एस.के. सिंह, नई दिल्ली। अमेरिका में सिलिकॉन वैली बैंक डूबने के बाद उससे जुड़ी दो घटनाएं भारत में हुईं। उस बैंक में अनेक भारतीय स्टार्टअप्स के खाते थे। इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने 400 से ज्यादा स्टार्टअप्स के साथ बैठक की और उनसे भारतीय बैंकों को अपना पार्टनर बनाने का आग्रह किया। उन्होंने बताया कि भारतीय स्टार्टअप्स के करीब एक अरब डॉलर सिलिकॉन वैली बैंक (SVB) में जमा थे, जिसमें से करीब 20 करोड़ डॉलर भारतीय बैंकों में ट्रांसफर किए गए हैं।

विदेश स्थित भारतीय फिनटेक-स्टार्टअप्स को गिफ्ट आईएफएससी (GIFT IFSC) में लाने के लिए इंटरनेशनल फाइनेंशियल सर्विसेज सेंटर अथॉरिटी (IFSCA) ने 21 मार्च को एक विशेष समिति बनाने की जानकारी दी। रिजर्व बैंक के पूर्व एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर जी. पद्मनाभन की अध्यक्षता में समिति बनाई गई है। प्रमुख वेंचर कैपिटल फंड, स्टार्टअप, फिनटेक, लॉ और टैक्स फर्म के विशेषज्ञ इस समिति के सदस्य हैं। यह समिति गिफ्ट आईएफएससी को अंतरराष्ट्रीय इनोवेशन हब के रूप में विकसित करने पर अपने सुझाव देगी।

इन दोनों घटनाओं का दूसरा पहलू भी है। IFSCA ने यह भी कहा कि अब तक 115 भारतीय स्टार्टअप यूनिकॉर्न बन चुके हैं। इनमें से अनेक स्टार्टअप दूसरे देशों में रजिस्टर्ड हैं, जबकि उनका बाजार, उनके संस्थापक और कर्मचारी भारत में हैं। इनमें अनेक यूनिकॉर्न भी शामिल हैं। दूसरी ओर, भारतीय स्टार्टअप्स ने सिलिकॉन वैली बैंक से सिर्फ 20% रकम भारतीय बैंकों में ट्रांसफर की। माना जा रहा है कि उन्होंने अपना ज्यादातर पैसा एक अन्य अमेरिकी बैंक ब्रेक्स एंड मरकरी (Brex and Mercury) में ट्रांसफर किया है। यह बैंक भी सिलिकॉन वैली बैंक जैसी सुविधाएं देता है। साथ ही इसने हर खाते पर 50 लाख डॉलर का इंश्योरेंस देने की घोषणा की, जबकि ज्यादातर अमेरिकी बैंकों में यह इंश्योरेंस ढाई लाख डॉलर तक है।

गिफ्ट सिटी (Gujarat International Finance Tec-City) स्थित आईएफएससी (IFSC) भारतीय स्टार्टअप्स के लिए अच्छा विकल्प हो सकता है। यहां अनेक भारतीय और अंतरराष्ट्रीय बैंकों की शाखाएं हैं। फिर भी क्या कारण है कि चुनिंदा भारतीय स्टार्टअप्स ने ही गिफ्ट सिटी का रुख किया। बात सिर्फ सिलिकॉन वैली बैंक प्रकरण की नहीं, भारतीय स्टार्टअप वर्षों से अमेरिका तथा अन्य देशों में रजिस्टर्ड होना पसंद करते रहे हैं। इसका कारण जानने के लिए जागरण प्राइम ने कई बड़े स्टार्टअप और एक्सेलरेटर फंड के प्रमुखों से बात की।

अमेरिकी पहचान से वरीयता

इनफाइनाइट एनालिटिक्स के सह-संस्थापक और सीईओ आकाश भाटिया जागरण प्राइम से कहते हैं, “ऐतिहासिक रूप से देखें तो अमेरिका, खासकर डेलावेयर मुख्यालय वाली कंपनियों के लिए फंड जुटाना आसान होता है। आसान कंप्लायंस, सिंगल विंडो क्लियरेंस और कंपनी हित वाली नीतियों के कारण लोग इस जगह को चुनते हैं।” भाटिया के अनुसार, “भारत में कंप्लायंस का बोझ बहुत ज्यादा है। कंपनी शुरू करने के लिए 15 दिन से लेकर 15 महीने तक लग सकते हैं। किसी भी स्टार्टअप के लिए यह रॉकेट गति से ग्रोथ या फिर मौत का अंतर होता है।”

