Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Makar Sankranti 2025: मकर संक्रांति है बहुत ही पुण्यदायी, इस दिन स्नान-दान का है विशेष महत्व

    मकर संक्रांति पर सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं और धरती पर प्रकाश का प्रभाव बढ़ जाता है। यह तमसो मा ज्योतिर्गमय की यात्रा है। जब उन्नति उत्तम विचारों सात्विकता कर्तव्यपालन त्याग सत्य दया क्षमा आदि की ओर हम प्रवृत्त होते हैं तब मानना चाहिए कि हम उत्तरायण की यात्रा पर चल पड़े हैं। पढ़िए मकर संक्रांति पर प्रो. गिरिजा शंकर शास्त्री के विचार।

    By Suman Saini Edited By: Suman Saini Updated: Mon, 13 Jan 2025 04:21 PM (IST)
    Hero Image
    Makar Sankranti 2025 पर जानिए प्रो. गिरिजा शंकर शास्त्री के विचार।

    प्रो. गिरिजाशंकर शास्त्री, ज्योतिष विभाग अध्यक्ष, काशी हिंदू विश्वविद्यालय। ज्योतिष चक्र में कुल बारह राशियां हैं। प्रत्येक राशि में एक महीने तक सूर्य का भ्रमण होता है। जिसे सौर राशि भी कहा जाता है। इस तरह सूर्य कुल 12 महीनों में संपूर्ण राशि चक्र की परिक्रमा पूर्ण करता है। सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश को संक्रांति कहा जाता है। जब सूर्य धनु राशि का भ्रमण पूर्ण कर मकर राशि में प्रवेश को उद्यत होता है, उसी काल को मकर संक्रांति कहा जाता है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    यह प्रकृति का परिवर्तन है, अतएव इसे प्राकृतिक पर्व कहना अधिक तर्कसंगत लगता है, किंतु सनातन धर्मावलंबी इसे धार्मिक या आध्यात्मिक पर्व मानते हैं। अन्य लोग इसे खिचड़ी के रूप में मानते हैं। मकर संक्रांति की महत्ता अनेक कारणों से सर्वातिशायी है। मकर राशि का स्वामी शनि है, जो सूर्य का पुत्र है। मकर में सूर्य का प्रवेश पिता-पुत्र के पुनर्मिलन का संकेतक है।

    सूर्य आत्मा का प्रतीक है, जबकि शनि दुःख कारक एवं दुःखहारक भी है। शनि कर्म का भी प्रतीक है। सूर्य एवं शनि दोनों जीवों के कर्मसाक्षी भी हैं। न्यायाधीश शनि, सूर्य के कर्माकर्म के विभाजन से ही जीवों के प्रति सुख-दुख का फल दाता बनता है। हजारों वर्षों पूर्व से मकर संक्रांति का संबंध भारतीय संस्कृति के साथ जुड़ा हुआ है।

    प्राचीन भारतवर्ष में वर्षारंभ मकर संक्रांति से ही होता था। आचार्य महात्मा लगध ने इसे युगादि अर्थात युगारंभ का प्रथम दिन भी कहा है। शिशिर ऋतु का आरंभ इसी दिन से होता है। मकर संक्रांति से उत्तरायण का आरंभ होता है। यही कारण है कि इस संक्रांति को ‘अयनी’ संक्रांति भी कहा जाता है। वैदिक साहित्य में उत्तरायण काल को अत्यधिक पवित्र माना गया है। उत्तरायण का अर्थ है उत्तर की ओर चलना। जब सूर्य क्षितिजवृत्त में अपनी दक्षिणी सीमा समाप्त करके उत्तर की ओर चलना आरंभ करता है, उसी कालखंड को उत्तरायण संज्ञा प्रदान की गई है। यहीं से दिन बढ़ने लगता है, रात्रि घटने लगती है।

    इसमें दिन अर्थात प्रकाश की वृद्धि ही मंगलकारी कही गई है। वृद्धि को शुभ मानने की परंपरा सदा ऋषियों से प्राप्त है। उत्तरायण में सूर्य का अधिक प्रकाश पृथ्वी वासियों को प्राप्त होता है। इसी काल को धर्मशास्त्रों ने देवताओं का दिन तथा दानवों की रात्रि कहा है। भीष्म पितामह ने शरशय्या पर कष्ट सहते हुए भी प्राण तब तक बनाए रखें, जब तक भगवान सूर्य मकर राशि में प्रवेश नहीं कर गए। इसी काल में भीष्म पितामह ने अपने प्राणों का उत्सर्ग किया था। उत्तरायण में ही आस्तिक, धर्मिष्ठजन अपने समस्त वैवाहिक कार्य, प्राणप्रतिष्ठा गृह प्रवेश, व्रतबंधादि समस्त कृत्य प्रारंभ करते हैं।

    यह भी पढ़ें - Makar Sankranti 2025: मकर संक्रांति पर ऐसे करें भगवान सूर्य को प्रसन्न, चमक जाएगी किस्मत, बरसेगा धन!

