित धर्मों संप्रदायों मान्यताओं विचाधाराओं के नाम पर और धर्म जाति वर्गों अपने-अपने आग्रहों के नाम पर हो रहे हैं।
मोरारी बापू (प्रसिद्ध कथावाचक)। प्रयागराज में सिर्फ गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती जैसी पावन नदियों का ही संगम नहीं है, बल्कि यह पूरे विश्व को एक करने और मिलाने की भूमि है। यहां का हर घर तीर्थ है। आज के दौर में इतने विघटन, तथाकथित धर्मों, संप्रदायों, मान्यताओं, विचाधाराओं के नाम पर और धर्म, जाति, वर्गों, अपने-अपने आग्रहों के नाम पर हो रहे हैं। ऐसे वातावरण में संगम पर भिन्न-भिन्न विचारधाराओं और संस्कृतियों का मेल अनुकरणीय है। यह संगम आज भारत ही नहीं, पूरे विश्व की आवश्यकता है।
प्रयागराज भारत के भूगोल का एक सिर्फ एक हिस्सा नहीं है। यह दुनिया के साथ समन्वय की भूमिका का अहम केंद्र भी है। संगम तट पर कुंभ से सबको जोड़ने की परंपरा रही है। यह विश्व को संगम के तट पर एक करने का कुंभ है। यह सिर्फ पवित्र नदियों का संगम नहीं, दुनिया के एकजुट होने का महापर्व भी है। हर जगह सिद्धांतों में विघटन आ गए हैं। ऐसे समय में संगम की उपयोगिता बढ़ गई है। रामचरितमानस के सातों सोपान में प्रगट और अप्रगट संगम है। कहीं विचारों का, कहीं मतों का तो कहीं व्यक्ति-व्यक्ति का संगम है।
प्रयागराज की भूमि ने विश्व को अगाध वैचारिक संगम दिया है। देव और दनुज दोनों इस संगम में एक साथ स्नान करते रहे हैं। दोनों परस्पर विरोधी विचारधारा के होते हुए भी, रहन-सहन, खान-पान में भेद, हिंसा-अहिंसा का भेद, स्वरूप का भेद होते हुए भी एक साथ स्नान करते थे। नर और किन्नर दोनों का संगम की भूमि पर एक साथ स्नान करने का तुलसी दास जी ने उल्लेख किया है। तीर्थराज सबको मिलाता है। किसी भी तीर्थ के कुछ लक्षण होते हैं। वैसे तो संपूर्ण भारत ही तीर्थ है, लेकिन जहां जल हो, अक्षयता हो, वहीं तीर्थ है। चाहे सरिता के रूप में हो या सरोवर के रूप में।
कुंभ यानी अमृत कलश। हमारे यहां कुंभ शगुन का भी होता है। कुंभ बाहर से कठोर, अंदर से खाली भी होता है। कुंभ के कई अभिप्राय हैं। वेदांत में कुंभ घटाकाश के रूप में यानी हृदय एक कुंभ है। कुंभ एक राशि भी है। कुंभ के भावों में गंगा और शिव समाहित हैं। तीर्थराज निर्वाण की भूमि है। यहां आने वालों को वह सब कुछ मिल सकता है, जिसे वह पाना चाहते हैं। कुंभ में अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों पदार्थों के भंडार खुल जाते हैं। रेती पर कल्पवास करने वालों को यह खजाना सहज प्राप्त हो जाता है। त्रिवेणी के तट पर मन के सारे विकार और क्लेश भी मिट जाते हैं। इस संगम में हर समस्या का समाधान निहित है। आवश्यकता है इस संगम में मन का मैल साफ करने की।
आज के समय में पारिवारिक विघटन भी बढ़ रहे हैं। रिश्तों में बिखराव चिंताजनक है। पति-पत्नी दोनों के बीच मन का भी संगम होना चाहिए। अहंकार को छोड़ एक-दूसरे को नकारे बिना मन का संगम होना चाहिए। पति-पत्नी यानी एक के मन की गंगा और दूसरे के मन की यमुना का मिलन होना चाहिए। जिस तरह से इस कुंभ में कई तरह की संस्कृतियों, विचारों का एक साथ मिलन हो रहा है, वैसे ही पति-पत्नी के साथ ही माता-पिता और संतान के मन का मिलन होना चाहिए।
