एस.के. सिंह, नई दिल्ली। भारतीय किसानों की दो प्रमुख समस्याएं हैं। एक तो यह कि ज्यादातर किसानों को यह विकल्प नहीं मिलता कि वे अपनी उपज कब बेचें। इसलिए जब उनकी फसल आती है तब उन्हें जो भी भाव मिलता है, उसी पर उपज बेचते हैं। दूसरा, वे यह तय नहीं कर सकते कि उपज किसको बेचें। आमतौर पर होता यह है कि किसान पुराने आढ़ती, कमीशन एजेंट, इनपुट डीलर जिनके साथ उनका पुराना लेनदेन होता रहा है, उसको अपनी उपज बेच देते हैं। दोनों परिस्थितियों में किसानों को फसल की सही कीमत नहीं मिलती। एग्रीटेक कंपनी आर्य.एजी के सह-संस्थापक और एमडी प्रसन्ना राव का कहना है कि इन दोनों समस्याओं का समाधान उपलब्ध कराने पर किसानों की आय बढ़ाई जा सकती है। उनका दावा है कि आर्य.एजी शुद्ध मुनाफा कमाने वाली देश की इकलौती एग्रीटेक कंपनी है। यह 11 वर्षों से किसानों को इन्हीं दोनों समस्याओं का समाधान देने की कोशिश कर रही है। अब तक 1200 एफपीओ के माध्यम से करीब 8 लाख किसान इससे जुड़ चुके हैं।

प्रसन्ना कहते हैं, किसान अपनी उपज सही समय पर बेचे, इसके लिए हमने यह समाधान दिया कि वह खेत के पास ही उपज को कुछ हफ्तों या महीनों के लिए रख सके। इससे उन्हें 40% तक अधिक कीमत मिलती है। लेकिन किसान के साथ समस्या होती है कि अगर वह अपनी उपज न बेचे तो उसका खर्च कैसे चलेगा। इसके लिए हमने उसे दूसरा सॉल्यूशन दिया। हम और कोई चीज गिरवी रखे बिना, उसी उपज के एवज में तत्काल उन्हें लोन देते हैं जिस पर ब्याज की दर भी कम होती है।

उसके बाद उन्होंने दूसरी समस्या पर फोकस किया कि किसान अपनी उपज किसे बेचे। प्रसन्ना कहते हैं, खरीदार की मुख्य रूप से तीन जरूरतें होती हैं- उसे अच्छी क्वालिटी का माल चाहिए, जब डिमांड हो तब चाहिए और जितनी डिमांड हो उतनी चाहिए। उपज हमारे वेयरहाउस में रहने के कारण हमें पता होता है कि कहां कितना माल पड़ा है। इसलिए हम किसान को सीधे खरीदार से जोड़ने में सफल रहे। इस तरह हमने मार्केट लिंकेज की तीसरी सर्विस शुरू की। करीब 2000 मिलर, प्रोसेसर तथा बड़ी कंपनियां आर्य से जुड़ी हैं।

शुरू में आर्य के वेयरहाउस किसान से औसतन 87 किलोमीटर दूर होते थे, अभी यह 11 किलोमीटर है। प्रसन्ना के अनुसार, बहुत से किसानों को उनके गांव में ही वेयरहाउस का फायदा मिल रहा है। 11 किलोमीटर की दूरी को भी कम करने की कोशिश कर रहे हैं। जरूरत पड़ने पर हम 24 घंटे के भीतर वेयरहाउस का ढांचा खड़ा कर सकते हैं जहां किसान तीन साल तक अपना माल सुरक्षित रख सकते हैं।

आर्य ने वेयरहाउस का एक प्लेटफॉर्म भी बनाया है जिस पर 12000 वेयरहाउस लिस्टेड हैं। इनमें 3500 का संचालन आर्य खुद करती है। नाबार्ड की ग्रामीण भंडारण योजना के तहत बहुत से वेयरहाउस बनाए गए थे। आर्य उन्हें लीज पर लेकर चलाती है। प्रसन्ना बताते हैं, हम बड़ी मंडियों से 150 से 200 किलोमीटर दूर ऐसी जगह चुनते हैं जहां वेयरहाउस होता है। पहले हम उन वेयरहाउस के मालिकों के पास गए, उन्हें बताया कि आपके वेयरहाउस में फाइनेंस की सुविधा नहीं होने के कारण 15% से 20% क्षमता का ही इस्तेमाल होता है। हम आकर इसमें अपनी टेक्नोलॉजी लगाएंगे, फाइनेंस दिलवाएंगे, इससे ज्यादा क्षमता का इस्तेमाल हो सकेगा। इस तरह हमने

वेयरहाउस को लीज पर लेकर अपने नेटवर्क में छोड़ा और वेयरहाउस ऐज ए सर्विस मॉडल शुरू किया।

उन्होंने बताया, आज पूरे देश में जितना अनाज उत्पादन होता है, उसका लगभग तीन प्रतिशत हमारे वेयरहाउस में आता है। मात्रा में देखे तो यह लगभग 90 लाख टन सालाना है। इनका मूल्य करीब 20,000 करोड़ रुपये है। उपज के एवज में किसानों को हम करीब 10,000 करोड़ रुपये का लोन देते हैं। हमने 2023-24 में करीब 4.5 हजार करोड़ का किसानों का माल बड़े खरीदारों को बिकवाया।

प्रसन्ना के अनुसार, अभी हम सिर्फ अनाज और नॉन-पेरिशेबल कमोडिटी के बिजनेस में हैं जिनकी शेल्फ लाइफ तीन महीने से ज्यादा हो। जनवरी 2022 में हमने करीब 2200 करोड़ रुपये (300 मिलियन डॉलर) वैल्यूएशन पर फंड जुटाया था। मौजूदा वित्त वर्ष में भी हम कुछ फंड जुटाने की सोच रहे हैं।