एस.के. सिंह, नई दिल्ली। पराली की समस्या से निजात दिलाने के लिए एक स्टार्टअप ने पराली से ग्राफीन बनाने की विधि विकसित की है, जो स्टील से 200 गुना तक मजबूत माना जाता है। एक स्टार्टअप ने ऐसा बायो-रिपेलेंट बनाया है जो फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले पशु-पक्षियों को दूर भगाता है। एक ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से ऐसी तकनीक विकसित की जिससे यह पता लगाना आसान हो गया है कि मिट्टी में कौन सा पोषक तत्व कितना है, फसल में कब और कितना खाद या पानी देना है। ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी जैसी अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए एक स्टार्टअप ने सीफूड की ट्रेसेबिलिटी का सॉल्यूशन तैयार किया है। ट्रेसेबिलिटी का खास तौर से निर्यात में बड़ी महत्व होता है।

ये चंद उदाहरण बताते हैं कि भारत में कृषि क्षेत्र में स्टार्टअप ने किस तरह के इनोवेशन किए हैं। दरअसल, भारत में दुनिया का 2.3% भूक्षेत्र है, लेकिन आबादी दुनिया का 17.7% है। अर्थात 140 करोड़ से ज्यादा लोगों की खाद्य जरूरतें पूरी करने के लिए खेती में नवाचार जरूरी है। विशेषज्ञों के अनुसार, कृषि और इससे संबंधित क्षेत्रों में स्टार्टअप के लिए संभावनाओं की कोई कमी नहीं है। जैसे, अभी कुल उत्पादन में सिर्फ 15-20% हिस्सा अच्छी क्वालिटी के बीज का है। यह अनुपात बढ़े तो पैदावार पर काफी फर्क पड़ सकता है।

एग्री स्टार्टअप के लिए वर्ष 2023-24 के आम बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक्सेलरेटर फंड बनाने की घोषणा की है। उससे पहले केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एक स्टार्टअप कांफ्रेंस में कहा था कि एग्री स्टार्टअप को आगे बढ़ाने के लिए 500 करोड़ रुपये का एक्सेलरेटर प्रोग्राम शुरू किया जाएगा। जागरण प्राइम ने विशेषज्ञों से बातचीत कर यह जाना कि कृषि क्षेत्र में कहां-कहां इनोवेशन की संभावनाएं हैं। ये बुवाई से पहले मिट्टी की जांच और बीज की क्वालिटी से लेकर फसलों को नुकसान से बचाने और खेती की लागत में कमी, तैयार फसल के बेहतर भंडारण और प्रोसेसिंग जैसे अनेक क्षेत्रों में हो सकते हैं।

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जानिए कहां हैं स्टार्टअप के लिए अवसर

यहां हम 30 ऐसे अवसरों के बारे में बता रहे हैं जिनमें युवा प्रयास कर सकते हैं। इनमें से कुछ के सॉल्यूशन आ चुके हैं तो कुछ अछूते हैं। जिनके सॉल्यूशन आ चुके हैं, उनमें भी बेहतरी के प्रयास हो सकते हैं। वित्त मंत्री ने बजट भाषण में ग्रामीण युवाओं की बात कही थी, इसलिए यहां बताए कुछ अवसर ऐसे भी हैं जिन्हें कम पढ़े-लिखे लोग कम खर्च में शुरू कर सकते हैं। इन अवसरों को बुवाई से पहले, बाद में और फसल तैयार होने के बाद जैसे छह हिस्से में बांटा गया है।

मेरठ स्थित सरदार वल्ल्भ भाई पटेल यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी (SVPUAT) में प्लांट बायोटेक्नोलॉजी विभाग के प्रमुख और ट्रेनिंग तथा प्लेसमेंट सेल के निदेशक डॉ. आर.एस. सेंगर प्राकृतिक और जैविक उत्पादों के बारे में सलाह देते हैं, जिनकी डिमांड दिनों-दिन बढ़ रही है। वे कहते हैं, “गांव के कुछ युवा एक स्वयं सहायता समूह बनाकर प्रयास कर सकते हैं। इसमें कुछ लोग उत्पादन का काम देखें और कुछ मार्केटिंग की व्यवस्था करें।”

प्राकृतिक और जैविक खेती में अंतर बताते हुए उन्होंने कहा कि जैविक खेती में जैविक खाद का इस्तेमाल होता है, लेकिन प्राकृतिक खेती में बाहर से कोई इनपुट नहीं डाला जाता। उसमें हम गोबर खाद डालने की सलाह भी नहीं देते हैं। इसमें पराली को खेत में ही मिला दिया जाता है और वही खाद का काम करती है।

मशरूम उत्पादन में भी उन्होंने नए तरह के बिजनेस का सुझाव दिया। गत्ते के बॉक्स बनाकर उसमें कंपोस्ट और मशरूम के बीज मिलाकर रखें और बॉक्स में जगह-जगह छेद कर दें। ग्राहक को पूरा बॉक्स बेच दें। बॉक्स से थोड़ी-थोड़ी मशरूम निकलती रहेगी जिसे तोड़कर ग्राहक खा सकते हैं। डॉ. सेंगर के अनुसार मशरूम की उन वैरायटी को ही चुनें जिनकी बाजार में डिमांड है।

