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    Paush Purnima 2026: नए साल की पहली पूर्णिमा पर करें देवी लक्ष्मी की पूजा, देवी लक्ष्मी की मिलेगी कृपा

    Updated: Sat, 27 Dec 2025 12:00 PM (IST)

    साल 2026 की पहली पूर्णिमा (Paush Purnima 2026) पौष पूर्णिमा 3 जनवरी 2026 को मनाई जाएगी। हिंदू धर्म में यह तिथि बेहद शुभ मानी जाती है। धार्मिक मान्यताओ ...और पढ़ें

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    Paush Purnima 2026: पौष पूर्णिमा।

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    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। साल 2026 की शुरुआत आध्यात्मिक ऊर्जा के साथ हो रही है। 3 जनवरी 2026 को नए साल की पहली पूर्णिमा यानी पौष पूर्णिमा मनाई जाएगी। हिंदू धर्म में पूर्णिमा तिथि माता लक्ष्मी को बेहद प्रिय है, और जब यह साल की पहली पूर्णिमा हो, तो इसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पौष पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है। वहीं, इस दिन (Paush Purnima 2026) माता लक्ष्मी की पूजा करने से न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि पूरे साल के लिए आर्थिक समृद्धि के द्वार भी खुल जाते हैं। कहा जाता है कि नए साल की इस पहली पूर्णिमा पर ''कनकधारा स्तोत्र'' का पाठ भी जरूर करना चाहिए। इससे देवी की कृपा मिलती है।

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    ॥ कनकधारा स्तोत्रम् ॥ (Kanakadhara Stotram Lyrics)

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    अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्तीभृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम्।

    अङ्गीकृताऽखिल-विभूतिरपाङ्गलीलामाङ्गल्यदाऽस्तु मम मङ्गळदेवतायाः॥1॥

    मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेःप्रेमत्रपा-प्रणहितानि गताऽऽगतानि।

    मालादृशोर्मधुकरीव महोत्पले यासा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः॥2॥

    विश्वामरेन्द्रपद-वीभ्रमदानदक्षआनन्द-हेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि।

    ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणर्द्धमिन्दीवरोदर-सहोदरमिन्दिरायाः॥3॥

    आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दआनन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम्।

    आकेकरस्थित-कनीनिकपक्ष्मनेत्रंभूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः॥4॥

    बाह्वन्तरे मधुजितः श्रित कौस्तुभे याहारावलीव हरिनीलमयी विभाति।

    कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला,कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः॥5॥

    कालाम्बुदाळि-ललितोरसि कैटभारे-धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव।

    मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्ति-भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः॥6॥

    प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत् प्रभावान्माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन।

    मय्यापतेत्तदिह मन्थर-मीक्षणार्धंमन्दाऽलसञ्च मकरालय-कन्यकायाः॥7॥

    दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारामस्मिन्नकिञ्चन विहङ्गशिशौ विषण्णे।

    दुष्कर्म-घर्ममपनीय चिराय दूरंनारायण-प्रणयिनी नयनाम्बुवाहः॥8॥

    इष्टाविशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र दृष्ट्यात्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते।

    दृष्टिः प्रहृष्ट-कमलोदर-दीप्तिरिष्टांपुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः॥9॥

    गीर्देवतेति गरुडध्वजभामिनीतिशाकम्भरीति शशिशेखर-वल्लभेति।

    सृष्टि-स्थिति-प्रलय-केलिषु संस्थितायैतस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै॥10॥

    श्रुत्यै नमोऽस्तु नमस्त्रिभुवनैक-फलप्रसूत्यैरत्यै नमोऽस्तु रमणीय गुणाश्रयायै।

    शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्र निकेतनायैपुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तम-वल्लभायै॥11॥

    नमोऽस्तु नालीक-निभाननायैनमोऽस्तु दुग्धोदधि-जन्मभूत्यै।

    नमोऽस्तु सोमामृत-सोदरायैनमोऽस्तु नारायण-वल्लभायै॥12॥

    नमोऽस्तु हेमाम्बुजपीठिकायैनमोऽस्तु भूमण्डलनायिकायै।

    नमोऽस्तु देवादिदयापरायैनमोऽस्तु शार्ङ्गायुधवल्लभायै॥13॥

    नमोऽस्तु देव्यै भृगुनन्दनायैनमोऽस्तु विष्णोरुरसि स्थितायै।

    नमोऽस्तु लक्ष्म्यै कमलालयायैनमोऽस्तु दामोदरवल्लभायै॥14॥

    नमोऽस्तु कान्त्यै कमलेक्षणायैनमोऽस्तु भूत्यै भुवनप्रसूत्यै।

    नमोऽस्तु देवादिभिरर्चितायैनमोऽस्तु नन्दात्मजवल्लभायै॥15॥

    सम्पत्कराणि सकलेन्द्रिय-नन्दनानिसाम्राज्यदान विभवानि सरोरुहाक्षि।

    त्वद्-वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानिमामेव मातरनिशं कलयन्तु नान्यत्॥16॥

    यत्कटाक्ष-समुपासनाविधिःसेवकस्य सकलार्थसम्पदः।

    सन्तनोति वचनाऽङ्गमानसैःस्त्वां मुरारि-हृदयेश्वरीं भजे॥17॥

    सरसिज-निलये सरोजहस्तेधवळतरांशुक-गन्ध-माल्यशोभे।

    भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञेत्रिभुवन-भूतिकरि प्रसीद मह्यम्॥18॥

    दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्टस्वर्वाहिनीविमलचारु-जलप्लुताङ्गीम्।

    प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेषलोकाधिराजगृहिणीम मृताब्धिपुत्रीम्॥19॥

    कमले कमलाक्षवल्लभेत्वं करुणापूर-तरङ्गितैरपाङ्गैः।

    अवलोकय मामकिञ्चनानांप्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः॥20॥

    स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमीभिरन्वहंत्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।

    गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनोभवन्ति ते भुविबुधभाविताशयाः॥21॥

    ॥ श्रीमदाध्यशङ्कराचार्यविरचितं श्री कनकधारा स्तोत्रम् समाप्तम् ॥

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