नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/ संदीप राजवाड़े।

हीटवेव का प्रकोप देश के कई हिस्सों में दिखने में लगा है। भारत मौसम विज्ञान विभाग ने रविवार को दिल्ली में रेड अलर्ड जारी कर दिया था। विभाग ने बताया कि इन दिनों तापमान 28 से 44 डिग्री सेल्सियस के बीच रह सकता है। तेज गर्मी के थपेड़ों की वजह से लोगों की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना भी करना पड़ रहा है। क्या आपने कभी सोचा है कि अत्यधिक गर्मी के संपर्क में आने वाले जानवर, पक्षी और मजदूर कैसे बेहतर अनुकूलन कर सकते हैं ? चिकित्सकों का मानना है कि अत्यधिक गर्मी के अप्रत्यक्ष तौर पर संपर्क में आने से स्वास्थ्य में कुछ अनुकूल असर भी होते हैं।

सर गंगा राम अस्पताल के आंतरिक चिकित्सा विभाग के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. एम वली के अनुसार, "हमारे शरीर के लिए, अत्यधिक मौसम के संपर्क में आने से कुछ स्वास्थ्य लाभ भी होते हैं। अत्यधिक तापमान के दौरान, हमारा शरीर हीट शॉक प्रोटीन (एचएसपी) नामक पदार्थों का उत्पादन करता है और कोल्ड शॉक प्रोटीन (सीएसपी)। वे यह सुनिश्चित करते हैं कि शरीर में कैंसर होने पर क्षतिग्रस्त कोशिकाएं मर जाएं, साथ में वे हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली का समर्थन करते हैं, शरीर में तनाव को कम करते हैं और मस्तिष्क की रक्षा करते हैं।

रूसी विज्ञान अकादमी की साइबेरिया शाखा के साइटोलॉजी और जेनेटिक्स संस्थान के मिखाइल पोरोमेन्को कहते हैं, "हीट शॉक प्रोटीन (एचएसपी) विशिष्ट प्रोटीन होते हैं वह तब बनते हैं जब कोशिकाएं अपने सामान्य विकास तापमान से ऊपर के तापमान के संपर्क में आती हैं तो एचएसपी का संश्लेषण एक सार्वभौमिक घटना है, जो मनुष्यों सहित अध्ययन किए गए सभी पौधों और जानवरों की प्रजातियों में होती है।

मूलचंद अस्पताल के मानसिक स्वास्थ्य संस्थान के अध्यक्ष डॉ. जितेंद्र नागपाल के अनुसार, "शॉक प्रोटीन का संज्ञानात्मक क्षमताओं पर सकारात्मक प्रभाव पाया गया है। अल्जाइमर और पार्किंसंस जैसी कुछ बीमारियों की प्रगति को कुछ शॉक प्रोटीन द्वारा धीमा किया जा सकता है। वे क्षति को रोकते हैं।

हीट शॉक प्रोटीन

हीट शॉक प्रोटीन अक्सर हीट स्ट्रेस से क्षतिग्रस्त प्रोटीन को दोबारा बनाने में संरक्षक के रूप में कार्य करते हैं। बैक्टीरिया से लेकर मनुष्यों तक सभी प्रजातियों की जांच में हीट शॉक प्रोटीन पाए गए हैं, जिससे पता चलता है कि वे बहुत पहले विकसित हुए और एक महत्वपूर्ण कार्य करते हैं।

ह्यूमिड हीटवेव को लेकर बढ़ी चिंता

बढ़ती गर्मी के साथ हवा में आर्द्रता बढ़ने से मुश्किल और बढ़ जाती है। ऐसे में सभी जीवों की सेहत पर बुरा असर पड़ता है। वहीं हीट स्टोक का खतरा भी बढ़ जाता है। मौसम वैज्ञानिक समरजीत चौधरी कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के चलते ह्यूमिड हीटवेव का खतरा बढ़ता जा रहा है। खास तौर पर इसका खतरा दक्षिण भारत, महाराष्ट्र, बिहार, बंगाल, ओडिशा आदि शहरों में है। ह्यूमिड हीटवेव की स्थिति में जितना तापमान रिकॉर्ड किया जाता है इंसान सहित सभी जीवों का शरीर या फिर पेड़-पौधे असल में उससे कहीं अधिक तापमान महसूस करते हैं। मशीन में पारा कम दिखता है लेकिन शरीर पर गर्मी ज्यादा महसूस होती है। ऐसा वायुमंडल में नमी बढ़ने की वजह से होता है। तापमान और रिलेटिव ह्यूमेडिटी की एकसाथ गणना करने से वेट बल्ब टेम्परेचर या फिर किसी तय स्थान का हीट इंडेक्स निकाल सकते हैं। इससे तापमान और नमी वाली हीटवेव दोनों का पता लगाया जा सकता है।

