संदीप राजवाड़े, नई दिल्ली। 

आजादी से अब तक भारत में स्वास्थ्य सेवाओं का दायरा काफी बढ़ा है, इस क्षेत्र में कई बड़ी उपलब्धियां हासिल की गई हैं। मेरा पावर वोट नॉलेज सीरीज में हमने जाना कि देश की स्वतंत्रता से अब तक इस क्षेत्र में किस तरह बदलाव आए हैं, कैसे स्वास्थ्य सुविधाएं व योजनाओं से लोगों का जीवन आसान हुआ है। महिला स्वास्थ्य की बात करें तो उनसे जुड़ी बीमारियों को लेकर उनके साथ पुरुषों में भी जागरूकता आई है। शहर के साथ गांवों में भी महिला स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता दिखाई देने लगी है। एक बड़ी आबादी का खुले में शौच से मुक्त होना, उन्हें कई बीमारियों से बचाने में कारगर भूमिका निभा रहा है। स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण के मिले सरकारी आंकडो़ं के अनुसार ओडीएफ अभियान में अब तक 11,48,50,399 शौचालय बनाए गए हैं। देश के 761 जिलों के 5,41,852 गांव ओडीएफ प्लस घोषित हो चुके हैं। इसके अलावा शहर से लेकर दूरदराज अंचल तक स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ने का असर शिशु और मातृ मृत्यु दर में कमी के रूप में दिखाई दिया है। इसमें लगातार सुधार हो रहा है। 1947 में शिशु मृत्यु दर 130 से ऊपर थी और मातृ मृत्यु दर 400 थी। लोगों की औसत आयु भी 37 के आसपास थी। आज स्वास्थ्य सुविधाओं के बढ़ने से औसत आयु 77 वर्ष पहुंच गई है। केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार शिशु मृत्यु दर 28 थी, मातृ मत्यु दर 97 थी। 

युवा, महिला, शहरी- ग्रामीण क्षेत्र तक में स्वास्थ्य कैसे सुधरा और इसे लेकर क्या समस्या सामने आ रही है, इसे लेकर इस नॉलेज सीरीज में शामिल एक्सपर्ट पैनल में दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व प्रेसीडेंट व इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के राष्ट्रीय संयोजक (ऑर्गन डोनर) डॉ. अनिल गोयल, गुड़गांव पारस हेल्थकेयर के रेडिशन ऑन्कोलॉजी की ग्रुप डायरेक्टर एंड हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉ. इंदु बंसल और दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व प्रेसिडेंट व आईएमए के संयोजक (आओ गांव चले) डॉ. वीके मोंगा से बात की। उन्होंने बताया कि कैसे आज भारत में स्वास्थ्य सबसे बड़ा फैक्टर होने के साथ इससे जुड़ी कई सुविधाएं लोगों के लिए सुविधाजनक हो गई हैं। 

आजादी से अब तक हेल्थ सेक्टर में हुए बड़े बदलाव, सुविधा-तकनीक बढ़ी

आजादी से अब तक स्वास्थ्य सुविधाओं में क्या बदलाव देखते हैं, इसका आम आदमी पर असर कैसा रहा है, इसे लेकर हमने अपने विशेषज्ञों से बात की, इस दौरान जाना कि खासकर महिला स्वास्थ्य को लेकर क्या काम हुआ है, उसका जमीनी तौर पर क्या असर रहा। दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व प्रेसीडेंट व इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के राष्ट्रीय संयोजक (ऑर्गन डोनर) डॉ. अनिल गोयल ने बताया कि बड़ा अंतर आया है। आजादी के समय सिर्फ 28 मेडिकल कॉलेज थे, 2014 तक 387 मेडिकल हो गए। आज देश में करीबन 750 मेडिकल कॉलेज हैं, पिछले 10 सालों में इनकी संख्या दोगुनी हो गई है। वहीं एम्स की बात करें तो आजादी के बाद सिर्फ एक एम्स दिल्ली था, आज देश में 23 एम्स हैं, जिनमें से 19 कार्यरत हैं। हेल्थ के क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है। इसके साथ ही 10 साल पहले तक 55 हजार एमबीबीएस की सीटें थीं, जो 2023 तक बढ़कर 1.8 लाख हो गई है। डॉ. गोयल ने बताया कि हाल के मामलों की बात करें तो कोविड के दौरान हमारे देश में 8-9 महीने के दौरान ही इस भयानक बीमारी की वैक्सीन बना ली गई। देश ने वैक्सीन बनाने के साथ 170 देशों में इसे दिया भी। इससे पूरी दुनिया में मैसेज गया। इसके अलावा हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर में काफी निवेश बढ़ा है। 

