नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। देश भर में बीते कुछ दशकों में डेंगू एक बड़ी महामारी के तौर पर सामने आया है। इससे हर साल बड़ी तादाद में लोगों की जान चली जाती है। हाल में ही हुए एक अध्ययन में सामने आया है कि बीते पांच दशकों में डेंगू के वेरिएंट में कई तरह के बदलाव आए हैं। डेंगू का वैरिएंट बीते पचास सालों में अधिक घातक हो गया है। अध्ययन में कहा गया है कि पिछले 50 वर्षों में डेंगू के मामलों में लगातार वृद्धि हुई है, मुख्य रूप से दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में। हालांकि, भारत में मच्छर जनित इस बीमारी के खिलाफ कोई स्वीकृत टीके नहीं हैं, लेकिन अन्य देशों में कुछ टीके जरूर विकसित किए गए हैं।

बेंगलुरू आईआईएसी के शोधकर्ताओं ने भारत में डेंगू के 408 जेनेटिक सिक्वेंस की पड़ताल की। उन्होंने 1956 से 2018 तक का डाटा एकत्रित किया है। शोधकर्ता डा. राहुल रॉय का कहना है कि कि हमने देखा कि क्रम बड़े जटिल तरीके से बदल रहे हैं। उन्होंने बताया कि साल 2012 तक भारत में डेंगू 1 और 3 स्ट्रेन हावी था। लेकिन हाल के सालों में पूरे देश में डेंगू 2 स्ट्रेन तेजी से फैल रहा है। वहीं डेंगू 4 स्ट्रेन जो कभी कम संक्रामक माना जाता था वह अब दक्षिण भारत में अपनी जगह बना रहा है। अभी इस बारे में कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है लेकिन शोधकर्ता रॉय कहते हैं कि यह भारतीय परिस्थितियों में अधिक फैल सकता है। आईआईएससी बेंगलुरु में रसायन अभियांत्रिकी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर राहुल रॉय ने कहा, ‘हम यह समझने की कोशिश कर रहे थे कि भारतीय स्वरूप (डेंगू वायरस के) कितने अलग हैं और हमने पाया कि वे टीके विकसित करने के लिए इस्तेमाल किए गए मूल स्वरूपों से बहुत अलग हैं।’ रॉय कहते हैं कि क्लाइमेट चेंज भी डेंगू के फैलने की वजह में से एक है। इसका बड़ा उदाहरण यह है कि फ्रांस, इटली, तुर्की जैसे देशों में पहले डेंगू के मामले नहीं थे लेकिन अब यहां मामले बढ़ रहे हैं।

डेंगू के चार प्रमुख वेरिएंट

डेंगू वायरस की चार व्यापक श्रेणियां ‘सीरोटाइप- (डेंगू 1, 2, 3 और 4)’ हैं।अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार, 2012 तक भारत में ‘डेंगू 1 और 3’ प्रमुख स्वरूप थे। हालांकि, हाल के वर्षों में ‘ डेंगू 2’ पूरे देश में अधिक प्रभावी हो गया है, जबकि कभी सबसे कम संक्रामक माना जाने वाला ‘डेंगू 4’ अब दक्षिण भारत में अपनी जगह बना रहा है। रॉय कहते हैं कि डेंगू के वेरिएंट को आप सीधे भाषा में बहुरुपिया मान सकते हैं। इसमें हर वेरिएंट दूसरे की तरह दिखने की कोशिश करता है।

एंटीबॉडी प्रदान करती है सुरक्षा

अध्ययनकर्ता ने कहा कि, हम जानते थे कि एडीई गंभीरता को बढ़ाता है लेकिन हम जानना चाहते थे कि क्या वह डेंगू वायरस के विकास को भी बदल सकता है। किसी भी समय, संक्रमित आबादी में प्रत्येक सीरोटाइप के कई वेरिएंट मौजूद होते हैं। अध्ययन में दावा किया गया है कि शुरुआती संक्रमण के बाद मानव शरीर में उत्पन्न एंटीबॉडी लगभग दो-तीन वर्षों तक सभी सेरोटाइप से पूर्ण सुरक्षा प्रदान करते हैं।

समय के साथ, एंटीबॉडी का स्तर गिरना शुरू हो जाता है और क्रॉस-सीरोटाइप सुरक्षा गायब हो जाती है। अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि अगर शरीर इस समय के आसपास एक समान संक्रमित वेरिएंट से संक्रमित होता है, तो एडीई इस नए वेरिएंट को बड़ा फायदा पहुंचाता है, जिससे यह आबादी में प्रमुख वेरिएंट बन जाता है। ऐसा फायदा कुछ और वर्षों तक बना रहता है, जिसके बाद एंटीबॉडी का स्तर इतना कम हो जाता है कि इस पर कोई फर्क नहीं पड़ता है।

डेंगू के मामलों में आठ गुने से ज्यादा वृद्धि- विश्व स्वास्थ्य संगठन

हर साल दुनिया की लगभग आधी आबादी डेंगू के खतरे का सामना करती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक पिछले दो दशक में डेंगू के मामलों में 8 गुने से ज्यादा की वृद्धि देखी गई है। डब्लूएचओ ने डेंगू को दुनिया के 10 सबसे बड़े स्वास्थ्य खतरों की सूची में रखा है।

