नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। वित्त वर्ष 2023-24 के बजट में डिफेंस सेक्टर के लिए 72.6 अरब डॉलर का प्रावधान किया गया है। यह मौजूदा साल के मुकाबले 13 प्रतिशत ज्यादा है। इसके साथ ही भारत डिफेंस पर तीसरा सबसे ज्यादा खर्च करने वाला देश बन गया है। हाल के वर्षों पर गौर करें तो रक्षा क्षेत्र में भारत में बड़े बदलाव हुए हैं। कुछ माह पहले डिफेंस एक्सपो में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि 21वीं सदी का नया भारत अब न कोई मौका खोएगा और न ही अपनी मेहनत में कोई कमी रखेगा। उन्होंने कहा, ‘‘दशकों से सबसे बड़ा रक्षा आयातक देश अब दुनिया के 75 देशों को रक्षा उपकरण निर्यात कर रहा है।”

सरकार ने लक्ष्य तय किया है कि 2025 तक भारत रक्षा क्षेत्र में 25 बिलियन डॉलर का निर्यात करेगा। इसमें 5 बिलियन डॉलर एयरस्पेस क्षेत्र से जुड़ा है। बीते 5 सालों में रक्षा निर्यात 334 फीसदी बढ़ा है और भारत ने 75 देशों को रक्षा से जुड़ा साजो-सामान भेजा है। साल 2021-22 में भारत ने 12,815 करोड़ रुपये का साजो-सामान दूसरे देशों को बेचा है। भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए दो डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर बनाने का ऐलान किया है। इसमें एक उत्तर प्रदेश में और दूसरा तमिलनाडु में है। सीमा सड़क संगठन (BRO) ने सड़क बनाने में गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है। लद्दाख में 19024 फीट की ऊंचाई पर वाहनों की आवाजाही के लिए इसने एक सड़क बनाई है।

आयात पर निर्भरता बदली

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट SIPRI की रिपोर्ट के मुताबिक 2016 से 2020 के बीच भारत ने 331.8 बिलियन डॉलर का मिलिट्री इंपोर्ट किया। रुपए में यह राशि 26 लाख करोड़ से ज्यादा है। रिपोर्ट कहती है, लम्बे समय तक भारत हथियारों के लिए रूस पर निर्भर रहा है, लेकिन अब उसके पास फ्रांस, रूस, अमेरिका, साउथ कोरिया और इजरायल जैसे देश हैं जिनसे हथियार खरीदे जा रहे हैं। पिछले कुछ सालों में साउथ कोरिया, ब्राजील और साउथ अफ्रीका भी भारत को हथियार सप्लाई करने वाले बड़े देश बनकर उभरे हैं।

लेफ्टिनेंट कर्नल जे.एस. सोढ़ी कहते हैं कि आत्मनिर्भर भारत अभियान सफल हो रहा है। सिपरी के आंकड़े बता रहे हैं कि आयात में 11 फीसद की गिरावट आई है। वह बताते हैं, 2014-15 में जहां 1941 करोड़ रुपये का निर्यात होता था, 2021-22 में यह बढ़कर 16601 करोड़ रुपये हो गया। 2024-25 में इसके 35000 करोड़ रुपये होने की उम्मीद है।

दरअसल, पिछले कुछ वर्षों में रक्षा उद्योग को मिले प्रोत्साहन ने भारत को महत्वपूर्ण निर्यातक बना दिया है। फिलीपींस के साथ अत्यधिक उन्नत ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों की आपूर्ति को लेकर हुए समझौते से भारतीय हथियार उद्योग को बल मिला है।

