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    Hindu Rituals: क्यों अंतिम संस्कार से पहले सुहागिनों का किया जाता है 16 शृंगार ?

    Updated: Sun, 29 Jun 2025 02:10 PM (IST)

    हिंदू धर्म में सुहागिन स्त्री का अंतिम संस्कार विशेष रीति-रिवाजों से किया जाता है। मृत्यु के बाद उसे सोलह शृंगार से सजाया जाता है क्योंकि यह सौभाग्य का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि सुहागिन महिला देवी का रूप होती है और अपने पति के प्रति समर्पित रहती है। यह परंपरा पति-पत्नी के अटूट बंधन और शुभता का प्रतीक है जो मृत्यु के बाद भी बना रहता है।

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    Solah Shrinhar Importance: सोलह शृंगार का महत्व।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में रीति-रिवाज और परंपराएं जीवन के हर पड़ाव पर एक गहरा मतलब और महत्व रखती हैं। जन्म से लेकर मृत्यु तक, प्रत्येक संस्कार का अपना एक खास महत्व है। एक तरफ मृत्यु जिसे जीवन का अंतिम सत्य माना जाता है, लेकिन इस दौरान भी कई परंपराओं का पालन किया जाता है, जिनमें से एक विशेष परंपरा अंतिम संस्कार से पहले सुहागिनों का 16 शृंगार (Solah Shringar) करना है। इस प्रथा को लेकर लोगों के मन में ये सवाल आता है कि आखिर शृंगार तो जीवन के उत्सव का प्रतीक है, तो फिर मृत्यु के समय ऐसा क्यों किया जाता है? आइए इसके पीछे की वजह जानते हैं।

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    सोलह शृंगार का महत्व (Solah Shringar Importance)

    हिंदू धर्म में सोलह शृंगार को नारी के सौभाग्य और सुंदरता का प्रतीक माना जाता है। यह केवल सुंदरता बढाने के लिए नहीं है, बल्कि सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है। इसमें लाल जोड़ा, सिंदूर, बिंदी, चूड़ियां, मेहंदी, मांग टीका, नथ, हार, कमरबंद, पायल, अंगूठी, काजल, बाजूबंद, कानों के झुमके, बिछिया, मंगलसूत्र आदि शामिल हैं।

    अंतिम संस्कार से पहले सोलह शृंगार करने की क्या है वजह? (Kyu Kiya Jata Hai 16 Shringar?)

    • सौभाग्यवती सम्मान - हिंदू धर्म में एक सुहागिन महिला का निधन उसके पति के जीवित रहते होना सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। ऐसी महिला को 'अखंड सौभाग्यवती' कहा जाता है। इसके साथ ही अंतिम संस्कार से पहले सोलह शृंगार करके उसे सम्मान दिया जाता है और यह ये भी दिखाता है कि उसने अपने जीवन को एक सौभाग्यशाली स्त्री के रूप में पूरा किया है।
    • देवी स्वरूप - भारतीय संस्कृति में नारी को शक्ति और देवी का स्वरूप माना गया है। खासतौर पर सुहागिन महिला को देवी लक्ष्मी का रूप माना जाता है। उसके अंतिम समय में उसे सोलह शृंगार करके विदा करना एक देवी को उसके अंतिम यात्रा के लिए तैयार करने जैसा है। यह परंपरा उसके पूज्यनीय स्वरूप को मान्यता देता है।
    • पति के प्रति प्यार और समर्पण - यह माना जाता है कि सुहागिन महिला अपने पति के प्रति आजीवन समर्पित रहती है। सोलह शृंगार उसकी इस निष्ठा और प्रेम का प्रतीक है। कुछ मान्यताओं के अनुसार, यह पति और पत्नी के बीच के अटूट बंधन को दिखाता है, जो मृत्यु के बाद भी समाप्त नहीं होता।
    • शुभता का प्रतीक - हालांकि मृत्यु एक दुखद घटना है, लेकिन सुहागिन की मृत्यु को कुछ मायनों में शुभ माना जाता है। सोलह शृंगार इस शुभता को बनाए रखने का एक तरीका है। यह माना जाता है कि वह अपने साथ सभी शुभता को लेकर जा रही है और अपने परिवार को आशीर्वाद दे रही है।
    • अंतिम विदाई - यह परंपरा एक तरह से एक भव्य अंतिम विदाई देने का तरीका है, जिस तरह वे जीवन के हर महत्वपूर्ण अवसरों पर सजती-संवरती है, उसी तरह उन्हें अंतिम यात्रा में भी गरिमामय बनाया जाता है।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।