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कोरोना महामारी के बीच क्या ऑनलाइन पैकेज्ड फूड डिलीवरी सुरक्षित है? ORB रिपोर्ट ने उठाए ये सवाल

ओआरबी मीडिया ने दुनियाभर में खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग और उसके विभिन्न पहलुओं पर प्रकाशित दर्जन शोधपत्रों जनरल और आलेखों की सघन पड़ताल अध्ययन और विश्लेषण किया है। इसका मकसद यह समझना है कि जो पैकेज्ड पदार्थों का हम सेवन कर रहे हैं वे हमारे लिए कितने सुरक्षित हैं।

By Vineet SharanEdited By: Published: Sat, 30 Jan 2021 09:00 AM (IST)Updated: Sat, 30 Jan 2021 09:14 AM (IST)
डिलीवरी फूड को ग्लास, स्टेनलैस स्टील या सिरैमिक में परोस कर दिया जाना चाहिए। ये मैटीरियल्स सुरक्षित होते हैं।

नई दिल्ली, जेएनएन। ऑनलाइन फूड ऑर्डर करना अब हमारी आदत का हिस्सा बनता जा रहा है। कोरोना लॉकडाउन के कारण इसमें कमी आई थी, लेकिन इसके बाद दुनियाभर में फिर से बड़ी संख्या में लोग ऑनलाइन फूड ऑर्डर करने लगे हैं। इस बीच कोरोना के कारण खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग में भी खास तरह के बदलाव हुए हैं। हालांकि, अब ये सवाल भी उठने लगे हैं कि क्या ऑनलाइन मिलने वाले पैकेज्ड फूड (डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ) सुरक्षित और स्वास्थ्यवर्द्धक हैं? क्या खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग के समय निर्धारित मानकों का पालन किया जाता है? क्या उनमें विषैले रसायन तो नहीं मिलाए जाते हैं?

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इन्हीं सवालों को ध्यान में रखते हुए ओआरबी मीडिया ने दुनियाभर में खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग और उसके विभिन्न पहलुओं पर प्रकाशित एक दर्जन से अधिक शोधपत्रों, जनरल और आलेखों की सघन पड़ताल, अध्ययन और विश्लेषण किया है। इसका मकसद यह समझना और आमजनों की समझ में यह लाना है कि जो पैकेज्ड पदार्थों का हम सेवन कर रहे हैं, वे हमारे लिए कितने सुरक्षित हैं।

क्या कहती है रिपोर्ट

रिपोर्ट के अनुसार, ऑनलाइन फूड डिलीवरी का ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है। इसके कारण डिस्पोजेबल का इस्तेमाल भी बढ़ा है। मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। आदर्श स्थिति में डिलीवरी फूड को ग्लास, स्टेनलैस स्टील या सिरैमिक में परोस कर दिया जाना चाहिए। ये मैटीरियल्स सुरक्षित होते हैं और इनका दोबारा प्रयोग किया जा सकता है। वहीं इसके विपरीत प्लास्टिक का प्रयोग सेहत के लिए बेहतर नहीं है। ओआरबी की रिपोर्ट कहती है कि डिस्पोजेबल पैकेजिंग कई बार अपिरहार्य हो जाती है। सभी डिस्पोजेबल फूड उत्पाद चाहें वे प्लास्टिक से बने हों या प्लांट से, कहीं न कहीं उनमें गुणवत्ता से समझौता होता है। ओआरबी की रिपोर्ट (साइंस डायरेक्ट डॉट कॉम) में रिसर्च पेपर का हवाला दिया गया है। इस शोध पत्र में 67 ग्लोबल अथॉरिटी और इंडस्ट्री लिस्ट से 12,285 केमिकल्स को रिकॉर्ड किया गया।

क्या पैकेज्ड खाना हानिकारक होता है?

फूड कॉन्टैक्ट मैटीरियल (एफसीएम) का प्रयोग फूड कॉन्टैक्ट आर्टिकल (एफसीए) को बनाने में होता है। यह प्रोसेसिंग, भंडारण, पैकेजिंग और इस्तेमाल के समय खाद्य और पेय पदार्थों के संपर्क में आता है। इसे आप साधारण भाषा में ऐसे समझ सकते हैं कि आपका खाद्य पदार्थ, जो डिब्बे/पैकेट में आता है, उसे आप फूड कॉन्टैक्ट आर्टिकल (एफसीए) बोलते हैं। यह फूड कॉन्टैक्ट मैटीरियल (एफसीएम) से बना होता है। जब एफसीएम और एफसीए के रासायनिक घटक जिनको फूड कॉन्टैक्ट केमिकल (एफसीसी) कहते हैं, वे खाने के संपर्क में आ जाते हैं और वे फूड प्रोडक्ट्स को रासायनिक तौर पर हानिकारक बना देते हैं।

ओआरबी ने इन प्रश्नों का किया आकलन

किससे हुआ निर्माण : ओआरबी ने इस प्रक्रिया में यह जाना कि उत्पाद का निर्माण किस चीज से हुआ है। मुख्यत: दुनियाभर में डिस्पोजेबल फूडवेयर में प्लास्टिक (पेट्रोलियम या प्लांट आधारित) का प्रयोग होता है। इसके अलावा, पेपर या बोर्ड, प्लांट फाइबर (बांस, सेल्यूलॉज या अन्य चीजों) आदि का प्रयोग होता है।