भविष्य में भारत में बनी पनडुब्बियों या लड़ाकू विमानों के निर्यात सौदे भी हो सकते हैं। इनीशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज (ICET) के तहत अमेरिका की ओर से GE-414 इंजन प्रौद्योगिकी 100 प्रतिशत हस्तांतरित करने का निर्णय भारत के कूटनीतिक प्रयासों का एक उदाहरण है कि किस तरह से उच्च तकनीक को हासिल किया जा सके। इससे भारत को हथियार निर्माण में आत्मनिर्भर बनाने में मदद मिलेगी। इससे उन्नत पांचवीं पीढ़ी की लड़ाकू परियोजना एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (AMCA) को बढ़ावा मिलेगा।

बनाए नए कीर्तिमान

भारतीय रक्षा एवं विकास संगठन (DRDO) ने हाल में कई सफलता हासिल की है। इसने टारपीडो सिस्टम से चलने वाली सुपरसोनिक मिसाइल और नई जेनरेशन की अग्नि-P मिसाइल का सफल परीक्षण किया है। शॉर्ट रेंज की बैलेस्टिक मिसाइल पृथ्वी-2 के जरिए एक छोटे से लक्ष्य को सफलतापूर्वक टारगेट किया गया। मिसाइल के जरिए इतना सटीक निशाना लगाने का सिस्टम अभी तक सिर्फ अमेरिका और चीन जैसे देशों के पास ही था।

लेजर तकनीक पर आधारित स्वदेश निर्मित एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल का सफल परीक्षण करने में भी सफलता मिली है। सर्च और रेस्क्यू के लिए भारत में ही निर्मित एडवांस लाइट हेलीकॉप्टर MK-III को भारतीय नेवी को सौंपा गया। हाई-स्पीड एक्सपेंडेबल एरियल टारगेट (हीट) ‘अभ्यास’ का सफलतापूर्वक परीक्षण करने में सफलता मिली है। यह एक स्वदेशी सिस्टम है। सीमा पर किसी भी गतिविधि पर नजर रखने के लिए CoE-SURVEI तकनीक विकसित की गई है। ये AI आधारित सॉफ्टवेयर पर काम करता है।

2023-24 के बजट में सीमा सड़क संगठन (BRO) का पूंजीगत बजट 43% बढ़ाकर 5,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है। सरकार ने बताया, वित्त वर्ष 2021-22 से दो साल में इसका आवंटन दोगुना हो गया है। इससे सीमावर्ती इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा मिलेगा। सेला सुरंग, नेचिपु सुरंग और सेला-छबरेला सुरंग जैसी रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण जगहों पर निर्माण कार्य हो सकेंगे और सीमा संपर्क भी बढ़ेगा।

निजी क्षेत्र की बढ़ती भागीदारी

सेना को आधुनिक बनाने के लिए डीआरडीओ तेजी से काम कर रहा है। इस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन ने सेना को कई ऐसे हथियार दिए हैं, जिससे दुश्मन का सामना करने में सैन्य बल पहले से कहीं अधिक मजबूत हुआ है। इसमें विजुअल रेंज मिसाइल सिस्टम, 10 मीटर शॉर्ट स्पान ब्रिजिंग सिस्टम, इंडियन मेरिटाइम सिचुएशनल अवेयरनेस सिस्टम, हैवी वेट टॉरपीडो, बॉर्डर सर्विलांस सिस्टम और अर्जुन MK-1A शामिल हैं।

इतना ही नहीं, DRDO और प्राइवेट संस्थान सेना से जुड़े कई सिस्टम मिलकर तैयार कर रहे हैं। दोनों ने मिलकर पिछले एक साल में कई तरह के आधुनिक हथियार विकसित किए हैं। इनमें एडवांस टॉउड आर्टिलरी गन सिस्टम, एक्सटेंडेड रेंज पिनाका सिस्टम और गाइडेड पिनाका रॉकेट सिस्टम शामिल हैं। लेफ्टिनेंट कर्नल जे. एस. सोढ़ी कहते हैं कि अगले कुछ वर्षों में भारत ने तीनों सेनाओं को आधुनिक हथियारों से लैस करने का लक्ष्य रखा है। इसके साथ मेक इन इंडिया के तहत रक्षा उत्पादन में देश को आत्मनिर्भर भी बनाने का मिशन है। मौजूदा समय में देश रक्षा उपकरणों के निर्यात के मामले में शीर्ष 20 देशों में आ चुका है।