महिलाओं से जुड़ी हेल्थ स्कीम ने सुधारे हालात, बेहतर परिणाम सामने

डॉ. गोयल ने कहा कि महिला हेल्थ फैसिलिटी की बात करें तो आज उनसे जुड़ी मातृ वंदना योजना चलाई जा रही है, इसके माध्यम से तीन किस्तों में उन्हें पैसा दिया जाता है। जननी सुरक्षा योजना के माध्यम से अस्पतालों में डिलीवरी को बढ़ावा देने को प्रोत्साहित करने और मातृ - शिशु मृत्यु दर को कम करने में बड़ी कामयाबी मिली है। इसके अलावा मातृ सुरक्षा को लेकर स्कीम चलाई जा रही है। इसके अलावा हेल्थ खासकर महिलाओं के स्वास्थ्य को सुधारने में स्वच्छ भारत मिशन और खुले में शौच से मुक्ति योजना का काफी योगदान रहा है। इसकी वजह से महिलाओं को होने वाली कई संक्रमित बीमारियों से राहत मिली। खुले में शौच होने के कारण गांव की महिलाएं दिन में शौच तक नहीं जा पाती थी, तड़के या रात को ही वे बाहर निकल पाती थीं। इसके अलावा खुले में शौच से कई तरह की बीमारियों का महिलाओं को सामना करना पड़ता था। घर-घर शौचालय अभियान को बढ़ाना देने व बनने से महिलाओं को बड़ी राहत मिली है। इसके अलावा खुले में शौच किसी न किसी तरह से महिलाओं की सुरक्षा भी जुड़ा मुद्दा था। हेल्थ की दिशा में भारत में आजादी से अब तक अभूतपूर्व प्रगति हुई है। प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, मिशन सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण, राष्ट्रीय एम्बुलेंस सेवाएं, आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, जननी सुरक्षा योजना, जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम, मासिक ग्राम स्वास्थ्य, स्वच्छता और पोषण दिवस, ग्रामीण क्षेत्रों में आउटरीच शिविर, स्वास्थ्य और आरोग्य सेंटर के साथ अन्य सुविधाजनक योजना-कार्यक्रम संचालित हो रहे हैं।

दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व प्रेसिडेंट व आईएमए के संयोजक (आओ गांव चले) डॉ. वीके मोंगा ने बताया कि खुले में शौच व गंदगी जैसे कारणों से ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में इंफेक्शन डिसीज ज्यादा होते थे और लाइफ स्टाइल डिसीज कम। अब इसका उल्टा हो गया है, अब इंफेक्शन डिसीज कम हो रहे हैं और बड़ी बीमारियों के कारण लाइफ स्टाइल डिसीज बढ़ रही हैं। 

महिलाओं की सेहत के लिए वरदान रहा अभियान, इलाज- जागरूकता बढ़ाने पर जोर 

महिलाओं की सेहत, खासकर ग्रामीण स्वास्थ्य में बदलाव को लेकर गुड़गांव पारस हेल्थकेयर के रेडिशन ऑन्कोलॉजी की ग्रुप डायरेक्टर एंड हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉ. इंदु बंसल ने बताया कि खुले में शौच मुक्त भारत अभियान का इंपैक्ट बहुत ही बड़ा है। यह कदम बेहद सराहनीय है। ग्रामीण भारत में कई दशकों तक यह समस्या के तौर पर देखने में आया था कि महिलाओं को सुबह- सुबह 4-5 बजे उठकर उजाला होने के पहले खुले में जाकर शौच करना होता था। टॉयलेट अभियान शुरू होने से करोड़ों महिलाओं को इससे राहत मिली है, उन्हे सुरक्षा भी मिली है। इससे उनके स्वास्थ्य में सुधार होने के साथ खुले में शौच से होने वाली कई संक्रमित बीमारियों से बचने का मौका मिला। खुले में शौच से वह गंदगी नदी-तालाब के पानी में मिल जाता था, जिसका उपयोग हमारे दैनिक कार्य के साथ नहाने, पीने व मवेशियों के उपयोग में होता रहा है। इससे कई प्रकार की बीमारियां होती थीं। इस अभियान से सेहत के क्षेत्र में बहुत सुधार हुआ है। इसके साथ ग्रामीण क्षेत्र में सफाई के साथ सेनटरी पैड को लेकर जागरूकता आई है, बड़े पैमाने में इसका उपयोग किया जाने लगा है। इसके कारण महिलाओं को कई बीमारियों से राहत मिली है। शहर के साथ गांवों में भी देखने में आया है कि पुरुषों में महिलाओं को होने वाली बीमारियों को लेकर जागरूकता आई है। वे अब घरों की जगह अस्पतालों में सेफ डिलीवरी और महिलाओं के सही इलाज को लेकर सचेत हुए हैं। 

