दाह संस्कार में अब लकड़ी नहीं, गोइठा का होगा उपयोग
गोबर के कंडों या गोइठा से शव का अंतिम संस्कार पर्यावरण की दृष्टि से फायदा है कि जंगल बचेगा। लकडि़यां कटेंगी नहीं और पेड़ों की रक्षा होगी।
रांची, [संजय कृष्ण] । दाह संस्कार में अब लकड़ी नहीं, गोइठा का उपयोग होगा। इसके लिए रांची जिला मारवाड़ी सम्मेलन ने पहल की है। मारवाड़ी समाज की प्रमुख संस्था मारवाड़ी सहायक समिति द्वारा संचालित मुक्तिधाम एवं रांची गोशाला को इस आशय का पत्र लिखा गया जिसपर संस्थाओं ने अपनी सहमति भी दे दी।
सम्मेलन के विनय सरावगी ने यह प्रयास किया है। ऐसा रांची में पहली बार होगा। सरावगी ने दोनों संस्थाओं को बताया है कि कोलकाता नगर निगम द्वारा संचालित निमतल्ला श्मशान घाट में कोलकाता पिंजरापोल सोसाइटी के सहयोग से लकड़ी की जगह गोबर के कंडों या गोइठा से शव का अंतिम संस्कार किया जा रहा है। रांची में भी इसकी पहल हो। इसके कई फायदे हैं। विनय बताते हैं, पर्यावरण की दृष्टि से पहला फायदा तो यही है कि जंगल बचेगा। लकडि़यां कटेंगी नहीं और पेड़ों की रक्षा होगी। लकड़ी के धुएं से फैलने वाला प्रदूषण भी नहीं होगा। गोबर के धुएं से प्रदूषण घटता है। गोबर की राख नदी में बहाने से नदी का पानी साफ होता है। उपले बनाने से ग्रामीण महिलाओं के हाथ में दो पैसे आएंगे।
चूंकि अब गांवों में भी गैस पहंुच गया सो, गोइठा का उपयोग खत्म होता जा रहा है। इसलिए, दाह-संस्कार से गोइठा की बिक्री भी बढ़ेगी। इससे गोरक्षा भी हो सकेगी। बूढ़ी गाय दूध भले न दे, गोबर तो करती ही हैं। इसका उपयोग भी हो जाएगा। गायें कत्लखानों में जाने से बच जाएंगी।
इससे और भी फायदा है। विनय बताते हैं कि पेड़ों की रक्षा आज बहुत जरूरी हो गई है। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से आज रांची का मौसम भी बदल गया है। अब यह हिल स्टेशन नहीं रहा। इसे फिर से पुरानी स्थिति में लाने के लिए ये जरूरी कदम हैं। पहले इसकी शुरुआत मुक्तिधाम से होगी। इसके बाद स्वर्णरेखा मुक्तिधाम में भी गोइठे के उपयोग के लिए जागरूक किया जाएगा। फिर, रांची के सुदूरवर्ती गांवों में, जहां दाह-संस्कार किए जाते हैं, वहां भी जागरूकता फैलाई जाएगी। गांवों में गोइठा की कोई कमी नहीं है। इसकी बिक्री से स्वावलंबन की राह भी बनेगी। गोइठे का धार्मिक महत्व भी है।
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