सोढ़ी कहते हैं कि वर्तमान में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार का फोकस भारत को डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना है। साथ ही यह सुनिश्चित करना भी है कि भविष्य में भारत खुद एक बड़ा रक्षा निर्यातक बने। सोढ़ी के अनुसार IANS विक्रांत देश में बना एयरक्राफ्ट करियर है। यह वास्तव में गर्व की बात है कि भारत दुनिया के उन चंद देशों में शुमार है जो यह एयरक्राफ्ट बना चुका है।

डिफेंस स्टार्टअप और ड्रोन हब बनने की तैयारी

भारत के पास लगभग 200 डिफेंस टेक स्टार्टअप हैं जो देश के रक्षा प्रयासों को सशक्त बनाने के लिए नवीन तकनीकी समाधान का निर्माण कर रहे हैं। यहां ड्रोन इंडस्ट्री भी तेजी से बढ़ रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ड्रोन इंडस्ट्री 2027 तक तीन गुना हो जाएगी, जो अभी 2.1 बिलियन डॉलर की है। सरकार का लक्ष्य 2030 तक वैश्विक ड्रोन हब बनने का है।

नेवी जो ड्रोन इस्तेमाल कर रही है उसे पुणे की कंपनी सागर डिफेंस इंजीनियरिंग ने बनाया है। कंपनी के को फाउंडर मृदुल कहते हैं कि भारतीय नेवी जिस ड्रोन का इस्तेमाल कर रही है वो एक व्यक्ति को या लगभग 130 किलो सामान एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में सक्षम है। समुद्र में सबसे मुश्किल होता है कि एक शिप से दूसरे शिप पर सामान भेजना। इसके लिए दोनों को एक रफ्तार पर चलाना होता है। इसके बाद रस्सी बांध कर सामान को एक शिप से दूसरे शिप पर भेजा जाता है। ड्रोन के जरिए यह काम आसानी से हो सकता है। मेडिकल इमरजेंसी में भी इस ड्रोन का इस्तेमाल किया जा सकेगा। मृदुल के अनुसार जल्द ही इस ड्रोन का इस्तेमाल अर्बन ट्रांसपोर्ट के लिए किया जा सकेगा।

डिफेंस कॉरिडोर से मिलेगी गति

डिफेंस कॉरिडोर सरकार की एक महत्वाकांक्षी परियोजना है। यह एक रूट होता है, जिसमें कई शहर शामिल होते हैं। इन शहरों में सेना के साजो-सामान के निर्माण के लिए इंडस्ट्री विकसित की जाती है। इस कॉरिडोर में पब्लिक सेक्टर और प्राइवेट सेक्टर की कंपनियां हिस्सा लेंगी। रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में डिफेंस कॉरिडोर का खासा महत्व है। अंतरराष्ट्रीय स्तर के डिफेंस प्रोडक्ट और हथियारों का उत्पादन होने के साथ ही इन डिफेंस कॉरिडोर से क्षेत्रीय उद्योगों का विकास होगा और नए रोजगार का मौका बनेगा। वित्त मंत्री ने 2018-19 के बजट भाषण में देश में दो डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर बनाए जाने की घोषणा की थी। इनमें से पहला तमिलनाडु के पांच और दूसरा उत्तर प्रदेश के छह शहरों में बन रहा है।

लड़ाकू विमान, पनडुब्बी खरीद पर विशेष ध्यान

भारत सरकार ने सेना के लिए लड़ाकू विमान, पनडुब्बी और टैंक सहित प्रमुख हथियारों की खरीद पर भी विशेष ध्यान दिया है। पिछले साल के 5.25 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले इस साल का डिफेंस बजट 5.94 लाख करोड़ रुपये का है। पिछले साल के मुकाबले, सैन्य आधुनिकीकरण बजट भी 1.52 लाख करोड़ रुपये से बढ़ाकर 1.62 लाख करोड़ रुपये किया गया है। आधुनिकीकरण कोष में पिछले साल के मुकाबले 6.5 फीसदी ज्यादा बजट दिया गया है।

