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    Jeevan Darshan: जीवन में रहना चाहते हैं हमेशा प्रसन्न, तो 6 जगहों पर बिल्कुल न करें क्रोध

    By Jagran News Edited By: Pravin Kumar
    Updated: Mon, 09 Dec 2024 08:21 AM (IST)

    कई लोग कहते हैं कि धन-संपत्ति तो खूब कमा ली मगर अब किसी भी बात पर आंखें नम नहीं होतीं। आपकी करुणा का खत्म होना या कम होना घाटे का सौदा है। कुछ भी कमा लो और संवेदनाओं को गंवा दो तो बहुत नुकसान की बात है। बोध बताता है कि ऐसी समृद्धि दो कौड़ी की है जो व्यक्ति को भावशून्य बना दे।

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    Jeevan Darshan: मोरारी बापू के अनमोल विचार

    मोरारी बापू (प्रसिद्ध कथावाचक)। जिसे बोध हो गया, वह क्रोध कर ही नहीं सकता। बोध होते ही क्रोध और विरोध हृदय से बाहर निकल जाते हैं। क्रोध और विरोध परमात्मा को प्राप्त करने के मार्ग में भी बाधक बन जाते हैं। काग भुशुंडि ने महर्षि लोमस से राम चरण के दर्शन की इच्छा जताई। महर्षि लोमस निराकार ब्रह्म की भक्ति करते थे। क्रोधित महर्षि लोमस ने काग भुशुंडि को शाप दे दिया। काग भुशुंडि ने तो काग रूप में भी भगवान के दर्शन प्राप्त कर लिए, लेकिन क्रोधवश महर्षि लोमस को यह फल नहीं मिला।

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    मैं अक्सर कहता हूं कि छह स्थितियों में बिल्कुल भी क्रोध न करें। पहला, सुबह उठते ही क्रोध न करें। दूसरा, भजन-पूजन के समय क्रोध न करें। तीसरा, घर से बाहर जाते समय क्रोध न करें। चौथा, दफ्तर से आते समय क्रोध न करें। पांचवां, बच्चों पर क्रोध न करें और छठा रात्रि में सोते समय क्रोध न करें। आप पूछेंगे कि इन छह के अलावा क्या कहीं भी क्रोध कर सकते हैं, तो उसके जवाब में मेरा कहना है कि जब आप इन छह स्थितियों में क्रोध नहीं करेंगे तो फिर धीरे-धीरे क्रोध आपसे छूट ही जाएगा। आप फिर कहीं भी क्रोध नहीं कर सकेंगे। इसलिए मैं कहता रहता हूं कि बोध है तो फिर क्रोध कैसा? और अगर क्रोध है तो फिर बोध कैसा? दोनों साथ-साथ चल ही नहीं सकते।

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     हमारे यहां बहुत ही प्रचलित शब्द है शुभ-लाभ। ज्ञान व्यक्ति को लाभ अर्जित करने का हुनर दे सकता है, लेकिन बोध व्यक्ति को शुभ की तलाश कराता है। बोध कहेगा कि शुभ का संग करो। प्रत्येक लाभ में शुभ नहीं होता, लेकिन प्रत्येक शुभ में लाभ ही होता है। शुभ का संग भी सत्संग है। बोध सिखाता है कि शुभ जहां से भी मिले, वहां से उसे ग्रहण कर लिया जाए। इसीलिए सत्संग से मेरा आशय सिर्फ धार्मिक क्रिया से नहीं होता। वह तो सत्संग है ही, लेकिन मेरे लिए सत्संग का अर्थ बहुत व्यापक है। एक अच्छी शायरी, कविता, गीत भी मेरे लिए सत्संग है। किसी फिल्म का गीत अगर प्रेरणा देता है तो मेरे लिए वह भी सत्संग का ही हिस्सा है।

