एस.के. सिंह/अनुराग मिश्र, नई दिल्ली। पिछले एक महीने से कुछ अधिक समय में भारत ने अपनी समुद्री सीमा के दोनों तरफ तीन बंदरगाहों का कामकाज अपने हाथों में लिया है। ईरान का चाबहार, बांग्लादेश का मंगला और म्यांमार का सितवे। इनसे भारत को विदेश व्यापार बढ़ाने में तो मदद मिलेगी ही, ये बंदरगाह रणनीतिक लिहाज से भी महत्वपूर्ण हैं। इस कदम से भारत को अपने 7500 किलोमीटर लंबे समुद्र तट और करीब 20 लाख वर्ग किमी एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन को सुरक्षित रखने में मदद मिलेगी। इसे भारत के पड़ोसी देशों में चीन की बढ़ती मौजूदगी की काट के तौर पर भी देखा जा रहा है। हिंद महासागर क्षेत्र में हाल के वर्षों में चीन ने अपनी मौजूदगी कितनी बढ़ाई है, इसका अंदाजा इस बात से लगता है कि चाइनीज कंपनियां इस समय दक्षिण एशिया में सात और हिंद महासागर क्षेत्र में 17 बंदरगाहों के प्रबंधन का काम देख रही हैं।

हाल में भारत ने साउथ चाइना सी में भी मौजूदगी बढ़ाई है, खास कर जून 2020 में गलवान घाटी में चीन के साथ झड़प के बाद। फिलिपींस के अलावा वियतनाम के साथ भारत ने सैनिक और राजनयिक संबंध बढ़ाए हैं। मई 2019 में भारतीय नौसेना ने पहली बार इस क्षेत्र में अमेरिका, जापान और फिलिपींस की नौसेना के साथ युद्धाभ्यास किया था। उसके बाद भारत कई बार इस क्षेत्र में युद्धाभ्यास कर चुका है। भारत का लगभग आधा विदेश व्यापार साउथ चाइना सी से जुड़ी मलाका की खाड़ी के रास्ते होता है।

पूरब में मंगला और सितवे बंदरगाह

इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) ने बांग्लादेश के मंगला पोर्ट को ऑपरेट करने का समझौता किया है। बांग्लादेश के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में स्थित यह चट्टग्राम के बाद उस देश का दूसरा बड़ा पोर्ट है। इसके रास्ते भारत के पूर्वोत्तर राज्यों तक सामान भेजना आसान होगा। खास बात है कि चीन ने भी कुछ दिनों पहले इस बंदरगाह को डेवलप करने की घोषणा की थी।

भारत ने खुलना से मंगला पोर्ट तक 65 किमी लंबी रेल लाइन बनाने में भी बांग्लादेश की मदद की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने पिछले साल 1 नवंबर को वहां के दो अन्य प्रोजेक्ट के साथ इसका उद्घाटन किया था। इस रास्ते से नेपाल और भूटान तक व्यापार भी आसान होगा। पोर्ट अथॉरिटी के अनुसार अप्रैल 2024 में इस बंदरगाह पर 63 जहाज आए और 6.37 लाख टन कार्गो की हैंडलिंग हुई। अप्रैल 2023 में यहां 52 जहाज आए थे और 4.67 लाख टन कार्गो की हैंडलिंग हुई थी।

भारत के विदेश मंत्रालय ने 6 अप्रैल 2024 को म्यांमार के पश्चिमी तट पर स्थित सितवे बंदरगाह को ऑपरेट करने के आईपीजीएल के प्रस्ताव को मंजूरी दी। आईपीजीएल कलादान नदी पर स्थित पूरे बंदरगाह के ऑपरेशन का काम देखेगी। इस बंदरगाह के लिए आईपीजीएल का कॉन्ट्रैक्ट हर तीन साल बाद रिन्यू होगा। माना जा रहा है कि इस बंदरगाह के रास्ते होने वाले व्यापार में रुपये का इस्तेमाल बढ़ाने की भी कोशिश की जाएगी। सितवे बंदरगाह कलादान मल्टीमोडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट का हिस्सा है। मई 2023 में भारत के पोर्ट और शिपिंग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने ही इसका आधिकारिक उद्घाटन किया था।

