नई दिल्ली, विवेक तिवारी। पूरी दुनिया में जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ी हैं। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (एफएसआई) की रिपोर्ट के मुताबिक इस साल मार्च के पहले 12 दिनों में जंगल की आग की घटनाओं में 115% की वृद्धि देखी गई है। जंगल की आग पर्यावरण को तो नुकसान पहुंचा ही रही है, इस आग से निकलने वाला धुआं और केमिकल ओजोन की परत को भी क्षति पहुंचा रहा है। साइंस जर्नल नेचर में छपी मैसाचुसेट्स इंस्टीट्य़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के वैज्ञानिकों की एक रिपोर्ट के मुताबिक ये कण रासायनिक प्रतिक्रिया शुरू कर देते हैं जिससे ओजोन की परत को नुकसान पहुंचता है। इस केमिकल रिएक्शन के चलते ओजोन की परत में छेद बनने लगे हैं। डॉक्टर्स के मुताबिक ओजोन की परत में छेद होने से सूरज से आने वाली पराबैंगनी किरणें धरती के वायुमंडल में प्रवेश कर जाती। इससे पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं को नुकसान पहुंचता है। इंसानों में पराबैंगनी किरणों के चलते त्वचा का कैंसर, सांस से संबंधित रोग, अल्सर, मोतियाबिंद जैसी बीमारियां हो सकती हैं।

एमआईटी के शोधकर्ताओं की टीम ने दिसंबर 2019 से जनवरी 2020 के बीच पूर्वी ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग से निकले धुएं पर अध्ययन किया तो पाया कि इस आग के चलते वायुमंडल में 10 लाख टन से भी ज्यादा धुआं पहुंच गया। रिपोर्ट के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया की जंगलों की आग ने ऑस्ट्रेलिया के अलावा न्यूजीलैंड और दक्षिण अमेरिका सहित दक्षिणी अफ्रीका के बड़े हिस्से के ऊपर ओजोन की परत को नुकसान पहुंचाया। धुएं के चलते ओजोन की परत को तीन से पांच फीसदी तक नुकसान पहुंचा। धुएं का असर ध्रुवीय क्षेत्र पर भी देखने को मिला जिससे अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन परत का छेद 25 लाख वर्ग किलोमीटर चौड़ा हो गया था।

ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में 2019-20 में बड़े पैमाने पर आग लगी थी। इस आग ने पूरी दुनिया को चिंता में डाल दिया था। उसका धुआं वायुमंडल की ऊपरी सतह तक पहुंच गया था और दक्षिण अमेरिका तक की हवा की गुणवत्ता प्रभावित हुई। सैटेलाइट डेटा से पता चला है कि इस धुएं ने ऊपरी वायुमंडल की संरचना में भी बदलाव किया है। इसमें ओजोन 2, 3 के समताप मंडल के स्तर में गिरावट भी शामिल है। ओजोन पृथ्वी के चारों ओर एक सुरक्षात्मक परत बनाती है। ये शॉर्ट-वेव पराबैंगनी विकिरण से स्थलीय जीवन को बचाती है। नेचर में प्रकाशित शोध के अनुसार सोलोमन और अन्य 4 वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया कि जंगल की आग के धुएं से निकलने वाले कण समतापमंडलीय ओजोन को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

आईआईटी रुड़की में केमिकल इंजीनियरिंग विभाग में असोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर राम प्रकाश भारती कहते हैं कि ओजोन एक बहुत रिएक्टिव गैस होती है। ये किसी भी अन्य केमिकल के संपर्क में आने पर तेजी से उससे क्रिया कर लेती है। ऐसे में धुएं में मौजूद कार्बन या अन्य प्रदूषक तत्वों के इसके संपर्क में आने पर ओजोन की परत को नुकसान पहुंचेगा। सामान्य तौर पर प्रदूषक कण बड़ी धीमी गति से ओजोन की परत तक पहुंचते हैं ऐसे में उसे बहुत अधिक नुकसान नहीं पहुंचता। लेकिन जंगल की आग जैसी बड़ी घटनाओं के चलते काफी बड़ी मात्रा में धुआं और प्रदूषक तत्व एक साथ ओजोन की परत तक पहुंच जाते हैं जिससे नुकसान ज्यादा होने का खतरा बढ़ जाता है।

सीएसई में वायु प्रदूषण पर लम्बे समय से काम कर रहे विवेक चट्टोपाध्याय बताते हैं कि हवा में मौजूद प्रदूषक कण बहुत धीमी गति से वायुमंडल की ऊपरी सतह तक पहुंचते हैं। ये कण ओजोन के संपर्क में आते ही क्रिया कर जाएंगे क्योंकि ओजोन काफी क्रियाशील गैस होती है। प्रदूषक कण के तौर पर हवा में मौजूद कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड और नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड ओजोन से क्रिया कर उसे नुकसान पहुंचा सकते हैं। पिछले कुछ अध्ययनों में पाया गया कि आग के एरोसोल क्लोरीन वाले पदार्थों से प्रतिक्रिया करते हैं जो क्लोरोफ्लोरो कार्बन के रूप में कारखानों से निकलता है। इनसे क्लोरीन मोनोऑक्साइड नाम का अणु बनता है जो ओजोन की परत को नुकसान पहुंचाता है।

