रिजर्व बैंक विकास को लेकर आश्वस्त पर खाद्य महंगाई की चिंता, कर्ज सस्ता करना दूसरे देशों के रुख पर भी निर्भर
सवाल है कि जब आरबीआई को लगता है कि महंगाई नियंत्रण में है तो उसने लगातार सात समीक्षा में रेपो रेट क्यों नहीं घटाया। इसकी वजह है खाद्य महंगाई। दास ने कहा “खुदरा महंगाई दिसंबर के ऊंचे स्तर से नीचे आ गई है लेकिन खाद्य महंगाई का दबाव लगातार बना हुआ है।” फरवरी में सब्जियों के दाम 30.2% बढ़ गए थे सात महीने में यह सबसे ज्यादा वृद्धि थी।
एस.के. सिंह, नई दिल्ली। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने शुक्रवार को मीडिया से बातचीत में कहा, “हाथी बाहर टहलने गया है और लगता है कि जंगल में लौट जाएगा।” हाथी से उनका आशय खुदरा महंगाई से था। आरबीआई गवर्नर यह कहना चाहते थे कि महंगाई नियंत्रण में है और जल्दी ही वह निर्धारित सीमा में आ जाएगी। शक्तिकांत दास वित्त वर्ष 2024-25 में मौद्रिक समीक्षा समिति की पहली बैठक के बाद मीडिया से मुखातिब थे। आरबीआई ने लगातार सातवीं समीक्षा में रेपो रेट को 6.5% पर बरकरार रखा है। आरबीआई जिस ब्याज पर बैंकों को कर्ज देता है उसे रेपो रेट कहते हैं।
इकोनॉमी के तमाम सेक्टर इस उम्मीद में हैं कि महंगाई कम हो तो रिजर्व बैंक रेपो रेट घटाएगा। इससे आम लोगों और इंडस्ट्री के लिए कर्ज भी सस्ता होगा। लांग टर्म में खुदरा महंगाई के लिए केंद्रीय बैंक का लक्ष्य 4% का है, समय-समय पर यह 2% कम या ज्यादा हो सकता है। लेकिन 2020 में कोरोना महामारी आने के पहले से यह 4% से ऊपर बनी हुई है।
सामान्य मानसून की उम्मीद में आरबीआई ने 2024-25 के लिए 4.5% खुदरा महंगाई के अनुमान में तो कोई बदलाव नहीं किया, लेकिन अलग-अलग तिमाहियों के लिए अनुमान बदले हैं। इसने पहली तिमाही यानी अप्रैल-जून के लिए खुदरा महंगाई का अनुमान 5% से घटा कर 4.9%, दूसरी तिमाही के लिए 4% से घटा कर 3.8% किया गया है। तीसरी तिमाही में 4.6% का अनुमान पिछली बार के समान है, लेकिन चौथी तिमाही के लिए महंगाई के अनुमान को 4.7% से कम कर 4.5% कर दिया है।
सवाल है कि जब आरबीआई को लगता है कि महंगाई नियंत्रण में है तो उसने लगातार सात समीक्षा में रेपो रेट क्यों नहीं घटाया। इसकी वजह है खाद्य महंगाई। दास ने कहा, “खुदरा महंगाई दिसंबर के ऊंचे स्तर से नीचे आ गई है, लेकिन खाद्य महंगाई का दबाव लगातार बना हुआ है।” फरवरी में खुदरा महंगाई 5.09% रही थी, लेकिन खाद्य महंगाई जनवरी के 8.3% की तुलना में 8.7% हो गई थी। सब्जियों के दाम 30.2% बढ़ गए थे और सात महीने में यह सबसे ज्यादा वृद्धि थी। खुदरा महंगाई दिसंबर में 5.7% और जनवरी में 5.1% रही थी। इसके अलावा आगे भीषण गर्मी, कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि और रेड सी संकट का जोखिम भी है।
आरबीआई विकास को लेकर आश्वस्त
एचडीएफसी बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री और एक्जीक्यूटिव वाइस प्रेसिडेंट अभीक बरुआ का कहना है, “दुनिया भर के केंद्रीय बैंक महंगाई की चुनौती को देखते हुए मौद्रिक नीति सख्त रखना चाहते हैं। आरबीआई भी उनके साथ कदम मिला कर चल रहा है। यही कारण है कि महंगाई कम होने की बात कहने के बावजूद उसने पॉलिसी दरों में बदलाव नहीं किया...। रेट कट की गुंजाइश वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में ही लग रही है।”