उत्तर-पूर्वी राज्यों के विकास के लिए अहम

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के इंटरनेशल रिलेंशस के प्रोफेसर डॉ. राजन कुमार जागरण प्राइम से कहते हैं, पूरब में बांग्लादेश के मंगला बंदरगाह के एक टर्मिनल को ऑपरेट करने का अधिकार हासिल करना महत्वपूर्ण है। भारत के बांग्लादेश से राजनीतिक रिश्ते बेहतर हैं। भारत-बांग्लादेश के साथ रेल और सड़क प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। वे एक और अहम बात कहते हैं, “भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों के विकास के लिए पूर्वी एशिया के देशों के साथ संबंध मधुर होना आवश्यक है। जहां तक सितवे एयरपोर्ट की बात है तो वह चीन को काउंटर रखने के लिहाज से अहम है।”

इस समय भारत से म्यांमार को सीमेंट, स्टील, ईंट जैसे कंस्ट्रक्शन मैटेरियल का निर्यात होता है। म्यांमार से लकड़ी, मछली और सीफूड का आयात किया जाता है। इस बंदरगाह के विस्तार से ज्यादा वस्तुओं का आयात-निर्यात होने की भी संभावना है। इस बंदरगाह के रास्ते मिजोरम और त्रिपुरा राज्यों को भी फायदा होगा। अभी कोलकाता से अगरतला तक सड़क मार्ग से सामान पहुंचाने में चार दिन लगते हैं। सितवे के जरिए जल और सड़क मार्ग से सिर्फ दो दिन लगेंगे। हालांकि विशेषज्ञ म्यांमार में जारी घरेलू हिंसा को इस प्रोजेक्ट में सबसे बड़ी बाधा मानते हैं।

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) के फेलो कबीर तनेजा कहते हैं, “भारत के विदेश मंत्रालय ने म्यांमार के कलादान नदी पर स्थित सितवे बंदरगाह के संचालन को संभालने के प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान की है। चाबहार बंदरगाह के बाद यह भारत का दूसरा विदेशी बंदरगाह होगा।”

सितवे का बड़ा रणनीतिक महत्व है। यहां से करीब 120 किमी दूर क्याकफ्यू डीप-सी पोर्ट और एसईजेड को चीन डेवलप कर रहा है। यह 1700 किमी लंबे चीन-म्यांमार इकोनॉमिक कॉरिडोर का हिस्सा है। यह कॉरिडोर पोर्ट को चीन के कुनमिंग शहर से जोड़ेगा।

चाबहार खोलेगा व्यापार के नए रास्ते

वैसे तो ईरान के चाबहार बंदरगाह को डेवलप करने और उसके ऑपरेशन में भारत कई साल से लगा हुआ है, लेकिन 13 मई को इस बंदरगाह का टर्मिनल 10 साल तक ऑपरेट करने का समझौता हुआ। आईपीजीएल और ईरान के पोर्ट्स एंड मैरीटाइम आर्गेनाईजेशन (PMO) के बीच समझौते के मुताबिक इंडिया पोर्ट्स चाबहार बंदरगाह के शाहिद बेहस्ती टर्मिनल को डेवलप करने के लिए 12 करोड़ डॉलर खर्च करेगी। इसके अलावा विदेश मंत्रालय इस बंदरगाह के आसपास इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप करने के लिए 25 करोड़ डॉलर का क्रेडिट लाइन देगा।

