नई दिल्ली, विवेक तिवारी । जलवायु परिवर्तन के चलते मौसम में काफी बदलाव देखे जा रहे हैं। कभी ज्यादा बारिश हो रही है तो कभी सूखे से फसलों पर असर पड़ रहा है। लगातार बढ़ते तापमान से गेहूं चावल जैसी फसलों पर खतरा मंडरा रहा है। ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि मिलेट्स आने वाले समय में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के मुताबिक 2030 तक पूरी दुनिया में लगभग 8.5 बिलियन और 2050 तक 9.7 बिलियन लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी। बदलते मौसम के बीच आम लोगों को उचित पोषण उपलब्ध कराने में मिलेट्स महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। पूरी दुनिया में मिलेट्स के लिए जागरूकता बढ़ाए जाने की जरूरत है।

फसलों, खास तौर पर शुष्क मौसम में उगाई जाने वाली फसलों पर शोध करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था ICRISAT की एक रिपोर्ट के मुताबिक किसी मिलेट के एक पौधे की तुलना में धान के एक पौधे को उगाने में लगभग 2.5 गुना ज्यादा पानी की जरूरत होती है। गेहूं और धान का पौधा जहां 38 डिग्री तक का तापमान बरदाश्त कर पाता है, वहीं मिलेट्स का पौधा 46 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बरदाश्त कर लेता है। यही कारण है कि मिलेट्स की ज्यादातर खेती एशिया, अफ्रीका और लेटिन अमेरिका के देशों में की जा रही है।

ICRISAT के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉक्टर एसके गुप्ता लम्बे समय से पर्ल मिलेट (बाजरा) पर काम कर रहे हैं। उनके मुताबिक क्लाइमेट चेंज के चलते सूखा, बाढ़, हीट वेव जैसी मौसमी घटनाएं बढ़ी हैं। समुद्र का स्तर बढ़ने से तटीय इलाकों में मिट्टी में लवणता भी बढ़ी है। ऐसे में मिलेट्स खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। मिलेट्स को जहां कम पानी की जरूरत होती है, वहीं ये गर्मी भी बर्दाश्त कर लेता है। मिट्टी में लवणता अधिक होने पर भी मिलेट्स की खेती की जा सकती है। मिलेट्स में चावल और गेहूं की तुलना में पोषक तत्व भी ज्यादा हैं। इसमें प्रोटीन, फाइबर, कई सारे माइक्रोन्यूट्रिएंट जैसे जिंक, आयरन और कैल्शियम भी प्रचुर मात्रा में होते हैं। ऐसे में भारत जैसे देश में लोगों को पोषण प्रदान करने में मिलेट्स की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मिलेट्स रिसर्च के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉक्टर डॉ. राजेंद्र आर. चापके के मुताबिक मिलेट्स पौष्टिक तत्वों से भरपूर होने के साथ ही गर्म इलाकों में भी आसानी से उगाये जा सकते हैं। जलवायु परिवर्तन के बीच खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मिलेट्स रिसर्च ने कई ज्यादा उपज वाली बायो फोर्टिफाइड किस्में भी तैयार की हैं। किसान इन मिलेट्स के बीज संस्थान से मंगा सकते हैं। किस इलाके में कौन सी मिलेट्स की फसल लगानी चाहिए, इसकी भी जानकारी संस्थान की ओर से दी जाती है।

कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर रजनीश कहते हैं कि सभी मिलेट्स कम लागत वाली फसलें हैं। इन्हें न तो बहुत पानी चाहिए न ही खाद। तेज तापमान का भी इन पर असर नहीं है। भारत में मेक्सिकन गेहूं आने के पहले आम लोगों की खाद्य जरूरतों को ये मिलेट्स ही पूरा करते थे। गेहूं और चावल पर लगातार रिसर्च होती रही, वहीं मिलेट्स इसमें पिछड़ गए। मिलेट्स गेहूं और चावल की तुलना में कहीं अधिक पौष्टिक हैं। आज भी देश में लगभग 21 करोड़ लोग किसी न किसी रूप में मिलेट्स खा रहे हैं। सरकार की ओर से मिलेट्स को प्रोत्साहित किया जा रहा है जो बेहद अच्छा कदम है। आज देश में मिलेट्स पर शोध बढ़ाए जाने के साथ ही किसानों को ज्यादा से ज्यादा अच्छे बीज उपलब्ध कराने की जरूरत है। पिछले कुछ समय में जागरूकता बढ़ने के साथ ही लोगों में मिलेट्स की मांग भी तेजी से बढ़ी है।

बढ़ते तापमान, ज्यादा बारिश और बदलते मौसम के चलते कई फसलों के उत्पादन में कमी आई है। भारत में कृषि क्षेत्र जलवायु परिवर्तन की चपेट में है। उच्च तापमान फसल की पैदावार को कम करते हैं और खरपतवार और कीट पतंगों को बढ़ाते हैं। तापमान में वृद्धि और पानी की उपलब्धता में कमी के कारण जलवायु परिवर्तन सिंचित फसलों की पैदावार पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

नेशनल इनोवेशन इन क्लाइमेट रेजिलिएंट एग्रीकल्चर (एनआईसीआरए) परियोजना के तहत पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन से पैदावार प्रभावित होने की आशंका है, खासकर चावल, गेहूं और मक्का जैसी फसलों में। भारत सरकार ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं। NICRA जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए नई फसलों के विकास पर तेजी से काम कर रहा है। कृषि वैज्ञानिक ऐसी फसलों के विकास पर काम कर रहे हैं जो गर्मी सह सकें, साथ ही जिनमें कीड़ों या बीमारियों को लेकर अधिक प्रतिरोधक क्षमता हो। प्रतिकूल मौसम से निपटने के लिए देश के 648 जिलों के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद - क्रिडा, हैदराबाद द्वारा जिला कृषि आकस्मिक योजनाएं तैयार की गई हैं।

नेशनल इनोवेशन ऑन क्लाइमेट रेजिलिएंट एग्रीकल्चर (NICRA) के अध्ययन के अनुसार भारत में बारिश पर आधारित धान की पैदावार में 2050 से 2080 के बीच 2.5% फीसदी और सिंचाई आधारित धान की पैदावार में 2050 से 2080 के बीच 10% तक कमी का अनुमान है। इसके अलावा सन 2100 तक गेहूं की पैदावार 6-25% और मक्के की पैदावार 18-23% कम होने का अनुमान है। हालांकि जलवायु परिवर्तन से चने के उत्पादन में मामूली वृद्धि हो सकती है।