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चीन को मात देने की कवायद शुरू, सेशेल्स के बाद अफ्रीका बना भारत का दूसरा पड़ाव

इस वर्ष में भारत ने सामरिक और रणनीतिक क्षेत्र में काफी सफलता हासिल की है। इस सफलता के साथ चीन को साधना भी भारत के लिए आसान हो गया है। इसमें यूएस का भी साथ मिला है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 03 Aug 2018 03:30 PM (IST)Updated: Sun, 05 Aug 2018 11:04 AM (IST)
चीन को मात देने की कवायद शुरू, सेशेल्स  के बाद अफ्रीका बना भारत का दूसरा पड़ाव
चीन को मात देने की कवायद शुरू, सेशेल्स के बाद अफ्रीका बना भारत का दूसरा पड़ाव

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। भारत अब लगातार हर क्षेत्र में तरक्‍की करता दिखाई दे रहा है। इनमें रणनीतिक, आर्थिक क्षेत्र भी शामिल हैं। कुछ मोर्चों पर जहां भारत ने खुद आगे कदम बढ़ाया है वहीं कुछ मोर्चों पर उसका साथ अमेरिका ने खूब दिया है। फिलहाल यहां पर तीन मोर्चों का जिक्र करना बेहद जरूरी हो जाता है जहां पर भारत कहीं आगे बढ़ गया है।

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चीन को साधने के लिए बढ़े कदम 
चीन की जहां तक बात करें तो अब तक वही भारत को हर तरफ से बांधने की कोशिश में लगा था। लेकिन अब भारत ने भी उसी की चाल से उसको ही मात देने की तरफ कदम बढ़ा दिया है। आगे बढ़ने से पहले यहां पर आपको बता दें कि चीन नेपाल, म्‍यांमार, बांग्‍लादेश, श्रीलंका, मालदीव और पाकिस्‍तान में अपनी रणनीतिक पैंठ बना चुका है। इन सभी जगहों पर उसने ऋण देने की नीति के तहत अपने कदम मजबूती से जमाए हैं। भारत वर्षों से इन देशों के साथ आर्थिक और सामाजिक तौर पर जुड़ा रहा है, लेकिन बदलते दौर में वह रणनीति दृष्टि से अहम इन देशों में कुछ पिछड़ गया। लेकिन अब भारत ने इस तरह कदम बढ़ाने शुरू कर दिए हैं। भारत के लिए इस दिशा में सबसे पहला पड़ाव सेशेल्‍स बना है। यहां पर भारत ने रणनीतिक तौर पर बड़ी सफलता हासिल की है।

बढ़ाया ऐतिहासिक कदम 
इसी वर्ष जून में दोनों देशों ने इस सबंध में ऐतिहासिक कदम बढ़ाया। इसके तहत भारत एजंप्‍शन द्वीप पर नौसेना अड्डा बनाने के लिए राजी हो गया। इसके अलावा भारत ने सेशेल्स को प्रतिरक्षा क्षमताओं और समुद्री बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने के लिए 10 करोड़ डॉलर ऋण प्रदान करने की घोषणा की। भारत ने इस समझौतों के साथ ही साफ कर दिया कि हम एक दूसरे के हितों के अधार पर साथ-साथ काम करने को तैयार हैं। जहां तक सेशेल्‍स की बात है तो आपको बता दें कि वर्ष 2015 में पीएम मोदी ने यहां की यात्रा की थी। उसी वक्‍त इन समझौतों की भी आधारशीला रखी गई थी। भारत के लिए यह सामरिक लिहाज से बड़ी उपलब्धि थी। हालांकि सेशेल्‍स का विपक्ष इसके खिलाफ था। वहीं उनके इस तरह से खिलाफ जाने के पीछे भी कहीं न कहीं चीन ही था।

छोटा देश बना अहम 
आपको यहां ये भी बता दें कि सेशेल्‍स की आबादी महज 84 हजार है। यह बेहद छोटा तो है लेकिन भारत के लिए सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। सेशेल्स का जल सीमा क्षेत्र 1.3 मिलियन वर्ग किमी से भी ज्यादा विस्तृत अनन्य आर्थिक क्षेत्र (एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन- ईईजेड) भी रखता है। इसकी सुरक्षा और निगरानी के लिए भारत ने सेशेल्‍स को जहाज भी दिए हैं। इसके अलावा समुद्री दस्युओं से रक्षा के लिए अत्याधुनिक उपकरणों से लैस एक डोर्नियर-228 (समुद्री गस्ती विमान) भी भेंट किया था। आपको यहां पर बता दें कि सेशेल्‍स के आसपास करीब 115 द्वीप हैं। ताजा समझौते के बाद भारत चीन पर निगाह रख सकेगा।

अफ्रीकी राष्‍ट्रों से भारत का सहयोग
पीएम मोदी ने हाल ही में अफ्रीका के तीन देशों की यात्रा की थी। यह यात्रा अपने आप में काफी अहम थी। अहम इसलिए क्‍योंकि पीएम मोदी की यात्रा में शामिल रवांडा, युगांडा और दक्षिण अफ्रीका से कुछ खास समझौते हुए और कुछ खास मुद्दों पर बात हुई। युगांडा की बात करें तो वहां 21 वर्षों बाद पहली बार कोई भारतीय पीएम गया था। हालांकि बीते चार वर्षों में भारत के प्रधानमंत्री समेत राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति ने 23 अफ्रीकी देशों का दौरा किया है। दरअसल, भारत रवांडा को पूर्वी अफ्रीका के प्रवेश-द्वार के रूप में देख रहा है और इसी को ध्यान में रखते हुए पिछले साल जनवरी में भारत ने रवांडा के साथ रणनीतिक साझेदारी की थी। दोनों देशा के बीच हुए समझौतों के महत भारत ने रवांडा को मिल रही क्रेडिट लाइन को 200 मिलियन डॉलर करने की सहमति दी। इनमें 100 मिलियन डॉलर रवांडा में इंडस्टियल पार्कों और किगाली विशेष आर्थिक क्षेत्र के विकास के लिए है, जबकि शेष रकम आधारभूत कृषि संरचना का निर्माण करने के लिए रखी गई है।

