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    Shani Chalisa Lyrics: शनिदेव की कृपा के लिए उत्तम है शनिवार, जरूर करें इन मंत्रों का जप

    Updated: Sat, 27 Dec 2025 09:02 AM (IST)

    शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता है और शनिवार का दिन उनकी पूजा-अर्चना के लिए विशेष माना गया है। इस दिन शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए आप उनके शनि मंत ...और पढ़ें

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    Shani Dev Puja न्याय के देवता हैं शनिदेव

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    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। शनि देव, सूर्य देव के पुत्र हैं, जो कर्मफल दाता भी कहे जाते हैं। वह व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार, फल प्रदान करते हैं। ऐसे में अगर आप शनिदेव की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो इसके लिए शनिवार का दिन सबसे उत्तम माना गया है। चलिए कृपा प्राप्ति के लिए पढ़ते हैं शनिदेव के मंत्र और स्तोत्र।

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    शनिदेव के मंत्र

    1. "ॐ शन्नो देविर्भिष्ठयः आपो भवन्तु पीतये। सय्योंरभीस्रवन्तुनः।।

    2. शनि एकाक्षरी मंत्र - शं

    3. शनि मूल मंत्र - ॐ शं शनैश्चराय नमः

    4. शनि बीज मंत्र- ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।

    5. शनि गायत्री मंत्र - ॐ सूर्यात्मजाय विद्महे मृत्युरूपाय धीमहि तन्नः सौरिः प्रचोदयात्॥

    6. शनि प्रणाम मंत्र - ॐ नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छाया मार्तण्डसंभूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌॥

    7. शनि वैदिक मंत्र - ॐ शन्नोदेवीर भिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तुनः।

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    ॥ शनैश्चरस्तोत्रम् ॥ (Shani Stotram lyrics)

    ॥ विनियोग ॥

    शनि स्तोत्रम्

    अस्य श्रीशनैश्चरस्तोत्रस्य। दशरथ ऋषिः॥

    शनैश्चरो देवता। त्रिष्टुप् छन्दः॥

    शनैश्चरप्रीत्यर्थ जपे विनियोगः॥

    ॥ दशरथ उवाच ॥

    कोणोऽन्तको रौद्रयमोऽथ बभ्रुः कृष्णः शनिः पिङ्गलमन्दसौरिः।

    नित्यं स्मृतो यो हरते च पीडां तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥1॥

    सुरासुराः किंपुरुषोरगेन्द्रा गन्धर्वविद्याधरपन्नगाश्च।

    पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥2॥

    नरा नरेन्द्राः पशवो मृगेन्द्रा वन्याश्च ये कीटपतङ्गभृङ्गाः।

    पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥3॥

    देशाश्च दुर्गाणि वनानि यत्र सेनानिवेशाः पुरपत्तनानि।

    पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥4॥

    तिलैर्यवैर्माषगुडान्नदानैर्लोहेन नीलाम्बरदानतो वा।

    प्रीणाति मन्त्रैर्निजवासरे च तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥5॥

    प्रयागकूले यमुनातटे च सरस्वतीपुण्यजले गुहायाम्।

    यो योगिनां ध्यानगतोऽपि सूक्ष्मस्तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥6॥

    अन्यप्रदेशात्स्वगृहं प्रविष्टस्तदीयवारे स नरः सुखी स्यात्।

    गृहाद् गतो यो न पुनः प्रयाति तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥7॥

    स्रष्टा स्वयंभूर्भुवनत्रयस्य त्राता हरीशो हरते पिनाकी।

    एकस्त्रिधा ऋग्यजुःसाममूर्तिस्तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥8॥

    शन्यष्टकं यः प्रयतः प्रभाते नित्यं सुपुत्रैः पशुबान्धवैश्च।

    पठेत्तु सौख्यं भुवि भोगयुक्तः प्राप्नोति निर्वाणपदं तदन्ते॥9॥

    कोणस्थः पिङ्गलो बभ्रुः कृष्णो रौद्रोऽन्तको यमः।

    सौरिः शनैश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संस्तुतः॥10॥

    एतानि दश नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्।

    शनैश्चरकृता पीडा न कदाचिद्भविष्यति॥11॥

    ॥ इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे श्रीशनैश्चरस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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