डॉ. सेंगर के अनुसार खेती में टेली कंसलटेंसी की सेवा भी शुरू की जा सकती है। हर गांव में एक या दो छोटे बूथ बना दिए जाएं। वहां हाई स्पीड इंटरनेट की सुविधा के साथ कैमरा भी हो। किसान की फसल में अगर कोई बीमारी है तो वह उसका सैंपल लेकर आए और कैमरे के सामने बताए। उस क्षेत्र का कृषि वैज्ञानिक उससे जुड़ा रहेगा, वह उसका समाधान बता सकता है। इससे किसानों को सहूलियत तो होगी ही बूथ चलाने वाले युवा को रोजगार भी मिलेगा।

उन्होंने बताया कि किसानों को बायोफर्टिलाइजर मिल ही नहीं पाता है, इसलिए युवा बायोफर्टिलाइजर और वर्मी कंपोस्ट की यूनिट भी लगा सकते हैं। कुछ स्टार्टअप ने इसका काम शुरू भी किया है। बायो कंट्रोल एजेंट की भी डिमांड तेजी से बढ़ रही है। इसमें जैविक नियंत्रण कार्ड अथवा ट्रैको कार्ड भी कहते हैं। मित्र कीटों के अंडे इस कार्ड पर लगाए जाते हैं और उस कार्ड को फसल के बीच-बीच में रख देते हैं। इन अंडों से बच्चे निकलकर पूरे खेत में फैल जाते हैं। वे फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को खा जाते हैं।

पोस्ट हार्वेस्ट मैनेजमेंट

फूड प्रोसेसिंग में प्रिजर्वेशन का अच्छा स्टार्टअप हो सकता है। जैसे इन दिनों बाजार में टमाटर काफी सस्ता मिल रहा है। अनेक जगहों पर किसानों को लागत भी नहीं मिल रही है। डॉ. सेंगर के अनुसार, ड्रायर का इस्तेमाल कर टमाटर के पानी को सुखाया जा सकता है। फिर उसके पैकेट बनाकर बेचे जा सकते हैं। खरीदार सूखे टमाटर को पानी में कुछ देर रखेगा तो टमाटर अपने मूल आकार में आ जाएगा। उन्होंने बताया कि विदेशों में भिंडी जैसी सब्जियों को भी इसी तरह ड्रायर में सुखाकर रखा जाता है। ऑफ सीजन में इनकी अच्छी कीमत मिल जाती है। अगर किसी फसल को नहीं सुखाना है तो उसे कोल्ड स्टोरेज में रखा जा सकता है। युवा छोटे कोल्ड स्टोरेज खोल कर भी नया बिजनेस खड़ा कर सकते हैं। टमाटर से केचप बनाने जैसे उपाय तो पहले से हैं ही।

हरियाणा के करनाल स्थित महाराणा प्रताप हॉर्टिकल्टर यूनिवर्सिटी में वेजिटेबल साइंस के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. विनोद कुमार ने बताया कि आजकल एफपीओ के माध्यम से खेती में अनेक काम हो रहे हैं। ग्रामीण युवा इस दिशा में प्रयास कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि किसानों के खेत में ड्रिप सिंचाई करने का भी बिजनेस खड़ा हो सकता है। सब्जियों की छोटी प्रोसेसिंग यूनिट और पैक हाउस लगाकर केचअप-प्यूरी जैसी चीजें बनाई जा सकती हैं। वर्टिकल फार्मिंग का भी विकल्प है, जिसमें हल्दी की अच्छी खेती होती है।

बागवानी उत्पादों के लिए मशहूर हिमाचल प्रदेश के नौनी स्थित वाई.एस. परमार यूनिवर्सिटी ऑफ हॉर्टिकल्चर एंड फॉरेस्ट्री में हॉर्टिकल्चर के ज्वाइंट डायरेक्टर डॉ. सतीश कुमार शर्मा ने बताया, “पोस्ट हार्वेस्ट मैनेजमेंट पर काफी काम हो रहा है। हमारे यहां युवा मधुमक्खी पालन, मशरूम उत्पादन और फूड साइंस एंड टेक्नोलॉजी पर काम कर रहे हैं।” उन्होंने बताया कि फलों की प्रोसेसिंग में जैम, जेली और अचार बनाने का काम होता है। यूनिवर्सिटी के इनक्यूबेशन सेंटर में बने स्टार्टअप फूलों से सुगंधित अगरबत्ती और गुलाल भी बना रहे हैं। इन सबके लिए यूनिवर्सिटी में प्रशिक्षण दिया जाता है। उन्होंने बताया कि शहद में वैल्यू एडिशन की भी काफी गुंजाइश है, युवा उसे भी अपना सकते हैं।