दुश्मन को घर में घुसकर दिखाई औकात

2016 में सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 में पुलवामा आतंकी हमले के बाद वायुसेना ने पाकिस्तान में घुसकर बालाकोट में चल रहे आतंक की फैक्ट्री को तबाह कर दिया। इन सभी युद्ध में भारत की तीनों सेना ने अद्भुत पराक्रम का परिचय दिया है। भारतीय की तीनों सेनाओं की सबसे बड़ी खासियत है कि ये अपने शौर्य और पराक्रम के लिये ही नहीं बल्कि अनुशासन के लिये भी जानी जाती हैं।

मेजर जनरल ( रिटायर्ड) पी के सहगल कहते हैं कि चार युद्ध तो भारत ने जीता। आतंकवादियों के खिलाफ भी काफी लड़ाई लड़ी और मुंहतोड़ जवाब दिया। बालाकोट स्ट्राइक या सर्जिकल स्ट्राइक में दुनिया ने हमारा लोहा माना। चाहे बाढ़ या भूकंप हो या कोई भी आपदा, उसमें सेना ने जबरदस्त काम किया। उत्तराखंड में एक लाख लोगों को सेना ने बचाकर बाहर निकाला। लेफ्टिनेंट जनरल मोहन भंडारी कहते हैं कि विश्व में भारत की संभवत: पहली ऐसी सेना होगी जिसने चंद घंटों में दुश्मन के चंगुल से कश्मीर को बाहर निकाला। सेना ने हर पल-हर जगह रक्षा की है। सेनाएं भारत का गौरव हैं।

सामरिक नेतृत्व हुआ मजबूत

लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) मोहन भंडारी कहते हैं कि अगर आधुनिक हथियारों की बात करें तो हर सेना में जरूरत और स्थिति को ध्यान में रखते हुए आधुनिक हथियार मंगाए ही जाते हैं, लेकिन हमेशा हथियार ही जीत की गारंटी नहीं होते हैं। पिछले कुछ समय में भारत का सामरिक नेतृत्व काफी मजबूत हुआ है। 2023 में इसके और बेहतर परिणाम देखने को मिलेंगे। चीन हो या पाकिस्तान या अन्य देश, कोई भी आज भारत को आंख दिखाने की हिम्मत नहीं करेगा।

मेजर जनरल पी.के.सहगल कहते हैं कि भारतीय सेना ने आतंकवाद से बखूबी मुकाबला किया है। इससे आतंकवादियों के हौसले पस्त हुए हैं। वैश्विक पटल पर इसकी काफी तारीफ हुई है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी भारतीय सेना के आतंकवाद से लड़ने के पराक्रम को सराहा है।

सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल मोहन भंडारी कहते हैं कि पाकिस्तान भारत की क्षमताओं के आगे कहीं टिकता ही नहीं है। वहीं चीन की बात करें तो भारतीय सेना का आत्मविश्वास और राष्ट्रप्रेम चीन की सेना से ऊपर है। गलवान घाटी में भारत और चीन की सेनाओं के बीच बढ़े विवाद के बाद आज चीन के लिए हालात काफी मुश्किल हो चुके हैं। हमारे 60 हजार जवान आज भी वहां मोर्चा संभाले हुए हैं। रही बात चीन की बड़ी सेना की, तो आज के समय में युद्ध बड़ी सेना से नहीं बल्कि बेहतर रणनीति, आधुनिक तकनीक और आत्मविश्वास से लड़े जाते हैं। चीन की तुलना में भारत के पास युद्ध लड़ने का अनुभव कहीं अधिक है।