ध्यान रखें : खाने को पैकेटबंद करने में किस मैटीरियल का प्रयोग किया गया है, यह जानना बेहद जरूरी है।

कैसे किया जा रहा इनका इस्तेमाल: इस बात को ध्यान में रखने की आवश्यकता है कि खाद्य पदार्थ किस तरह का है और उसे पैकेटबंद करने के लिए किस तरह के मैटीरियल्स का प्रयोग किया जा रहा है। यहां यह भी ख्याल रखा जाना चाहिए कि वह फूड कितने समय के लिए पैकेटबंद है। सामान्य नियम के आधार पर ऐसे फूड और ड्रिंक जिनका तापमान अधिक होता है, जो अधिक तैलीय या फैटी या अम्लीय होती है, उनमें रासायनिक माइग्रेशन होने की संभावना अधिक होती है। जितनी देर तक पैकेजिंग रहेगी, जोखिम उतना ही अधिक होगा। वहीं सलाद या ब्रेड के ऊपर प्लास्टिक फिल्म में रासायनिक क्रियाओं के होने की संभावना कम होती है।

ध्यान रखें: गर्म खाना और फैटी खाना या अधिक देर तक पैकेटबंद खाने में रासायनिक माइग्रेशन की संभावना अधिक होती है।

प्लास्टिक की पैकेजिंग वाली चीजों में रासायनिक सुरक्षा का वादा: सामान्य तौर पर ऐसा समझा जाता है कि प्लास्टिक चाहे वह पेट्रोलियम से बना हो या प्लांट से, उसके हानिकारक रसायनों के फूड और ड्रिंक में जाने की आशंका अधिक होती है। फूड पैकेजिंग फोरम का कहना है कि कंपनियों को इस बात की जानकारी नहीं होती है कि उनके उत्पाद में कौन से केमिकल से बने होते हैं। ज्यादातर मौकों पर प्रोडक्शन प्रक्रिया में केमिकल इतने पहले मिला दिए जाते हैं कि उपभोक्ता उसके बारे में जान ही नहीं पाते।

ध्यान रखें : कंपनियों द्वारा दी गई चेतावनियों या वायदों को गौर से देखें।

रिसाइकिल मैटीरियल कितने सुरक्षित : रिसाइकल मैटीरियल सुनने में अच्छा लगता है। पर जब खाने की बात आती है तो इस मामले में अतिरिक्त सतर्कता बरतने की जरूरत होती है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि फूड कॉन्टैक्ट आर्टिकल्स में प्रयोग किए जाने वाले रिसाइकिल मैटीरियल का स्रोत पता नहीं होता है। उदाहरण के तौर पर कुछ ब्लैक प्लास्टिक जिसमें खाना आता है, उनमें लेड, कैडमियम और ब्रोमेनेटेड फ्लेम रिटार्डेंट्स होते हैं, जो कि रिसाइकिल इलेक्ट्रॉनिक्स से बने होते हैं।

ध्यान रखें : रिसाइकिल उत्पाद भी दूषित हो सकते हैं। ऐसे में कंपनी द्वारा दी गई स्रोत की जानकारी और प्रक्रिया को जरूर पढ़ें।

कितना बड़ा है फूड पैकेजिंग का कारोबार

ओआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में ऑनलाइन मील डिलीवरी का कारोबार करीब 26.5 बिलियन डॉलर का है। 2019 के मुकाबले इसमें 20 फीसद की बढ़ोतरी हुई है। सेनफ्रांसिस्को की डिलीवरी सर्विस डोरडेश (अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में कारोबार) के अनुसार, कोरोना आपदा के समय उसके बिजनेस में रिकॉर्ड तोड़ बढ़ोतरी हुई। नौ दिसंबर, 2020 को कंपनी की वैल्यू 39 बिलियन डॉलर हो गई। ब्रिटेन की आबादी करीब 66 मिलियन है। इनमें से 19 मिलियन लोग रेस्तरां से फूड डिलीवरी मंगाते हैं। 2019 के मुकाबले इसमें 19 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इनमें से 10 फीसद थर्ड पार्टी डिलीवरी सर्विस का प्रयोग करते है। इसमें 25 फीसद की बढ़ोतरी हुई है। लंदन आधारित डिलीवरी एप डिलीवरो ने अनुमान लगाया है कि कोरोना की वजह से ऑनलाइन फूड डिलीवरी का ट्रेंड अधिक बढ़ेगा।

ये सुझाव दिए गए

ओआरबी की रिपोर्ट में सुझाव देते हुए कहा गया है कि निर्माताओं को एफसीए में हानिकारक रसायनों के प्रयोग को लेकर पारदर्शिता बढ़ानी होगी। किन रासायनिक तत्वों का प्रयोग किया जा रहा है, इस बात को सार्वजनिक किया जाना चाहिए, ताकि आम लोग उसे सही तरीके से परख सकें। सीधे तौर पर कहें तो निर्माताओं को जहां इस मामले में अधिक स्पष्ट और पारदर्शी रवैया अपनाने की आवश्यकता है, वहीं दूसरी तरफ नियामकों को भी इस मामले में सख्ती दिखानी होगी। यही नहीं आमजन को भी इस मामले में सोच-समझकर कर निर्णय लेना होगा। तभी आने वाले समय में हम खुद और अपने परिवार के लिए सेहतमंद खाना उपलब्ध कराना सुनिश्चित कर सकेंगे।


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