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सिर्फ आपकी ही नहीं, दुर्गा हमारी भी मां है... कमाई का एक हिस्सा दुर्गापूजा में लगातीं है यौनपल्ली Lachhipur की गणिकाएं

एक गणिका ने बताया कि हमारे घर की देहरी की मिट्टी भी मां की प्रतिमा बनाने में लगती है। वह न लगे तो प्रतिमा अधूरी मानी जाती है। बावजूद हमें सम्मान नहीं मिलता। दस साल पहले गणिकाओं के हित में काम कर रही मरजीना शेख ने यहां दुर्गापूजा शुरू कराई।

By Atul SinghEdited By: Published: Mon, 12 Sep 2022 07:33 AM (IST)Updated: Mon, 12 Sep 2022 07:33 AM (IST)
एक गणिका ने बताया कि हमारे घर की देहरी की मिट्टी भी मां की प्रतिमा बनाने में लगती है।

अजय झा, आसनसोल : आसनसोल का यौनपल्ली लच्छीपुर का चबका इलाका। यहां करीब 12 सौ गणिकाएं रहती हैं। मां दुर्गा के प्रति इनमें भी बड़ी आस्था है। पूजा पंडाल में ये भी जातीं थीं, अक्सर लोग हिकारत से देखते थे। खुद को अपमानित महसूस कर उनकी आंखें छलक उठतीं थीं। बस मन में ठान लिया कि हम भी नवरात्र में पंडाल बनाएंगे, विधि विधान से मां दुर्गा की प्रार्थना करेंगे। सो दस साल से यहां भी मां पंडाल में विराजमान होती हैं, गणिकाएं मां की आराधना करती हैं। कमाई का एक हिस्सा पूजा में सहयोग राशि के रूप में देती हैं। वे कहती हैं कि महामाई सिर्फ आपकी नहीं हम सबकी मां हैं।

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एक गणिका ने बताया कि हमारे घर की देहरी की मिट्टी भी मां की प्रतिमा बनाने में लगती है। वह न लगे तो प्रतिमा अधूरी मानी जाती है। बावजूद हमें सम्मान नहीं मिलता। दस साल पहले गणिकाओं के हित में काम कर रही दुरबार महिला समिति की अध्यक्ष मरजीना शेख ने यहां दुर्गापूजा शुरू कराई। दुरबार के क्षेत्रीय समन्वयक रवि घोष व समाजसेवी शिवा राय ने भी मदद की। वक्त के साथ पंडाल भव्य होता गया। चार साल से यहां बड़े स्तर पर दुर्गापूजा हो रही है। इस पूजा कमेटी का निबंधन हो गया है। सरकारी अनुदान भी मिलने लगा। इस बार का बजट दो लाख है। शनिवार को चबका में खूंटी पूजा कर दुर्गापूजा उत्सव की शुरुआत हो गई। पूजा समिति के रवि घोष व शिवा राय कहते हैं कि हम चंदा नहीं लेते। सरकार से कुछ अनुदान मिलता है, गणिकाएं अपनी कमाई का कुछ हिस्सा देती हैं, उसी राशि से पूजा होती है।

पुष्पांजलि देने पर भी थी मनाही, तब खुद उठा लिया बीड़ा 

जब यहां दुर्गापूजा शुरू नहीं हुई थी तो गणिकाएं आसपास के पंडालों में पूजा देखने जातीं थीं, करीब 11 साल पहले नियामतपुर में भी पूजा देखने गईं थीं। वहां की प्रतिमा पर पुष्प चढ़ाने के लिए कुछ गणिकाएं आगे बढ़ीं तो उनको रोक दिया गया। उनमें से एक ने बताया कि समाज के लोगों का यह नजरिया देख बहुत दुख हुआ था। तभी ठान लिया था कि हम सब मिलकर अपनी महामाई की पूजा करेंगे। मरजीना मौसी ने भी साथ दिया। आज हमारे पंडाल में भी लोग मां के दर्शन व पूजा को आते हैं।

कोट

गणिकाओं को समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता है। वे पूजा में जातीं थीं तो इसे महसूस करतीं थीं। उनका मन व्यथित रहता था। हमसे उन्होंने अपना दर्द बताया। बस कर दी पहल। गणिकाओं ने कमाई का एक हिस्सा पूजा के लिए निकाला और शुरुआत हो गई। उसके बाद से यहां हर दुर्गापूजा में महामाई की आराधना हो रही है।

मरजीना शेख, अध्यक्ष, दुरबार महिला समिति, आसनसोल


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