एस.के. सिंह, नई दिल्ली। इस बार बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कृषि क्षेत्र में स्टार्टअप को प्रोत्साहित करने के लिए ‘एग्रीकल्चर एक्सलरेटर फंड’ बनाने की घोषणा की। इसका मकसद है कि गांवों के युवा उद्यमी बनें और किसानों की समस्याओं का इनोवेटिव और सस्ता समाधान लेकर आएं। खेती में आधुनिक टेक्नोलॉजी आएगी तो फसलों की पैदावार के साथ किसानों की आय भी बढ़ेगी।

बीते-चार पांच वर्षों में कृषि क्षेत्र में अनेक स्टार्टअप आए। आर्य.एजी और बायोप्राइम जैसे कुछ एग्री-स्टार्टअप बड़े पैमाने पर सफल भी हुए हैं। उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग (DPIIT) के अनुसार 30 नवंबर तक देश में 84,012 मान्यता प्राप्त स्टार्टअप थे। लेकिन दुनिया में स्टार्टअप की विफलता की दर लगभग 90 प्रतिशत है। 10 प्रतिशत तो पहले साल ही बंद हो जाते हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार जो युवा सरकार की घोषणा के बाद एग्री-स्टार्टअप शुरू करने की सोच रहे हैं, उन्हें कुछ बातों का विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिए। जैसे, किन क्षेत्रों में उनके लिए काम करने की गुंजाइश अधिक है, प्रोडक्ट बनाते समय किन पहलुओं का ध्यान रखना चाहिए, स्टार्टअप शुरू करने के बाद उसकी सस्टेनेबिलिटी के लिए क्या करना चाहिए, क्या करें जिससे उनके लिए फंडिंग आसान हो। जागरण प्राइम ने देश के कुछ बड़े स्टार्टअप के साथ बात करके इन सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की है।

नए स्टार्टअप के लिए कहां हैं मौके

देश के सबसे बड़े एग्रीटेक स्टार्टअप में से एक आर्य.एजी के सह-संस्थापक प्रसन्ना राव जागरण प्राइम से कहते हैं, “एग्रीटेक ईकोसिस्टम में स्टार्टअप के लिए तीन तरह के लिंकेज (क्षेत्र) हैं। कुछ स्टार्टअप इनपुट के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। वे टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से खेती के तौर-तरीके में बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं। ड्रोन, सेंसर आदि के प्रयोग से खेती में एफिशिएंसी बढ़ रही है। दूसरा, एग्रीटेक स्टार्टअप फाइनेंस तक किसानों की पहुंच आसान बना रहे हैं। फाइनेंशियल लिंकेज लाने वाले इन स्टार्टअप को हम एग्री फिनटेक कह सकते हैं। तीसरा और अंत में मार्केट लिंकेज आता है। इसमें उपज को बाजार तक ले जाना होता है।”

इन क्षेत्रों में नई संभावनाओं पर वे कहते हैं, “स्थानीय स्तर पर उभरने वाले उद्यमी उपज को बाजार तक पहुंचाने में बेहतर काम कर सकते हैं। इससे पारदर्शिता आएगी, बड़ा और बेहतर ईकोसिस्टम तैयार होगा। स्थानीय होने के कारण उनके लिए किसानों से जुड़ना आसान होगा, इसलिए वे उपज की क्वालिटी और सस्टेनेबिलिटी में भी सुधार कर सकते हैं।”

राव एग्री लॉजिस्टिक्स को भी बड़ी संभावनाओं वाला क्षेत्र मानते हैं। वे कहते हैं, “ग्रामीण क्षेत्र में लॉजिस्टिक्स और ट्रांसपोर्टेशन की बड़ी समस्या है। कुछ स्टार्टअप ने इस दिशा में प्रयास किए हैं, लेकिन अभी तक बड़ी कामयाबी किसी ने नहीं हासिल की है। मेरे विचार से इसमें वही व्यक्ति सफल हो सकता है जो ईकोसिस्टम में पूरी तरह रमा हुआ हो और ग्रामीण बाजार की हर हकीकत से वाकिफ हो।”

