नई दिल्ली, विवेक तिवारी । भारतीय रेलवे को देश की अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण पिलर के तौर पर देखा जाता है। इसलिए कुछ समय पहले तक रेलवे का अलग से बजट आता था। रेल बजट को आम बजट में शामिल करने के पीछे उद्देश्य यही था कि रेलवे की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए इसे ज्यादा पैसा दिया जा सके। एक्सपर्ट्स का मानना है कि वित्त वर्ष 2023-24 के बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण रेल इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए 2022 की तुलना में ज्यादा पैसा दे सकती हैं।

इस बार बजट में रेलवे को 20 फीसदी अधिक राशि मिलने की उम्मीद है। 2022-23 के बजट में रेलवे को 1,40,367.13 करोड़ रुपए अलॉट हुए थे। रेलवे की ओर से इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए इस बार बजट में 20-25 फीसदी वृद्धि की मांग की गई है। बजट में ज्यादा वंदे भारत ट्रेनें चलाने, नए ट्रैक, रेलवे स्टेशनों को विश्वस्तरीय बनाने, ट्रेनों की स्पीड बढ़ाने के लिए ट्रैक बेहतर बनाने और 2030 तक रेलवे को कार्बन मुक्त या ग्रीन रेलवे बनाने के लिए हाइड्रोजन ट्रेन जैसी घोषणाएं हो सकती हैं। रेलवे की जरूरतों और बजट से उम्मीदों पर जागरण प्राइम ने देश के कई बड़े एक्सपर्ट से बात की। इनमें डीएफसीसी के पूर्व चेयरमैन एके सचान, आईसीएफ के पूर्व जीएम और वंदे भारत ट्रेन बनाने में मुख्य भूमिका निभाने वाले सुधांशु मणी, रेलवे बोर्ड में एडिशनल मेम्बर रहे विजय दत्त और रेलवे में सिग्नलिंग के वरिष्ठ अधिकारी रहे आरबी प्रसाद से बात की।

रेलवे की कई बड़ी योजनाएं

पिछले बजट में वित्त मंत्री ने राष्ट्रीय रेल योजना 2030 का ऐलान किया था। इस योजना के तहत रेलवे के विकास का प्लान तैयार किया गया। इसमें रेलवे को विश्वस्तरीय बनाने के लिए काम किया जाना है। इसके लिए केंद्र ने एक लाख करोड़ रुपये निवेश करने की बात की थी। दिसंबर 2023 तक रेलवे की ब्रॉडगेज लाइनों का 100 फीसदी विद्युतीकरण पूरा करने का भी लक्ष्य रखा गया है। भारतीय रेल को 2030 तक दुनिया की पहली 100 फीसदी ग्रीन रेल सेवा बनाने की योजना पर भी काम किया जा रहा है। इस योजना के तहत रेल गाड़ियों की औसत स्पीड भी बढ़ाई जानी है। राष्ट्रीय रेल योजना के हिस्से के रूप में, 2024 तक कुछ महत्वपूर्ण योजनाओं को तेजी से पूरा करने के लिए विजन 2024 भी शुरू किया गया है। इसमें 100% विद्युतीकरण, भीड़भाड़ वाले मार्गों पर बहु रेल-पथ (मल्टी-ट्रैकिंग), दिल्ली-हावड़ा एवं दिल्ली-मुंबई रूट पर 160 किमी प्रति घंटे की स्पीड तक ट्रेनें चलाना, सभी ट्रैक पर ट्रेनों की स्पीड को 130 किमी प्रति घंटे तक अपग्रेड करना शामिल हैं। डेडिकेटेड फ्रेट कॉरीडोर कॉर्पोरेशन के एमडी रहे एके सचान कहते हैं कि सरकार का पूरा जोर रेलवे के इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना है। इसके लिए सरकार इस बार बजट में फ्रेट कॉरीडोर के लिए खास तौर पर सी पोर्ट को जोड़ने वाली रेलवे लाइनों के लिए ज्यादा बजट दे सकती है। वहीं गति शक्ति योजना के तहत देश भर में कार्गो टर्मिनल विकसित किए जाने हैं इसके लिए भी बजट में पैसा मिलेगा।

इन्फ्रास्ट्रक्चर पर निवेश बढ़ाना होगा

रेलवे बोर्ड में एडिशनल मेम्बर रहे विजय दत्त कहते हैं कि देश में 1950 में सिर्फ 20 फीसदी माल सड़कों के जरिए ले जाया जाता था। बाकी माल रेलवे से जाता था। आज मात्र 27 फीसदी माल ही रेलवे के जरिए भेजा जा रहा है। सरकार का लक्ष्य है कि राष्ट्रीय रेल योजना के तहत 2030 तक 45 फीसदी माल का परिवहन रेलवे के जरिए करना है। रेलवे से माल का परिवहन किया जाना सस्ता भी है और पर्यावरण के लिहाज से भी बेहतर है। इसके लिए बड़े पैमाने पर रेल इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश करना होगा।