    ज्ञान हमें सीख देता है कि सत्य बोला जाए। बोध हमें बताता है कि सत्य को किस तरह से बोला जाए कि वह कड़वा न हो जाए। जब हम सच की बात करते हैं तो एक कहावत कही जाती है कि सत्य हमेशा कड़वा होता है। वह आसानी से पचता नहीं है। मैं ऐसा नहीं मानता। मुझे लगता है कि सत्य को जानबूझकर कड़वा कर दिया जाता है। जो लोग कड़वा बोलने की तैयारी करके सत्य बोलते हैं, वे अनुचित शब्दों का चुनाव करके, गलत अंदाज में बोलकर, उसे कड़वा बना देते हैं। बोध से हम जान जाते हैं कि सत्य को मीठा बनाकर भी बोल सकते हैं। दूसरे का दिल भी न दुखे और बात भी समझ में आ जाए।  

     ज्ञान के लिए कुछ साधन चाहिए। कुछ पढ़ना, कुछ सुनना, कुछ अध्ययन। बोध किसी बुद्धपुरुष, सद्गुरु की कृपा से भी हो सकता है। बोध किसी साधन का मोहताज नहीं होता। भगवान बुद्ध अपने 10 हजार शिष्यों से बात करते थे। इसका अर्थ यह नहीं कि प्रत्येक भक्त से अलग-अलग कक्ष में मिलते होंगे, बल्कि जो लोग भगवान बुद्ध की शरण में गए होंगे, उन्हें भगवान द्वारा कही बातों को समझने का अवसर मिला होगा। व्यक्ति जब भगवान की भक्ति में लीन होता है तो उसके गुण, उपदेश, आदर्श को अंतःकरण में महसूस करने लगता है। जब भी भक्त को जरूरत होती है तो भगवान किसी न किसी रूप में जरूर उसके सामने उपस्थित होते हैं। यह युगे-युगे नहीं, क्षणे-क्षणे, दिने-दिने भी हो सकता है। एक बार किसी ने पूछा था कि इस धरती पर न तो बोधिवृक्ष है और न ही आनंद तो भगवान बुद्ध यहां दोबारा कैसे आएंगे। मैंने कहा था कि जिस वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध बैठ जाएं, वही वृक्ष बोधिवृक्ष हो जाएगा। अगर भगवान बुद्ध आए तो आनंद तो आएगा ही।

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    इसमें संदेह नहीं कि ज्ञान किसी भी व्यक्ति को सांसारिक समृद्धि दे सकता है, लेकिन बोध बताता है कि हमें अपने साथ-साथ सभी की समृद्धि की कामना करनी चाहिए। अगर समृद्धि हमें भाव शून्य कर दे तो यह घाटे का सौदा होगा। ऐसी प्रगति, ऐसी भौतिक उन्नति किसी काम की नहीं है, जो हमारे भगवत स्मरण को घटा दे और हमारी आंखों के आंसुओं को सुखा दे। कुछ करके दिखाने की होड़ और पैसा कमाने की आपाधापी में लोग प्रसन्न रहना तो भूल ही रहे हैं, हद तो यह है कि वो रोना भी भूल रहे हैं।

    कई लोग कहते हैं कि धन-संपत्ति तो खूब कमा ली, मगर अब किसी भी बात पर आंखें नम नहीं होतीं। आपकी करुणा का खत्म होना या कम होना घाटे का सौदा है। कुछ भी कमा लो और संवेदनाओं को गंवा दो तो बहुत नुकसान की बात है। बोध बताता है कि ऐसी समृद्धि दो कौड़ी की है, जो व्यक्ति को भावशून्य बना दे। सार रूप में कहूं तो बोध हमें भरोसा देता है कि हमारे जीवन में जो भी घटना घट रही है, वह परम तत्व की ओर ले जाने वाली घटना है। जीवन मे जो भी आए... मान, अपमान, दुख, सुख, प्रत्येक घटना परमात्मा की ओर ही ले जा रही है।