क्लाइमेट चेंज के चलते भारत में बढ़ी जंगलों की आग

भारत में भी जंगलों में आग लगने की घटनाएं पिछले कुछ सालों में काफी तेजी से बढ़ी हैं। भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) की ओर से सेटेलाइट की ओर से ली गई तस्वीरों के अध्ययन में पाया गया कि भारत में मार्च के पहले 12 दिनों में जंगल की आग में 115% की वृद्धि देखी गई है। वैज्ञानिकों के मुताबिक जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ने का प्रमुख कारण फरवरी महीने में बारिश का न होना और तापमान सामान्य से ज्यादा होना है। एफएसआई की ओर से सेटेलाइट के जरिए जंगलों में लगने वाली आग की निगरानी की जाती है। सेटेलाइट से मिले डेटा के मुताबिक 1 मार्च से 12 मार्च के बीच लगभग 42,799 जंगल की आग का पता चला है। यह संख्या पिछले साल 19,929 थी।

कम बारिश ने बढ़ाई मुश्किल 

मौसम विभाग से मिले डेटा के मुताबिक फरवरी में देश में 7.2 मिमी बारिश दर्ज की गई। ये 1901 के बाद से छठी बार ऐसा है कि फरवरी में इतनी कम बारिश दर्ज हुई। मध्य भारत में इस महीने में 99% कम बारिश हुई। यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क के प्रभारी वैज्ञानिक और पर्यावरणविद डॉ. फैयाज खुदसर कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के चलते जंगल में आग की घटनाएं भी बढ़ी हैं। जंगलों में आग लगने की दो बड़ी वजहें हैं। पहली, क्लाइमेट चेंज या जलवायु परिवर्तन के चलते मौसम शुष्क हो रहा है। हवा में नमी कम हो रही है। इस साल फरवरी में काफी गर्मी रही। शुष्क मौसम में जंगल में आग तेजी से लगती है। वहीं दूसरी तरफ जंगलों की वनस्पतियों के साथ छेड़छाड़ भी आग लगने का बड़ा कारण है। पहाड़ों में पहले देवदार के जंगल होते थे। उनकी जगह अब चीड़ के पेड़ों ने ले ली है। चीड़ की पत्तियों में काफी तेजी से आग लगती है। जंगल में दूर दूर तक चीड़ की पत्तियों के बिखरे होने के कारण आग तेजी से दूर तक फैल जाती है। ऐसे में जंगल में आग को रोकने के लिए वहां की स्थानीय पेड़ों को बढ़ाने की जरूरत है।

UV रेज बढ़ा खतरा 

दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन की साइंटिफिक कमेटी के चेयरमैन डॉक्टर नरेंद्र सैनी कहते हैं कि पराबैगनी किरणें हमारी सेहत को कई तरह से नुकसान पहुंचाती हैं। इनका विकरण बढ़ने पर आपकी आंखों को नुकसान पहुंच सकता है। मैलोनोमा और नॉन-मैलोनोमा दोनों प्रकार के कैंसर बढ़ने का कारण यूवी किरणें ही हैं । गर्मियों में  सनबर्न के मामले इन किरणों के कारण बढ़ जाते हैं। ये किरणें पौधों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को भी प्रभावित करती हैं। इन किरणों से बचाव के लिए हमें तेज धूप में बाहर निकलने से बचना चाहिए।सनबर्न से बचाव के लिए मार्केट में कई क्रीम मौजूद हैं उनका इस्तेमाल करना चाहिए।

जंगलों में आग लगने से बचाव के उपाय

  • जंगल के करीबी इलाकों में रहने वाले लोगों को ज्यादा खरपतवार नहीं जलाने चाहिए
  • जंगलों की सीमाओं को साफ रखना चाहिए।
  • प्रभावित क्षेत्र को अलग-अलग खंडों में बाँटना, पर्याप्त पानी का भंडार रखना।
  • वायरलैस के जरिए कर्मचारियों का आपसी संपर्क और सड़क के रास्ते तेजी से पहुँचने वाला आग बुझाने वाला दस्ता जरूरी है।

2020 में एक लाख से अधिक मौतें

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी WHO ने बताया कि वर्ष 2020 में विश्व भर में त्वचा कैंसर के 15 लाख से अधिक मामलों का पता चला। इनमें मैलोनोमा और नॉन-मैलोनोमा दोनों प्रकार के कैंसर हैं। वहीं इसी अवधि में पराबैंगनी विकिरण के चलते दुनिया भर में लगभग 20 हजार लोगों की मौत हुई।

पराबैंगनी विकिरण से बचाव के ये हैं तरीके

  • पराबैंगनी विकिरण से बचाव के लिए दोपहर में सूरज की रौशनी में सीमित समय के लिये ही बाहर निकलें।
  • अगर UV ज्यादा है या त्वचा में जलन महसूस हो रही है तो छाँव की तलाश करें
  • बचाव के लिये टोपी या चश्मा पहनना व सनस्क्रीन (लोशन या क्रीम) का इस्तेमाल करें
  • त्वचा पर सनबर्न जैसे निशान लम्बे समय तक दिखें तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें