नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/विवेक तिवारी। कहते हैं कि छोटे-छोटे प्रयास, बड़े बदलाव लाने की ताकत रखते हैं। इसी की मिसाल है रामगंगा के किनारे स्थानीय किसानों की मदद से कछुआ पालन। यहां नदियों को साफ करने के लिए प्राकृतिक तरीके का इस्तेमाल किया गया जिसकी रंगत अब दिखने लगी है। नदियों के संरक्षण के लिए डब्लूडब्लूएफ की ओर से देश के कई हिस्सों में बड़े पैमाने पर कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसी अभियान के तहत रामगंगा के किनारे स्थानीय लोगों की मदद से विलुप्त हो रही कछुओं की प्रजातियों का संरक्षण किया जा रहा है। इस प्रयास के बेहद सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं। कछुओं के संरक्षण से रामगंगा में भी प्रदूषण के स्तर में कमी आयी है।

नीरज और रंजीत रामगंगा नदी किनारे के किसान थे। वह शाहजहांपुर के गोरा गांव में रहते हैं। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के लोगों ने यहां के गांव वालों से कछुए की प्रजाति के संरक्षण के लिए टर्टल हैचरी यानी कछुए संरक्षित करने के लिए प्रजनन केंद्र स्थापित करने की बात की तो रंजीत और नीरज ने इसमें काफी उत्साह दिखाया। उनकी दिलचस्पी का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि उन्होंने इसके लिए अपनी जमीन देने की भी पेशकश कर डाली। उन्होंने डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के साथ मिलकर पैलेज फील्ड का दौरा किया और 2017 में सफलतापूर्वक आठ घोंसलों में 52 अंडों को तलाश लिया। यही नहीं नीरज और रंजीत के अनुरोध पर गांव वालों ने टर्टल हैचरी स्थापित की। उसके बाद वहां की तस्वीर बदल गई।

बकौल नीरज और रंजीत, 2016 के पहले तक स्थानीय लोगों में कछुओं को बचाने को लेकर कोई जागरूकता नहीं थी। ऐसे में नदी के किनारे खेती के दौरान कुछ कछुओं के अंडे नष्ट हो जाते थे। कुछ लोग यहां कछुओं का अवैध शिकार भी करते थे। लेकिन अब स्थानीय लोगों में काफी जागरूकता है और कछुओं को बचाने के लिए बड़े पैमाने पर काम किया जाता रहा है। वह कहते हैं कि लोग कछुए के संरक्षण को लेकर प्रशिक्षित भी हुए है। मसलन अंडों को किस तरह, किस तापमान पर सहेजा और संरक्षित किया जाए इस बारे में लोगों में जागरुकता आई है जो बदलाव को दिखाता है।

डब्लूडब्लूएफ इंडिया के रिवर बेसिन मैनेजमेंट अभियान के सीनियर क्वाडिनेटर राजेश कुमार बाजपेई बताते हैं कि आखिर कछुए इतने जरूरी क्यों है। वह कहते हैं कि कछुए नदियों में प्राकृतिक सफाई करने वाले जीव होते हैं। नदियों में बह कर आने वाले मृत जीव, शैवाल या अन्य गंदियों को खाकर खत्म कर देते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए गंगा की सहायक नदी रामगंगा के किराने कछुओं के संरक्षण काम शुरू किया गया। इस काम में स्थानीय लोगों की भी मदद ली जा रही है। यहां कछुओं की हैचरी भी बनाई गई है। रामगंगा के किनारे मिलने वाले कछुओं को अंड़ों को यहां लाकर उन्हें हैच किया जाता है। वहीं उनसे बच्चे निकलने के बाद उन्हें वापस नदी में छोड़ दिया जाता है। इन कछुओं में कुछ प्रजातियां ऐसी हैं जिन्हें विलुप्त प्रजातियों के तौर पर चिन्हित किया गया है।