Lok Sabha Election 2024: CAA पर तो अब चर्चा... हम सीमा पार के हिंदू 69 सालों से जातीय पहचान को तरस रहे
Lok Sabha Election 2024 गोपालगंज के फुलवरिया प्रखंड में प्रताड़ना झेल कर भागे हिंदू परिवारों को 1955-56 में बसाया गया था। 69 साल बीत गईं परिवारों की संख्या दर्जनभर से चार सौ हो गई। हालांकि अब तक इन हिंदू परिवारों को भारत नागरिकता मिलने के बाद भी स्पष्ट कानून के अभाव में जातीय पहचान नहीं मिल पाई। इस कारण राशन कार्ड नहीं बन पाता।
विवेक कुमार तिवारी, फुलवरिया (गोपालगंज)। गोपालगंज जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर बथुआ-श्रीपुर पथ से जुड़े फुलवरिया प्रखंड की बैरागीटोला पंचायत की श्रीपुर कालोनी एवं गिदहां कालोनी में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से अंतहीन प्रताड़ना झेल कर भागे हिंदू परिवारों को 1955-56 में बसाया गया था।
69 वर्षों में इनकी चार पीढ़ियां बीत गईं, संख्या दर्जनभर परिवारों से चार सौ हो गई, इनमें वोटर 13 सौ हैं। तत्कालीन केंद्र सरकार के परिस्थितिजन्य निर्णय के कारण इन्हें भारत की नागरिकता मिल गई, बसने व खेती के लिए भूदान की जमीन दे दी गई, लेकिन स्पष्ट कानून के अभाव में इन्हें अब तक जातीय पहचान नहीं मिली और न ही राशन कार्ड बनता।
पूछने पर सरकारी अधिकारी कहते हैं कि भूदान की जमीन का खतियान नहीं होता, इस कारण जाति प्रमाण पत्र व राशन कार्ड नहीं बनाया जा सकता। गत वर्ष जाति आधारित गणना में इनके बीच के चक्रवर्ती, बनर्जी, चटर्जी को ‘ब्राह्मण’, बराल, सरकार, दास, मंडल, विश्वास को ‘नामशुद्ध’, डे, भट्ट, विश्वास को ‘कायस्थ’, वर्मन को मल्लाह आदि जातियों व उपजातियों के तौर पर दर्ज किया गया।
अब इस बंगाली हिंदू समुदाय में आस जगी है कि उनके जाति प्रमाण पत्र बनेंगे और उन्हें भी जाति व आर्थिक आधार पर आरक्षण का लाभ मिल सकेगा। केंद्र सरकार की निशुल्क राशन योजना का कार्ड एवं आयुष्मान कार्ड भी बनवा सकेंगे। यह समुदाय अपनी भाषा बांग्ला के प्रति आग्रही है।
क्या है इन लोगों की मांग
इनकी पुरानी मांग है कि स्थानीय मध्य या उच्च विद्यालय में बांग्ला के शिक्षक प्रतिनियुक्त किए जाएं, जो अब तक पूरी नहीं हुई। शरणार्थी होने के कारण आज भी इनकी बसावट को ‘गांव’ नहीं ‘कालोनी’ कहा जाता है, जबकि दोनों कालोनियों की लगभग तीन हजार आबादी देश के संसाधनों पर बोझ नहीं है। सभी मेहनतकश व हुनरमंद हैं। फूलों व सब्जियों की खेती तथा मूर्तिकला व झोपड़ी निर्माण के हुनर से स्वावलंबी हैं। यह बंगाली समुदाय राजनीतिक तौर पर भी सजग है।
सरकार व शासन तक अपनी बात पहुंचाने को बिहार-बंगाली समिति का गठन कर रखा है। आस-पड़ोस के गांवों से बेहतर समन्वय भी है। यही कारण रहा कि 2006 में श्रीपुर के चंदन दास गुप्ता को बैरागीटोला पंचायत के लोगों ने अपना मुखिया चुन लिया।
सीएए से उन जैसे लाखों की बंधी है आस
बंगाली समुदाय के पंकज बराल, राहुल कुमार डे, अजय कुमार, संदीप भट्ट, श्यामल चक्रवर्ती, मृत्युंजय कुमार, शंभु वर्मन व राव वर्मन से मुलाकात हुई। सबने एक सुर में कहा कि उन्हें पता है कि गोपालगंज में छठे चरण में 25 मई को मतदान होना है। केंद्र में बनने वाली सरकार से जातीय पहचान व अन्य सुविधाओं की अपेक्षा है, इस कारण शत प्रतिशत मतदान करेंगे। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के बारे में सुना है।
सभी का कहना है कि इसके प्रभावी होने से लाखों पीड़ितों को राहत मिलेगी। जीवन का आधार प्राप्त होगा। समुदाय मातृभक्त है और दुर्गा पूजा, काली पूजा, लक्ष्मी पूजा तथा सरस्वती पूजा धूमधाम से मनाते हैं।
बंटवारे के बाद पूर्वी पाकिस्तान में पड़ोसी ही बन गए थे दुश्मन
श्रीपुर निवासी बताते हैं कि उनके पूर्वज पूर्वी पाकिस्तान के बरिसाल मयंन सिंह, चटग्राम, सिलेट आदि जिले के विभिन्न गांवों से आए थे। उनसे प्रताड़ना की कहानी सुन कर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
विभाजन के बाद हिंदुओं के साथ पड़ोसी रहे मुस्लिम समाज के लोग दुश्मनों की तरह व्यवहार करने लगे। पाकिस्तान आर्मी भी प्रताड़ित करती थी। बहू-बेटियों की इज्जत के साथ धन संपत्ति सुरक्षित नहीं थी। सरेआम लूट, डकैती करने लगे। थानों में सुनवाई नहीं थी। वह सही मायने में आतंक राज था।
उनके पूर्वज सुनील चंद्र वर्मन (अब दिवंगत) की बेरहमी से पिटाई हुई थी। इससे आहत होकर वे लोग पलायन कर बिहार में प्रवेश कर गए। तत्कालीन केंद्र सरकार ने माइग्रेशन सर्टिफिकेट दिया, इसके बाद उन सभी को पश्चिमी चंपारण जिले के बेतिया स्थित कुमार बाग में शरण दी गई। वहां से गोपालगंज के श्रीपुर व गिदहां लाकर बसाया गया।
बंगाली समुदाय के लोग यहां बाद में बसाए गए हैं, वे जाति प्रमाण पत्र में प्रयुक्त होने वाले कागजात सहित नियम व शर्तों की अहर्ता पूरी नहीं करते। इस कारण उनका जाति प्रमाण पत्र निर्गत नहीं किया जाता है। - बीरबल वरुण कुमार, सीओ, फुलवरिया
समाज के लोगों ने प्रतिनिधित्व का अवसर दिया तो 2006 में दोबारा चुनाव लड़े तो लोगों ने बैरागी टोला पंचायत से मुखिया चुन लिया। मुखिया रहते हुए कई विकास कार्य किए। साथ ही बंगाली समुदाय के लोगों के लिए विद्यालय में बांग्ला शिक्षक का पद सृजित कराया, लेकिन आज तक बहाली नहीं की गई। अपनी मातृभाषा को जीवंत रखने के लिए यह आवश्यक है। - चंदन दास गुप्ता, पूर्व मुखिया, बैरागीटोला पंचायत
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