नई दिल्ली, विवेक तिवारी । आने वाले दिनों में आपको भीषण गर्मी का सामना करना पड़ सकता है। मौसम विभाग के मुताबिक 2024 के गर्मियों के मौसम (अप्रैल से जून) के दौरान, देश के अधिकांश हिस्सों में अधिकतम तापमान सामान्य से अधिक रहने की संभावना है। वहीं न्यूनतम तापमान भी सामान्य से ज्यादा रहेगा। अप्रैल महीने में दक्षिण प्रायद्वीप के अधिकांश हिस्सों, मध्य भारत, पूर्वी भारत और उत्तर पश्चिम भारत के मैदानी इलाकों में हीटवेव चलने की संभावना जताई गई है। हाल ही में साइंस एडवांस जर्नल में छपे एक शोध के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर में हीट वेव के दिनों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। ऐसे में आने वाले दिनों में लोगों को ज्यादा दिनों तक भीषण गर्मी का सामना करना पड़ सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक 1979 से 1983 तक, पूरी दुनिया में हीट वेव की लहरें औसतन आठ दिनों तक चलती थीं, लेकिन 2016 से 2020 तक यह 12 दिनों तक बढ़ गई हैं।

वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया कि गर्मी बढ़ने के चलते पूरी दुनिया में मैसम के चक्र पर भी असर पड़ा है। अमेरिका की यूटा स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और इस शोध के सह लेखक वेई झांग कहते हैं कि इस अध्ययन से साफ पता चलता है कि हीटवेव तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में आने वाले समय में आम लोगों को काफी लम्बे समय तक भीषण गर्मी का सामना करना पड़ेगा। 1979 से अब तक हीटवेव की तीर्वता में 67 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो चुकी है। वहीं हीटवेव के तहत चलने वाली गर्म हवाओं की गति 20 फीसदी तक घट चुकी है। इसके चलते लोगों को लेम्बे समय तक भीषण गर्मी का सामना करना पड़ रहा है। इस अध्ययन में हीटवेव की बढ़ती तीर्वता के लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन और बढ़ते प्रदूषण को जिम्मेदार बताया गया है। वैज्ञानिकों के मुताबिक अगर 40 साल पहले की तुलना में बात की जाए तो हीटवेव के दौरान गर्मी की तीर्वता बढ़ने के साथ ऐसे इलाकों की संख्या भी बढ़ी है जहां हीटवेव का प्रभाव बढ़ा हो।

मौसम विभाग ने दिया अलर्ट

मौसम विभाग ने भीषण गर्मी की संभावनाओं को देखते हुए अलर्ट जारी किया है। IMD के मुताबिक 2024 के गर्मियों के मौसम (अप्रैल से जून) के दौरान हीटवेव और सामन्य से अधिक गर्मी को ध्यान में रखते हुए इस साल गर्मी के मौसम में विशेष तौर पर बुजुर्गों और बच्चों का ध्यान देने की जरूरत है। जिन लोगों को गर्मी में ज्यादा थकावट लगती है या जो हीटस्ट्रोक और डिहाइड्रेशन के लिए संवेदनशील हैं उन्हें विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिए। IMD के मुताबिक इस साल बिजली ग्रिड और सार्वजनिक परिवहन पर दबाव बढ़ने की संभावना है। शहरी क्षेत्रों में अर्बन हीट आइलैंड जैसी संभावनाओं को ध्यान रखते हुए विशेष तौर पर इंतजाम किए जाने की जरूरत है।

बुजुर्गों और बच्चों की बढ़ी मुश्किल

जलवायु परिवर्तन ने बच्चों और बुजुर्गों के स्वास्थ्य के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं। हाल ही आई लैंसेट काउंटडाउन रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के चलते दुनिया भर में लोगों के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ा हैं। बदलते पर्यावरण का सबसे ज्यादा असर 65 साल से ज्यादा उम्र के वयस्कों और एक साल से कम उम्र के शिशुओं पर पड़ा है जो विशेष रूप से बढ़ती गर्मी के प्रति संवेदनशील होते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 1986-2005 की तुलना में पिछले कुछ वर्षों में हीटवेव वाले दिनों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है। एक्ट्रीम वेदर की बढ़ती घटनाओं के चलते स्वास्थ्य के साथ ही जल और खाद्य सुरक्षा के लिए भी खतरा बढ़ा है। विशेषज्ञों के मुताबिक बदलती जलवायु के चलते संक्रामक रोग तेजी से बढ़ रहे हैं। लैंसेट काउंटडाउन रिपोर्ट 2023 को ध्यान में रखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए दुनिया भर की सरकारों से जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को जल्द से जल्द खत्म करने और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपनाने पर जोर देने को कहा है।

हीटवेव बन रही है जानलेवा

पर्यावरणविद और सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण कहती हैं कि हीटवेव जानलेवा बन रही है। भारत में 2023 में 20 राज्यों में 200 लोगों को हीटवेव के चलते जान गवांनी पड़ी है। हीट वेव और बढ़ती गर्मी का असर आम लोगों की सेहत पर पड़ता है। लैंसेट की रिपोर्ट कहती है, गर्मी बढ़ने से मौतें बढ़ रही हैं और आगे भी बढ़ सकती हैं। इस समस्या से निपटने के लिए हमें एक दीर्घकालिक हीट वेव एक्शन प्लान बनाना होगा। इस प्लान के तहत एक तरफ जहां हीट वेव से प्रभावित लोगों के लिए इमरजेंसी हेल्थ सर्विस के इंतजाम करने होंगे वहीं दूसरी तरफ शहरों में गर्मी को कम करने के लिए कई तरह के कदम उठाने होंगे।

इंटीग्रेटेड रिसर्च एंड एक्शन फॉर डेवलपमेंड और कनाडा की संस्था इंटरनेशनल डेवलपमेंट रिसर्च सेंटर की ओर से दिल्ली और राजकोट के शहरों के लिए हीटवेव दिनों की संख्या में वृद्धि का विश्लेषण किया है। रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में दिल्ली में 49 दिनों तक हीट वेव दर्ज की गई जो 2019 में बढ़ कर 66 दिनों तक पहुंच गई जो एक साल में लगभग 35% की वृद्धि को दर्शाता है। वहीं 2001 से 10 के आंकड़ों पर नजर डालें तो हीट वेव के दिनों में 51% की वृद्धि दर्ज हुई। वहीं राजकोट की बात करें तो 2001-10 के बीच कुल 39 दिन हीट वेव दर्ज की गई। वहीं ये संख्या 2011 से 21 के बीच बढ़ कर 66 दिनों तक पहुंच गई। इंटीग्रेटेड रिसर्च एंड एक्शन फॉर डेवलपमेंड के डिप्टी डायरेक्टर रोहित मगोत्रा के मुताबिक 21वीं सदी में हीट वेव की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ने की संभावना है। हाल ही में आई 6 वीं आईपीसीसी रिपोर्ट में पृथ्वी की सतह के 2.0 डिग्री फ़ारेनहाइट (1.1 डिग्री सेल्सियस) के आसपास गर्म होने पर चेतावनी दी गई है। इससे भविष्य में वैश्विक औसत तापमान और हीटवेव में वृद्धि होगी।

कब होता है हीटवेव

आईएमडी का कहना है कि हीटवेव तब होता है, जब किसी जगह का तापमान मैदानी इलाकों में 40 डिग्री सेल्सियस, तटीय क्षेत्रों में 37 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी क्षेत्रों में 30 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाता है। जब किसी जगह पर किसी ख़ास दिन उस क्षेत्र के सामान्य तापमान से 4.5 से 6.4 डिग्री सेल्सियस अधिक तापमान दर्ज किया जाता है, तो मौसम एजेंसी हीट वेव की घोषणा करती है। यदि तापमान सामान्य से 6.4 डिग्री सेल्सियस अधिक है, तो आईएमडी इसे 'गंभीर' हीट वेव घोषित करता है। आईएमडी हीट वेव घोषित करने के लिए एक अन्य मानदंड का भी उपयोग करता है, जो पूर्ण रूप से दर्ज तापमान पर आधारित होता है। यदि तापमान 45 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाता है, तो विभाग हीट वेव घोषित करता है। जब यह 47 डिग्री को पार करता है, तो 'गंभीर' हीट वेव की घोषणा की जाती है।

दिल्ली मेडिकल काउंसिल की साइंफिक कमेटी के चेयरमैन डॉक्टर नरेंद्र सैनी के मुताबिक हीट वेव को हल्के में नहीं लेना चाहिए। इससे आपकी जान भी जा सकती है। हमारे शरीर के ज्यादातर अंग 37 डिग्री सेल्सियस पर बेहतर तरीके से काम करते हैं। जैसे जैसे तापमान बढ़ेगा इनके काम करने की क्षमता प्रभावित होगी। बेहद गर्मी में निकलने से शरीर का तापमान बढ़ जाएगा जिससे ऑग्रेन फेल होने लगेंगे। शरीर जलने लगेगा, शरीर का तापमान ज्यादा बढ़ने से दिमाग, दिल सहित अन्य अंगों की काम करने की क्षमता कम हो जाएगा।यदि किसी को गर्मी लग गई है तो उसे तुरंत किसी छाया वाले स्थान पर ले जाएं। उसके पूरे शरीर पर ठंडे पानी का कपड़ा रखें। अगर व्यक्ति होश में है तो उसे पानी में इलेक्ट्राल या चीनी और नमक मिला कर दें। अगर आसपास अस्तपाल है तो तुरंत उस व्यक्ति को अस्पताल ले जाएं।

32 डिग्री तामपान पर बढ़ सकती है मुश्किल, जानिए क्या है डिसकंफटेबल इंडेक्स

मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक अगर हवा में आर्द्रता का स्तर 50 फीसदी से ज्यादा हो, हवा की स्पीड 10 किलोमीटर प्रति घंटा से कम हो और तापमान अगर 32 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा हो तो ऐसा मौसम बन जाता हे जिसमें जितना तापमान होता है उससे कहीं अधिक गर्मी और उमस महसूस होती है। वैज्ञानिक इस मौसम को डिसकंफटेबल इंडेक्स के तहत नापते हैं। मौसम में असहजता को ध्यान में रखते हुए ही डिसकंफटेबल इंडेक्स को बनाया गया है। मौसम वैज्ञानिक समरजीत चौधरी के मुताबिक असुविधा सूचकांक एक सूचकांक है जो में हवा के तापमान और आर्द्रता को जोड़ता है, इसके जरिए इन पैरामीटर्स पर इंसान को महसूस होने वाली गर्मी का अनुमान लगाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, जब हवा में आर्द्रता का स्तर 70 डिग्री हो और तापमान 32 डिग्री सेल्सियस (90 डिग्री फ़ारेनहाइट) हो और हवा बहुत धीरी हो, तो किसी इंसान को महसूस होने वाली गर्मी लगभग 41 डिग्री सेल्सियस (106 डिग्री फ़ारेनहाइट) के बराबर होती है। इस गर्मी सूचकांक तापमान में 20% की एक अंतर्निहित (अस्थिर) आर्द्रता है।