एग्रीटेक स्टार्टअप बायोप्राइम सॉल्यूशंस की डायरेक्टर रेणुका दीवान इसके कुछ और कारण बताती हैं, “भारतीय स्टार्टअप्स को अभी तक वह स्वीकार्यता नहीं मिली है जो बोस्टन या सिलिकॉन वैली स्थित स्टार्टअप्स की है। डीप-टेक स्टार्टअप्स के लिए तो यह बात बिल्कुल सही है।” उन्होंने कहा कि अमेरिका अथवा यूरोप की तुलना में भारतीय स्टार्टअप्स की वैलुएशन कम आंकी जाती है और उनके लिए ज्यादा फंड जुटाना भी मुश्किल होता है।

2017 में स्थापित एक्सेलरेटर फंड उपेक्खा (Upekkha) के पार्टनर और 100 से ज्यादा वैल्यू सास (Value SaaS) उद्यमियों को प्रशिक्षित करने वाले प्रसन्ना कृष्णमूर्ति इन वजहों से इत्तेफाक रखते हुए कहते हैं, “ग्लोबल ग्राहक वाले स्टार्टअप्स को अमेरिकी पहचान से वरीयता मिलती है, खासकर अगर ग्राहक अमेरिकी भी हों। इसके कई कारण हैं। पहला, ग्लोबल इनवेस्टर डेलावेयर/अमेरिकी कानूनों को अच्छी तरह समझते हैं। दूसरा, अनेक निवेशकों के लिए सिर्फ अमेरिकी कंपनी में निवेश करने की बाध्यता होती है। तीसरा, स्टार्टअप्स के लिए शुरुआती चरण में पूंजी अन्य किसी भी देश की तुलना में अमेरिका में अधिक उपलब्ध है।

किस तरह की दिक्कतें आती हैं, यह पूछने पर प्रसन्ना कहते हैं, “हाल तक दूसरे देश से भारत में पैसा लाना और भारत से बाहर पैसा भेजना बड़ा कठिन काम था। बड़े ग्राहक वाले आईटी/आईटीईएस कंपनियों को ज्यादा मुश्किल नहीं आती थी, लेकिन जिन स्टार्टअप्स के ग्राहक छोटी रकम का भुगतान करने वाले होते हैं, उनके लिए दिक्कत ज्यादा है।”

एक स्टार्टअप संस्थापक के अनुसार, “किसी दूसरे अमेरिकी बैंक में खाता खोलकर पैसे ट्रांसफर करना ज्यादा आसान है। भारत में नियमों को लेकर अनिश्चितता भी बड़ी समस्या है। पता नहीं कब नियम बदल जाएं। इसके अलावा, कई बार निवेशकों की तरफ से अमेरिकी बैंक में एकाउंट खोलने का दबाव रहता है। इसलिए स्टार्टअप अमेरिका में कंपनी खोलते हैं और भारतीय इकाई उसकी सब्सिडियरी होती है।”

दूसरे देशों में फंड जुटाना आसान

यह सच है कि भारत में इनोवेशन तेजी से हो रहे हैं और स्टार्टअप संख्या में हम दुनिया में तीसरे स्थान पर हैं। लेकिन भारतीय स्टार्टअप जो फंड हासिल करते हैं उसका 10% भी भारत से नहीं होता है। आकाश भाटिया के अनुसार, “अमेरिका में कंपनी बनाने का सबसे बड़ा आकर्षण वेंचर कैपिटल फंड तक आसान पहुंच है। भारत की तुलना में अमेरिका में कंपनी बंद करना भी आसान है। बैंकरप्सी जैसे मामले में भी कंप्लायंस आसान होता है।”