आरबीआई ने मौजूदा वित्त वर्ष के लिए 7% आर्थिक विकास दर के पिछले अनुमान को बरकरार रखा है। यस बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री इंद्रनील पान कहते हैं, “पॉलिसी का टोन संतुलित है। फरवरी की समीक्षा की ही तरह लगता है कि आरबीआई विकास की परिस्थितियों को लेकर आश्वस्त है। इसका कारण है कि शहरी क्षेत्रों में मांग बढ़ने की गति बनी रहने की उम्मीद है और ग्रामीण क्षेत्रों में भी रिकवरी हो रही है। निवेश में भी वृद्धि की संभावना है। अगले एक साल के लिए कंज्यूमर कॉन्फिडेंस भी बढ़ा है।”
वे कहते हैं, “महंगाई को लेकर आरबीआई की चिंता खाद्य महंगाई पर टिकी है। लेकिन उसके बयान से लागत बढ़ने की चिंता भी झलकती है। खास कर कच्चे तेल और कमोडिटी के दाम में। भू-राजनीतिक कारणों से तेल और दूसरी कमोडिटी के दाम बढ़े हैं।”
यस बैंक के अनुसार, “सब्जियों के अलावा देखें तो कच्चा तेल भी हाल में महंगा हुआ है। मौजूदा कैलेंडर वर्ष में ही यह 16% महंगा हो चुका है। हो सकता है कि भारत में कच्चे तेल के दाम का खुदरा महंगाई पर सीधा असर न हो, क्योंकि यहां पेट्रोल-डीजल के दाम नियंत्रित हैं। तिलहन का प्रयोग बायोफ्यूल में भी होता है। इसलिए कच्चा तेल महंगा होने से खाद्य तेल के दाम भी बढ़ने की आशंका है। सरकार खाद्य तेल के आयात पर कस्टम ड्यूटी पहले ही घटा चुकी है। इसलिए इसमें और कटौती की गुंजाइश में कम है।”
ब्याज दरों में कटौती ग्लोबल फैसला
दरअसल, कोविड के बाद महंगाई तेजी से बढ़ी तो उसे काबू में करने के लिए सभी प्रमुख देशों के केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरें बढ़ाई थीं। इसलिए ब्याज दरों में कटौती करना भी किसी एक देश के बजाय ग्लोबल फैसला होगा। भारतीय रिजर्व बैंक या दूसरे विकासशील देशों के केंद्रीय बैंकों का ब्याज दरों में कटौती करना काफी हद तक अमेरिका के फेडरल रिजर्व पर निर्भर करता है। जब तक अमेरिका में ब्याज दरों में कटौती नहीं होती या कम से कम इस दिशा में बात शुरू नहीं होती, तब तक दूसरे देशों में इसकी संभावना कम है।
अभी तक माना जा रहा था कि अमेरिका में जून से ब्याज दरों में गिरावट शुरू हो जाएगी। लेकिन फेडरल रिजर्व के अध्यक्ष जेरोम पावेल ने दो दिन पहले ही कहा कि ब्याज दरों में जल्दी गिरावट लाना अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदायक हो सकता है। फेड रिजर्व ने एक साल से ब्याज दरों को 5.25 से 5.5 प्रतिशत पर स्थिर रखा है।
चीन में मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई मार्च में 11 महीने के उच्चतम स्तर पर दर्ज हुई है। इससे पता चलता है कि वहां डिमांड बढ़ रही है। इसलिए दूसरी कमोडिटी के दाम भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ सकते हैं। हाल के आंकड़े अमेरिकी अर्थव्यवस्था में भी मजबूती का संकेत देते हैं।
वैसे तो रिजर्व बैंक घरेलू परिस्थितियों के आधार पर ही निर्णय लेगा, लेकिन ब्याज दरों में कटौती फेडरल रिजर्व से पहले होने की गुंजाइश कम है। यस बैंक के अनुसार, “फेडरल रिजर्व भी ब्याज दरों में कटौती के चक्र को आगे बढ़ाता प्रतीत हो रहा है, इसलिए भारत में अगस्त की समीक्षा से पहले रेपो रेट घटने की उम्मीद नहीं है। पूरे वित्त वर्ष में कटौती भी ज्यादा नहीं होगी।” वित्त वर्ष में यह कटौती 0.5% से 0.75% तक हो सकती है।
यूरोप में भी कम हो रही है महंगाई