दुनिया की सबसे बड़ी हेल्थ स्कीम से करोड़ों लोगों को हो रहा फायदा

डॉ. मोंगा ने बताया कि आयुष्मान योजना से देश में 55 करोड़ लोगों को शामिल करने की जो बात है, उससे ग्रामीण व गरीब वर्ग को बड़ी राहत मिली है। यह योजना हेल्थ के क्षेत्र में गेमचेंजर साबित हुई। भारत के लोगों के स्वास्थ्य को इस योजना से काफी लाभ हुआ है। इसके जरिए जो गरीब आदमी कोई बड़ी बीमारी होने पर अपना घर, जमीन इलाज के नाम पर बेच देता था या महिलाएं गहने व पूंजी तक बेच देती थी, उससे छुटकारा मिला। आज इस योजना के शुरू होने से उन्हें ऐसा नहीं करना पड़ता है, पांच लाख तक का इलाज इसमें शामिल है। इतना ही नहीं, आयुष्मान को सरकारी अस्पतालों से जोड़ने के साथ प्राइवेट हॉस्पिटल को भी शामिल किया गया, जिससे लोगों को बेस्ट क्वालिटी की हेल्थ सुविधा मिल पाए। यह स्वास्थ्य के क्षेत्र में दुनिया के सबसे बड़ी स्कीम है। 

डॉ. वीके मोंगा ने बताया कि बच्चों की सेहत से जुड़ी राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य योजना और इंद्रधनुष अभियान के साथ अन्य स्कीम चलाई जा रही हैं। इंद्रधनुष में बच्चों से जुड़े जरूरी सभी टीके लगवाने को लेकर एक बड़ी पहल की जा रही है। आज शहर से लेकर गांव तक आशा वर्कर घर-घर जाकर बच्चों का सभी टीके लगवाने के साथ उनकी मानिटरिंग कर रही हैं। प्रिवेंटिबल डिसीज में कमी आने से शिशु मृत्यु दर में पहले की तुलना में काफी कमी आई है। इसके अलावा संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए कई स्कीम चलाई जा रही है। अस्पताल में डिलीवरी कराने से नवजात शिशु और मां दोनों की जान बचाई जा रही है। इसका असर शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर में आई गिरावट के रूप में देखा जा सकता है। 

अस्पतालों की दशा सुधरने के साथ बेहतर हुई सेहत

डॉ. गोयल ने बताया कि स्वच्छ भारत मिशन, स्वस्थ भारत के साथ समृद्ध भारत से जुड़ा हुआ है। स्वच्छ भारत मिशन ने देशवासियों का स्वास्थ्य सुधारने में अहम भूमिका निभाई। एक समय ऐसा था कि जब हम सरकारी अस्पताल में गंदगी और बदबू की वजह से इलाज तो दूर, जाना भी नहीं चाहते थे, आज आधुनिक संसाधन के साथ सरकारी अस्पतालों में बड़े से बड़ा इलाज हो रहा है। बड़े सरकारी अस्पतालों में भी इलाज व पर्ची के लिए बड़ी-बड़ी लाइनें नहीं दिखाई देती हैं, डिजिटलाइजेशन के कारण लोग ऑनलाइन अपाइंटमेंट ले रहे हैं और आसानी से इलाज करा रहे हैं। पहले सुबह 8-9 बजे से लाइन में लगकर दोपहर 3 बजे नंबर आता था, तब जाकर इलाज हो पाता था। अब मरीज अपनी सुविधा के अनुसार समय लेकर अपाइंटमेंट लेता है और डॉक्टर को दिखा पाता है। इसके अलावा गरीब के साथ मिडिल क्लास के लोग भी, जिन्होंने हेल्थ बीमा ले रखा है, वे भी अब सरकारी अस्पातालों में सुविधा के कारण इलाज करा रहे हैं, वैसे भी वहां क्वालिटी हेल्थकेयर में किसी को भी संदेह नहीं है, लेकिन अब बेहतर सुविधा होने से आने वालों की संख्या बढ़ी है। अब लोग इलाज के लिए सरकारी अस्पताल जाना पसंद कर रहे हैं। देश की 70-80 फीसदी आबादी आज भी सरकारी अस्पताल में ही इलाज करा रही है। 

