Mahakumbh 2025: ज्ञान, ध्यान और उपदेश का समावेश है महाकुंभ, मिलता है संतों और गुरुजनों का सान्निध्य
चाहतों के जटिल चक्कर में जीवन की आपाधापी में स्वयं को खो बैठा मनुष्य यहां-वहां भटकता रहता है न जाने क्या-क्या करता रहता है। कुंभ मेला एक ऐसा आध्यात्मिक महोत्सव है जहां बोझिल मन को राहत मिलती है। जहां क्षणभंगुर संसार में उलझे व्यक्ति को जीवन के परम लक्ष्य पर चिंतन करने और परमात्मा से अपने अक्षुण्ण संबंध को अनुभव करने का सौभाग्य मिलता है।

नई दिल्ली, श्री श्री रवि शंकर (आर्ट आफ लिविंग के प्रणेता, आध्यात्मिक गुरु)। बचपन से हम सुनते आए हैं कि दुनिया दो दिन का मेला है। वेदांत के इस उत्कृष्ट ज्ञान के जागरण से जीवन में पूर्णता उदित होती है। पूर्णता का प्रतीक है कुंभ। ब्रह्म ज्ञानी संतों और सिद्धों को कुंभ कहकर भी संबोधित करते हैं। कुंभ एक ऐसा विचित्र मेला है, जहां वे संत मिलते हैं, जिन्हें कुछ भी नहीं चाहिए और वे सांसारिक लोग भी मिलते हैं, जिन्हें बहुत कुछ चाहिए। इस महासंगम में तपस्वी, जिन्हें तपस्या के बल के अहंकार में नहीं उलझना, निर्मम हो अपने अर्जित पुण्य सब पर बिखेर देते हैं।
अपनी इंद्रियों से हम जिस अस्तित्व को जानते हैं, महसूस करते हैं, देखते हैं या स्पर्श करते हैं, वह बड़ा ही सीमित है। इसके अतिरिक्त भी बहुत कुछ है, जो हमारे स्वरूप का अभिन्न हिस्सा है। जैसे-जैसे व्यक्ति प्रौढ़ होने लगता है, वह अदृश्य की खोज में खिंचा चला जाता है। उसे संसार फीका लगने लगता है और पूर्णता प्राप्त गुरुओं की शरण में जाने के लिए वह उतावला हो जाता है।
प्रायः जो पूर्ण है, वह भीड़भाड़ से दूर एकांत में रहते हैं। कुंभ मेले मे सब संतों और गुरुजनों का सान्निध्य और सामीप्य एक ही स्थान में सरलता से प्राप्त हो जाता है। ज्ञान, ध्यान और उपदेश का समावेश सहज ही मिल जाता है। यह एक सुअवसर है सूक्ष्म और स्थूल जगत के सबंध को अनुभव करने का। सिद्धों और साधकों की पावन, कल्याणमयी, रोमांचक ऊर्जा में अनुग्रहीत होने का। एकांत में रहने वाले महात्माओं के लिए भी अपनी तपस्या का फल सबके साथ बांटने का अवसर है। संभवतः एकांत और मेले का विरोधात्मक भेदभाव मिटाने के लिए पूर्वजों ने यह प्रथा बनाई। घटपट वेदांत की दृष्टि से जीव घट है, आत्मा आकाश रूपी है और मानव समुदाय घटों का एक समावेश।
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कुंभ मेले में कल्पवास का बड़ा महत्व है। केवल एक दिन प्रयागराज में आकर डुबकी लगाकर वापस चले जाना पर्याप्त नहीं है। कुछ दिन वहां पर वास करते हुए आत्मचिंतन करो, ज्ञान मंथन करो और फिर सत्य संकल्पी होकर समाज में लौटो तो कुंभ की यात्रा सफल हुई जानो। अशुद्धि क्षय के लिए तप, ज्ञान प्राप्ति के लिए स्वाध्याय, कर्म शुद्धि के लिए यज्ञ, दान आदि कर्म और कीर्तन में तल्लीन हो स्वयं को भूल जाना, यही सब तीर्थ यात्रा को सार्थक बनाते हैं। योग यज्ञ, ज्ञान यज्ञ, जप यज्ञ, और भक्ति यज्ञ का अनुपम समागम है कुंभ मेला।
अपने द्वारा हुए पाप की ग्लानि को आत्मा पर नहीं लादें। भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता में कहा है, “तुम अपने पापों को स्वयं दूर नहीं कर सकते, मेरी शरण में आओ, मैं तुम्हारे सारे पाप दूर कर दूंगा।” यही संतों की वाणी है। संतों के संग बैठने और ज्ञान की गंगा में डुबकी लगाने से भीतर के मल, आवरण और विक्षेप दूर हो जाते हैं। जीवन आनंद से पुलकित हो उठता है।
महाकुंभ 2025 में तीर्थयात्रियों की सुविधा हेतु सरकार और प्रशासन ने उत्कृष्ट और अत्याधुनिक व्यवस्था का प्रबंध कर एक नया मानदंड स्थापित किया है। पर्यावरण संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया गया है और साफ-सफाई के विशेष इंतजाम किए गए हैं। स्वच्छ जल की निर्बाध आपूर्ति, पर्यावरण-अनुकूल आवास की व्यवस्था और व्यापक सुरक्षा योजनाओं के यह समग्र प्रयास सराहनीय है।
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जनमानस के हृदय पटल पर कुंभ मेला एक सकारात्मक प्रभाव करता हुआ आया है। यह जीवन के अत्युत्कर्ष सत्य की खोज, पुण्य के उपार्जन और परस्पर सहयोग पूर्ण जीवन का एक आदर्श प्रस्तुत करता है। ब्रह्मांडीय शक्तियां इन दिनों एक लयबद्ध रूप में होती हैं, ऐसी मान्यता है। आत्मा अमर है और भक्ति अमृत स्वरूपा है। ब्रह्मांड के अस्तित्व में अपनी पहचान को विलीन कर देना और पूर्णता को प्राप्त करने की यह प्रथा है।
यह अद्भुत है कि मेले में करोड़ों लोगों के एकत्रित होने पर भी एक-दूसरे के प्रति करुणा, सेवा और परहित का मनोभाव, शुद्ध आचरण और व्यवहार झलकता है। काश संपूर्ण विश्व नित्य ऐसे ही कुंभ महोत्सव की भावना को बनाए रखे, तो न कोई चोरी होगी, न हिंसा, न द्वेष या युद्ध, और विश्व में शांति की संभावना और भी सदृढ़ हो जाएगी। उस विश्व शांति का, वैविध्यता में एकता और परस्पर सहयोग का एक निदर्शन है कुंभ मेला!
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