यूरोप में तीन महीने से लगातार महंगाई दर कम हो रही है। यूरो का इस्तेमाल करने वाले 20 देशों में मार्च में खुदरा महंगाई 2.4% रही है। फरवरी में यह 2.6% थी। यूरोपियन सेंट्रल बैंक 11 अप्रैल को मौद्रिक नीति पर बैठक करेगा। उसने महंगाई दर को 2% पर लाने का लक्ष्य रखा है। खाद्य और ईंधन को छोड़ बाकी चीजों की कोर महंगाई 2.9% दर्ज हुई है। यह फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद पहली बार 3% से नीचे आई है। यूरो जोन की सबसे बड़ी इकोनॉमी जर्मनी में खुदरा महंगाई 2.3% बढ़ी, जो जून 2021 के बाद सबसे कम है। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि ईसीबी ब्याज दरें घटाने से पहले और आंकड़ों का इंतजार करेगा। ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स के अर्थशास्त्री रोरी फेनेसी ने एक नोट में लिखा, “कोर महंगाई कम हुई है, लेकिन सर्विसेज में महंगाई को देखते हुए यह संभावना कम ही है कि ईसीबी अगली बैठक में ब्याज दर घटाएगा।”
विदेशी मुद्रा भंडार और बढ़ाना चाहता है आरबीआई
आरबीआई ने रुपये की स्थिरता की भी बात कही है। इसलिए ग्लोबल करेंसी मार्केट में उतार-चढ़ाव के बाद भी रुपये में ज्यादा गिरावट के आसार नहीं हैं। आरबीआई गवर्नर ने कहा, विदेशी मुद्रा भंडार हमें भविष्य के जोखिम से सुरक्षा प्रदान करता है। एचडीएफसी बैंक के बरुआ के अनुसार, “आरबीआई का संकेत है कि वह विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाना चाहता है। इसलिए आने वाली तिमाहियों में रुपये की वैल्यू बढ़ने की संभावना है।”
विकास दर, कर संग्रह आदि के आंकड़े मजबूत होने के बावजूद हाल में डॉलर मजबूत होने के कारण रुपया कमजोर हो रहा है और रिकॉर्ड निचले स्तर के आसपास है। हालांकि दूसरी मुद्राओं के मुकाबले रुपया उतना कमजोर नहीं हुआ है। मौजूदा वित्त वर्ष में भारत जेपी मॉर्गन बांड इंडेक्स में शामिल हो जाएगा। इससे भारत में वित्तीय प्रवाह बढ़ाने की उम्मीद है। इससे भी रुपये को समर्थन मिलेगा।
रियल एस्टेट सेक्टर को बिक्री का मोमेंटम बने रहने की उम्मीद
प्रॉपर्टी कंसल्टेंट एनारॉक ग्रुप के चेयरमैन अनुज पुरी के अनुसार, “भारत की अर्थव्यवस्था मजबूती से आगे बढ़ रही है और महंगाई भी नियंत्रण में है। हालांकि महंगाई का आरबीआई की निर्धारित सीमा में आना बाकी है। यथास्थिति बरकरार रखने का फैसला घरों की बिक्री के मोमेंटम को भी बरकरार रखेगा। घर खरीदने के इच्छुक लोग भरोसे के साथ आगे बढ़ सकते हैं। दाम बढ़ने के बावजूद देश के सात प्रमुख शहरों में घरों की बिक्री कई तिमाही से बहुत अच्छी रही है।”
एनारॉक रिसर्च के अनुसार जनवरी-मार्च 2024 के दौरान सात प्रमुख शहरों में 1.30 लाख घर बिके। यह बीते एक दशक में किसी भी तिमाही में सबसे ज्यादा बिक्री है। बीते एक साल में इन शहरों में घर 10 से 32 प्रतिशत तक महंगे भी हुए हैं। इस लिहाज से देखा जाए तो रेपो रेट नहीं बदलना घर खरीदारों के लिए स्वागतयोग्य फैसला है।
प्रॉपर्टी कंसल्टेंसी फर्म सीबीआरई के भारत, दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य पूर्व और अफ्रीका के चेयरमैन तथा सीईओ अंशुमन मैगजीन ने कहा, “आरबीआई भारतीय अर्थव्यवस्था में महंगाई बढ़ने के जोखिम की मॉनिटरिंग करता है। इस लिहाज से रेपो रेट नहीं बदलना महत्वपूर्ण है। यह घर खरीदने के इच्छुक लोगों के लिए अच्छी खबर है, क्योंकि उनके लिए होम लोन महंगा नहीं होगा।”