महिला स्वास्थ्यः मातृ मृत्यु अनुपात भी हुआ कम

आजादी के बाद के दशकों में मातृ मृत्यु अनुपात (एमएमआर) में काफी गिरावट आई है। एमएमआर जो 2016-18 में 113 था वह 2017-19 में घटकर 103 हो गया जो 8.8 प्रतिशत गिरावट दर्शाता है। देश में एमएमआर में लगातार कमी आई है। यह 2014 से 2016 में 130 था, जो 2015 से 2017 में घटकर 122, 2016 से 2018 में कम होकर 113 और 2017 से 2019 में 103 रह गया।

इस लगातार गिरावट से भारत 2020 तक 100/लाख जीवित जन्म के राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (एनएचपी) लक्ष्य को हासिल करने और 2030 तक निश्चित रूप से 70 प्रति लाख जीवित जन्म के एसडीजी लक्ष्य को प्राप्त करने के मार्ग पर अग्रसर है। सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) हासिल करने वाले राज्‍यों की संख्‍या अब 5 से बढ़कर 7 हो गई हैं। इन राज्‍यों के नाम हैं- केरल (30), महाराष्ट्र (38), तेलंगाना (56), तमिलनाडु (58), आंध्र प्रदेश (58), झारखंड (61) और गुजरात (70)। अब 9 राज्य ऐसे हैं जिन्होंने एनएचपी द्वारा निर्धारित एमएमआर के लक्ष्य को प्राप्त कर लिया है, जिनमें इन 7 राज्‍यों के अलावा कर्नाटक (83) और हरियाणा (96) राज्‍य शामिल हो गए हैं।

पांच राज्यों उत्तराखंड (101), पश्चिम बंगाल (109), पंजाब (114), बिहार (130), ओडिशा (136) और राजस्थान (141) में एमएमआर 100-150 के बीच है, जबकि 4 राज्‍य- छत्तीसगढ़ (160), मध्य प्रदेश (163), उत्तर प्रदेश (167) और असम (205) ऐसे हैं जहां एमएमआर 150 से अधिक है।

उत्तर प्रदेश ने उत्साहजनक उपलब्धि दर्ज की है जहां 30 अंकों की अधिकतम गिरावट दर्ज की गई है, इसके अलावा राजस्थान (23 अंक), बिहार (19 अंक), पंजाब (15 अंक) और ओडिशा (14 अंक) में भी एमएमआर में गिरावट आई है।

मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) में सुधार के लिए उपाय:

2016 में शुरू किया गया प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (पीएमएसएमए) हर महीने की 9 तारीख को गर्भवती महिलाओं को निश्चित दिन, नि:शुल्क और गुणवत्तापूर्ण प्रसवपूर्व देखभाल सुनिश्चित करता है।

2017 से लागू की गई प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (पीएमएमवीवाई) एक प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) योजना है जिसके तहत गर्भवती महिलाओं को सीधे उनके बैंक खाते में नकद लाभ प्रदान किया जाता है ताकि उनकी बढ़ी हुई पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा किया जा सके।

लेबर रूम क्वालिटी इम्प्रूवमेंट इनिशिएटिव (लक्ष्य), 2017 में शुरू की गयी थी, जिसका उद्देश्य लेबर रूम और मैटरनिटी ऑपरेशन थिएटर में देखभाल की गुणवत्ता में सुधार लाना है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि गर्भवती महिलाओं को प्रसव के दौरान और तत्काल बाद की अवधि में सम्मानजनक और गुणवत्तायुक्‍त देखभाल उपलब्‍ध हो।