हार्वेस्टो ग्रुप के डायरेक्टर हर्ष दहिया के अनुसार फर्टिलाइजर और अन्य केमिकल जैसे इनपुट को छोड़ दें (इनमें पहले से बड़ी कंपनियां मौजूद हैं) तो प्री-प्रोडक्शन से लेकर पोस्ट-प्रोडक्शन तक खेती में अभी हर जगह अवसर हैं। अपना उदाहरण देते हुए वे कहते हैं, “प्री-प्रोडक्शन में मिट्टी की टेस्टिंग में भी गुंजाइश है। हम भी इस बिजनेस में हैं। सरकार के साथ मिलकर हमने गांव स्तर पर 1000 से अधिक माइक्रो आंत्रप्रेन्योर बनाए हैं। हमने युवाओं और महिलाओं को मिट्टी टेस्टिंग लैब शुरू करने में मदद की। उनकी लैब में किसान आकर अपनी मिट्टी की जांच करा सकते हैं। इससे उद्यमी को तो आमदनी होती ही है, किसानों का खर्चा भी पहले की तुलना में करीब दो हजार रुपये कम आता है।” दहिया के मुताबिक 10वीं-12वीं पास किसान भी यह काम शुरू कर सकते हैं।

उन्होंने बताया कि पोस्ट प्रोडक्शन में भी काफी काम किया जा सकता है। जैसे, प्याज किसानों की समस्याएं हर साल सुनने को मिलती हैं। कोई स्टार्टअप छोटे स्तर पर उनके स्टोरेज का काम शुरू कर सकता है। हार्वेस्टो मिट्टी की डिजिटल जांच का किट और एग्री-लैब उपकरण बनाती है। यह अपने प्रोडक्ट 40 देशों को निर्यात भी करती है।

क्वालिटी पर फोकस कर सकते हैं स्टार्टअप

बेंगलुरू स्थित एग्री स्टार्टअप ‘फाइलो’ के सह-संस्थापक सुधांशु राय संभावनाओं को किसानों की मूलभूत समस्या से जोड़कर देखते हैं। उनका कहना है, खेती की जमीन होने के बावजूद आज युवा 10 से 15 हजार रुपयो की नौकरी करना पसंद करते हैं, क्योंकि उन्हें मालूम है कि नौकरी में हर महीने पैसे आते रहेंगे जबकि खेती में आमदनी निश्चित नहीं होती है। फसल अच्छी हुई और दाम अच्छे मिले तब तो आमदनी भी अच्छी होगी, वर्ना नुकसान भी उठाना पड़ता है। वे कहते हैं, “खेती में आय निश्चित होगी तभी युवा इसमें आएंगे। इसलिए स्टार्टअप को ऐसे प्रोडक्ट पर काम करना चाहिए जिनसे किसानों की आय सुनिश्चित हो सके।”

राय के मुताबिक किसानों के लिए दाम से ज्यादा बड़ी समस्या उत्पादकता और क्वालिटी की है। उत्पादकता और क्वालिटी में निरंतरता आए तो नए युवा भी खेती की तरफ आकर्षित होंगे। हाल में खेती में टेक्नोलॉजी का प्रयोग बढ़ने के कारण ही अनेक जगहों पर युवा इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद खेती में आ रहे हैं। वे उपज की उत्पादकता और क्वालिटी भी सुनिश्चित करते हैं।

