लद्दाख में गतिरोध का समाधान संवाद-समन्वय से ही संभव, एलएबी का वार्ता से हटना उसे ही कठघरे में खड़ा करेगा
लेह में हिंसा के बाद स्थिति तनावपूर्ण है। राज्य के दर्जे और छठी अनुसूची की मांग पर लद्दाख और केंद्र सरकार के बीच गतिरोध है। एलएबी का वार्ता से पीछे हटना नुकसानदायक बताया जा रहा है। विकास परिषदों ने लद्दाख के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। जानकारों का मानना है कि लेह में परिषद कार्यालय जलाना लोकतंत्र पर हमला है।

नवीन नवाज, जागरण, श्रीनगर। लेह में गत बुधवार को हुई हिंसा के बाद स्थिति शांत है, लेेकिन तनावपूर्ण है। राज्य के दर्जे के साथ छठी अनसूची के लाभ की मांग पर लद्दाख और केंद्र सरकार के बीच गतिरोध पैदा हो गया है।
कल तक जिस गतिरोध के लिए लेह अपेक्स बाडी एलएबी और करगिल डेमोक्रेटिक एलांयस केडीए, केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे थे, उसी वार्ता प्रक्रिया से लेह हिंसा की आड़ में पीछे हटने का एलएबी का एलान, लद्दाख का भला कम, नुक्सान ज्यादा करेगा।
उसका यह कदम उन्हीं लोगों को सही ठहराएगा जो केंद्र सरकार द्वारा छह अक्टूबर को वार्ता के लिए बुलाए जाने के बाद लद्दाख में सोनम वांगचुक की अगुवाई में अनशन के जारी रखे जाने पर प्रश्नचिह्न लगा रहे हैं।
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लोकतांत्रिक व संवैधानिक अधिकार मानते हैं पक्षधर
राज्य के दर्जे और छठी अनुसूची के पक्षधर अपनी मांग को अपना एक लोकतांत्रिक व संवैधानिक अधिकार बताते हुए कह रहे हैं कि यह लद्दाख में लोकतंत्र को मजबूत बनाएगा। उनके अधिकारों का संरक्षण करेगा, वह उनके सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक हितों का संरक्षण करेगा और यही उद्देश्य तो लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद लेह और लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद करगिल पूरा कर रही हैं।
यहां यह बताना असंगत नहीं होगा कि लद्दाख के लोगों की मांग पर ही केंद्र सरकार ने 1995 में पहले लेह और उसके चंद वर्ष बाद करगिल के लिए स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद का गठन किया। इन परिषदों के लिए स्थानीय स्तर पर ही प्रतिनिधि चुने जाते हैं। इन परिषदों का उद्देश्य था कि लद्दाख के लोग स्वयं अपने विकास की प्राथमिकताएं तय कर सकें और योजनाओं का निर्माण कर सकें। इन परिषदों ने शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क निर्माण, पेयजल, सिंचाई, पर्यटन, कृषि, और रोजगार के क्षेत्र में ऐतिहासिक योगदान दिया।
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लद्दाख में ऐसे मिली विकास को गति
अपने गठन के बाद से लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषदों ने पूरे लद्दाख में विकास को एक नयी गति दी है। नई सड़कों का निर्माण, अस्पतालों का विस्तार, स्कूलों की स्थापना, पर्यटन ढाचे का विकास, और युवाओं के लिए रोजगार सृजन—इन सबमें इस परिषद ने निर्णायक भूमिका निभाई है। लेकिन इस परिषद का महत्व केवल विकास योजनाओं तक सीमित नहीं है।
एलएबी का पीछे हटना हैरानी की बात नहीं
जम्मू-कश्मीर व लद्दाख मामलो के जानकार, रमीज मखदूमी ने कहा कि एलएबी के बातचीत से पीछे हटने के एलान से मुझे कोई हैरानी नहीं हुई है। लद्दाख बेशकर छह वर्ष पहले जम्मू कश्मीर से अलग हुआ है, लेकिन वहां की राजनीति, वहां के सामाजिक सरोकार और लोगों का मिजाज हम अच्छी तरह समझते हैं।
लद्दाख में विकास परिषदें लद्दाख के लोकतांत्रिक जीवन का हृदय है। इनमें चुने हुए प्रतिनिधि जनता की बात सुनते हैं, नीतियां बनाते हैं और योजनाओं को धरातल पर उतारते हैं। लेकिन लेह में परिषद का कार्यालय जलाया जाना सवाल पैदा कर रहा है कि जिस लोकतंत्र के लिए वहां लोग उग्र हुए हैं, हिंसक हुए हैं, उसी लोकतंत्र के मंदिर पर हमला, उसे जलाना, क्यों? यह सिर्फ एक सरकारी इमारत को जलाने की घटना नहीं है, यह लोकतांत्रिक तंत्र पर हमला है। इसलिए इसे समझना जरुरी है।
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एलएबी का बातचीत से पीछे हटना सही नहीं
सरकारी अध्यापक शब्बीर अहमद काचो ने कहा कि एलएबी और केडीए अगर लद्दाख की आवाज हैं, तो उन्हें लद्दाख और लद्दाखियों की बेहतरी के लिए आगे बढ़कर बातचीत का प्रयास करना चाहिए। वह इसे अपने अहम का सवाल न बनाएं।
हिंसा के बाद पकड़े गए नौजवानों को रिहा करने की उनकी मांग किसी हद तक सही हो सकती है, लेकिन बातचीत से पीछे हटना या बातचीत के लिए ब्लैकमेल करना सही नहीं है। यह नुक्सानदायक है। इससे उन लोगों को जरुर फायदा होगा, जो कह रहे हैं कि केंद्र सरकार द्वारा बातचीत के लिए बुलाए जाने के बाद भूख हड़ताल जारी रखने या प्रदर्शन करने को कोई मतलब नहीं था।
लेह परिषद को चलाए जाने से दुखी हूं
लद्दाख स्वायत्त विकास परिषद, लेह के एक सदस्य ने अपना नाम न छापे जाने की शर्त पर कहा कि मैं भी राज्य के दर्जे और छठी अनुसूचि का लाभ दिए जाने का समर्थक हूं। मैं चाहता हूं कि सोनम वांगचुक व अन्य लोगों को रिहा किया जाए, लेकिन लेह परिषद के कार्यालय को जलाए जाने से दुखी हूं, यह सिर्फ एक इमारत नहीं थी, जिन्होंने वहां आग लगाई तोड़ फोड़ की, उन्होंने उस विश्वास को जलाया है जो जनता ने इस व्यवस्था पर किया है।
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बातचीत से पीछे हटने का निर्णय सही नहीं
इस घटना ने यही संदेश दिया कि हम लोग असहमति को संवाद और लोकतांत्रिक तरीकों से हल करने के बजाय हिंसा का सहारा ले रहे हैं। बातचीत से पीछे हटने का निर्णय सही नहीं है, बल्कि बातचीत के लिए जाना चाहिए था। वहां जाकर कहते कि हमें अब यहां मेज पर आपके सामने हैं।
आप चाहते हैं कि हम आपके आश्वासनों पर यकीन करें तो पहले हिरासत में लिए गए हमारे सभी साथियों को रिहा करें। अब अपने पहले ही शर्त लगा दी है, तो यही कहा जाएगा कि वह लद्दाखियों ने जानबूझकर हिंसा की और अब बातचीत से पीछे हट गए हैं। यह टकराव और गतिरोध को बढ़ाएगा। समाधान के लिए संवाद और समन्वय जरुरी है।
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