नई दिल्ली, विवेक तिवारी। दिल्ली-एनसीआर सहित देशभर में सर्दी-खांसी के मामलों ने चिंता बढ़ा दी है। सूअर से आए इन्फ्लूएंजा वायरस H3N2 के संक्रमण के मामले भी काफी तेजी से दर्ज किए जा रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ये बच्चों, बुजुर्गों और पहले से बीमार चल रहे लोगों की मुश्किलें बढ़ा सकता है। कोविड की तरह ही इस वायरस से बचने के लिए मास्क लगाने और भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचने की सलाह दी जा रही है। इस वायरस के बारे में ज्यादा जानकारी और बचाव के लिए जागरण प्राइम ने देश के कई बड़े डॉक्टरों और शोधकर्ताओं जैसे AIIMS के पूर्व निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया, इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ सहजानंद प्रसाद सिंह, वल्लभभाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉक्टर राज कुमार, दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन की साइंटिफिक कमेटी के चेयरमैन डॉक्टर नरेंद्र सैनी और जेएनयू के बायोटेक्नोलॉजी विभाग के प्रोफेसर रूपेश चतुर्वेदी से बात की।

H3N2v क्या है?

H3N2v एक गैर-मानव इन्फ्लूएंजा वायरस है। ये सामान्य रूप से सूअरों में फैलता है। ये वायरस सूअरों से मनुष्य में पहुंचा है। आमतौर पर सूअरों में फैलने वाले वायरस "स्वाइन इन्फ्लूएंजा वायरस" होते हैं। जब ये वायरस इंसानों को संक्रमित करते हैं, तो उन्हें "वैरिएंट" वायरस कहा जाता है। 2011 में एवियन, स्वाइन और 2009 में H1N1 महामारी वायरस के साथ एक विशिष्ट H3N2 वायरस का पता चला था। यह वायरस 2010 में सूअरों में फैल रहा था और पहली बार अमेरिका में मनुष्य में 2011 में इसका पता चला था।

H3N2 वायरस कहां से आया?

AH3N2 इन्फ्लूएंजा वायरस का ही एक रूप है। मूलरूप से ये सूअर से आया है। A(H1N1) वायरस के कारण 1918 में भयानक महामारी आयी थी। इससे लाखों की संख्या में लोगों की जान गई थी। उस वायरस का सर्कुलेटिंग स्ट्रेन अब एच3एन2 है।

H3N2 वायरस के संक्रमण के क्या लक्षण हैं?

H3N2v संक्रमण के लक्षण मौसमी फ्लू वायरस के समान होते हैं और इसमें बुखार और सांस संबंधी लक्षण, जैसे कि खांसी और नाक बहना और संभवतः अन्य लक्षण, जैसे शरीर में दर्द, मतली, उल्टी या दस्त शामिल हो सकते हैं। कई मामलों में तेज ठंड लगना, तेज बुखार, जी मिचलाना, उल्टी करना, गले में दर्द / गले में खराश, मांसपेशियों और शरीर में दर्द, दस्त आदि लक्षण भी देखे जाते हैं।

H3N2 वायरस का असर इस साल क्यों ज्यादा दिख रहा है ?

डॉक्टर रणदीप गुलेरिया कहते हैं इस वायरस का असर ज्यादा दिखने की तीन प्रमुख वजहें हैं। पहली ये है कि हमने पिछले कुछ समय में कोविड प्रोटोकॉल का पालन किया। लोगों के संपर्क में कम आए। ऐसे में इस वायरस का संक्रमण कम हुआ। इससे लोगों में इस वायरस को लेकर प्राकृतिक तौर पर बनने वाली इम्यूनिटी कम हो गई या खत्म हो गई। दूसरा बड़ा कारण है मौसम बदलना, मौसम में बदलाव और बारिश के दौरान ये वायरस काफी तेजी से संक्रमण करता है। तीसरा बड़ा कारण है कि पिछले कुछ समय में इस वायरस में भी कुछ बदलाव देखे गए हैं। इससे इसका संक्रमण बढ़ा है।

H3N2v को लेकर चिंता क्यों है?

इन्फ्लूएंजा वायरस H3N2 का संक्रमण कभी-कभी स्वस्थ लोगों में भी गंभीर बीमारी का कारण बन सकते हैं। इस संक्रमण के बढ़ने से निमोनिया हो सकता है। इससे मुश्किल बढ़ सकती है और आपको अस्पताल में भर्ती होना पड़ सकता है। इस संक्रमण से कभी-कभी मृत्यु भी हो सकती है। ऐसे में इसे हल्के में न लें।

इस वायरस का संक्रमण किनके लिए अधिक घातक है?

