नई दिल्ली, जागरण प्राइम। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर नमक का संतुलित तरीके से प्रयोग किया जाए तो 2030 तक 70 लाख लोगों की जान बचाई जा सकती है। वहीं ऑगस्टा विश्वविद्यालय के मेडिकल कॉलेज ऑफ जार्जिया के वैज्ञानिकों ने अपने ताजा अध्ययन में कहा है कि महिलाएं साल्ट सेंसटिव होती हैं। उनमें नमक की मामूली मात्रा शरीर में ब्लड प्रेशर घटाने-बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वहीं रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं के शरीर में नमक ज्यादा देर तक रुकता और ब्लड प्रेशर बढ़ाता है। वैज्ञानिक अध्ययन इस बात को प्रमाणित करते हैं अधिक नमक खाने वाली महिलाओं को एक निश्चित समय के बाद पुरुषों की तुलना में ज्यादा शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

मेडिकल कॉलेज ऑफ जार्जिया में हुए एक शोध के मुताबिक महिला और पुरुष में ब्लड प्रेशर अलग-अलग तरह से नियंत्रित होता है। इसके बढ़ने और घटने के कारण भी अलग हो सकते हैं। विश्वविद्यालय के वैस्कुलर बायोलॉजी सेंटर में फिजियोलॉजिस्ट और इस शोध में शामिल एरिक बेलिन कहती हैं, आम तौर पर माना जाता है कि रजोनिवृत्ति तक पुरुषों की तुलना में महिलाओं को कार्डियोवैस्कुलर बीमारी का खतरा कम रहा है। कई अध्ययनों में ये बात साबित भी हुई है। लेकिन मॉडल दिखाते हैं कि महिलाएं रजोनिवृत्ति से पहले से ही नमक के प्रति ज्यादा संवेदनशील होती हैं। रजोनिवृत्ति इसकी गंभीरता और व्यापकता दोनों को बढ़ा देती है।

क्रोमोसोम की भी है भूमिका

अध्ययन से ये बात स्पष्ट हुई है कि क्रोमोसोम XX महिलाओं में नमक के प्रति संवेदनशीलता या सॉल्ट सेंसटिविटी को बढ़ाता है। शायद ये इसलिए होता है कि महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान अपने शरीर में फ्लुइड की मात्रा लगभग दोगुना करने की आवश्यकता होती है। एस्ट्रोजेन इस प्रक्रिया में बढ़े हुए जोखिम को कम करने में मदद करता है। रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं में एस्ट्रोजन का स्तर कम हो जाता है जिससे मुश्किल बढ़ती है।

साल्ट सेंसटिविटी

महिलाओं का नमक के प्रति ज्यादा सेंसटिव होना उनमें ब्लड प्रेशर बढ़ने का बड़ा कारण है। नमक के प्रति संवेदनशीलता का अर्थ है कि आपके शरीर में पेशाब के जरिए अतिरिक्त नमक निकालने के बजाय नमक को बनाए रखने की स्पष्ट प्रवृत्ति है। आप जो नमक खाते हैं उससे आपके शरीर में ब्लड प्रेशर अगर 10 फीसदी से ज्यादा घटता या बढ़ता है, तो आपको नमक के प्रति संवेदनशील कहा जाएगा।

नमक संवेदनशीलता बताती है कि आपका रक्तचाप नमक के सेवन के प्रति कैसी प्रतिक्रिया करता है। लोग या तो नमक के प्रति संवेदनशील होते हैं या प्रतिरोधी। नमक के प्रति संवेदनशील लोगों में, नमक प्रतिरोधी लोगों की तुलना में उच्च रक्तचाप की आशंका अधिक होती है। नमक के प्रति संवेदनशील व्यक्तियों को उच्च रक्तचाप, हृदय रोग होने का अधिक खतरा होता है। मानव शरीर में सोडियम होमियोस्टैसिस मुख्य रूप से निन-एंजियोटेंसिन-एल्डोस्टेरोन प्रणाली द्वारा नियंत्रित होता है। यह प्रणाली मुख्य रूप से गुर्दे और वॉस्कुलर स्मूथ कोशिकाओं में संचालित होती है।

महिलाएं खाती हैं ज्यादा नमक

खाने में स्वाद बढ़ाने के लिए महिलाएं नमक अधिक खाती हैं। कई अध्ययनों से इस बात की पुष्टि हुई है। जापान में एक अध्ययन में पाया गया कि महिलाएं नमक का सेवन ज्यादा करती हैं। वहीं महिलाओं को नमक के प्रति संवेदनशील भी पाया गया। कोरिया में हुए एक अध्ययन के मुताबिक लड़कों की तुलना में 8-9 वर्ष की आयु में मोटापे से ग्रस्त लड़कियों के बीच अधिक नमक खाने की आदत देखी गई। कोरिया में एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि मोटापा केवल महिलाओं में सोडियम का सेवन बढ़ाता है। पिछले पांच दशकों में कई मॉडल पर हुए अध्ययन में पाया गया कि मादा चूहे नर चूहों की तुलना में नमक के प्रति अधिक संवेदनशील होते है।