भारत सरकार ने समयबद्ध तरीके से बच्चों, किशोरियों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली महिलाओं की पोषण स्थिति में सुधार लाने के लक्ष्य को हासिल करने के साथ 2018 से पोषण अभियान लागू किया है।

एनीमिया मुक्त भारत (एएमबी): वर्ष 2018 में, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अनीमिया मुक्‍त भारत रणनीति की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्‍य जीवन चक्र पहुंच में पोषण और गैर-पोषण कारणों से एनीमिया के प्रसार को कम करना है। इस रणनीति का 30 मिलियन गर्भवती महिलाओं सहित 450 मिलियन लोगों को लाभ मिलने का अनुमान है।

सुरक्षित मातृत्व आश्वासन (सुमन) 2019 से प्रभावी हुआ। इसका उद्देश्य बिना किसी लागत के सुनिश्चित, सम्मानजनक, गरिमामयी और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना है ताकि सभी रोकथाम योग्य मातृ और नवजात मौत को समाप्त करने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में आने वाली प्रत्‍येक महिला और नवजात शिशु के लिए सेवा प्रदान की जा सके।

जननी सुरक्षा योजना (जेएसवाई), एक मांग प्रोत्साहन और सशर्त नकद हस्तांतरण योजना है जिसे अप्रैल 2005 में शुरू किया गया था। इसका उद्देश्‍य गर्भवती महिलाओं के संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देकर मातृ और शिशु मृत्यु दर को कम करना है।

जेनेरिक और जनऔषधि केंद्रों से दवा की कीमत से मिली राहत 

डॉ. गोयल ने बताया कि इसके साथ मैं एक और कड़ी जोड़ना चाहता हूं, प्रधानमंत्री जनऔषधि केंद्र। इन केंद्रों के माध्यम से लोगों को 70-80 फीसदी कम दाम में कई दवाईयां आसानी से मिल रही हैं। लोगों को इलाज में दो तरह की कास्ट लगती है, एक हॉस्पिटल ट्रीटमेंट व दूसरा दवाइयां। दवाइयों की लागत की हिस्सेदारी 30 फीसदी के करीब होती है। जन औषधि के खुलने से लोगों को बड़ी राहत मिली है। इसके अलावा जेनेरिक दवा को बढ़ावा देने को लेकर भी लोगों में जागरूकता आई है। डॉ. मोंगा ने बताया कि हेल्थ स्ट्रक्चर सुधारने में जन औषधि केंद्र का योगदान बढ़ा है, इन केंद्रों में एक हजार से ज्यादा दवाइयां मौजूद हैं। इसके अलावा कैंसर जैसी बीमारियों की दवा सरकारी अस्पतालों में मुफ्त में दी रही हैं, जो बाजार में काफी महंगी हैं। इसके अलावा हार्ट, बीपी, शुगर बीमारियों की दवाइयां लोगों को जीवनभर खानी होती है, ऐसे में अगर चार हजार की दवा 400 रुपए में मिल जाए तो आप लेंगे भी और खाएंगे भी। नहीं तो देखने में आया है कि तीन-चार हजार की दवा के लिए लोग पैसे न होने पर दवा पूरी नहीं खाते हैं। अब जन औषधि केंद्रों में ये बहुत ही कम दाम में उपलब्ध हैं। 

डॉ. गोयल ने कहा कि हाइपरटेंशन, हार्ट जैसी बीमारियों का इलाज जीवनभर चलता है, अगर 20 हजार रुपए कमाने वाले व्यक्ति को महीने में छह-सात हजार रुपए दवाई में खर्च करना पड़े तो वह नहीं खाएगा। इससे ही वह हार्ट या हाइपरटेंशन की बीमारी क्रोनिक हार्ट डिसीज, क्रोनिक लीवर डिसीज जैसे बीमारियों वह कन्वर्ट होगी। टीबी की दवाई भी फ्री दी जा रही है। अब टीबी मुक्त भारत की बात की जा रही है, अब इसे लेकर प्लान किया जा रहा है। पहले पोलियो खत्म हुआ अब भारत में टीबी खत्म करने पर फोकस किया जा रहा है।