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    Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य के ये श्लोक, आपके लिए करेंगे सफलता प्राप्ति की राह आसान

    Updated: Sat, 27 Dec 2025 05:07 PM (IST)

    आज हम आपको आचार्य चाणक्य (Chanakya Niti in hindi) के कुछ ऐसे श्लोक बताने जा रहे हैं, जो जीवन में आपका सही मार्गदर्शन में सहायता कर सकते हैं। इन सिद्धा ...और पढ़ें

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    Chanakya Niti Tips in hindi (AI Generated Image)

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    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। चाणक्य नीति शास्त्र  में ऐसी कई बातें बताई गई है जिन्हें अगर आप अपने जीवन में उतार लेते हैं, तो इससे आपके लिए सफलता प्राप्ति की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। ऐसे में आज हम आपको चाणक्य नीति में वर्णित कुछ ऐसे श्लोक बताने जा रहे हैं, जो आपको बाकी लोगों से 4 कदम आगे रखेंगे।

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    श्लोक 1: "विषादप्यमृतं ग्राह्यममेध्यादपि काञ्चनम्। नीचादप्युत्तमां विद्यां स्त्रीरत्नं दुष्कुलादपि।।"

    इस श्लोक में आचार्य चाणक्य (Acharya Chanakya) कहते हैं कि जहरीली चीज से अमृत, गंदी जगह से सोना लिया जा सकता है। इसके साथ ही वह कहते हैं कि ज्ञान जहां से मिले वहीं से ले लेना चाहिए। इसमें कोई बुराई नहीं है।

    श्लोक 2: "नात्यन्तं सरलैर्भाव्यं गत्वा पश्य वनस्थलीम् ।
    छिद्यन्ते सरलास्तत्र कुब्जास्तिष्ठन्ति पादपाः॥"

    चाणक्य नीति के इस श्लोक में कहा गया है कि किसी व्यक्ति बहुत सीधा या भोला नहीं होना चाहिए। इससे होने वाले नुकसान को समझाने के लिए वह कहते हैं कि जंगल में सीधे पेड़ों को सबसे पहले काटा जाता है और टेढ़े-मेढ़े पेड़ बचे रहते हैं। ठीक इसी तरह सीधे लोगों का फायदा पहले उठाया जाता है।

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    (Picture Credit: Freepik) (AI Image)

    श्लोक 3: "न स्नेहात् कृत्वा विघ्नं न द्वेषात् न च लोभतः।
    न मोहत् कार्यमत्यन्तं कार्यं कार्यवदाचरेत्"

    इस श्लोक में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि किसी भी काम को प्रेम, द्वेष (नफरत) लालच या मोह में अर्थात भ्रम में आकर नहीं करना चाहिए। हमेशा अपने कार्य को कर्तव्य समझकर, निष्पक्ष और विवेकपूर्ण तरीके से करना चाहिए। यानी जैसे कार्य आवश्यक है, उसे वैसे ही करना चाहिए।

    श्लोक 4: कः कालः कानि मित्राणि को देशः कौ व्ययागमौ ।
    कश्चाहं का च मे शक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्मुहुः ॥

    चाणक्य नीति के इस श्लोक का अर्थ है कि मनुष्य को हमेशा यह सोचना चाहिए कि समय कैसा है, मेरे मित्र कौन हैं, कौन-सा देश या स्थान मेरे लिए सही है, मेरी आय-व्यय का संतुलन क्या है और मेरी असली शक्ति क्या है। इस सभी बातों का ध्यान रखकर ही जीवन में सफलता हासिल की जा सकती है।

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    (AI Generated Image)

    श्लोक 5: गुणैरुत्तमतां याति नोच्चैरासनसंस्थितः।
    प्रासादशिखरस्थोऽपि काकः किं गरुडायते॥ 

    इस श्लोक का अर्थ है कि मनुष्य सर्वश्रेष्ठ तभी बन सकता है, जब उसके गुण उत्तम हो। किसी व्यक्ति को उसके पद के आधार पर सर्वश्रेष्ठ या उत्तम नहीं माना जा सकता। इसका उदाहरण देते हुए चाणक्य कहते हैं कि जैसे महल के शिखर पर बैठा एक कौआ कभी गरुड़ नहीं बन सकता।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।