लंबे समय तक नमक का अधिक सेवन खतरनाक

शारदा अस्पताल के डिपॉर्टमेंट ऑफ जनरल मेडिसिन के डा. श्रेय श्रीवास्तव कहते हैं कि सोडियम एक आवश्यक पोषक तत्व है, लेकिन बहुत अधिक नमक खाने से यह आहार और पोषण संबंधी मौतों के लिए शीर्ष जोखिम कारक बन जाता है। सोडियम का मुख्य स्रोत टेबल सॉल्ट होता है। वह कहते हैं कि सोडियम के अधिक इस्तेमाल से आपको अधिक प्यास लगने, ब्लॉटिंग और रक्तचाप जैसी दिक्कतें होती हैं। लंबे समय तक नमक के अधिक सेवन से दिल के रोग, किडनी रोग, किडनी स्टोन, स्ट्रोक, हाई ब्लड प्रेशर, हाइपरटेंशन जैसी समस्या की आशंका बढ़ जाती है। डब्ल्यूएचओ के डिपॉर्टमेंट ऑफ न्यूट्रिशियन फॉर हेल्थ एंड डेवलपमेंट के निदेशक डा. फ्रांसेको ब्रांका कहते हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की सोडियम कम करने की सिफारिशों को अगर लागू किया जाए तो 2025 तक बीस लाख लोगों की जान बचाई जा सकती है और 2030 तक 70 लाख लोगों की जान बच सकती है। हमें रोजाना अपने खाने में कम नमक का इस्तेमाल करने की आदत डालनी चाहिए।

खाने में नमक मिलाने से उम्र पर पड़ रहा असर

खाने में अलग से नमक मिलाने से पुरुषों की जीवन प्रत्याशा दर में दो साल और महिलाओं में डेढ़ साल की कमी होती है। ब्रिटेन में 50 साल की उम्र के आसपास के पांच लाख लोगों के बीच नौ साल तक रिसर्च में यह बात सामने आई है। अमेरिका के न्यू ओरलींस में ट्यूलैंड यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के प्रोफेसर लू की ने दावा किया है कि पहली बार इस तरह का अध्ययन हुआ है।

भारतीय खाते हैं दोगुना नमक

विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से रोजाना भोजन में सुझायी गयी नमक की मात्रा के मुकाबले भारत के लोग दोगुना नमक खाते हैं। इससे लोगों में हृदय रोग और जल्दी मृत्यु का खतरा बढ़ता है। जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ की ओर से किए गए एक अध्ययन के अनुसार, 19 वर्ष से ज्यादा आयु के भारतीय एक दिन में औसतन 10.98 ग्राम नमक खाते हैं जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से सिर्फ पांच ग्राम प्रति दिन की मात्रा अनुशंसित है। अध्ययन के अनुसार, भारत के दक्षिणी और पूर्वी राज्यों में नमक का सेवन ज्यादा मात्रा में होता है। त्रिपुरा में लोग सबसे ज्यादा, औसतन 14 ग्राम प्रतिदिन नमक खाते हैं। यह डब्ल्यूएचओ की अनुशंसित मात्रा का तीन गुना है। अध्ययन के मुख्य लेखक क्लेयर जॉनसन ने कहा कि पिछले 30 वर्षों में औसत भारतीय भोजन में बदलाव आया है। भारतीय कम मात्रा में दाल, फल और सब्जियां खा रहे हैं, वे प्रसंस्कृत और फास्ट फूड ज्यादा खाने लगे हैं। उन्होंने लिखा है कि इसके कारण उनके भोजन में नमक, चीनी और नुकसानदेह वसा की मात्रा बढ़ गयी है जो उन्हें उच्च रक्तचाप, मोटापा, हृदय रोग जैसी बीमारियों की ओर ले जा रही है।

डब्ल्यूएचओ ने दिए सुझाव

खाद्य पदार्थों में नमक कम करने के लिए सुधार करना और खाद्य पदार्थों और भोजन में सोडियम की मात्रा का लक्ष्य निर्धारित करना सार्वजनिक संस्थानों जैसे अस्पतालों, स्कूलों, कार्यस्थलों और नर्सिंग होम में नमक या सोडियम युक्त खाद्य पदार्थों को सीमित करने के लिए सार्वजनिक खाद्य खरीद नीतियां स्थापित करना नमक के पैकेट पर जानकारी का सही लेबल लगा होना, जिससे उपभोक्ताओं को कम सोडियम वाले उत्पादों का चयन करने में मदद मिलेगी नमक या सोडियम की खपत को कम करने के लिए प्रचार-प्रसार करना तथा मीडिया अभियान चलाना।