हुए आठ समझौते
इस दौरान दोनों देशों के बीच रक्षा के अलावा व्यापार, कृषि और पशु संसाधनों के क्षेत्र में सहयोग पर आठ समझौते हुए। दोनों देशों के राष्‍ट्राध्‍यक्षों की बातचीत के बाद भारत ने रवांडा की राजधानी किगाली में जल्द ही भारतीय उच्चायोग शुरू करने की भी घोषणा की। युगांडा यात्रा के दौरान पहली बार किसी भारतीय पीएम ने वहां की संसद को संबोधित किया था। इसके अलावा भारत की अफ्रीकी देशों में दूतावासों की मौजूदा संख्या 29 से बढ़ा कर 2021 तक 47 करने की भी योजना है। वहीं यदि चीन की बात करें तो यहां चीन के 61 मिशन काम कर रहे हैं।

रणनीतिक ही नहीं सामरिक महत्‍व भी 
इस अफ्रीका यात्रा का अर्थ सिर्फ रणनीतिक ही नहीं था बल्कि सामाजिक और आर्थिक भी था। दरअसल, अफ्रीका के पास दुनिया की कृषि भूमि का 60 फीसदी हिस्सा है। लेकिन, कृषि उत्पादन में उसकी भागीदारी महज 10 फीसदी है। लिहाजा भारत की नजर अफ्रीका की उपजाऊ जमीन पर भी है। आपको बता दें कि भारत मौजूदा वक्त में अनुबंधित कृषि के तहत अफ्रीका में दाल की खेती कर रहा है तथा इसे और विस्तार देना चाहता है। अफ्रीका से बढ़ता मेलजोल इस लिहाज से भी बेहद खास है क्‍योंकि यहां से तेल आयात कर भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए पश्चिम एशिया पर निर्भरता कम कर सकता है। तीसरा सकारात्मक पहलू यह है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता की मांग के साथ-साथ अन्य मंचों पर भी भारत को अफ्रीका से व्यापक सहयोग मिलने की उम्मीद है। चौथा यह कि हिंद महासागर का भारत और अफ्रीका के लिए समान सामरिक, सुरक्षात्मक और रणनीतिक महत्व है।

अमेरिका से मिलता सहयोग
एक तरफ जहां भारत अपनी स्‍ट्रेटेजिक पॉलिसी के तहत आगे बढ़ रहा है वहीं दूसरी तरफ अमेरिका लगातार भारत के करीब आ रहा है। भारत के लिए एक दूसरी ये खबर भी सकारात्‍मक है कि पाकिस्‍तान से वह लगातार दूर हो रहा है। ये जहां पाक के लिए चिंता की बात है वहीं भारत के लिए यह काफी अच्‍छा है। बहरहाल, आपको यहां बता दें कि अमेरिका ने पिछले दिनों भारत को अपना विशेष रणनीतिक कारोबारी साझेदार देश (एसटीए-1) का दर्जा दिया है। इसके बाद भारत बिना एनएसजी का सदस्य बने ही अमेरिका से वे सारे संवेदनशील हथियार व उच्च तकनीकी हासिल कर सकता है जो एनएसजी में शामिल होने के बाद हासिल करने की उम्मीद बनती। भारत के लिए यह काफी बड़ी जीत है।

पाकिस्‍तान की सहयोग राशि कम
भारत की शांति और अशांति दोनों में ही पाकिस्‍तान काफी अहमियत रखता है। भारत के लिए ये काफी राहत भरी खबर है कि अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप ने पाकिस्‍तान आतंकियों पर कोई कार्रवाई नहीं करने को लेकर पाकिस्तान के खिलाफ कड़ा रुख अपना रखा है। उन्होंने इस साल जनवरी में पाकिस्तान पर तालिबान और हक्कानी नेटवर्क जैसे आतंकी संगठनों को बढ़ावा देने का आरोप लगाया था और उसकी 115 करोड़ डॉलर (करीब 7,875 करोड़ रुपये) की सुरक्षा सहायता रोक दी थी। यहां पर आपको ये भी बता दें कि पाकिस्‍तान को पहले 75 करोड़ डॉलर की राशि मिलती थी जो अब 15 करोड़ डॉलर हो गई है। अमेरिका की संसद ने बिल पारित कर इसको सुनिश्चित किया है। पाकिस्‍तान को मिलने वाली राशि में कटौती इस लिहाज से काफी मायने रखती है क्‍योंकि पाकिस्‍तान की तरफ से इसका ज्‍यादातर हिस्‍सा आतंकियों की ट्रेनिंग और उन्‍हें दी जाने वाली सुविधाओं पर खर्च किया जाता रहा है। यही वजह है कि अमेरिकी संसद में कई बार पाकिस्‍तान को आतंकी देश घोषित करने की कवायद भी कई बार होती रही है। अमेरिकी संसद के ऊपरी सदन सीनेट ने नेशनल डिफेंस ऑथराइजेशन एक्ट-2019 (एनडीएए-19) को दस के मुकाबले 87 वोटों से पारित किया है।

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