World Malaria Day कोविड काल के बाद दुनिया में बढ़ा मलेरिया, 95% केस अफ्रीकी देशों में, क्लाइमेट चेंज बड़ा कारण
वैश्विक स्तर पर भारत में पिछले कुछ सालों में मलेरिया के मामलों में कमी के साथ मौतें घटी हैं। दुनिया में अभी भी हर साल करीबन 24 करोड़ लोग मलेरिया से पीड़ित हो रहे हैं इसके पीछे क्लाइमेट चेंज भी बड़ा कारण बन रहा है। भारत ने 2030 तक मलेरिया मुक्त देश बनने का लक्ष्य लिया है इसे पूरा करने की चुनौतियां भी हैं।
संदीप राजवाड़े, दिल्ली। भारत समेत विश्वभर के लिए मलेरिया अब भी एक जटिल बीमारी बनी हुई है। दुनिया में हर साल 24 करोड़ से ज्यादा लोग मलेरिया से पीड़ित हो रहे हैं और छह लाख से ज्यादा लोगों की मौत इस बीमारी से हो रही है। डब्ल्यूएचओ की 2023 में आई रिपोर्ट के अनुसार मलेरिया परजीवी वाले 85 देशों में 2022 में कुल 24.9 करोड़ नए केस सामने आए, इनमें से छह लाख आठ हजार लोगों की मौत हुई। 95 फीसदी मलेरिया के केस अफ्रीकी देशों में पाए गए हैं। इतना ही नहीं इस बीमारी से होने वाली कुल मौतों में से 94 फीसदी उन्हीं देशों में हुए हैं।
भारत में पिछले दो दशकों के दौरान मलेरिया के मामले में काफी कमी आई है। सबसे बड़ी उपलब्धि इस बीमारी से होने वाली मौत में कमी है। विश्वस्तर पर मलेरिया के केस में भारत 21वें स्थान पर है, जबकि कुछ साल पहले तक भारत टॉप पांच में था। भारत में मलेरिया के मामलों में पहले की तुलना में काफी कमी आई है, लेकिन कोरोना काल के बाद मामले बढ़े हैं। भारत में भी कोरोना काल के बाद मलेरिया के मामले बढ़े हैं, लेकिन वैश्विक स्तर पर बहुत कमी आई है। भारत के सात राज्यों में 84 फीसदी मलेरिया के मामले मिल रहे हैं, जिस पर रोकथाम लगाना चुनौती है। राहत की बात यह है कि भारत में मलेरिया से होने वाली मौतों में काफी कमी आई है। राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीवीबीडीसी) के आंकड़ों के अनुसार पिछले कुछ सालों के दौरान भारत में मलेरिया से मौतों की संख्या कम हुई है। कोविड के बाद केस बढ़ने के बाद भी मौतों में कमी देखी गई है। भारत में 2020 में मलेरिया से 93 लोगों की मौत हुई, वहीं 2023 में 73 मरीजों की मौत दर्ज की गई है। 2021 में 90 और 2022 में 83 मौतें हुईं थी। विशेषज्ञों का कहना है कि मलेरिया में मौतों की संख्या में कमी, इस बीमारी के होने पर दवा -इलाज की समय पर पहुंच को दर्शाता है।
आईसीएमआर के वैज्ञानिकों व राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण केंद्र के अधिकारियों का कहना है कि मलेरिया को लेकर भारत में बड़ा अभियान चल रहा है। इसका ही असर है कि मलेरिया के नए केस कम हुए हैं और मौतों की संख्या में कमी आई है। भारत के 2030 तक मलेरिया मुक्त होने की राह में कई चुनौतियां भी हैं, जिसे लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ाने के साथ निरंतर अभियान व पहचान-इलाज के संसाधन पर खास फोकस करना होगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि मलेरिया के केस बढ़ने या पूरी तरह से खत्म न होने के पीछे बड़ा कारण क्लाइमेट चेंज है। डब्ल्यूएचओ ने भी अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण मलेरिया के केस बढ़ रहे हैं। बढ़ता वैश्विक तापमान और असमय बारिश, बाढ़ व गर्मी से मलेरिया परजीवियों को बढ़ावा मिलता है। मलेरिया मुक्त होने के लिए इस दिशा में काम करने की जरूरत है।
केस व मौतों में कमी आई, मलेरिया मुक्त होने की दिशा में हो रहा है कामः डॉ. रजनीकांत