वे कहते हैं, सिलिकॉन वैली बैंक बंद होने के बाद कई रोज तक स्टार्टअप सांस थामे रहे। उसके बाद फेडरल रिजर्व ने सभी डिपॉजिट पर गारंटी देने की घोषणा की। इस समय तो एसवीबी में अगर आपका पैसा है तो वह सबसे सुरक्षित है। अमेरिका या अन्य देशों में बैंक रन (अचानक निवेशकों के पैसे निकालने) पर सवाल उठ रहे हैं, लेकिन ऐसा दुनिया के किसी भी बैंक के साथ हो सकता है। एफडीआईसी (Federal Deposit Insurance Corporation) ने जिस तरह सभी बैंक जमा पर गारंटी देने की घोषणा की है, अगर भारत भी वैसा करे तो वह गेमचेंजर कदम हो सकता है।

प्रसन्ना कृष्णमूर्ति के मुताबिक, “अमेरिका में निवेशक हर तरह की जानकारी रखते हैं। डोमेन विशेष में उनकी विशेषज्ञता भी होती है, खासकर टेक्निकल क्षेत्र में। इसलिए उनसे पैसे हासिल करना भी आसान होता है।” वे कहते हैं, “शुरुआती चरण में अमेरिका स्थित स्टार्टअप को वैल्युएशन भी ज्यादा मिल जाती है। यह भारतीय स्टार्टअप की तुलना में 100% से 400% तक अधिक होता है।”

कैसे आसान हो कंप्लायंस

भारत में स्टार्टअप ईकोसिस्टम और मजबूत बनाने के लिए और क्या किया जाना चाहिए, यह पूछने पर प्रसन्ना कहते हैं, “भारत में टेक्नोलॉजी कंपनियों के लिए कंप्लायंस बड़ी चुनौती होती है। अमेरिका की तुलना में उन्हें इसके लिए ज्यादा समय और संसाधन खर्च करने पड़ते हैं।” कंप्लायंस आसान बनाने के लिए उनके सुझाव हैं- सॉफ्टवेयर आयात और निर्यात करने के लिए एक निश्चित प्रक्रिया होनी चाहिए, बाहर से निवेश हासिल करने की प्रक्रिया आसान हो और पूंजी परिवर्तनीयता (capital convertibility) पूरी हो ताकि निवेशक अपनी पूंजी आसानी से वापस ले जा सकें। कुछ अमेरिकी निवेशकों ने भारत से रकम ले जाने में मुश्किलों का सामना किया। वे भारत में दोबारा निवेश करने से कतराएंगे।

वे अधिग्रहण एवं विलय (M&A) के नियम भी आसान करने का सुझाव देते हैं। उनका कहना है कि कुछ बड़े निवेशकों को भारतीय कंपनी के अधिग्रहण में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। भारत की एंजेल टैक्स पॉलिसी भी संस्थापकों को नुकसान पहुंचाने वाली है। ऐसी नीति किसी अन्य देश में नहीं है। इस पर नए सिरे से विचार करने की जरूरत है ताकि उद्यमिता को बढ़ावा मिले और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में इनोवेशन हो सके।

आकाश भाटिया के अनुसार, “कंप्लायंस आसान बनाकर स्टार्टअप्स का जीवन आसान किया जा सकता है। इसमें लोगों का काफी समय जाया होता है। कुछ कंप्लायंस तो एक-दूसरे के विरोधाभासी होते हैं। पूरा स्टार्टअप ईकोसिस्टम कन्फ्यूजन में रहता है। इस कन्फ्यूजन को दूर कर और नियमों को आसान बना कर भारत स्टार्टअप्स के लिए पसंदीदा जगह बन सकता है।”

बायोप्राइम की रेणुका दीवान का सुझाव है कि सरकार को नियम-कायदे आसान बनाने के साथ ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के लिए सिंगल विंडो क्लियरेंस की व्यवस्था बनानी चाहिए। वर्किंग कैपिटल लोन या इनवॉयस फाइनेंसिंग (बेचे गए सामान के इनवॉयस पर कर्ज) में उन्हें अतिरिक्त रियायतें दी जा सकती हैं। स्टार्टअप इंडिया स्कीम की प्रशंसा करती हुई रेणुका कहती हैं, “यह शुरुआती चरण के स्टार्टअप की मदद की दिशा में अत्यंत महत्वपूर्ण कदम है। शुरुआती वर्षों में टैक्स से छूट से कंपनी तेजी से आगे बढ़ सकती है। पेटेंट की प्रक्रिया तेज की जानी चाहिए। इससे स्टार्टअप अपनी टेक्नोलॉजी का जल्दी विस्तार कर सकते हैं।”