फाइलो ने ऐसा डिवाइस तैयार किया है जो मिट्टी में नमी, तापमान, पोषण आदि बताती है। तापमान, आर्द्रता, पत्तों पर ओस का वजन जैसे 40 तरह के फैक्टर के आधार पर यह डिवाइस किसानों को बताती है कि फसल में कब और कितना खाद या पानी देना है। अगर पौधों पर कीटों के हमले की आशंका होती है तो यह उसकी चेतावनी भी समय रहते किसानों को दे देती है और यह भी बताती है कि उनके लिए कौन सा कीटनाशक सबसे फायदेमंद होगा। बुवाई के बाद तेज बारिश हो जाए तो किसान का बीज तथा बुवाई का खर्च बर्बाद हो जाता है। फाइलो का डिवाइस बताता है कि बारिश की संभावना को देखते हुए कब बुवाई करना उचित होगा।

नई संभावनाओं के बारे में राय बताते हैं, “किसानों के लिए मार्केट इंटेलिजेंस बहुत जरूरी है। अगर उन्हें पता चल जाए कि किस समय फसल काटकर मंडी में ले जाने पर उन्हें अच्छी कीमत मिलेगी, तो इससे उन्हें काफी मदद मिलेगी। फसल को 10 दिन बाद बाजार में लेकर जाना है तो तब तक उसे कैसे रखना है, स्टार्टअप इसका सॉल्यूशन भी बता सकते हैं।”

निर्यात बढ़ाने पर भी कर सकते हैं काम

पांच साल पुराने एग्री-स्टार्टअप एरोगेनिक्स के संस्थापक आदित्य भल्ला के अनुसार किसान के खेत से लेकर आम आदमी के प्लेट तक पूरी फूड सप्लाई चेन में स्टार्टअप के लिए काम करने के बहुत मौके हैं। निर्यात की बात करते हुए वे कहते हैं, “खाद्य पदार्थ की ट्रेसेबिलिटी भी एक सेगमेंट है। किसी फसल को कहां उगाया गया, उसमें कितने कीटनाशकों का इस्तेमाल हुआ, उसे ट्रांसपोर्ट करके कहां ले जाया गया, कहां रखा गया, किस डीलर ने उसे खरीदा, यह सब जानकारी उसमें होती है। विदेशी खरीदार इन सब बातों पर गौर करते हैं। मसलन, वे देखते हैं कि कौन सा कीटनाशक इस्तेमाल हुआ है, उपज को किस तापमान पर स्टोर किया गया। इस तरह ट्रेसेबिलिटी बढ़ने पर किसान भी बेहतर कीमत की मांग कर सकते हैं। भल्ला के अनुसार, निर्यात के लिए किसानों की दक्षता बढ़ाने और क्वालिटी मेंटेन करने की जरूरत है।

एरोगेनिक्स की विशेषज्ञता हाइड्रोपोनिक्स में है। इसमें मिट्टी के बजाय पानी में आवश्यक तत्व मिलाकर उसमें पौधे उगाए जाते हैं। भल्ला के मुताबिक, हमने 2017-18 में जब इसे शुरू किया तो चाहते थे कि लोग घर पर ही कुछ चीजें उगा सकें। इसके लिए बड़े खेत की जरूरत नहीं, छोटी जगह पर भी वर्टिकल फार्मिंग कर सकते हैं। सलाद जैसी चीजें आप घर पर ही उगा सकते हैं। यह कंपनी आईएआरआई और किसान विकास केंद्र जैसी सरकारी संस्थाओं के साथ मिलकर रिसर्च कर रही है कि इस प्रोसेस को कैसे आगे बढ़ाया जाए। एरोगेनिक्स अभी शहरी इलाकों में घरों में हाइड्रोपोनिक सेटअप लगाती है।

नए रास्तों के बारे में भल्ला बताते हैं, “जियो सेंसिंग सैटेलाइट के माध्यम से पता लगाया जा सकता है कि कौन सा इलाका किस फसल के लिए ज्यादा मुफीद है। इससे किसान की जमीन का बेहतर इस्तेमाल होगा और उसकी आमदनी भी बढ़ेगी। सेंसर आधारित सिंचाई, उर्वरक छिड़काव पर भी कंपनियां काम कर रही हैं। ड्रोन और ऑटोमेशन से किसानों की लागत कम की जा सकती है।” उदाहरण के लिए, किसान ने खेत में कीटनाशक डाले और तीन-चार दिन बाद बारिश हो गई तो उसे दोबारा कीटनाशक का छिड़काव करना पड़ सकता है। अगर किसान को पहले पता चले जाए कि बारिश होने वाली है तो वह बाद में छिड़काव करेगा।

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स्टार्टअप की सस्टेनेबिलिटी के लिए जरूरी बातें

आर्य.एजी के प्रसन्ना राव कहते हैं, “सफलता के लिए सबसे पहले लागत पर ध्यान देना पड़ेगा। एक रुपया कमाने के लिए हम दो रुपये खर्च नहीं कर सकते। एक रुपया से कम खर्च होगा तभी वह मॉडल सस्टेनेबल होगा। इसके लिए एफिशिएंसी जरूरी है। दूसरा, अगर आप किसी समस्या का समाधान लेकर आए हैं तो उसका स्केल तेजी से बढ़ाना पड़ेगा।”

बायोप्राइम एग्रीसॉल्यूशंस प्रा.लि. की सह-संस्थापक और पुणे यूनिवर्सिटी से प्लांट साइंस में पीएचडी डॉ. रेणुका दीवान एक महत्वपूर्ण सुझाव देती हैं, “स्टार्टअप ने कोई सॉल्यूशन तैयार किया है तो वैलिडेशन के लिए किसानों के पास जाना पड़ेगा। भारत भौगोलिक विषमता वाला देश है, इसलिए किसी एक जगह ट्रायल करके हम अंतिम नतीजे पर नहीं पहुंच सकते। स्टार्टअप को किसान विकास केंद्र (KVK) या एफपीओ (FPO) के माध्यम से अलग-अलग क्षेत्रों में किसानों के पास जाना चाहिए। इससे स्टार्टअप को नए आइडिया मिलेंगे, यह भी समझ में आएगा कि उनकी यूएसपी क्या है।” बायोप्राइम खेती में इस्तेमाल होने वाले कई तरह के प्रोडक्ट बनाती है। यह डीआईपीपी से मान्यताप्राप्त स्टार्टअप है।

वैलिडेशन के बाद स्केल बढ़ाने का स्टेज आता है। डॉ. दीवान के अनुसार यह सिर्फ स्टार्टअप और सरकार के भरोसे नहीं होगा, इसके लिए इंडस्ट्री को शामिल करना जरूरी है। स्टार्टअप ने अपनी टेक्नोलॉजी तो साबित कर दी, अब इंडस्ट्री उसके साथ जुड़े तो स्टार्टअप और इंडस्ट्री के साथ कृषि क्षेत्र को भी बहुत बड़ा फायदा होगा। वे कहती हैं, “ये दोनों बातें महत्वपूर्ण हैं। स्टार्टअप को निवेश योग्य बनाने के लिए ये जरूरी हैं।”

डॉ. दीवान के अनुसार इस स्टेज के बाद का समय भी काफी महत्वपूर्ण होता है। तब तक स्टार्टअप ग्रांट की अवस्था पार कर चुका होता है और उसके सामने वर्किंग कैपिटल की समस्या आने लगती है। रेवेन्यू इतना नहीं होता कि बैंक से कर्ज ले सके। वे कहती हैं, “इस चरण में आने के बाद स्टार्टअप के विफल होने की गुंजाइश बहुत कम रह जाती है। अतः कमर्शियलाइजेशन के लिए सरकार को कम ब्याज पर कर्ज उपलब्ध कराने की व्यवस्था करनी चाहिए।”