आईसीएमआर के आरएमआरसी गोरखपुर के पूर्व निदेशक और मलेरिया रोग विशेषज्ञ डॉ. रजनीकांत ने बताया कि भारत में पिछले कुछ दशकों में मलेरिया को लेकर बहुत काम हुआ है। इसके कारण ही मलेरिया के नए केस के साथ मौतों की संख्या में बेहद कमी दिखाई दे रही है। दुनिया में मलेरिया के मामले में भारत की स्थिति बेहतर हुई है। केंद्र के साथ राज्य सरकारें मिलकर मलेरिया की रोकथाम के लिए काम कर रही हैं। यह जरूर है कि भारत को 2030 तक मलेरिया मुक्त करने के रास्ते में कुछ चैलेंजेस हैं। इस पर लगातार काम भी किया जा रहा है। क्लाइमेंट चेंज के कारण मलेरिया के केस बढ़ रहे हैं, यह सिर्फ भारत ही नहीं वैश्विक रूप पर दिखाई दे रहा है। इसके साथ भारत में ग्रामीण क्षेत्र में ही मलेरिया के अधिक केस सामने आ रहे हैं, यहां तक पहुंचना ही अपने आप में चुनौती है, उन लोगों को इस रोग के प्रति जागरूक करने, उन्हें संसाधन पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है। केस बढ़ने के पीछे यह भी देखने में आया है कि कई पीड़ितों का ए सिम्टोमैटिक होना है, इस तरह के मामलों में मलेरिया होने के बाद भी उनमें कोई लक्षण नहीं दिखाई देता है। ऐसे में उन पीड़ितों से दूसरों तक मलेरिया फैलता है। ऐसे लोगों के मच्छर के संपर्क आने पर वह दूसरों को भी ट्रांसफर करता है। इसके अलावा रैपिड टेस्ट में फॉल्स रिपोर्ट आने के साथ अन्य कारण भी हैं, जिससे समय पर मलेरिया की पहचान व रोकथाम नहीं हो पाती है। इन चुनौतियों से निपटने के साथ ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को मलेरिया के प्रति जागरूक करने से ही भारत अपने लक्ष्य को समय पर पा सकता है।
भारत में अब तक 128 जिले मलेरिया मुक्त, स्ट्रैटजिक प्लान बनाकर चल रहेः डॉ. अग्रवाल
राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीवीबीडीसी) के मलेरिया एडवाइजर डॉ. सीएस अग्रवाल ने बताया कि भारत में दो दशक पहले तक मलेरिया के नए मामलों में दुनिया में प्रमुख देश के तौर पर गिना जाता था। इसे लेकर हुए काम का ही नतीजा है कि आज भारत में मलेरिया के नए केस में काफी कमी आई है। इसके अलावा सबसे बड़ी बात है कि मौतों की संख्या काफी हद तक घट गई है। भारत में मलेरिया को खत्म करने के लिए अलग-अलग चरणों में नेशनल स्ट्रैटजिक प्लान चलाया जा रहा है। यह अभियान 2017-2022 में हुआ, इस दौरान मलेरिया के नए केस व इससे होने वाली मौतों में काफी कमी आई। भारत में अब भी ग्रामीण क्षेत्रों में मलेरिया के केस मिल रहे हैं, वहां अभियान के साथ संसाधन व जागरूकता से सफलता मिल रही है। मलेरिया मुक्त बनाने के लिए जिलास्तर पर निगरानी के साथ लक्ष्य दिया गया है। 2015 में जहां भारत में सिर्फ 30 जिले मलेरिया मुक्त थे, वहां 2022 तक 128 जिले मुक्त हो चुके हैं। यहां पिछले तीन साल के दौरान मलेरिया का एक भी केस नहीं मिला है। डब्ल्यूएचओ की तरफ से भी लगातार निगरानी व केस न मिलने पर देशों को मलेरिया मुक्त घोषित किया जाता है।
डॉ. अग्रवाल ने बताया कि नेशनल स्ट्रैजिक प्लान (एनएसपी) 2017-2022 के दौरान कई उपलब्धि हासिल की गई। भारत में 2017 की तुलना में 2022 में मलेरिया के केस में 79 फीसदी कमी आई। इसके साथ ही 2017 की तुलना में 2022 में मलेरिया से होने वाली मौतें 57 फीसदी घटीं।भारत में अब एनएसपी के दूसरे चरण में 2023-2027 पर फोकस किया जा रहा है। इसके साथ ही 2030 तक भारत को मलेरिया मुक्त बनाने का लक्ष्य लिया गया है।