सरकार के कदम

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2023-24 के बजट में कहा कि 31 मार्च 2024 तक गठित होने वाले स्टार्टअप टैक्स हॉलिडे का फायदा ले सकते हैं। पहले इसकी सीमा 31 मार्च 2023 थी। स्टार्टअप इंडिया वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार 1 अप्रैल 2016 के बाद स्थापित स्टार्टअप आयकर कानून की धारा 80IAC के तहत 10 साल के दौरान कभी भी लगातार तीन साल तक इनकम टैक्स में 100% छूट हासिल कर सकते हैं।

स्टार्टअप्स के लिए टैक्स हॉलिडे पहली बार 2017-18 में घोषित की गई थी। तब प्रावधान था कि गठन के बाद पहले सात वर्षों में से कोई भी लगातार तीन साल स्टार्टअप टैक्स में छूट के हकदार होंगे। नए बजट में सात साल की अवधि भी बढ़ाकर 10 साल कर दी गई है। हालांकि 2023-24 के बजट में स्टार्टअप इंडिया स्कीम के तहत आवंटन कम किया गया है। इसके लिए 30 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। 2022-23 के बजट में 50 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था, लेकिन उसे संशोधित करके 44.29 करोड़ रुपये कर दिया गया।

नए स्टार्टअप की मदद के लिए स्टार्टअप इंडिया सीड फंड स्कीम भी है। इसका उद्देश्य है कि शुरुआती मदद से एक स्तर तक पहुंचने के बाद स्टार्टअप एंजेल इन्वेस्टर, वेंचर कैपिटल या बैंक से पूंजी जुटा सकें। सरकार ने स्टार्टअप इंडिया इन्वेस्टर कनेक्ट प्लेटफॉर्म भी बनाया है जहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के आधार पर स्टार्टअप और इनवेस्टर एक-दूसरे से जुड़ सकते हैं। उद्यमी इसके जरिए कई इनवेस्टर से संपर्क कर सकते हैं और उन्हें अपने आइडिया के बारे में बता सकते हैं।

इन प्रावधानों पर प्रसन्ना कहते हैं, “तेजी से बढ़ने वाले ऐसे स्टार्टअप जो अपना पूरा मुनाफा कंपनी में ही निवेश कर देते हैं, उनके लिए टैक्स हॉलिडे का कोई मतलब नहीं है। स्टार्टअप के रूप में रजिस्टर्ड होने की प्रक्रिया तो मुश्किल भरी है ही, अनेक इनसेंटिव भी पुराने पड़ चुके हैं और आधुनिक बिजनेस से उनका कोई लेना-देना नहीं होता। एंजेल टैक्स का मुद्दा भी है। उद्यमिता और इनोवेशन को हतोत्साहित करने वाली यह पॉलिसी भारत में स्टार्टअप ईकोसिस्टम के विकास में बाधा है। आधुनिक टेक्नोलॉजी स्टार्टअप के लिए सुव्यवस्थित नियम-कायदे होंगे तभी वे तेजी से आगे बढ़ सकेंगे।”

धीरे-धीरे सही, भारत में भी स्टार्टअप्स के लिए फाइनेंशियल ईकोसिस्टम मजबूत हो रहा है। आईएनसी42 (InC42) के अनुसार वर्ष 2022 में 9,500 से ज्यादा निवेशकों ने फंडिंग के विभिन्न राउंड में हिस्सा लिया। इसमें 57% फंडिंग करीब 5,120 एंजेल इनवेस्टर्स की तरफ से और 26.3% फंडिंग वेंचर कैपिटल और प्राइवेट इक्विटी फर्मों की तरफ से थी। 2030 तक एंजेल निवेशकों की संख्या 10 हजार को पार कर जाने की उम्मीद है। तब देश में 1.84 लाख से ज्यादा स्टार्टअप होंगे। डीपीआईआईटी से मान्यताप्राप्त स्टार्टअप्स की संख्या अभी 94,000 से अधिक है। भारतीय निवेशकों के लिए भी यह भारत की ग्रोथ स्टोरी के साथ चलने और नए इनोवेशन को प्रमोट करने का सुनहरा अवसर है।