इस गुरुद्वारे की दीवारों पर लगीं तस्वीरें दे रहीं 1984 के कत्लेआम की गवाही
कल्याणपुरी इलाके में 10 से अधिक ऐसी महिलाएं रहती हैं, जिनके पति को सिख दंगों में मार दिया गया था। दंगों ने इनका सब कुछ छीन लिया।
नई दिल्ली, जेएनएन। 1984 सिख दंगा में आखिरकार कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को सजा सुना दी गई। सिख दंगों के लगभग 34 साल बाद सज्जन कुमार को दंगा भड़काने और साजिश रचने के दोष में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। इस दंगा में मारे गए लोगों के परिवार आज भी खौफ के उस दौर को भुला नहीं पाए हैं। वो यादें आज भी उन्हें गमगीन कर देती हैं। 1984 के सिख दंगे का नाम आते ही पीड़ितों के जख्म ताजा हो जाते हैं। इन दंगों से पूर्वी दिल्ली का त्रिलोकपुरी इलाका सबसे ज्यादा प्रभावित रहा। सिखों के कत्लेआम की गवाही 32-ब्लॉक के गुरुद्वारे की दीवारों पर लगीं तस्वीरें बयां कर रही हैं। उन तस्वीरों पर मरने वालों का नाम, पता और तारीख तक लिखी हुई है।
गुरुद्वारे में भी नहीं बच पाई जान
हर दिन विधवाएं इस गुरुद्वारे में पहुंचकर अपने पति की मौत पर आंसू बहाती हैं। इसी गुरुद्वारे में 100 से अधिक सिखों की मौत हुई थी। दंगों में मारे गए सिखों की बरसी के मौके पर हर वर्ष इस गुरुद्वारे में सभा होती है। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सदस्य भूपेंद्र सिंह भुल्लर ने बताया कि त्रिलोकपुरी के 32 ब्लॉक में 1984 के दंगे में बड़ी संख्या में सिखों को मारा गया। गुरुद्वारा धार्मिक स्थान है। उस दौरान सिखों ने समझा कि वे गुरुद्वारे में रहकर अपनी जान बचा लेंगे, लेकिन दंगाइयों ने उन्हें यहां भी नहीं बख्शा। दंगे में मारे गए 160 से अधिक सिखों की तस्वीरें गुरुद्वारे में लगी हैं।
फिर नाम रख दिया 'शहीदी गुरुद्वारा'
उन्होंने बताया कि दंगों के बाद इस गुरुद्वारे को शहीदी गुरुद्वारा का नाम दिया गया। गुरुद्वारे में एक कमरा बना हुआ है, जहां सारी तस्वीरें हैं। ढूंढ़-ढूंढ़ कर दंगों में मारे गए लोगों की फोटो गुरुद्वारा समिति ने जमा की है। उन्होंने कहा कि देश का दुर्भाग्य है कि एक इलाके में इतने सिख मार दिए जाते हैं और उनके मरने की एफआइआर तक दर्ज नहीं होती। पुलिस और एसआइटी इस गुरुद्वारे में आकर देखे कि उस दौरान कितने लोग दंगे में मारे गए।
दंगाइयों ने घर से निकालकर मार डाला
कल्याणपुरी इलाके में 10 से अधिक ऐसी महिलाएं रहती हैं, जिनके पति को सिख दंगों में मार दिया गया था। दंगों ने इनका सब कुछ छीन लिया। अब वे दूसरे के घरों में बर्तन झाडू करके गुजारा कर रही हैं। दंगों में पति को खोने वाली जमकौर ने बताया कि 1 नवंबर 1984 को एक माह के बेटे के साथ पति घर पर थे। दोपहर में दंगाइयों की भीड़ उनके घर का दरवाजा तोड़कर अंदर घुस आई। सभी के चेहरों पर कपड़े बंधे थे। उन लोगों ने उनके पति को घर से निकालकर बीच गली में तेल डालकर आग लगा दी। वहीं रूपकौर ने कहा कि दंगाइयों ने उनके पति को घर से निकालकर तब तक मारा जब तक उनकी मौत नहीं हुई। उनसे उन्होंने रहम मांगा, लेकिन नहीं मिला। गुरजीत कौर, राम कौर व रानी कौर समेत यहां रहने वाली अन्य विधवाओं के घरों में दंगों के दौरान आग लगा दी गई थी और उनके पति को मार दिया गया। पति के शव तक उन्हें नहीं मिले। इनका कहना है कि 84 का खंजर उनके शरीर में ऐसा घुसा है, जिसका दर्द उनके दिल से जाता नहीं है।
घर में शरण देकर सिखों को ढक दिया था लिहाफ से
त्रिलोकपुरी-29 ब्लॉक में रहने वाले 75 वर्षीय हरबंस लाल ऐसे शख्स हैं, जिन्होंने दंगों में अपने घर में कई सिखों को शरण दी थी। उन्होंने बताया कि 1 नवंबर 1984 को उनकी मां की तेरहवीं थी। घर में रिश्तेदार आए हुए थे। इलाके में अचानक भगदड़ मच गई। दंगाई सिखों को ढूंढ़ रहे थे। पड़ोस में रहने वाले कई सिखों को उन्होंने अपने घर में जगह दी और दंगाई उन्हें ढूंढ़ न सकें, इसलिए उनके ऊपर लिहाफ डाल दिए। उनका एक पड़ोसी महेंद्र परिवार के पास जाना चाहता था। जैसे ही वह उनके घर से निकला कुछ ही दूरी पर दंगाइयों ने उसे जान से मार दिया। उन्होंने कहा कि वे उस मंजर को भूल नहीं सकते।
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