सबसे ज्यादा प्रभावित एरिया में समस्याओं के बीच इलाज व निदान की पहल
मलेरिया से प्रभावित प्रमुख राज्यों में से छत्तीसगढ़ और झारखंड में ग्रामीण व दूर अंचल के क्षेत्रों में मलेरिया बीमारी को रोकने के अभियान के साथ कई समस्याएं व चुनौतियां भी हैं, इसके बाद भी वहां इलाज व निदान की पहल से इस पर अंकुश लगाने की कोशिश की जा रही है। छत्तीसगढ़ के मलेरिया स्टेट प्रोग्राम ऑफिसर डॉ. जितेंद्र कुमार बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचल खासकर बस्तर संभाग के एरिया में मलेरिया को लेकर काफी काम हुआ है। एक समय यहां मलेरिया से बड़ी संख्या में मौत होती थी, अभी तक इस साल प्रदेश में इस बीमारी से एक भी मौत के आंकड़े सामने नहीं आएं हैं। इस कड़ी में चुनौती यह रहती है कि ग्रामीण लोगों का जागरुक न होना, उनकी पहुंच में इलाज की सुविधा न मिल पाना। अब इसे लेकर प्रदेश में अच्छा काम हो रहा है। गांवों में रहने वाली मितानिनों के पास मलेरिया की जांच किट और इलाज-दवा मौजूद हैं, उन्हें जांच के साथ दवा के डोज को लेकर ट्रेनिंग दी गई है। इससे पीड़ितों को शुरूआती लक्षण दिखाई देने पर जांच के साथ समय पर इलाज हो रहा है। ।
झारखंड के मलेरिया स्टेट प्रोग्राम ऑफिसर डॉ. बीरेंद्र कुमार सिंह बताते हैं कि मलेरिया के अधिकतर केस ग्रामीण एरिया में ही मिलते हैं। यहां चुनौतियां यह हैं कि कई केस में शूरूआत में मलेरिया की पहचान नहीं हो पाती है। इसके साथ ही ग्रामीणों द्वारा इस बीमारी को लेकर जागरुकता की कमी है, उन्हें दिए जा रहे दवायुक्त बेड नेट व किट का उपयोग न करने से भी नए केस सामने आ रहे हैं। यह जरूर है कि पहले की तुलना में काफी कमी आई है। मलेरिया की पहचान व निदान दोनों की पहुंच दूर अंचल तक बढ़ी है।
रिसर्च के साथ स्थानीय समुदायों को जोड़ने से होंगे मलेरिया मुक्तः डायरेक्टर, नेशनल मलेरिया रिसर्च
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मलेरिया रिसर्च के डायरेक्टर डॉ. अनूप अनविकर ने बताया कि भारत में मलेरिया के केस और उससे होने वाली मौतें की संख्या लगातार कम हो रही हैं। इसके पीछे कई कारण हैं। पहले तो मलेरिया नियंत्रण गतिविधियों के प्रभावी तरीके से लागू होने से इसका असर पड़ा है। मलेरिया प्रभावी क्षेत्रों में बेड नेट्स व इंडोर कीटनाशनक स्प्रिंग के कारण मलेरिया का ट्रांसमिशन कम हुआ। ग्रामीण स्तर पर मलेरिया को रोकने के लिए समय पर उसकी पहचान व इलाज होने से मौतें रुकी हैं। मलेरिया के रोकथाम को लेकर राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम, आईसीएमआर और डब्ल्यूएचओ साथ मिलककर प्रभावी तरीके से रणनीतियों को लेकर काम कर रहे हैं।
डॉ. अनविकर ने बताया कि भारत को मलेरिया मुक्त बनाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में मलेरिया नियंत्रण रणनीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करना होगा। इसके साथ जागरुकता और स्थानीय समुदायों को इससे जोड़ना होगा। जहां 2030 तक भारत के मलेरिया मुक्त होने का लक्ष्य की बात है तो इसके लिए भरकम प्रयास किया जा रहा है। एनआईएमआर मलेरिया से जुड़े अनुसंधानों में लगा हुआ है। दवा की प्रतिरोधता की निगरानी, नई दवा व नए निदान उपकरणों का परीक्षण व मूल्यांकन पर लगातार फोकस किया जा रहा है।
क्लाइमेट चेंज के कारण इंसानों में जनित बीमारियों के बढ़ने का अनुमानः विश्वास चितले, सीईईडब्ल्यू
काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) के सीनियर प्रोग्राम लीड व क्लाइमेट चेंज विशेषज्ञ विश्वास चितले का कहना है कि पिछला वर्ष विश्व का सबसे गर्म साल रहा है। वैश्विक औसत तापमान पूर्व औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा हो गया है। तापमान बढ़ने के ट्रेंड में कोई कमी नहीं देखी जा रही है। इसके अलावा बारिश में भी काफी महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिले हैं। सीईईडब्ल्यू के आकलन के अनुसार पिछले एक दशक के दौरान भारत के 11 फीसदी तहसील क्षेत्रों में 10 प्रतिशत कम बारिश देखी गई है, जबकि 64 फीसदी से ज्यादा तहसील एरिया में भारी बारिश वाले दिनों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।
विशेषज्ञ चिलते ने बताया कि भारत समेत दुनिया के कई देशों में हीटवेव चल रहा है। क्लाइमेट चेंज आज दुनिया के साथ इंसानों की सेहत के लिए एक बड़ी चुनौती बन रही है। हीटवेव के कारण दक्षिण एशिया में गर्मी के दबाव के कारण होने वाली मृत्यु दर व बीमारियों का जोखिम देखा जा रहा है। इसके अलावा अनियमित बारिश और बढ़ते तापमान से वेक्टर जनित बीमारियों के बढ़ने का अनुमान है। सीईईडब्ल्यू और ठाणे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन ने ठाणे शहर के लिए अपनी तरह का पहला हीट एक्शन प्लान बनाया है, जो कम, मध्यम और दीर्घ अवधि के कदमों की जानकारी देता है।
जलवायु परिवर्तन और मलेरिया के बीच जटिल संबंध- संयुक्त राष्ट्र
संयुक्त राष्ट्र के एक लेख में श्रीलंका के कोलंबो विश्वविद्यालय के मेडिसिन विभाग (पौरासिटोलॉजी) के प्रोफेसर एसडी फर्नांडो ने बताया कि मलेरिया और क्लाइमेट चेंज के बीच संबंध है। जलवायु परिवर्तन के कारण मलेरिया प्रभावित एरिया से उन क्षेत्रों में जहां मलेरिया को नियंत्रित किया जा चुका है व गैर-मलेरियाग्रस्त हैं, वहां भी मलेरिया का प्रभाव हो सकता है। बढ़ते तापमान, बारिश और आर्द्रता में वृद्धि होने से मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों का प्रसार हो सकता है। इससे उन क्षेत्रों में जहां मलेरिया पहले कभी नहीं हुआ है, वहां भी इस बीमारी के होने की आशंका बढ़ जाएगी। बढ़ता तापमान मच्छर के परजीवी के विकास चक्र को बदल देगा और यह तेजी से विकसित हो पाएगा। इससे मलेरिया बीमारी फैलेगी। क्लाइमेट चेंज अल नीनो चक्र को बहुत प्रभावित करता है, इससे मलेरिया के मच्छरों से फैलने वाली बीमारी मलेरिया, डेंगू व रिफ्ट वैली फीवर का खतरा बना रहेगा। शुष्क जलवायु में बेमौसम बारिश मच्छरों के प्रजनन को बढ़ाएगा। बढ़ी हुई आर्द्रता सूखी नदियों को तालाब में बदल देंगी जो मलेरिया के मच्छरों के लिए उपयुक्त होगा। कोलंबिया और वेनेजुएला में अल नीनो के बाद वहां मलेरिया के मामलों में एक तिहाई वृद्धि हुई थी। श्रीलंका में मानसून के समय पर नहीं आने से मलेरिया का खतरा तीन गुना बढ़ गया था। इसी तरह दक्षिण अफ्रीका में हाल में असामान्य बारिश के कारण मलेरिया महामारी का रूप ले रहा था। उत्तर-पश्चिम भारत में 1996 में ला नीना के कारण हुई अधिक बारिश से मलेरिया के मामले बढ़े थे। इसके साथ ही 1998 में अल नीनो के दौरान उसी क्षेत्र में कम बारिश और कम मलेरिया के मामले दर्ज किए गए।
डब्ल्यूएचओ का 2030 तक 90% केस व मौतें कम करने का लक्ष्य
- डब्ल्यूएचओ का 2030 तक मलेरिया के केस में 90% तक कम करने का लक्ष्य
- 2030 तक मलेरिया से होने वाली मृत्यु दर को कम से कम 90% तक कम करना
- 2030 तक कम से कम 35 देशों से मलेरिया को खत्म कर उन्हें मुक्त बनाना