विशेषज्ञों के मुताबिक बुजुर्ग और बच्चों सहित ऐसे लोग जिन्हें पहले से कोई बीमारी है उनके लिए ये खतरनाक है। अमेरिकी संस्था सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन की ओर से किए गए एक अध्ययन में सामने आया कि 2001 के बाद पैदा हुए बच्चों (2010 में उम्र ≤9 साल) में एच3एन2 वायरस के खिलाफ बहुत कम या कोई प्रतिरक्षा नहीं है। ऐसे में उनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में स्थितियां अलग हैं।

क्या इस वायरस के संक्रमण बढ़ने का पहले से पता लगाया जा सकता है ?

जेएनयू के बायोटेक्नोलॉजी विभाग के प्रोफेसर रूपेश चतुर्वेदी H3N2 वायरस को लेकर भारत में कोई ट्रैकिंग नहीं की जाती है। इसका बड़ा कारण है कि यहां लोगों में ये वायरस संक्रमण करता है और अपने आप ठीक हो जाता है। लोग में इस वायरस को लेकर इम्यूनिटी अपने आप बन जाती है। अमेरिका और पश्चिमी देशों में इन्फ्लूएंजा वारयस की टैकिंग की जाती है। वहीं इस वारयस के संक्रमण का सीजन आने के पहले वहां अलर्ट जारी किया जाता है कि इन्फ्लूएंजा के किसी स्ट्रेन का असर इस साल रहने वाला है। इसके आधार पर लोगों को वैक्सीन लेने की भी सलाह दी जाती है।

H3N2 वायरस का संक्रमण होने पर बुखार कितने दिनों में उतर जाता है?

IMA के मुताबिक इस वायरस के इन्फेक्शन के लक्षण पांच से सात दिनों तक बने रहे सकते हैं। H3N2 से होने वाला बुखार तीन दिनों में उतर जाता है। लेकिन खांसी तीन हफ्ते से ज्यादा दिनों तक बनी रहती है।

H3N2 इन्फ्लूएंजा वायरस के संक्रमण का पता कैसे चलता है?

कुछ लक्षण देख कर इस वायरस का संक्रमण पता लगा पाना मुश्किल है। इस वायरस का पता लगाने के लिए ब्लड सैंपल और दूसरे कुछ टेस्ट लैब में किए जाते हैं। इन टेस्टों से ही पता लगता है कि H3N2 का संक्रमण हुआ है या कोई दूसरी बीमारी है।

संक्रमण के बाद कब मरीज को अस्पताल ले जाने की जरूरत होती है?

ज्यादातर मामलों में मरीज सामान्य बुखार और लक्षणों की दवा खा कर ठीक हो जाता है। लेकिन अगर सांस लेने में दिक्कत हो, ऑक्सीजन लेवल कम हो तो मरीज को अस्पताल ले जाना जरूरी हो जाता है। अगर आप एंटीबायोटिक बिना डॉक्टर की सलाह से खाते हैं तब खतरा ज्यादा है। कुछ मामलों में यह जानलेवा भी बन सकता है। लेकिन यह मरीज को देखकर उसकी सही जांच करने के बाद भी बताया जा सकता है।

H3N2 इन्फ्लूएंजा वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए क्या करें?

डॉक्टरों के मुताबिक इस वायरस से बचने के लिए आपको अपने हाथों को नियमित रूप से साबुन से धोते रहना चाहिए। सैनिटाइजर साथ में रखें और इसका इस्तेमाल करें। जो व्यक्ति बीमार है उसके कॉन्टैक्ट में आने से बचें। यदि आप छींक या खांस रहे हैं तो अपना मुंह ढक लें क्योंकि वायरल इन्फेक्शन तेजी से फैलता है। आंखों और चेहरे को बार-बार छूने से बचें। भीड़ वाली जगह पर जा रहे हैं तो मास्क जरूर लगाएं।

क्या एच3एन2 खतरनाक है?

वर्तमान में H3N2 का संक्रमण मौसमी फ्लू जैसा है। ध्यान रखें कि मौसमी इन्फ्लूएंजा भी एक गंभीर बीमारी हो सकती है। कभी-कभी मौसमी इन्फ्लूएंजा जटिलताएं पैदा कर सकता है (जैसे निमोनिया)। इससे अस्पताल में भर्ती होने नौबत आ सकती है और मृत्यु भी हो सकती है।

क्या H3N2 के लिए कोई टीका है?

