भारत की तीन बड़ी उपलब्धियों से मिली जानलेवा कोरोना वायरस का सामना करने की हिम्मत
कोरोना काल में यदि दुनिया भर में लगा लॉकडाउन जल्द ही नहीं खुला तो समस्या खड़ी हो सकती है।
भरत झुनझुनवाला। कोरोना वायरस का सामना करने के लिए भारत की तीन उपलब्धियां हैं। हमारी जनसंख्या की आयु कम है जिस कारण कोरोना के संक्रमण और उससे होने वाली मृत्युदर हमारे देश में कम है। दूसरा, हमारे देश का औसत तापमान अधिक है जिससे कोरोना का फैलाव कम है। तीसरा, भारत सेवा क्षेत्र में महारत रखता है। सेवा क्षेत्र में विशेषकर इंटरनेट के माध्यम से प्रदान की जाने वाली सेवाओं के निर्यात बढ़ सकते है। लेकिन हमारी शिक्षा व्यवस्था सरकारी नौकरी पर केंद्रित है। युवा सेवा प्रदान करने में सक्षम नहीं हैं। भारत में सेवाओं का दूसरा क्षेत्र पर्यटन इत्यादि है जहां पर संकट विद्यमान है। हाल में प्रकाशित एक सर्वेक्षण में अमेरिकी कंपनियों ने इंफार्मेशन टेक्नोलॉजी पर खर्च कम करने की बात कही है। इसलिए सेवा में भी चुनौती रहेगी।
कोरोना संकट में चीन की भूमिका को लेकर पूरी दुनिया में चिंता है इसलिए चीन की मैन्युफैक्चरिंग में संकट अवश्य आएगा लेकिन चीन ने अपने कारखानों को शीघ्र पुन: चालू कर लिया है। प्रसाशनिक कुशलता के कारण वे कोरोना संकट के बावजूद इन्हें चालू कर सके हैं जबकि भारत कम आयु और गरम जलवायु के बावजूद लॉकडाउन में ही है। हमारे निर्यात ठोकर खा रहे हैं। हमारे बाजार पर चीन कब्जा कर सकता है। यदि अमेरिका आदि देशों में लॉकडाउन समाप्त नहीं हुआ तो उन्हें चीन से मजबूरन माल खरीदना ही पड़ेगा। इस समय विषय उत्पादन लागत का कम है, कोरोना के मैनेजमेंट में प्रशासनिक कुशलता का अधिक है।
आने वाले समय में तमाम देश चीन से विमुख होंगे, यह भी जरूरी नहीं है। संकट के समाप्त होने के बाद पुन: बड़े उद्यमी यही कहेंगे कि यह एक असामयिक प्राकृतिक घटना थी। जिस प्रकार 2013 में केदारनाथ संकट को झुठला दिया गया है वैसे ही कोरोना का होगा। बड़े उद्यमी मूल वैश्विक व्यवस्था पूर्ववत बनाये रखने का प्रयास करेंगे। चूंकि इसी में उनके लिए मलाई है। समस्या यह भी है कि इस समय चीन अकेला देश है जिसके पास वित्तीय सरप्लस है। आज अमेरिका भी जो विश्व बाजार से ऋण लेकर खर्च बढ़ा रहा है, उसका एक हिस्सा चीन द्वारा ही उपलब्ध कराया जा रहा है। अमेरिकी सरकार द्वारा लिए गए ऋण में चीन का हिस्सा 15 प्रतिशत है। चीन अमेरिकी कंपनियों के शेयर तथा अमेरिकी प्रॉपर्टी भी खरीद रहा है। चीन ने 2019 में अमेरिकी प्रॉपर्टी में 53 अरब डॉलर का निवेश किया है। वर्तमान में चीन ही विश्व का बैंकर है।
चीन अपने निर्यातों से मिली रकम का उपयोग अमेरिका में निवेश के लिए करता है जबकि हमने निर्यातों से अर्जित रकम का उपयोग ईंधन तेल और सेब के आयात के लिए करते हैं। हम दूसरे देशों से ऋण ले रहे हैं जबकि चीन दूसरे देशों को ऋण दे रहा है। इसलिए अमेरिका चीन से दबा हुआ है जबकि हमारे ऊपर चढ़ा हुआ है। यह सही है कि ट्रंप के कार्यकाल में चीन ने अमेरिका के स्थान पर दूसरे देशों में ज्यादा निवेश किया है, लेकिन इससे बहुत अंतर नहीं पड़ता है कि चीन अमेरिका में सीधे निवेश करता है; अथवा चीन फ्रांस में निवेश करता है और फ्रांस उसी रकम का अमेरिका में निवेश करता है। इस जमीनी वास्तविकता के कारण मेरा मानना है कि चीन के प्रति कोरोना को लेकर चल रहा विरोध ज्यादा समय तक टिकेगा नहीं।
हमको तत्काल तीन कदम उठाने होंगे। पहला, सेवा क्षेत्र के साथ-साथ मैन्युफैक्चरिंग को तुरंत चालू करना होगा। इस दिशा में हम पहले ही बहुत देर कर चुके हैं। सरकार को छोटे-बड़े सब उद्योगों को चालू करने की छूट देनी चाहिए। यदि उनके कर्मी फैक्ट्री की सरहद में ही रहते हों और बाहरी आवागमन न हो। अपने देश में उपलब्ध सरकारीकर्मियों की विशाल फौज को हर फैक्ट्री की निगरानी पर लगाना चाहिए। दूसरे, अपनी वित्त व्यवस्था को सुदृढ़ करना होगा। विदेशी निवेश को आकर्षित करने के चक्कर में हमने अपनी पूंजी के पलायन की छूट दे रखी है। अपनी पूंजी को देश में ही रखने के उपाय ढूंढने होंगे। विदेशी उद्यमियों के स्थान पर स्वदेशी उद्यमियों को सम्मान देना होगा। तीसरे, सरकारी शिक्षा को पूरी तरह समाप्त कर निजी स्कूलों में युवाओं को शिक्षा ग्रहण करने के लिए मुफ्त वाउचर देने होंगे जिससे कि वे सेवा क्षेत्र के लिए उपयोगी क्षमता को हासिल कर सकें।
(लेखक वरिष्ठ अर्थशास्त्री हैं)
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