हार्वेस्टो के हर्ष दहिया कहते हैं, “किसी भी बिजनेस की सफलता के लिए ‘तीन पी’ महत्वपूर्ण होते हैं- प्रोडक्ट, प्रोसेस और पीपुल। आपके पास ऐसा प्रोडक्ट होना चाहिए जिसे आप बेच सकें, आपके पास ऐसे लोग हों जो आइडिया पर अमल कर सकें और आपका प्रोसेस अच्छा होना चाहिए।”

फंडिंग के लिए महत्वपूर्ण तीन तथ्य

अभी तक तीन सीरीज में लगभग 7.5 करोड़ डॉलर (लगभग 600 करोड़ रुपये) जुटाने वाली आर्य.एजी के प्रसन्ना राव के मुताबिक, “इन्वेस्टर तीन बातों पर ध्यान देते हैं। पहला है यूनिट इकोनॉमिक्स, यह सबसे महत्वपूर्ण होता है। यूनिट इकोनॉमिक्स का मतलब है कि आप पैसा कैसे बनाएंगे। दूसरा, आप जो सॉल्यूशन लेकर आए हैं वह कितनी बड़ी समस्या का समाधान है। अगर आपका प्रोडक्ट कम लोगों को समाधान मुहैया कराता है तो निवेशक उसमें रुचि नहीं लेंगे। आपके प्रोडक्ट का बाजार बड़ा होना चाहिए। तीसरा, रणनीति पर अमल करने का तरीका भी सही होना चाहिए।”

खेती के प्रति बदल रहा है नजरिया

किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले दहिया किसानों की तीन समस्याओं को प्रमुख मानते हैं। वे कहते हैं, पहली समस्या है छोटी जोत, खेत छोटे होते जा रहे हैं और परिवार बड़े। इन किसानों के लिए खेती आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं रह गई है। दूसरी, हम खेती को इमोशन से जोड़कर देखते हैं। लोग यह मानकर चलते हैं कि हमारे पुरखों ने खेती की है तो हम भी करेंगे। वे यह नहीं देखते कि इससे उन्हें फायदा हो रहा है या नहीं। तीसरी समस्या खेती पर अत्यधिक निर्भरता है। टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कम होता है और जरूरत से ज्यादा लोग इस क्षेत्र में काम करते हैं। आज भी 50% कामगार वर्ग खेती में लगा हुआ है। इसका समाधान कोऑपरेटिव फार्मिंग है, जो फिलहाल संभव नहीं दिखता। दहिया के अनुसार, “हम इजरायल की तरह खेती में तकनीक के इस्तेमाल की नीति अपना सकते हैं। टेक्निकल एडवांसमेंट इस तरह करें कि यहां से निकल कर लोग फूड प्रोसेसिंग जैसे कृषि से संबंधित क्षेत्रों में जाएं।”

दहिया ने 2012 में सॉयल टेस्टिंग स्टार्टअप की नींव रखी थी। तब एग्री-स्टार्टअप शब्द भी चर्चा में नहीं था। सरकार ने 2016 में पहली बार एग्री-स्टार्टअप को एक रूपरेखा दी। तब के मुकाबले आज काम करना बहुत आसान है। सबके पास मोबाइल फोन है, टेक्नोलॉजी उपलब्ध है, कई सरकारी स्कीमें हैं। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (रफ्तार) के तहत सरकार 20 से 25 लाख रुपये तक की ग्रांट दे रही है। आईएआरआई तथा विभिन्न क्षेत्रीय इंस्टीट्यूट में इनक्यूबेशन सेंटर हैं, जिनकी मदद नए स्टार्टअप ले सकते हैं। कई जगह सरकारी विभागों को निर्देश है कि उन्हें कुछ खरीद स्टार्टअप से ही करनी पड़ेगी। दहिया कहते हैं, “पहले छोटी कंपनियों को कोई गंभीरता से नहीं लेता था। लेकिन अब सरकारी अधिकारी भी स्टार्टअप को गंभीरता से लेने लगे हैं।”