New Year के पहले हफ्ते में ही टूट जाते हैं 5 फूडी रेजोल्यूशन, क्रेविंग के आगे घुटने टेक देते हैं लोग
हर साल 31 दिसंबर की रात को घड़ी में 12 बजते ही हमारे अंदर का एक 'हेल्थ गुरु' जाग जाता है। हम अपने आखिरी पिज्जा के टुकड़े को देखते हुए कसम खाते हैं- "बस ...और पढ़ें

हकीकत से कोसों दूर होते हें ये 5 Food Resolutions (Image Source: AI-Generated)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। 31 दिसंबर की रात, घड़ी में 11:55 मिनट... एक हाथ में पिज्जा का आखिरी टुकड़ा और दूसरे हाथ में कोल्ड ड्रिंक का गिलास। हम बड़े जोश में खुद से कहते हैं- "बस बेटा, जी ले अपनी जिंदगी। यह आखिरी पिज्जा है, कल से तेरा भाई सिर्फ रंग-बिरंगी सब्जी और ग्रीन टी पर जिएगा।"
असल में, कड़वा सच यह है कि ये 'फूडी रेजोल्यूशन' ख्याली पुलाव के बने होते हैं। जरा-सी क्रेविंग हुई नहीं कि इनपर पानी फिर जाता है। आइए नजर डालते हैं खानपान से जुड़े ऐसे ही 5 रेजोल्यूशन पर, जो बेचारे जनवरी का पहला हफ्ता भी नहीं देख पाते हैं (Foodie Resolutions That Don't Last)।

(Image Source: AI-Generated)
"कल से चीनी पूरी तरह बंद"
यह दुनिया का सबसे बड़ा झूठ है। हम कसम खाते हैं कि चाय बिना चीनी की पिएंगे और मिठाई को हाथ भी नहीं लगाएंगे, लेकिन भूलिए मत कि ये सिर्फ जनवरी की बात नहीं है। क्या आप वाकई गाजर के हलवे, गरमा-गरम गुलाब जामुन और जलेबी को 'ना' कह पाएंगे? जैसे ही कोई मिठाई का डब्बा खोलेगा, आपका यह रेजोल्यूशन पिघलकर चाशनी बन जाएगा।
"बाहर का खाना बंद, अब सिर्फ घर का खाना"
जोश-जोश में हम फूड डिलीवरी ऐप्स को अनइंस्टॉल भी कर देते हैं, लेकिन फिर आती है जनवरी के पहले हफ्ते की कोई शाम... घर में सब्जी अच्छी नहीं बनी है, और तभी मोबाइल पर एक नोटिफिकेशन आता है- "Biryani is missing you!" बस, फिर क्या? उंगलियां अपने आप 'ऑर्डर नाउ' पर चली जाती हैं और 'घर का खाना' वाला वादा अगले साल के लिए पोस्टपोन हो जाता है।
"चाय छोड़कर सिर्फ ग्रीन टी पिऊंगा"
शुरुआत के दो दिन तो हम बड़े मन से उबले हुए पानी जैसा स्वाद वाली ग्रीन टी पीते हैं। खुद को दिलासा देते हैं कि "यही सेहत का राज है", लेकिन तीसरे दिन जैसे ही बारिश होती है या ठंड बढ़ती है, अदरक-इलायची वाली कड़क चाय की याद सताने लगती है... और हम खुद से कहते हैं, "यार, चाय तो इमोशन है, इसे कैसे छोड़ दें भला?"
"रात के खाने में सिर्फ सलाद"
यह वादा सबसे ज्यादा नामुमकिन है। दिन भर काम करने के बाद जब इंसान घर लौटता है, तो उसे 'घास-फूस' नहीं, बल्कि दाल-मखनी या रोटी-सब्जी चाहिए होती है। सलाद खाकर ऐसा लगता है जैसे पेट को सिर्फ टीजर मिला है, पूरी पिक्चर अभी बाकी है। नतीजा यह होता है कि रात के 11 बजे हम किचन में बिस्किट या नमकीन ढूंढ रहे होते हैं।
"चीट डे सिर्फ संडे को होगा"
हम सोचते हैं कि हफ्ते में 6 दिन डाइट करेंगे और सिर्फ संडे को अपनी पसंद का खाएंगे, लेकिन असलियत में दोस्त का जन्मदिन बुधवार को आ जाता है, ऑफिस पार्टी शुक्रवार को हो जाती है और शनिवार को वीकेंड का मूड बन जाता है। आखिर में पता चलता है कि पूरा हफ्ता ही 'चीट वीक' बन गया है।

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