सज्जन को मिली सजा से पीड़ितों में जगी न्याय की आस, आज भी हैं कई जख्म हरे
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश के कई हिस्सों में भड़के सिख विरोधी दंगों में तीन हजार से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। इन दंगों के पीडि़तों को आज भी न्याय की आस है।

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और दिल्ली से सांसद रहे सज्जन कुमार को 1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में हाईकोर्ट से उम्रकैद की सजा सुनाए जाने के बाद एक बार फिर यह मामला ताजा हो गया है। 34 वर्षों से इन दंगों के पीडि़तों को न्याय की आस है। आज भी इसके कई पीडि़तों की जख्म पहले की तरह ही ताजा है। ऐसे सैकड़ों लोग हैं जिनके सामने उनके अपनों को मार डाला गया। इन दंगों में स्वाहा हुए कई घरों में वर्षों तक कालिख साफ करने वाला भी सामने नहीं आया। इनसे जुड़े मामलों में कई बार उतार-चढ़ाव का दौर आया। कांग्रेसी नेताओं पर इसको लेकर बार-बार आरोप लगते रहे। सज्जन कुमार का नाम और उनको मिली सजा इसकी ही एक कड़ी भी है। जनवरी में इस बारे में जब कोर्ट ने इससे जुड़े 186 ऐसे मामलों को दोबारा खोलने की बात कही जिन्हें पूर्व में बंद कर दिया गया था, तो इसके पीडि़तों को फिर की तरफ विश्वास जगा था। आगे बढ़ने से पहले आपको बता दें कि दिल्ली के त्रिलोकपुरी में इन दंगों के दौरान बड़ी भयानक तस्वीर सामने आई थी। इसके अलावा कानपुर और बोकारो में भी जबरदस्त दंगे भड़के थे।

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के थे दंगे
आपको बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश भर में सिख विरोधी दंगे भड़के थे जिसमें हजारों सिखों की जान गई थी साथ ही उनकी संपत्ति को भी नुकसान पहुंचाया गया था। 16 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने एक सुपरवाइजरी कमेटी का गठन किया था जिसे सरकार द्वारा गठित एसआइटी द्वारा बंद किये गए 241 मामलों की जांच सौंपी थी। सुपरवाइजरी कमेटी ने जांच करके अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंप दी थी। इस रिपोर्ट पर तत्कालीन मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा था कि एसआइटी ने 241 में से 186 मामलों की आगे जांच नहीं की। पीठ ने कहा कि मामलों की प्रकृति को देखते हुए उन्हें लगता है कि इन 186 मामलों की जांच के लिए नई एसआइटी गठित होनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि मामलों की जांच के लिए हाईकोर्ट के सेवानिवृत जज की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय एसआइटी गठित की गई। कोर्ट ने तत्कालीन एएसजी पिंकी आनंद और याचिकाकर्ता के वकील एचएस फूलका से तीन नाम देने को कहा था। इसके अलावा कानपुर में इस दौरान मारे गए 127 सिखों के मामले की जां भी एसआईटी से कराने की मांग की गई थी।

हजारों की हुई थी मौत
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों में 3000 से ज्यादा लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। 2000 से ज्यादा लोग सिर्फ दिल्ली में ही मारे गये थे। नरंसहार के बाद सीबीआइ ने कहा था कि ये दंगे राजीव गांधी के नेतृ्त्व वाली कांग्रेस सरकार और दिल्ली पुलिस ने मिल कर कराए थे। 19 नवंबर, 1984 को उन्होंने बोट क्लब में इकट्ठा हुई भीड़ को संबोधित करते हुए कहा था कि जब इंदिरा जी की हत्या हुई थी़, तो हमारे देश में कुछ दंगे-फसाद हुए थे। हमें मालूम है कि भारत की जनता को कितना क्रोध आया, कितना ग़ुस्सा आया और कुछ दिन के लिए लोगों को लगा कि भारत हिल रहा है। जब भी कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती थोड़ी हिलती है।" उनका यह बयान बाद में उनके विरोधियों ने अपने पक्ष में खूब इस्तेमाल किया। इतना ही नहीं राहुल गांधी ने इसी वर्ष अगस्त में इंग्लैंड की संसद को संबोधित करते हुए यहां तक कहा था कि मेरे दिमांग में इसको लेकर कोई संशय नहीं है, यह यक ट्रेडजी थी जो बेहद दुखद थी। उन्होंने यह भी कहा कि वह ऐसा नहीं मानते हैं कि इस दंगे में कांग्रेस पार्टी संलिप्त थी। उनके मुताबिक अचानक घटना होती है जो ट्रेडजी में बदल जाती है।
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खत्म हुआ सियासी सफर
इन दंगों को लेकर कुछ कांग्रेसी नेताओं का सियासी भविष्य पूरी तरह से खत्म हो गया है। इनमें जगदीश टाइटलर, सज्जन कुमार समेत कुछ दूसरे नेताओं का भी नाम शामिल है। 2010 में इन दंगों में संलिप्तता को लेकर कमलनाथ का भी नाम सामने आया था। उनका यह नाम दिल्ली के गुरुद्वारा रकाबगंज में हुई हिंसा में सामने आया था। उनके ऊपर ये भी आरोप लगा था कि यदि वह गुरुद्वारे की रक्षा करने पहुंचे थे, तो उन्होंने वहां आग की चपेट में आए सिखों की मदद क्यों नहीं की। वहां पर उनकी मौजूदगी का जिक्र पुलिस रिकॉर्ड में भी किया गया और इन दंगों की जांच को बने नानावती आयोग के सामने एक पीड़ित ने अपने हलफनामे में भी उनका नाम लिया था।
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पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने भी मांगी थी माफी
आपको बता दें कि दंगों के 21 साल बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संसद में इसके लिए माफी मांग और कहा कि जो कुछ भी हुआ, उससे उनका सिर शर्म से झुक जाता है। इन दंगों की तपिश को आज तक सिख महसूस करते हैं। यही वजह है कि इसी वर्ष अप्रैल में जब राहुल गांधी ने केंद्र के विरोध में राजघाट पर अनशन किया तो वहां पर जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार की मौजूदगी को लेकर जबरदस्त विरोध शुरू हो गया। इस विरोध के चलते ही इन दोनों नेताओं को वहां से हटाना पड़ा था। खुद कांग्रेस के अंदर ही इन दंगों को लेकर कई नेता खुद को बेहद असहज महसूस करते हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री चिदंबरम ने इस बाबत सफाई देते हुए कहा कि इन दंगों के लिए राहुल गांधी को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते हैं। क्योंकि उस समय उनकी उम्र मात्र 13 या 14 साल रही होगी। सिख दंगों के लेकर पी चिदंबरम ने कहा कि 1984 में कांग्रेस सत्ता में थी, तब बेहद दुखद घटना हुई।
आरोपों से नहीं बच सके नरसिम्हा राव
आपको यहां पर ये भी बता दें कि इन दंगों की आंच और आरोपों से पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव भी खुद को नहीं बचा सके थे। 1984 में हुए दंगों के समय वह केंद्रीय गृहमंत्री थे। उस वक्त उनके ऊपर इन दंगों को रोकने में लापरवाही बरतने के आरोप लगे थे। इतना ही नहीं 1992 में जब बाबरी मस्जिद विध्वंस कांड हुआ था तब वह देश के प्रधानमंत्री थे। उस वक्त भी उनके ऊपर लापरवाही बरतने का आरोप लगा था।
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