निर्यातकों के संगठन फियो के अध्यक्ष अश्विनी कुमार के अनुसार, चाबहार बंदरगाह से भारत को कई रणनीतिक फायदे हैं। यह 7200 किलोमीटर लंबे मल्टीमोडल अंतरराष्ट्रीय नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर का महत्वपूर्ण अंग है और इसके रास्ते भारत अफगानिस्तान, यूरेशिया, मध्य एशिया और यूरोप तक व्यापार कर सकता है। मुंबई से समुद्र के रास्ते चाबहार तक, चाबहार से सड़क मार्ग से ईरान के ही बंदर-ए-अंजाली (कैस्पियन सागर में) तक और वहां से समुद्र के रास्ते रूस के अस्त्रखन तक सामान भेजा जा सकता है। अस्त्रखन से रूस के विभिन्न क्षेत्रों में और यूरोप तक माल भेजने की गुंजाइश है।

फियो के महानिदेशक तथा सीईओ अजय सहाय ने बताया कि स्वेज नहर की तुलना में इस रूट से कारोबार करने पर लागत में 30% और समय में 40% की बचत होगी। गौरतलब है कि रेड सी में पिछले कुछ महीने से हूती विद्रोहियों के हमलों को देखते हुए इस कॉरिडोर का महत्व बढ़ गया है।

चाबहार बंदरगाह का समुद्र तट 16 मीटर गहरा होने के कारण यहां बड़े जहाज आसानी से आ सकते हैं। यह बंदरगाह दुनिया के सबसे व्यस्त ट्रेड रूट में से एक पर है। यहां एशिया और यूरोप के बीच तथा एशियाई देशों के बीच व्यापार होता है।

पाकिस्तान में चीन के बीआरआई का जवाब

भारत के लिए चाबहार बंदरगाह का बड़ा भू-रणनीतिक महत्व है। यह गुजरात के कांडला पोर्ट से लगभग 885 किलोमीटर और मुंबई से 1265 किलोमीटर दूर है। चाबहार-जाहेदन रेलवे 2025 में शुरू होने की संभावना है। इसके अलावा डेलरम-जारंज हाईवे भी है। करीब 218 किमी लंबा यह हाईवे ईरान अफगानिस्तान की सीमा पर जारंज से शुरू होकर अफगानिस्तान के डेलरम तक है। कुछ समय पहले तक अफगानिस्तान को मदद पहुंचाने के लिए भारत इसका इस्तेमाल कर रहा था।

इसे हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (BRI) के जवाब के तौर पर भी देखा जा रहा है। चाबहार के करीब पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह का प्रबंधन चाइना ओवरसीज पोर्ट्स होल्डिंग कंपनी के पास है। ग्वादर के साथ कराची बंदरगाह के डेवलपमेंट में चीन ने बीआरआई के तहत पिछले कई वर्षों के दौरान लगभग पांच अरब डॉलर का निवेश किया है।

डॉ. राजन कहते हैं, “चाबहार बंदरगाह भारत के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पाकिस्तान को बाइपास करना आसान होगा, वह अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक जाने के लिए अपनी जमीन का इस्तेमाल नहीं करने देता। चाबहार एकमात्र ईरानी बंदरगाह है जिसकी हिंद महासागर तक सीधी पहुंच है।”

इसके अलावा, पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह चाबहार से सिर्फ 170 किलोमीटर पूर्व में है। बीआरआई के तहत बनने वाला चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा ग्वादर बंदरगाह पर आकर खत्म होता है। चीन बीआरआई के माध्यम से पूरे दक्षिण एशिया में अपना विस्तार कर रहा है। चाबहार से भारत ग्वादर पोर्ट पर होने वाली गतिविधियों पर नजर रख सकता है।

वे बताते हैं, एक बार पूरी तरह चालू हो जाने पर चाबहार बंदरगाह भारत को तुर्कमेनिस्तान और कजाकिस्तान जैसे संसाधन संपन्न मध्य एशियाई देशों तक सीधी पहुंच प्रदान करेगा। चाबहार में उपलब्ध डॉकिंग सुविधाओं के कारण, भारत समुद्री डकैती के मामलों पर प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया दे सकता है और अरब सागर में रक्षा की पहली पंक्ति के रूप में काम कर सकता है।