जलवायु परिवर्तन के चलते बढ़ता तापमान संक्रामक रोगों को बढ़ावा देता है। पिछले 4 दशकों में संयुक्त वैश्विक प्रयासों ने पूरी दुनिा में मलेरिया के मामलों को कम किया है, लेकिन अन्य वेक्टर जनित बीमारियों, विशेष रूप से डेंगू होने वाली मौतें बढ़ी हैं। हाल ही में, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य 2019 पर लैंसेट आयोग ने खुलासा किया कि पिछले कुछ वर्षों में मच्छरों द्वारा होने वाले रोगों (मलेरिया और डेंगू) में वृद्धि हुई है। अध्ययनों से पता चलता है कि दक्षिण एशिया के ऊंचे पहाड़ों में ज्यादा बारिश और बढ़ते तापमान के चलते संक्रामक बीमारियां तेजी से फैली हैं। ज्यादा बारिश के चलते इन पहाड़ी इलाकों मे मच्छरों को प्रजनन में मदद मिली है। साथ ही बढ़ता तापमान इनके जीवन चक्र को तेज कर देता है। पर्यावरणीय कारक जैसे ऊंचे पहाड़ों में तापमान में असमान वृद्धि, कम बर्फबारी, अत्यधिक मौसम की घटनाएं जैसे भारी वर्षा, पहाड़ी ढलानों में कृषि और कृषि गतिविधियों में वृद्धि, और लोगों की पहुंच और गतिशीलता में वृद्धि एचकेएच क्षेत्र में पहले से काफी अधिक बढ़ गए हैं। पिछले कुछ दशकों में एचकेएच क्षेत्र में देखे गए इन परिवर्तनों से संक्रामक रोगों के फैलने का खतरा बढ़ा है।

नेपाल में ऊंचे पहाड़ों के गैर-स्थानिक क्षेत्रों में मच्छर से फैलने वाली बीमारियां तेजी से बढ़ी हैं। इसके लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार माना जा रहा है। वहीं हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में पिछले कुछ दशकों में चिकनगुनिया और डेंगू की बढ़ती घटनाओं को को भी जलवायु परिवर्तन का असर माना जा रहा है। हिमालयी हाइलैंड्स में जापानी एन्सेफलाइटिस के मामले भी तेजी से बढ़े हैं, जो पहले निचले दक्षिणी मैदानों तक ही सीमित थे। इन्हें भी जलवायु परिवर्तन से जोड़ा गया है।

रोग फैलाने वाले मच्छरों का प्रसार

अध्ययन में पाया गया है कि बदलते जलवायु पैटर्न, शहरीकरण और लोगों और सामानों की बढ़ती आवाजाही जैसे अन्य कारकों के साथ मिलकर रोग पैदा करने वाले मच्छरों के प्रसार को बढ़ावा मिला है। मच्छरों के पनपने के लिए आवश्यक जलवायु परिस्थितियों में 1951-60 से 2012-21 तक क्रमशः एडीज एजिप्टी और एडीज अल्बोपिक्टस के लिए 11.5% और 12% की वृद्धि हुई - मच्छरों की प्रजातियां जो डेंगू और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों का कारण बनती हैं। लैंसेट की रिपोर्ट में कहा गया है कि 1951-60 से 2012-21 तक मलेरिया के लिए संचरण के मौसम की लंबाई भी अमेरिकी हाइलैंड्स में 31.3% और अफ्रीकी हाइलैंड्स में 13.8% बढ़ी है।

जम्मू-कश्मीर, बिहार और ओडिशा में भी बढ़ा डेंगू

कश्मीर में तापमान और आर्द्रता का स्तर डेंगू के प्रसार के लिए अनुकूल नहीं है। जम्मू की भी कुछ ऐसी ही कहानी थी, लेकिन बढ़ते तापमान ने इसे जम्मू-कश्मीर में डेंगू का केंद्र बना दिया है। मामले आमतौर पर जुलाई-अगस्त में मानसून के बाद उभरने लगते हैं, जो नवंबर-अंत तक चलते हैं, कभी-कभी दिसंबर भी। वहीं बिहार में भी 2010 के बाद डेंगू के मामलों में उत्तरोतर बढ़ोतरी हुई। ओडिशा में भी कमोबेश यही स्थिति थी वहां भी 2010 के बाद डेंगू के मामलों में बढ़ोतरी हुई।

जानें कैसे और कब होता है डेंगू

डेंगू मादा एडीज इजिप्टी मच्छर के काटने से होता है। इन मच्छरों के शरीर पर चीते जैसी धारियां होती हैं। ये मच्छर दिन में, खासकर सुबह काटते हैं। डेंगू बरसात के मौसम और उसके फौरन बाद के महीनों यानी जुलाई से अक्टूबर में सबसे ज्यादा फैलता है।

इस तरह फैलता है डेंगू

डेंगू बुखार से पीड़ित मरीज के खून में डेंगू वायरस बहुत ज्यादा मात्रा में होता है। जब कोई एडीज मच्छर डेंगू के किसी मरीज को काटता है तो वह उसका खून चूसता है। खून के साथ डेंगू वायरस भी मच्छर में चला जाता है। जब डेंगू वायरस वाला वह मच्छर किसी और इंसान को काटता है तो उससे वह वायरस उस इंसान के शरीर में पहुंच जाता है, जिससे वह डेंगू वायरस से पीड़ित हो जाता है।