कब और कैसे जगत की देवी मां सती ने ली भगवान राम की परीक्षा? बेहद रोचक है कथा
हिंदू धर्म में भगवान राम की पूजा का बहुत महत्व है। माना जाता है कि भगवान राम की आराधना करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही रामायण का पाठ भी परम कल्याणकारी माना गया है क्योंकि उसमें प्रमु राम की अनेकों कथा का वर्णन हैं जो आज भी भक्तों को हैरान करती हैं। इसके अलावा सभी को आदर्श जीवन जीने के लिए प्रेरित भी करती हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में भगवान राम और देवी सीता की पूजा बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। भगवान राम का जीवन आज भी लोगों के लिए एक सीख है। उन्होंने एक आदर्श जीवन जी कर हर किसी को प्रेरणा दी, जिसे लेकर कई सारी कथाएं प्रचलित हैं। ऐसी ही एक कथा का जिक्र आज हम करेंगे। ये कथा तब की है जब त्रेतायुग में भगवान राम माता सीता का हरण होने के बाद पूरे वन में 'सीते-सीते कहकर उन्हें व्याकुल हो ढूंढ रहे थे। ये देख हर कोई हैरान था, क्योंकि भगवान राम श्री हरि विष्णु का अवतार हैं।
वहीं, इस घटना को देखकर प्रभु राम परमात्मा हैं या नहीं उनकी परीक्षा (bhagwan ram ji ki priksha) लेने के लिए देवी सती धरती लोक पर मां सीता का स्वरूप धारण कर चली आईं। हालांकि भगवान शिवजी ने उन्हें बहुत समझाया, लेकिन फिर भी वे अपने निर्णय पर अटल रहीं।
मां सती का भ्रम
जैसे माता सती (Mata Sati Ki Katha) भगवान राम के सामने पहुंची, तो उन्होंने मां को तुरंत ही पहचान लिया। इसके बाद मर्यादा पुरुषोत्तम ने भगवान शिव के बारे में भी पूंछ लिया, जिससे देवी सती बहुत ज्यादा हैरान हुईं। इस घटना के बाद मां सती का भ्रम पूरी तरह टूट गया और उन्हें ये यकीन हो गया कि राम जी ही श्री हरि विष्णु का अवतार हैं।
भगवान शिव ने कर दिया था परित्याग
कैलाश वापस आने के बाद मां सती ने भगवान शिव को कुछ भी नहीं बताया। वहीं, जब शिवजी ने पूंछा, तब उन्होंने कहा कि 'मैंने भगवान राम की कोई परीक्षा (Bhagwan Ram Ji Ki Priksha) नहीं ली है, मैं वहां जाकर उनका दर्शन करके वापस आ गई हूं।''
हालांकि शिव जी को पूरी परीक्षा की जानकारी पहले ही हो चुकी थी, जिसके चलते उन्होंने देवी सती का अपनी पत्नी के रूप में परित्याग कर दिया था, क्योंकि वे सीता जी को माता के रूप में देखते थे।
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