तनेजा कहते हैं, चाबहार की शुरुआत उस समय हुई जब भारत विदेशी परिसंपत्तियों में निवेश की संभावनाओं पर काम कर रहा था। 1991 में उदारीकरण के बाद विदेश में पूंजी खरीदने का क्रम शुरू हुआ। चाबहार के साथ हमने सखालिन-1 और उत्तरी रूस में तेल क्षेत्र में निवेश किया। इस परियोजना की परिकल्पना 2003 में की गई थी, लेकिन इसने 2015 में ही गति पकड़ी, जब ईरान और P5+1 देशों (ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, जर्मनी, रूस, अमेरिका) ने ईरानी परमाणु कार्यक्रम को सीमित रखने के बदले प्रतिबंधों में राहत देने का समझौता किया।

इज़राइल में हाइफ़ा पोर्ट का उल्लेख करते हुए तनेजा कहते हैं, भारतीय कंपनी अडानी पोर्ट्स ने कुछ महीने पहले 1.2 बिलियन डॉलर में इसे खरीदा था। यह दर्शाता है कि विभिन्न रणनीतिक सोच में बंदरगाहों की गंभीरता काफी बढ़ गई है। हाइफा मालवाहक जहाजों के लिए इजरायल में दूसरा सबसे बड़ा बंदरगाह है, जबकि पर्यटक जहाजों के मामले में यह सबसे बड़ा बंदरगाह है।

भारत का रणनीतिक अधिग्रहण एक महत्वपूर्ण भूराजनीतिक पैंतरेबाज़ी

पारले पॉलिसी इनीशिएटिव के साउथ एशिया के सीनियर एडवायजर नीरज सिंह मन्हास बताते हैं कि चाबहार, मंगला और सितवे में बंदरगाह संचालन का भारत का रणनीतिक अधिग्रहण एक महत्वपूर्ण भूराजनीतिक पैंतरेबाज़ी है जिसका उद्देश्य चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का मुकाबला करना और यूरेशिया में भारत के प्रभाव को बढ़ाना है। बांग्लादेश के मंगला बंदरगाह का संचालन, जहां चीन पहले से ही निवेश कर चुका है, इस क्षेत्र में चीन के समुद्री प्रभुत्व को चुनौती देने के भारत के इरादे को दर्शाता है। इसी तरह, म्यांमार के सितवे बंदरगाह के विकास और संचालन में भारत की भागीदारी उसकी एक्ट ईस्ट नीति के अनुरूप है, जो दक्षिण पूर्व एशिया में अपनी उपस्थिति को मजबूत करती है और चारों ओर से जमीन से घिरे पूर्वोत्तर राज्यों के साथ कनेक्टिविटी की सुविधा प्रदान करती है। प्रमुख स्थानों पर अपने बंदरगाह बुनियादी ढांचे को बढ़ाकर, भारत का लक्ष्य महत्वपूर्ण व्यापार मार्गों को सुरक्षित करना और खुद को क्षेत्रीय आपूर्ति श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में स्थापित करना है। इसके अतिरिक्त, ये रणनीतिक कदम भारत को पड़ोसी देशों के साथ मजबूत द्विपक्षीय संबंध बनाने, चीन के विशाल बीआरआई के सामने आर्थिक सहयोग और स्थिरता को बढ़ावा देने में मदद करते हैं। यह सक्रिय रुख अपने भू-राजनीतिक पदचिह्न का विस्तार करने और पूरे यूरेशिया में अपने रणनीतिक हितों को सुरक्षित रखने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।

पोर्ट डिप्लोमेसी के जरिए चीन का विकल्प तलाशने की कोशिश

तनेजा कहते हैं, कोविड के बाद सबको एहसास हुआ कि चीन की विनिर्माण क्षमता कुछ ज्यादा ही केंद्रीकृत है। सब कुछ वहीं बन रहा है और वे इसकी सप्लाई नियंत्रित कर सकते हैं। हमने इसे चिकित्सा उपकरण इत्यादि के मामलों में बखूबी देखा है। भारत इसमें विविधता लाना चाहता है। सेमीकंडक्टर और उच्च प्रौद्योगिकी कुछ ऐसी चीजें हैं जिनकी सभी संपूर्ण विनिर्माण क्षमता चीन के पास होने से दुनिया उतनी सहज नहीं हो रही है। बहुत सारे पोर्ट निवेश इस बात पर आधारित हैं कि कैसे सप्लाई चेन में विविधता लाई जाए। हमें इंतजार करना होगा और देखना होगा कि यह किस प्रकार होता है।

तनेजा कहते हैं, जब चाबहार जैसी जगहों की बात आती है तो वहां आर्थिक के बजाय बड़े भू-रणनीतिक और भू-राजनीतिक हित काम करते हैं। तालिबान ने भी चाबहार को 35 मिलियन डॉलर देने का वादा किया है। वे कराची या ग्वादर के बजाय चाबहार का उपयोग करना चाहते हैं।

दक्षिण एशिया में चीनी कंपनियों के प्रबंधन को लेकर काफी बात चल रही है। यूरोप इसे लेकर अधिक आक्रामक है। इसलिए वे विकल्प तलाश रहे हैं। वे नहीं चाहते कि बहुत अधिक रणनीतिक संपत्ति चीन के नियंत्रण में आए। फिलहाल देखें तो चीन की बीआरआई के समानांतर किसी भी संपत्ति की खरीद नहीं हुई है। उन्होंने उसमें काफी निवेश किया है।

भारत के लिए पोर्ट में निवेश और पोर्ट डिप्लोमेसी बड़ी अहम है, लेकिन यह तभी संभव है जब विकास का पहिया स्थिर होने के साथ सतत बढ़ता भी रहे। तनेजा कहते हैं, “जहां भी आवश्यक है, वहां भारत अपना योगदान दे रहा है। भविष्य में सफल होने के लिए हमें कम से कम 10 प्रतिशत जीडीपी विकास दर बनाए रखने की आवश्यकता है। सात या आठ प्रतिशत की दर से दीर्घ अवधि में बहुत बड़ा हासिल करना संभव नहीं होगा।”

पारले पॉलिसी इनीशिएटिव के साउथ एशिया के सीनियर एडवायजर नीरज सिंह मन्हास बताते हैं कि बांग्लादेश से म्यांमार तक फैली बंगाल की खाड़ी में भारत की बढ़ी हुई उपस्थिति से इसकी समुद्री शक्ति, व्यापार क्षमताओं और सुरक्षा में काफी वृद्धि हुई है। यह रणनीतिक स्थिति महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों को सुरक्षित करती है और महत्वपूर्ण समुद्री चोकपॉइंट्स पर भारत के नियंत्रण को बढ़ाती है, जिससे आसान और अधिक सुरक्षित व्यापार प्रवाह की सुविधा मिलती है। बढ़ी हुई समुद्री उपस्थिति संभावित खतरों के निवारक के रूप में भी काम करती है, क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करती है और भारत के आर्थिक हितों की रक्षा करती है।

व्यापार के दृष्टिकोण से, ये विकास भारत को अपने आपूर्ति श्रृंखला नेटवर्क को सुव्यवस्थित और विस्तारित करने, पारंपरिक मार्गों पर निर्भरता कम करने और भू-राजनीतिक तनाव से जुड़े जोखिमों को कम करने में सक्षम बनाते हैं। यह आर्थिक साझेदारी और निवेश के लिए नए रास्ते खोलता है, क्षेत्रीय आर्थिक विकास और एकीकरण को बढ़ावा देता है।

मन्हास कहते हैं कि बंगाल की खाड़ी में भारत का रणनीतिक समुद्री विस्तार एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में इसकी स्थिति को मजबूत करता है, आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है, सुरक्षा बढ़ाता है और क्षेत्र में चीन के प्रभाव को संतुलित करता है। यह सक्रिय दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि भारत इंडो-पैसिफिक के भू-राजनीतिक परिदृश्य को आकार देने में एक प्रमुख खिलाड़ी बना रहे।