चीन में 1973 तक सिर्फ 45000 किलोमीटर रेलवे लाइन थी, उस समय भारत में 65000 किलोमीटर रेल लाइन थी। लेकिन आज भारत में जहां लगभग 70 हजार किलोमीटर रेल लाइन है, वहीं चीन अपना रेल नेटवर्क 1.21 लाख किलोमीटर तक बढ़ा चुका है। हमें तेजी से आर्थिक विकास करने के लिए जरूरी है कि रेलवे के इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश बढ़ाया जाए और इस बार बजट में भी सरकार भी इसी दिशा में कदम उठाएगी। भारत सरकार की प्राथमिकता 2030 तक ग्रीन रेलवे बनाने की है। ऐसे में आपको बजट में हाइड्रोजन ट्रेन, रेल लाइनों के विद्युतीकरण सहित इस दिशा में कई कदम दिखाई देंगे।

स्लीपर वाली वंदे भारत ट्रेनों का हो सकता है ऐलान

रेलवे अगले 5 सालों में 500 से अधिक वंदे भारत ट्रेनें चलाने की योजना पर काम कर रही है। हर साल लगभग 100 वंदे भारत ट्रेनें चलाने का प्रयास किया जा रहा है। इसको ध्यान में रखते हुए इन ट्रेनों को बड़ी संख्या में बनाने के लिए रेलवे की ओर से बजट में प्रावधान किए जाएंगे। रेलवे के मुताबिक आईसीएफ सहित कई कंपनियों ने इन ट्रेनों को बनाने में दिलचस्पी दिखाई है। इस बार बजट में वित्त मंत्री स्लीपर डिब्बों वाली वंदे भारत ट्रेन चलाने का ऐलान कर सकती हैं। इससे ट्रेनें लम्बी दूरी तक चलाई जा सकती हैं। इन ट्रेनों को पहले से चल रही राजधानी ट्रेनों वाले रूट पर भी चलाया जा सकता है। इस ट्रेन के डिब्बे एल्युमिनियम के बने होंगे और इसे अधिकतम 220 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलाने के लिए डिजाइन किया जा सकता है।

आईसीएफ के पूर्व जीएम और वंदे भारत ट्रेन को बनाने में मुख्य भूमिका निभाने वाले सुधांशु मणी कहते हैं कि सरकार को वंदे भारत ट्रेनें बनाने के साथ ही इसको पूरी क्षमता से चलाने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित करने की जरूरत है। इन ट्रेनों को फिलहाल 130 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड पर चलाया जा रहा है जबकि इन्हें 160 किलोमीटर प्रति घंटा तक की स्पीड पर चलाया जा सकता है। इसलिए सरकार को ट्रैक अपग्रेडेशन पर जोर देना चाहिए। दिल्ली से मुंबई और दिल्ली से हावड़ा रूट पर पहले ही 160 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड से ट्रेन चलाने के लिए ट्रैक अपग्रेडेशन का काम चल रहा है। ट्रेनों की स्पीड बढ़ाने या हाई स्पीड ट्रेनें चलाने के लिए जरूरी है कि देशभर के ट्रैक पर जल्द से जल्द कवच को पूरी तरह से लगाया जाए। दरअसल कवच देश में डेवलप किया गया ऑटोमेटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम है। इससे अगर एक ही ट्रैक पर दो ट्रेनें आमने सामने हों तो कवच टेक्नोलॉजी ट्रेन की स्पीड कम कर इंजन में ब्रेक लगाती है। इससे दोनों ट्रेनें टकराने से बच जाएंगी।

स्पीड बढ़ाने के लिए उठाए जाएंगे कदम

भारतीय रेलवे ट्रेनों की स्पीड बढ़ाने के लिए ट्रैक अपग्रेड करने के साथ ही कई अन्य प्रयास कर रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस बजट में सिग्नलिंग सिस्टम का लेकर भी कुछ ऐलान हो सकता है। रेलवे में सिग्नलिंग के वरिष्ठ अधिकारी रहे आरबी प्रसाद कहते हैं कि भारतीय रेलवे को ट्रेनों की स्पीड बढ़ाने के लिए जल्द से जल्द पूरे देश में ट्रेन प्रोजेक्शन वार्निंग सिस्टम लगाना होगा। ये यूरोपियन ट्रेन कंट्रोल सिस्टम (1) का हिस्सा है। रेलवे के सिग्नलिंग सिस्टम को अपग्रेड करके अगर यूरोपियन ट्रेन कंट्रोल सिस्टम (2) तक ले जाया जाए तो कोहरे के दौरान भी ट्रेनों को सामान्य तरीके से चलाया जा सकेगा। वहीं, रेलवे को जिन भी रूटों पर सेमी या हाई स्पीड ट्रेनें चलानी हैं उन पर ट्रैक के दोनों तरफ बाउंड्री वॉल बनानी होगी। ट्रैक पर जानवर आने से हादसे का खतरा रहता है। ज्यादा स्पीड पर हादसा होने पर ट्रेन पटरी से उतर सकती है।

फ्रेट कॉरीडोर पर होगा जोर

भारतीय रेलवे अपने माल भाड़ा कारोबार को बढ़ाने के लिए फ्रेट कॉरिडोर को तेजी से पूरा करने में लगी है। इसका काफी काम हो भी चुका है। करीब 2,330 किलोमीटर का पूर्व-पश्चिम कॉरिडोर (कोलकाता-मुम्‍बई), करीब 2,343 किलोमीटर का उत्तर-दक्षिण कॉरिडोर (दिल्‍ली-चेन्‍नई) बन रहा है। वहीं , 1100 किलोमीटर का पूर्व तटीय कॉरिडोर (खड़गपुर-विजयवाड़ा) और लगभग 899 किलोमीटर का दक्षिणी कॉरिडोर (चेन्नई-गोवा) बनाया जाना है।