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    Shardiya Navratri 2023: आज पूजा के समय करें मां ब्रह्मचारिणी चालीसा का पाठ और आरती, घर आएगी सुख-समृद्धि

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Mon, 16 Oct 2023 08:00 AM (IST)

    आज शारदीय नवरात्रि के दूसरे दिन जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा के द्वितीय शक्ति स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही उनके निमित्त व्रत उपवास रखा जाता है। धार्मिक मत है कि मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से साधक के सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं। साथ ही बल बुद्धि विद्या और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

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    Shardiya Navratri 2023: आज पूजा के समय करें मां ब्रह्मचारिणी चालीसा का पाठ और आरती, घर आएगी सुख-समृद्धि

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली | Shardiya Navratri 2023: आज शारदीय नवरात्रि का दूसरा दिन है। यह दिन जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा के द्वितीय शक्ति स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित होता है। अतः नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही उनके निमित्त व्रत उपवास रखा जाता है। धार्मिक मत है कि मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से साधक के सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं। साथ ही बल, बुद्धि, विद्या और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। अगर आप भी अपने जीवन में व्याप्त दुख और संकट से निजात पाना चाहते हैं, तो आज पूजा के समय मां ब्रह्मचारिणी का चालीसा का पाठ और आरती करें।

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    दोहा

    कोटि कोटि नमन मात पिता को, जिसने दिया ये शरीर।

    बलिहारी जाऊँ गुरू देव ने, दिया हरि भजन में सीर।।

    स्तुति

    चन्द्र तपे सूरज तपे, और तपे आकाश ।

    इन सब से बढकर तपे,माताऒ का सुप्रकाश ।।

    मेरा अपना कुछ नहीं, जो कुछ है सो तेरा ।

    तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा ॥

    पद्म कमण्डल अक्ष, कर ब्रह्मचारिणी रूप ।

    हंस वाहिनी कृपा करो, पडू नहीं भव कूप ॥

    जय जय श्री ब्रह्माणी, सत्य पुंज आधार ।

    चरण कमल धरि ध्यान में, प्रणबहुँ माँ बारम्बार ॥

    यह भी पढ़ें- नवरात्रि के दूसरे दिन इस विधि से करें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा, आय और सौभाग्य में होगी वृद्धि

    चौपाई

    जय जय जग मात ब्रह्माणी, भक्ति मुक्ति विश्व कल्याणी।

    वीणा पुस्तक कर में सोहे, शारदा सब जग सोहे ।।

    हँस वाहिनी जय जग माता, भक्त जनन की हो सुख दाता।

    ब्रह्माणी ब्रह्मा लोक से आई, मात लोक की करो सहाई।।

    क्षीर सिन्धु में प्रकटी जब ही, देवों ने जय बोली तब ही।

    चतुर्दश रतनों में मानी, अद॒भुत माया वेद बखानी।।

    चार वेद षट शास्त्र कि गाथा, शिव ब्रह्मा कोई पार न पाता।

    आदि शक्ति अवतार भवानी, भक्त जनों की मां कल्याणी।।

    जब−जब पाप बढे अति भारी, माता शस्त्र कर में धारी।

    पाप विनाशिनी तू जगदम्बा, धर्म हेतु ना करी विलम्बा।।

    नमो: नमो: ब्रह्मी सुखकारी, ब्रह्मा विष्णु शिव तोहे मानी।

    तेरी लीला अजब निराली, सहाय करो माँ पल्लू वाली।।

    दुःख चिन्ता सब बाधा हरणी, अमंगल में मंगल करणी।

    अन्न पूरणा हो अन्न की दाता, सब जग पालन करती माता।।

    सर्व व्यापिनी असंख्या रूपा, तो कृपा से टरता भव कूपा।

    चंद्र बिंब आनन सुखकारी, अक्ष माल युत हंस सवारी।।

    पवन पुत्र की करी सहाई, लंक जार अनल सित लाई।

    कोप किया दश कन्ध पे भारी, कुटुम्ब संहारा सेना भारी।।

    तु ही मात विधी हरि हर देवा, सुर नर मुनी सब करते सेवा।

    देव दानव का हुआ सम्वादा, मारे पापी मेटी बाधा।।

    श्री नारायण अंग समाई, मोहनी रूप धरा तू माई।।

    देव दैत्यों की पंक्ति बनाई, देवों को मां सुधा पिलाई।।

    चतुराई कर के महा माई, असुरों को तू दिया मिटाई।

    नौ खण्ङ मांही नेजा फरके, भागे दुष्ट अधम जन डर के।।

    तेरह सौ पेंसठ की साला, आस्विन मास पख उजियाला।

    रवि सुत बार अष्टमी ज्वाला, हंस आरूढ कर लेकर भाला।।

    नगर कोट से किया पयाना, पल्लू कोट भया अस्थाना।

    चौसठ योगिनी बावन बीरा, संग में ले आई रणधीरा।।

    बैठ भवन में न्याय चुकाणी, द्वारपाल सादुल अगवाणी।

    सांझ सवेरे बजे नगारा, उठता भक्तों का जयकारा।।

    मढ़ के बीच खड़ी मां ब्रह्माणी, सुन्दर छवि होंठो की लाली ।

    पास में बैठी मां वीणा वाली, उतरी मढ़ बैठी महाकाली ।।

    लाल ध्वजा तेरे मंदिर फरके, मन हर्षाता दर्शन करके।

    दूर दूर से आते रेला, चैत आसोज में लगता मेला।।

    कोई संग में, कोई अकेला, जयकारो का देता हेला।

    कंचन कलश शोभा दे भारी, दिव्य पताका चमके न्यारी।।

    सीस झुका जन श्रद्धा देते, आशीष से झोली भर लेते।

    तीन लोकों की करता भरता, नाम लिए सब कारज सरता ।।

    मुझ बालक पे कृपा कीज्यो, भुल चूक सब माफी दीज्यो।

    मन्द मति जय दास तुम्हारा, दो मां अपनी भक्ती अपारा ।।

    जब लगि जिऊ दया फल पाऊं, तुम्हरो जस मैं सदा सुनाऊं।

    श्री ब्रह्माणी चालीसा जो कोई गावे, सब सुख भोग परम सुख पावे ।।

    दोहा

    राग द्वेष में लिप्त मन, मैं कुटिल बुद्धि अज्ञान ।

    भव से पार करो मातेश्वरी, अपना अनुगत जान ॥

    मां ब्रह्मचारिणी की आरती

    जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता।

    जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।

    ब्रह्मा जी के मन भाती हो।

    ज्ञान सभी को सिखलाती हो।

    ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।

    जिसको जपे सकल संसारा।

    जय गायत्री वेद की माता।

    जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।

    कमी कोई रहने न पाए।

    कोई भी दुख सहने न पाए।

    उसकी विरति रहे ठिकाने।

    जो तेरी महिमा को जाने।

    रुद्राक्ष की माला ले कर।

    जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।

    आलस छोड़ करे गुणगाना।

    मां तुम उसको सुख पहुंचाना।

    ब्रह्मचारिणी तेरो नाम।

    पूर्ण करो सब मेरे काम।

    भक्त तेरे चरणों का पुजारी।

    रखना लाज मेरी महतारी।

    डिसक्लेमर- 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'