अमेरिका के बयान से कूटनीतिक टकराव संभव

पारले पॉलिसी इनीशिएटिव के साउथ एशिया के सीनियर एडवायजर नीरज सिंह मन्हास बताते हैं कि ग्वादर को लेकर अमेरिका का भारत के खिलाफ मुखर बयान वाकई भारत-अमेरिका रिश्तों पर असर डाल सकता है. महत्वपूर्ण चीनी निवेश के साथ विकसित ग्वादर बंदरगाह, चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का एक महत्वपूर्ण तत्व है और रणनीतिक रूप से पाकिस्तान में स्थित है। ग्वादर से संबंधित भारत के रुख या कार्यों की किसी भी अमेरिकी आलोचना को क्षेत्रीय गतिशीलता को प्रभावित करने और दक्षिण एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के प्रयास के रूप में समझा जा सकता है।

सबसे पहले, इस तरह के बयान से कूटनीतिक टकराव पैदा हो सकता है, क्योंकि भारत अपनी क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक हितों को सर्वोपरि मानता है। भारत की रणनीतिक पहल, जिसमें चाबहार, मंगला और सिटवे बंदरगाहों में इसकी भागीदारी शामिल है, इस क्षेत्र में चीन की उपस्थिति को संतुलित करने के लिए डिज़ाइन की गई है। अमेरिकी आलोचना को भारत की सुरक्षा चिंताओं और क्षेत्र में रणनीतिक संतुलन स्थापित करने के प्रयासों के प्रति समझ या समर्थन की कमी के रूप में देखा जा सकता है।

हालांकि, भारत-अमेरिका संबंधों के व्यापक संदर्भ को देखते हुए, जो मजबूत आर्थिक संबंधों, रक्षा सहयोग और साझा लोकतांत्रिक मूल्यों की विशेषता है, राजनयिक बातचीत और जुड़ाव के माध्यम से प्रभाव को कम किया जा सकता है। स्थिर और सहयोगात्मक संबंध बनाए रखने में दोनों देशों के निहित स्वार्थ हैं, विशेष रूप से चीन के प्रभाव का मुकाबला करने और स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक सुनिश्चित करने के संदर्भ में।

पोर्ट के फैलाव से  श्रीलंका से संबंधों में सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव संभव

पारले पॉलिसी इनीशिएटिव के साउथ एशिया के सीनियर एडवायजर नीरज सिंह मन्हास बताते हैं कि क्षेत्र में भारत के बंदरगाह परिचालन में वृद्धि वास्तव में श्रीलंका के हितों को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह से प्रभावित कर सकती है।

एक ओर, बांग्लादेश, म्यांमार में बंदरगाहों के विकास और चाबहार के रणनीतिक महत्व से ट्रांसशिपमेंट और व्यापार के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है, जिससे संभावित रूप से कुछ समुद्री यातायात को श्रीलंका के बंदरगाहों, विशेष रूप से कोलंबो से दूर किया जा सकता है, जो एक प्रमुख ट्रांसशिपमेंट केंद्र है। इससे बंदरगाह संचालन और संबंधित सेवाओं से श्रीलंका के राजस्व पर असर पड़ सकता है।

दूसरी ओर, सहयोग और पारस्परिक लाभ के अवसर भी हैं। क्षेत्र में बढ़ी हुई कनेक्टिविटी और बुनियादी ढांचे का विकास अधिक क्षेत्रीय एकीकरण, व्यापार और आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकता है। श्रीलंका इस बढ़ी हुई कनेक्टिविटी का लाभ उठाकर खुद को क्षेत्रीय समुद्री नेटवर्क में एक केंद्रीय नोड के रूप में स्थापित कर सकता है, निवेश आकर्षित कर सकता है और अपने स्वयं के बंदरगाह बुनियादी ढांचे और क्षमताओं में सुधार कर सकता है।