    मकर संक्रांति के दिन स्नान दान, व्रत, पूजन, हवन का विशेष महत्व है। स्नान के लिए गंगासागर, तीर्थराज प्रयाग की त्रिवेणी, हरिद्वार, कुरुक्षेत्र तथा काशी आदि क्षेत्र अत्यंत पवित्र कहे गए हैं तथापि इस दिन सूर्य चंद्र ग्रहण की भांति सभी सामान्य जल भी गंगाजल की भांति माने गए हैं। इस दिन बाल, वृद्ध, रोगी या अशक्तजनों के अतिरिक्त सभी को स्नान तथा यथाशक्ति दान अवश्य करना चाहिए। इस संक्रांति की षटतिला संज्ञा भी है। तिल मिश्रित जल से स्नान, तिल का तेल शरीर में लगाना, तिल की आहुति, तिल का जल, तिल का भोजन एवं तिल का दान अक्षय पुण्यदायी माना गया है।

    वेद एवं धर्मशास्त्र देश, काल एवं व्यक्ति की दृष्टि से तीन प्रकार से उत्तरायण, दक्षिणायन की व्याख्या करते हैं। देश अर्थात स्थानभेद से उत्तर दक्षिण हैं, जैसे भारत देश के उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में कन्याकुमारी हैं। काल की दृष्टि से सूर्य का मकर राशि से मिथुन राशि तक ही यात्रा उत्तरायण है, जबकि कर्क से धनु राशि पर्यंत दक्षिणायन है। इसी तरह व्यक्ति का भी उत्तर दक्षिण है मनीषीजन शरीर के शिर भाग को उत्तर तथा हृदय स्थल से नीचे भाग को दक्षिण मानते हैं। जब मनुष्य सद्विचार, विद्या, विवेक, वैराग्य, ज्ञान आदि के चिंतन में प्रवृत्त होता है, यही उत्तरायण की स्थिति है तथा जब भोग सुख, काम, क्रोध में वृत्ति लगाता है, वही दक्षिणायन है।

    यह भी पढ़ें - Makar Sankranti 2025: अपनों के लिए मकर संक्रांति के पर्व को बनाएं और भी खास, भेजें प्यार भरे संदेश

    भाव यह है कि जिसमें अपना पतन हो, अपनी हानि हो, मन, बुद्धि आदि निम्नगामी हो जाए, भोगों में ही मन रमें, सर्वथा अवनति हो, आत्मा मलिन हो, अंधकार से तमोगुण से प्रीति हो जाय, दर्प, दंभ, घमंड, क्रोध, अविवेक, हिंसा, राग, द्वेष, अभिनिवेश के साथ नकारात्मक प्रवृत्तियों में रुचि बढ़े, जब हम सामने वाले व्यक्तियों को अथवा अन्यान्य प्राणियों को कष्ट देने की क्रिया में प्रवृत्त होते हैं, तब दक्षिणायन में जीते हैं और जब अपनी उन्नति से स्वयं दूसरों की उन्नति में भी लगे, उत्तम विचारों से युक्त हों, निर्भीकता, सात्विकता, यज्ञानुष्ठान, कर्त्तव्यपालन में कठोरता, कष्ट सहने की प्रवृत्ति हो, संसार की कामनाओं से त्यागवृत्ति हो, सत्य में रुचि हो, न करने योग्य कार्यों से विरति, अमानिता, जीवों पर दयाभाव, क्षमा, धैर्य के साथ अंत:करण की निर्मलता हो, बुद्धि ऊर्ध्वगामी होने लगे, भोगों से विरति हो तथा किसी भी प्राणी से वैर न करने की वृत्ति आ जाए, तब मानना चाहिए कि हम उत्तरायण की यात्रा पर चल पड़े हैं। इसीलिए वेदों का उद्घोष है- तमसो मा ज्योतिर्गमय।