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    Jeevan Darshan: जीवन को नई राह देती हैं ये जरूरी बातें, न करें अनदेखा

    Updated: Mon, 30 Dec 2024 01:55 PM (IST)

    परमात्मा की निकटता पाने के लिए जीवन में सत्य प्रेम और करुणा का होना ज़रूरी है लेकिन जीवन में जितना आवश्यक इन्हें अपनाना है उतना ही अहंकार से दूर रहना है। न सिर्फ नववर्ष पर बल्कि प्रत्येक दिन यह ध्यान रखना चाहिए कि हम कितने ही गुणों से भरे हों लेकिन साथ में उन गुणों के होने का अहंकार भी हो तो वे गुण किसी काम के नहीं रहते।

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    Jeevan Darshan: प्रत्येक कार्य में बनाए रखें विवेक।

    मोरारी बापू (प्रसिद्ध कथावाचक)। रामकथा सेतुबंध की कथा है। राम ने सेतु बनाया। आज राष्ट्र और पूरे विश्व में समाज के विभिन्न वर्गों के बीच सेतु बनाए जाने की आवश्यकता है। विनोबा जी ने कहा था कि दो धर्मों में कभी झगड़ा नहीं होता। झगड़ा सदैव दो अधर्मों के बीच में ही होता है। धर्म के नाम पर झगड़े का बड़ा कारण ये है कि हम दूसरे के सत्य को स्वीकार नहीं करते। ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो लोग सत्य के मार्ग पर चल रहे हैं, लेकिन अक्सर लोग दूसरों के सत्य को स्वीकार नहीं कर पाते। मेरा सत्य ही सही है, दूसरे का सत्य सही नहीं है, नववर्ष में इस मानसिकता को छोड़ना होगा। परमात्मा की निकटता पाने के लिए जीवन में सत्य, प्रेम और करुणा का होना ज़रूरी है, लेकिन जीवन में जितना आवश्यक इन्हें अपनाना है, उतना ही अहंकार से दूर रहना है। न सिर्फ नववर्ष पर, बल्कि प्रत्येक दिन यह ध्यान रखना चाहिए कि हम कितने ही गुणों से भरे हों, लेकिन साथ में उन गुणों के होने का अहंकार भी हो तो वे गुण किसी काम के नहीं रहते।

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    परमात्मा जिस हाल में रखे, उसे उसकी अनुकंपा मानना ही परमात्मा से प्रेम है। मेरे परमात्मा ने जो मुझे दिया, वह विशाल वियोग भी मेरे लिए प्रसाद है। पीड़ा मिलने पर संशय न करो। संशय आदमी को कमजोर करता है और विश्वास आदमी को दृढ़ करता है। नए वर्ष पर कुछ व्रत लेने की बात की जाती है। मैं कहता हूं कि कुछ भी करो, मगर विवेक बनाए रखो। सिर्फ लेने के लिए व्रत लें और उसे निभा न सकें तो यह ठीक नहीं है। रामायण का दर्शन ही यह है कि संघर्षमय चित्त से कोई भी निर्णय न करें। रामायण कहती है कि तुम्हारा डांवाडोल चित्त कोई निर्णय न कर पाए तो थोड़ा रुक जाना। बुद्धि की अधिक कसरत मत करना।

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    ऐसे में जितना हो सके, प्रभु स्मरण करना। व्रत लेना ही है तो जितना निभा सकें, उतना सत्य का निर्वहन करना। सबसे बड़ा सत्य यह है कि प्रत्येक व्यक्ति में कुछ न कुछ कमियां हैं। आप उन्हीं कमियों के साथ लोगों को स्वीकार करें। जितना हो सके सत्य को निभाएं। सत्य में बहुत ताकत होती है।

    दूसरे, आपसे जितना बन पाए, उतना मौन रहें। जो जरूरी है, वही बोला जाए। शब्द में बहुत बड़ी ऊर्जा है। उसे व्यर्थ न गवाएं। तीसरा है धैर्यव्रत। कुछ भी विपरीत हो जाए, मगर धैर्य को बनाए रखें। जीवन में मुश्किलों का आते रहना स्वाभाविक है। भरोसा रखें कि धैर्य हर मुसीबत से बड़ा होता है।

    नव वर्ष के अवसर पर एक बात और याद रखें। राम समाज के वंचित लोगों के पास स्वयं चलकर गए। केवट, शबरी, अहल्या के प्रसंग इसके प्रमाण हैं। आज आवश्यकता है कि सक्षम लोग वंचित लोगों तक, अंतिम पंक्ति में खड़े लोगों तक स्वयं चल कर पहुंचें।

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