पूजहिं माधव पद जलजाता, परसि अखय बटु हरषहिं गाता
संगमु सिंहासनु सुठि सोहा, छत्रु अखयबटु मुनिमन मोहा।
अक्षयवट तीर्थराज प्रयागराज का छत्र है। प्रत्येक सनानती को इस पर गर्व करना चाहिए। अपने धर्म में अखंड, अनंत विश्वास ही अक्षयवट है। अक्षय का अर्थ अखंड, अनंत या शाश्वत होता है, जबकि वट विश्वास का प्रतीक है। मानस के सभी सातों सोपानों में किसी न किसी रूप में अक्षयवट का उल्लेख है। प्रयागराज में ज्ञानरूपी अनादि काल से अक्षयवट की जड़ें साक्षात तीर्थ के रूप में विराजमान हैं। कभी तेजाब जैसा ज्वलनशील पदार्थ इसकी जड़ों में डाल दिया गया था कि यह नष्ट हो जाए, लेकिन अक्षयवट हरा-भरा ही रहा।
अक्षयवट अनादि काल से तीर्थ के रूप में विराजमान है। प्रलयकाल में भी इसका क्षरण नहीं हुआ था। हमारी सनातन परंपरा में जिसके प्रति अटल विश्वास है,वही अक्षयवट है। कोई इसे मिटा नहीं सकता।
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कुंभ मेला, अपने समृद्ध इतिहास और महत्व के साथ, आध्यात्मिक विभूतियों के लिए एक साथ आने और सनातन धर्म के स्थायी मूल्यों की पुष्टि करने के लिए एक आदर्श मंच प्रदान करता है। सनातन धर्म की पवित्रता की रक्षा और संरक्षण के लिए सामूहिक विचार कुंभ में सहज रूप से संभव हैं। सनातन धर्म से जुड़ी विभिन्न चुनौतियों और भ्रांतियों पर चिंतन और हल के लिए कुंभ एक श्रेष्ठ अवसर भी है। सनातन धर्म की प्राचीन और पूजनीय परंपराओं के बारे में गलत सूचनाओं और गलत धारणाओं का सामूहिक रूप से मुकाबला करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में भी कुंभ को देखा जा सकता है।
कुंभ मेले के दौरान एक सामूहिक शक्ति के रूप में एकजुट होकर गलत सूचनाओं का मुकाबला कर सनातन धर्म की पवित्रता को संरक्षित कर सकते हैं। कुछ मुद्दों को उनके शुरुआती चरणों में ही देखा जाना चाहिए, जब वे केवल बीज होते हैं, बजाय इसके कि उन्हें जड़ पकड़ने और बढ़ने दिया जाए। यह सुनिश्चित करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि सनातन धर्म के विरुद्ध जो कुछ भी आरंभ हुआ है, उसे उसके शुरुआती चरणों में ही उखाड़ फेंका जाए, ताकि हमारी पोषित परंपरा का भविष्य सुरक्षित हो सके।
मैं भी कुंभ में 9 दिनों तक रामकथा का अनुष्ठान करूंगा। 18 जनवरी से 26 जनवरी तक कुंभ में रहना है। जब से यूपी के सीएम योगी बने हैं, तब से प्रयाराज के कुंभ और अधिक दिव्य हुए हैं। कुंभ करोड़ों लोगों की श्रद्धा का केंद्र है। इस बार का कुंभ हर एक प्रकार से सर्वोपरि है, क्योंकि यह एक साधु का आयोजन है। राजनीति तो अपनी जगह है, लेकिन इस कुंभ पर साधु के त्याग, तेज और तप का प्रभाव है। बाहर की रोशनी के साथ तपस्या के प्रकाश से कुंभ खास हो गया है।
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