डिसकंफटेबल इंडेक्स बताता है शरीर पर तापमान और आर्द्रता का असर

मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक अगर हवा में आर्द्रता का स्तर 50 फीसदी से ज्यादा हो, हवा की स्पीड 10 किलोमीटर प्रति घंटा से कम हो और तापमान अगर 32 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा हो तो ऐसा मौसम बन जाता हे जिसमें जितना तापमान होता है उससे कहीं अधिक गर्मी और उमस महसूस होती है। वैज्ञानिक इस मौसम को डिसकंफटेबल इंडेक्स के तहत नापते हैं। मौसम में असहजता को ध्यान में रखते हुए ही डिसकंफटेबल इंडेक्स को बनाया गया है। मौसम वैज्ञानिक समरजीत चौधरी के मुताबिक असुविधा सूचकांक एक सूचकांक है जो में हवा के तापमान और आर्द्रता को जोड़ता है, इसके जरिए इन पैरामीटर्स पर इंसान को महसूस होने वाली गर्मी का अनुमान लगाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, जब हवा में आर्द्रता का स्तर 70 डिग्री हो और तापमान 32 डिग्री सेल्सियस (90 डिग्री फ़ारेनहाइट) हो और हवा बहुत धीरी हो, तो किसी इंसान को महसूस होने वाली गर्मी लगभग 41 डिग्री सेल्सियस (106 डिग्री फ़ारेनहाइट) के बराबर होती है। इस गर्मी सूचकांक तापमान में 20% की एक अंतर्निहित (अस्थिर) आर्द्रता है।

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में रामित देबनाथ और उनके सहयोगियों द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, भारत के कुल हिस्से का 90 फीसदी हीटवेव को लेकर बेहद खतरनाक जोन हैं। वहीं दिल्ली में रहने वाले सभी लोग हीटवेव के इस डेंजर जोन में रह रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबकि आने वाले समय में हीटवेव की वजह से देश में लोगों की कार्यक्षमता 15 फीसदी तक घट सकती है। वहीं 480 मिलियन लोगों के जीवन की गुणवत्ता को कम कर सकती है। वहीं 2050 तक हीटवेव से निपटने के लिए सकल घरेलू उत्पाद का 2.8 प्रतिशत खर्च करना पड़ सकता है।

इंटीग्रेटेड रिसर्च एंड एक्शन फॉर डेवलपमेंड और कनाडा की संस्था इंटरनेशनल डेवलपमेंट रिसर्च सेंटर की ओर से दिल्ली और राजकोट के शहरों के लिए हीटवेव दिनों की संख्या में वृद्धि का विश्लेषण किया है। रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में दिल्ली में 49 दिनों तक हीट वेव दर्ज की गई जो 2019 में बढ़ कर 66 दिनों तक पहुंच गई जो एक साल में लगभग 35% की वृद्धि को दर्शाता है। वहीं 2001 से 10 के आंकड़ों पर नजर डालें तो हीट वेव के दिनों में 51% की वृद्धि दर्ज हुई। वहीं राजकोट की बात करें तो 2001-10 के बीच कुल 39 दिन हीट वेव दर्ज की गई। वहीं ये संख्या 2011 से 21 के बीच बढ़ कर 66 दिनों तक पहुंच गई।

हीटवेव का ऐलान इन स्थितियों में होता है

आईएमडी का कहना है कि हीट वेव तब होता है, जब किसी जगह का तापमान मैदानी इलाकों में 40 डिग्री सेल्सियस, तटीय क्षेत्रों में 37 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी क्षेत्रों में 30 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाता है। जब किसी जगह पर किसी ख़ास दिन उस क्षेत्र के सामान्य तापमान से 4.5 से 6.4 डिग्री सेल्सियस अधिक तापमान दर्ज किया जाता है, तो मौसम एजेंसी हीट वेव की घोषणा करती है। यदि तापमान सामान्य से 6.4 डिग्री सेल्सियस अधिक है, तो आईएमडी इसे 'गंभीर' हीट वेव घोषित करता है। आईएमडी हीट वेव घोषित करने के लिए एक अन्य मानदंड का भी उपयोग करता है, जो पूर्ण रूप से दर्ज तापमान पर आधारित होता है। यदि तापमान 45 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाता है, तो विभाग हीट वेव घोषित करता है। जब यह 47 डिग्री को पार करता है, तो 'गंभीर' हीट वेव की घोषणा की जाती है।

क्या है हीट इंडेक्स

दिल्ली में मौसम विभाग ने हीट इंडेक्स की शुरुआत की है। इस इंडेक्स के तहत मौसम के तीन कारकों जैसे हवा की स्पीड, तामपान और नमी के स्तर के आधार पर वास्तविक गर्मी का विश्लेषण किया जाता है। सहनीय और असहनीय गर्मी के आधार पर मौसम विभाग ने रंगों का एक चार्ट बनाया है। मौसम विभाग हर दिन अपने बुलेटिन में हीट इंडेक्स के आधार पर भी जानकारी देगा।

हीट इंडेक्स में 0 से 40 तक की रेटिंग आती है तो कोई चेतावनी नहीं जारी की जाएगी। इसे हरे रंग से दर्शाया जाएगा। वहीं इंडेक्स पर अगर 40 से 50 के बीच रेटिंग आती है तो यलो अलर्ट जारी होगा। लोगों को जागरूक रहने के लिए एडवाइजरी जारी होगी। 50 से 60 की रेटिंग पर ओरेंज अलर्ट जारी होगी। इसके तहत लोगों को किसी भी मुश्किल हालात के लिए तैयार रहने का अलर्ट दिया जाएगा। अगर रेटिंग 60 के ऊपर आती है तो इसे लाल रंग से दिखाया जाएगा। लोगों को सावधानी बरतने के लिए एडवाइजरी जारी की जाएगी।