'जख्म नहीं, मरहम चुनने का समय'; महबूबा मुफ्ती ने यासीन मलिक मामले में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को लिखा पत्र
जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने गृहमंत्री से यासीन मलिक के मामले पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि मलिक ने हिंसा छोड़कर राजनीतिक रास्ता चुना था जिसे भारतीय एजेंसियों ने प्रोत्साहित किया था। मलिक ने अधिकारियों और खुफिया कर्मियों के साथ बातचीत की जिसका उद्देश्य क्षेत्र में शांति स्थापित करना था।

राज्य ब्यूरो, जागरण, श्रीनगर। जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने आम लोगों के खून से लाल करने वाले जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के चेयरमैन मोहम्मद यासीन मलिक के मामले की उदारतापूर्वक जल्द समीक्षा करने का आग्रह किया है।
यहां यह बताना असंगत नही होगा कि जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की छोटी बहन डा रुबैया सईद को आठ दिसंबर 1989 में जेकेएलएफ के पांच कमांडरों केा रिहा कराने के लिए यासीन मलिक व उनके साथियों ने अगवा किया था।
उस समय महबूबा मुफ्ती के पिता स्व मुफ्ती मोहम्मद सईद भारत के गृहमंत्री थे। डा रुबैया सईद ने 15जुलाई 2022 को अदालत में पेश हो यासीन मलिक व उनके तीन अन्य साथियों को अपना अहरर्णकर्त्ता बताया था।
I’ve written to Shri Amit Shah ji to view Yasin Malik’s case through a humanitarian lens. While I differ with his political ideology, one cannot ignore the courage it took him to renounce violence and choose the path of political engagement and non violent dissent . pic.twitter.com/vbAMeHYDIv
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) September 19, 2025
पूर्व मुख्यमंत्री ने अपने पत्र में लिखा
जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा ने अपने पत्र में लिखा है कि यासीन मलिक ने वरिष्ठ अधिकारियों, खुफिया कर्मियों और हाफिज सईद जैसे विवादित लोगों के साथ बातचीत की, यह सब भारतीय एजेंसियों की गुप्त सहमति से हुआ। इन प्रयासों ने एक गहरे विभाजित क्षेत्र में पुल बनाने की कठिन और सोच समझकर की गई कोशिश को दर्शाया।"
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उन्होंने यह भी कहा कि यासीन मलिक को रिव्यू का मौका न देना भरोसे को नुकसान पहुंचा सकता है।सरकार के साथ बातचीत को मुश्किल बना सकता है। इस पूरे क्षेत्र में हिंसा और अलगावाद को और बढ़ा सकता है।
मलिक के मामले की ध्यानपूवर्क मानवीय दृष्टिकोण से समीक्षा करें
मैं विनम्रतापूर्वक आपसे यासीन मलिक के मामले की ध्यानपूवर्क मानवीय दृष्टिकोण से समीक्षा करने का अनुरोध करती हूँ। जो व्यक्ति कभी शांति का रास्ता चुनता है, उसके लिए हमेशा के लिए दरवाज़ा बंद कर देना, सार्थक बातचीत के लिए जरूरी नाजुक भरोसे को तोड़ने का जोखिम है।
अगर यह भरोसा पूरी तरह टूट गया, तो निराश और अकेला महसूस करने वाले हर कश्मीरी, शांति और सुलह के बड़े लक्ष्य के लिए भारतीय सरकार के साथ बातचीत करने से पीछे हट जाएगा।
महबूबा मुफ्ती ने केंद्रीय गृहमंत्री को लिखे अपने पत्र को अपने एक्स हैंडल पर भी साझा किया है। उन्होंने जेकेएलएफ कमांडर यासीन मलिक द्वारा हिंसा छोड़ने और अहिंसात्मक राजनीतिक रास्ता चुनने का उल्लेख करते हुए कहा कि मलिक ने अंतत: राज्य पर भरोसा किया।
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यह पत्र विरोध में नहीं विश्वास में लिखा है
महबूबा मुफ्ती ने स्पष्ट किया है कि उन्होंने यह पत्र विरोध में नहीं बल्कि एक विश्वास में लिखा है। वह विश्वास जो सुलह का वादा करता है, वह विश्वास जो इस महान राष्ट्र को महान बनाता है कि अपने सबसे कठिन समय में यह जख्म नहीं मरहम को, टकराव-हिंसा के बजाय सुलह-शांति का मार्ग चुन सकता है।
इसलिए मैं आपके कार्यालय से विनम्रतापूर्व यासीन मलिक जो कभी प्रतिरोध का प्रतीक था, जिसने बाद में संयम का मार्ग अपनाया और अब जेल की दीवारों के पीछे चुप है। उनके मामले की यथाशीघ्र दयालुतापूर्वक समीक्षा की अपील करती हूं।
मलिक की यात्रा भारत सरकार के लिए कोई रहस्य नहीं है
महबूबा मुफ्ती ने अपने पत्र में लिखा है कि 1994 में हिंसा छोड़ने और राजनीतिक संवाद का रास्ता चुनने के मलिक के फैसले को सोच समझकर ही प्रोत्साहित किया गया था। यासीन मलिक की यात्रा भारत सरकार के लिए कोई रहस्य नहीं है... उनके शपथ पत्र के अनुसार, यह बदलाव न तो एकतरफा था और न ही जल्दबाजी में, बल्कि भारतीय एजेंसियों के सहयोग-समन्वय से ही इसे आगे बढ़ाया गया ।
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यह सब भारतीय एजेंसियों की गुप्त सहमति से हुआ
उन्होंने लिखा कि कई वर्षों तक, मलिक ने वरिष्ठ अधिकारियों, खुफिया कर्मियों और हाफिज सईद जैसे विवादित लोगों के साथ बातचीत की, यह सब भारतीय एजेंसियों की गुप्त सहमति से हुआ। इन प्रयासों ने एक गहरे विभाजित क्षेत्र में पुल बनाने की कठिन और सोचसमकर की गई कोशिश को दर्शाया।"
उन्होंने यह भी कहा कि यासीन मलिक को रिव्यू का मौका न देना भरोसे को नुकसान पहुंचा सकता है, सरकार के साथ बातचीत को मुश्किल बना सकता है और इस पूरे क्षेत्र में हिंसा और अलगावाद को और बढ़ा सकता है। मैं विनम्रतापूर्वक आपसे यासीन मलिक के मामले की ध्यानपूवर्क मानवीय दृष्टिकोण से समीक्षा करने का अनुरोध करती हूँ।
जो व्यक्ति कभी शांति का रास्ता चुनता है, उसके लिए हमेशा के लिए दरवाज़ा बंद कर देना, सार्थक बातचीत के लिए ज़रूरी नाजुक भरोसे को तोड़ने का जोखिम है। अगर यह भरोसा पूरी तरह टूट गया, तो निराश और अकेला महसूस करने वाले हर कश्मीरी, शांति और सुलह के बड़े लक्ष्य के लिए भारतीय सरकार के साथ बातचीत करने से पीछे हट जाएगा।
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