Move to Jagran APP

दलित समुदाय के विरोध के बाद अपने मूल और पुराने स्‍वरूप में लौटेगा SC/ST एक्‍ट

दलित समुदाय की नाराजगी को देखते हुए केंद्र सरकार ने एससी-एसटी एक्ट को पुराने और मूल स्वरूप में लाने का फैसला किया है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 07 Aug 2018 10:57 AM (IST)Updated: Tue, 07 Aug 2018 11:05 AM (IST)
दलित समुदाय के विरोध के बाद अपने मूल और पुराने स्‍वरूप में लौटेगा SC/ST एक्‍ट
दलित समुदाय के विरोध के बाद अपने मूल और पुराने स्‍वरूप में लौटेगा SC/ST एक्‍ट

रविशंकर । दलित समुदाय की नाराजगी को देखते हुए केंद्र सरकार ने एससी-एसटी एक्ट को पुराने और मूल स्वरूप में लाने का फैसला किया है। मालूम हो कि केंद्र की मोदी सरकार ने 2015 में संशोधन लाकर इस कानून को सख्त बनाया था। इसके तहत विशेष कोर्ट बनाने और तय समय सीमा के अंदर सुनवाई पूरी करने जैसे प्रावधान जोड़े गए थे। इसके बाद 2016 में गणतंत्र दिवस के दिन से संशोधित एससी-एसटी कानून लागू हुआ।

loksabha election banner

लेकिन इस साल न्यायपालिका ने इसमें बदलाव किया। दलित संगठनों में इस फैसले को लेकर नाराजगी थी। सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट के तहत शिकायत मिलने पर तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। इस कानून के व्यापक दुरुपयोग का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय लिया था। लेकिन इस फैसले के खिलाफ दलित संगठन सड़कों पर उतरे। साथ ही केंद्र सरकार पर दबाव बनाया गया। उसे सहयोगी दलों के साथ-साथ बीजेपी के दलित सांसदों की भी नाराजगी झेलनी पड़ रही थी।

बहरहाल, अब संशोधित बिल में उन सभी पुराने प्रावधानों को शामिल किया जाएगा, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में हटा दिया था। अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों पर होने वाले अत्याचार और उनके साथ होने वाले भेदभाव को रोकने के मकसद से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम, 1989 बनाया गया था। इसके तहत इन लोगों को समाज में एक समान दर्जा दिलाने के लिए कई प्रावधान किए गए। इन पर होने वाले अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष व्यवस्था की गई ताकि ये अपनी बात खुलकर रख सकें। जातिगत आधार पर अपमानित करने को गैर-जमानती अपराध माना गया था।

यह सही है कि समाज में दलितों के साथ भेदभाव होता रहा है, लेकिन ज्यादातर मामलों में बेगुनाह लोगों को रंजिशन इसमें फंसा दिया जाता था। ऐसे में इस कानून को लेकर अक्सर सवाल उठता था। सुप्रीम कोर्ट का उद्देश्य इस कानून के दुरुपयोग को रोकना है। बहरहाल, लोकसभा चुनाव नजदीक होने के कारण सरकार दलित समुदाय को नाराज नहीं करना चाहती है। बेशक 2014 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय पटल पर आने के बाद यह स्थिति बदली और यूपी से लेकर महाराष्ट्र तक दलितों की राजनीति करने वाले मोदी लहर में हाशिए पर चले गए। बीजेपी पर दलितों ने भरोसा किया, लेकिन एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले और दलितों पर भीड़ के हमलों ने दलितों को उग्र कर दिया।

बीजेपी इसी पसोपेश में है कि कहीं दलितों की नाराजगी 2019 में उसके लिए महंगी न पड़ जाए, वहीं कांग्रेस सहित विपक्षी पार्टियां इस कोशिश में लगी हैं कि दलितों का दिल जीतकर एक बार फिर सत्ता में वापसी कर सकें।बीजेपी को लग रहा है कि दलितों में इस समय पकड़ किसी पार्टी की है तो वह बहुजन समाज पार्टी है। 2014 में बसपा को भले ही कोई सीट न मिली हो लेकिन उसे 2.29 करोड़ वोट जरूर मिले थे। ऐसे में बीजेपी की नजर दलित वोटबैंक के किले में किसी तरह से सेंध लगाने की तरफ है तो वहीं मायावती सहित अन्य दलित नेता अपने इस किले को दरकने नहीं देना चाहते हैं। 12019 चुनाव को देखते हुए सत्तापक्ष और विपक्ष इसके पक्ष में खड़े हैं। देश की कुल जनसंख्या में 20.14 करोड़ दलित हैं। देश में कुल 543 लोकसभा सीट हैं।

इनमें से 84 सीटें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। इसके अलावा ये करीब 250 लोकसभा सीटों पर अहम भूमिका निभाते हैं। हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव में इन 84 सीटों में से बीजेपी ने 41 पर जीत दर्ज की थी। इस साल के अंत में राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव भी होने हैं। यहां इनकी आबादी ज्यादा है। साफ है, चुनावी आहटों के बीच राजनीतिक दल किसी भी मुद्दे को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। जातियों पर सिमटते जा रहे चुनावों के मद्देनजर अनुसूचित जाति और जनजाति राजनीतिक दलों के लिए अहम मुद्दा है। यह मामला कांग्रेस और भाजपा के लिए भले राजनीतिक मुद्दा हो, लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि इससे लाखों दलितों के हित भी जुड़े हैं।

पाकिस्‍तान को लेकर बड़ा सवाल- क्‍या इमरान की सरकार कर पाएगी पूरा कार्यकाल  
एनआरसी: बांग्लादेशी शरणार्थियों को देश की सुरक्षा के लिए खतरा मानती थीं इंदिरा गांधी! 
पिज्‍जा डिलीवरी वाला ड्रोन हो सकता है कितना खतरनाक, राष्‍ट्रपति पर हमले से आया सामने 
बीते सात माह में भारत ने चीन को साधने के लिए चल दी शह और मात की चाल 
जिन्‍होंने दिल से निकाल दिया मौत का खौफ, वो हैं व्‍हाइट हैलमेट के कार्यकर्ता
9/11 हमले के कुछ घंटों बाद ही ओसामा के परिवार को पता चल गया कि इसके पीछे कौन

 

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.