H3N2 के खिलाफ टीका बनाने के लिए शुरुआती कदम उठाए जा चुके हैं। पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर H3N2 वैक्सीन का उत्पादन भी किया जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर आप इन्फ्लूएंजा वायरस के किसी भी वेरिएंट का टीका ले चुके हैं तो आपको कुछ इम्यूनिटी मिल जाएगी।

क्या इस मौसम का फ्लू टीका मुझे H3N2v से बचाएगा?

मौसमी फ्लू का टीका H3N2v से बचाव नहीं करेगा। मौसमी फ्लू के टीके मौसमी इन्फ्लूएंजा वायरस से बचाते हैं। अमेरिका का सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (सीडीसी) अनुशंसा करता है कि 6 महीने और उससे अधिक उम्र के सभी लोगों को हर साल मौसमी फ्लू का टीका लगवाना चाहिए। यह टीका लेने से H3N2 वैक्सीन के संक्रमण के दौरान कुछ राहत मिलेगी।

H3N2 वायरस का सबसे अधिक संक्रमण किस मौसम में होता है ?

इन्फ्लूएंजा और अन्य वायरस के कारण अक्टूबर से फरवरी की अवधि के दौरान मौसमी सर्दी या खांसी होना आम बात है। H3N2 वायरस का संक्रमण भी इसी दौरान बढ़ता है।

किस उम्र के लोगों को अधिक सावधान रहने की जरूतर है ?

IMA की ओर से जारी की गई एडवाइजरी के मुताबिक अधिकतर यह 50 वर्ष से अधिक और 15 वर्ष से कम आयु के लोगों में होता है। ऐसे में इन लोगों को अधिक सावधान रहने की जरूरत है।

ये वारयस शरीर के किस हिस्से को सबसे पहले प्रभावित करता है?

वल्लभभाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉक्टर राज कुमार कहते हैं कि ये वारयस भी कोविड के वायरस की तरह ही नाक और मुंह के जरिए ही शरीर में प्रवेश करता करता है। इस वायरस के संक्रमण से गले में कफ बनने लगता है या थ्रोट कंजेशन होने लगता है। इसके बाद ये अपर रेस्पिरेट्री सिस्टम पर असर डालता है। इससे लोगों में सीना जकड़ना या कफ की स्थिति बनती है। संक्रमण बहुत अधिक बढ़ने पर निमोनिया की स्थिति बन सकती है। ऐसे में मरीज को तुरंत एडमिट करना चाहिए।

H3N2 वायरस का संक्रमण होने पर खास तौर पर किन बातों का ध्यान रखें ?

H3N2 वायरस के संक्रमण की स्थित में आपको अपना ऑक्सीजन लेवल लगातार नापते रहना चाहिए। अगर ऑक्सीजन सेचुरेशन लेवल 95 प्रतिशत से कम है तो तत्काल डॉक्टर को दिखाएं। अगर ऑक्सीजन सेचुरेशन लेवल 90 प्रतिशत से कम है तब इन्टेंशिव केयर की ज़रूरत पड़ सकती है। खुद से दवाई लेना ख़तरनाक हो सकता है। अगर बच्चों और बूढ़ों को तेज बुखार और कफ़ जैसी समस्या बनी रहती है तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।

अगर एक बार इन्फ्लूएंजा वारयस का संक्रमण हो गया तो क्या दुबारा नहीं होगा?

ऐसा नहीं है, वायरसों का संक्रमण बढ़ने के साथ ही उनमें म्यूटेशन भी होता है। ऐसे में उनके रूप में बदलाव से संक्रमण का खतरा हमेशा बना रहता है। हां ये बात जरूर है कि अगर आपको पहले से इन्फ्लूएंजा वारयस का संक्रमण हुआ है तो दुबारा संक्रमण होने पर आपको गंभीर लक्षण नहीं दिखेंगे। कुछ सावधानी और लक्षण के मुताबिक दवा लेकर आप ठीक हो सकते हैं।

H3N2 वायरस के संक्रमण को बढ़ाने में क्या वायु प्रदूषण की भी भूमिका है ?

H3N2 वायरस के संक्रमण का सीधा असर आपके सांस लेने के सिस्टम पर पड़ता है। ये अपर रेस्पिरेट्री सिस्टम पर असर डालता है। वायु प्रदूषण अधिक होने पर अपर रेस्पिरेट्री सिस्टम में संक्रमण बढ़ने या संक्रमण ज्यादा फैलने की संभावना बढ़ जाती है।