पर्यावरण बचाने को 'गुरु ज्ञान' दे रहे शिक्षक

चमोली जिले के गोपेश्‍वर में विज्ञान का एक शिक्षक छात्र-छात्राओं के साथ ही समाज में पर्यावरण के प्रति अलख जगाने का काम कर रहा है। शिक्षक की मेहनत अब रंग लाने लगी है।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Tue, 24 Jan 2017 08:32 AM (IST) Updated:Fri, 27 Jan 2017 07:00 AM (IST)
पर्यावरण बचाने को 'गुरु ज्ञान' दे रहे शिक्षक
पर्यावरण बचाने को 'गुरु ज्ञान' दे रहे शिक्षक

गोपेश्वर, [जेएनएन]: समाज में जागरूकता लाने और उसे नई दिशा देने में शिक्षक का अहम योगदान रहता है। आज भी शिक्षक यदि किसी मुहिम को शुरू कर दे तो उसका समाज में व्यापक असर पड़ता है। ऐसा ही एक उदाहरण देखने को मिला है चमोली जिले के राजकीय इंटर कॉलेज बांजबगड़ में। यहां विज्ञान के एक शिक्षक ने छात्र-छात्राओं के साथ ही समाज में पर्यावरण के प्रति अलख जगाने का काम किया है। शिक्षक की मेहनत अब रंग लाने लगी है। पर्यावरण बचाने के लिए शिक्षक ने अकेले ही अभियान शुरू किया था। लेकिन आज उसके साथ करीब चार हजार लोग जुड़ चुके हैं। जबकि कई गांव में जंगल तैयार हो रहे हैं।

चमोली जिले के दूरस्थ घाट विकासखंड के जीआइसी बांजबगड़ में धनपति शाह रसान विज्ञान के प्रवक्ता हैं। धनपति शाह ने पर्यावरण के प्रति जागरूकता अभियान 1995 से शुरू कर दिया था। इस दौरान वह शिक्षण कार्य से जुड़ गए थे। बाद में प्रवक्ता बनने के बाद उन्होंने इस मुहिम को और तेजी से आगे बढ़ाना शुरू किया। इसके लिए उन्होंने 'डाली लगोंण तुमारि समौंण' कार्यक्रम शुरू किया। पहले उन्होंने विद्यालय में छात्र-छात्राओं को पौधरोपण के लिए प्रेरित किया।

यह भी पढ़ें: महिलाओं को स्वावलंबन का पाठ पढ़ा रहीं पौड़ी की ये महिलाएं

इसके बाद विद्यालय के प्रत्येक छात्र-छात्रा से जीवन में एक-एक पौधा अवश्य रोपने का संकल्प दिलवाया। विद्यालय से शुरू की गई यह मुहिम धीरे धीरे घाट विकासखंड के कई गांवों तक फैल गई। उन्होंने शादी विवाह में दूल्हा व दुल्हन सहित बरातियों को भी पौधे लगाने के लिए प्रेरित किया। यही नहीं धार्मिक व सामाजिक कार्यों के दौरान भी पौधा लगाने के लिए जागरूक किया गया।

यह भी पढ़ें: एक ऐसा स्कूल जो बच्चों से नहीं लेता फीस, स्वयं वहन करता पढ़ाई खर्च

धनपति शाह के कदम घाट ब्लॉक तक ही नहीं रुके, वह अवकाश के समय उत्तराखंड के अन्य गांवों में भी जाकर लोगों को जागरूक करने लगे। यहां तक की उन्होंने अरुणाचल प्रदेश के तवांग में जाकर भी लोगों को पौधरोपण के लिए प्रेरित किया। नई दिल्ली, राजस्थान के अजमेर में भी अपने निजी कार्यक्रमों के दौरान उन्होंने लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने का प्रयास किया।

यह भी पढ़ें: यहां गरीब बच्चों को शिक्षा से अलंकृत कर रही अलंकृता

पर्यावरण जागरुकता के लिए रचना करते हैं जनगीतों की

पर्यावरण संरक्षण से धनपति शाह कितने गहरे तक जुड़ चुके हैं इसक अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने इसके लिए गीतों की तक रचना की है। उनके प्रमुख गीतों में डाली लगोंण तुमारी समौंण..., आग नि लाण रैबार पौंछांण..., जंगल का चौकीदारा बांज की बंज्याणी न आ.., डाल्यों कू दगडय़ा मि ज्वन्यू कू सौंजडय़ा मि..., धरती मां हमारी ई डाली हमारी..., आदि गीत शामिल हैं। इनकी सीडी भी बाजार में उपलब्ध है। इन गीतों को प्रसिद्ध लोकगायिका मीना राणा के साथ धनपति शाह ने गाया है।

यह भी पढ़ें: घर छोड़कर बच्चों का जीवन संवारने में जुटीं ये संन्यासिनी

पर्यावरण शिक्षा को लेकर किया गया कार्य अनुकरणीय

पर्यावरण कार्यकर्ता मुरारी लाल का कहना है कि धनपति शाह का विद्यालयी शिक्षा के साथ पर्यावरण शिक्षा को लेकर किया गया कार्य अनुकरणीय है। शिक्षक धनपति शाह के कार्य धरातल पर दिख रहे हैं। समाज को उनसे सीख लेनी चाहिए।

यह भी पढ़ें: ये युवा एक कमरे में 'उगा रहेे' 60 हजार प्रतिमाह, जानिए कैसे

पर्यावरण के प्रति जागरुकता से ही प्रदूषण से निजात मिलेगी

शिक्षक व पर्यावरण कार्यकर्ता धनपति शाह का कहना है कि पर्यावरण के प्रति जागरुकता से ही प्रदूषण से निजात मिलेगी। मेरी सोच है कि फलदार पौधे अधिक संख्या में रोपे जाएं। इससे फलों के जरिए भी उत्तराखंड के लोग रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। पलायन पर अंकुश लगेगा। डाली लगोंण तुमारि समौंण कार्यक्रम आज उत्तराखंड ही नहीं अन्य प्रदेशों में भी फैल चुका है। तकरीबन चार हजार लोग मेरी मुहिम में जुड़ गए हैं।

यह भी पढ़ें: 91 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी में देशभक्ति का जज्बा कायम

यह भी पढ़ें: मां बनकर गरीब बेटियों का भविष्य संवार रही तारा

chat bot
आपका साथी