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    कैसे पूरा होगा घाटा, कश्मीर में बागवानी के लिए बीमा योजना की मांग ने फिर जोर पकड़ा

    Updated: Sat, 13 Sep 2025 02:59 PM (IST)

    कश्मीर में फल उत्पादकों को लगभग 500 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है जिससे फसल बीमा योजना की मांग बढ़ गई है। किसान और व्यापारी सरकार पर उदासीनता का आरोप लगा रहे हैं जबकि अधिकारियों का कहना है कि उच्च प्रीमियम दरों के कारण योजना लागू नहीं हो पाई है। घाटी में बागवानी का सालाना कारोबार 20 हजार करोड़ रुपये है लेकिन यह बीमा के दायरे से बाहर है।

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    बारिश, बाढ़ और भूस्खलन से नुकसान हुआ है, और व्यापारी फसल बीमा की मांग कर रहे हैं।

    राज्य ब्यूरो, जागरण, श्रीनगर। राष्ट्रीय राजमार्ग पर ट्रकों की आंशिक आवाजाही की बहाली और कश्मीर से सेबों की खेप लेकर रेलगाड़ी के दिल्ली तक पहुंचने से पहले कश्मीर में फल उत्पादकों और व्यापारियों को लगभग 500 करोड़ रूपये के हुए नुक्सान के साथ ही घाटी में बागवानी के लिए फसल बीमा योजना को लागू करने की मांग भी जोर पकड़ चुकी है।

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    किसान और व्यापारी,दोनों ही आरोप लगा रहे हैं कि उन्हें बीमा लाभ प्रदान करने के लिए सरकार पूरी तरह उदासीन है जबकि संबधित अधिकारियों का दावा है कि उच्च प्रीमियम दरों और बीमाकर्ताओं की भागीदारी की कमी के कारण बागवानी के लिए फसल बीमा योजना जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं हो पायी है।

    कश्मीर घाटी में बागवानी में ही सालाना 20 हजार करोड़ रूपये का कारोबार होता है। इसके अलावा यह सालाना नौ करोड़ मानव श्रम दिवस भी प्रदान करता है। इसके बावजूद यह फसल बीमा योजना के दायरे से बाहर है। विगत कुछ वर्षाें से कभी सूखा तो कभी अतिवृष्टि बागवानी को नुकसान पहुंचा रही है।

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    रही सही कसर अक्सर जम्मू श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग के बंद होने से पूरी हो जाती है। केंद्र सरकार ने करीब छह वर्ष पहले सेब के लिए नैफेड के माध्यम से न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया था, लेकिन यह योजना भी अगले दो वर्ष में चुपचाप समाप्त हो गई।

    बागवानी कश्मीर का एक बड़ा उद्योग

    कश्मीर वैली फ्रूट ग्रौअर्स एंड डीलर्स ऐसोसिएशन के अध्यक्ष बशीर अहमद बशीर ने कहा कि बागवानी कश्मीर का एक बड़ा उद्योग है और लगभग 13 लाख परिवार इसके जरिए प्रत्यक्ष-परोक्ष रोजगार कमाते हैं। विगत कुछ वर्षाें से मौसम और अन्य कारणों से बागवानी से जुड़े लोगों को नुक्सान उठाना पड़ रहा है। कभी बर्फ होती है तो कभी बारिश तो कभी सूखा। इसके बावजूद हमें यहां फसल बीमा योजना का लाभ नहीं दिया जा रहा है जो हमारे साथ अन्याय है।

    बाढ़-भूस्खलन व हाईवे बंद होने से 500 करोड़ का हुआ नुकसान

    इस वर्ष भी हमें बारिश, बाढ़ और भूस्खलन व हाईवे के बंद होने से लगभग 500 करोड़ रूपये का नुकसान हो चुका है। सोपोर मंडी को दो दिन बंद रखना पड़ा।हम वर्षों से फसल बीमा की मांग कर रहे हैं। बार-बार घोषणाओं के बावजूद, बागवानों के लिए ऐसी कोई योजना नहीं है। इससे हम हर मौसम के झटके और राजमार्ग व्यवधान के लिए असुरक्षित हैं।"

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    सोपोर मंडी का 10 हजार करोड़ का कारोबार

    सोपोर मंडी के अध्यक्ष काका जी ने कहा कि हमारा 10 हजार करोड़ का कारोबार है और दो दिन मंडी बंद रखना हमारी मजबूरी रही है। यहां कई लोगों का माल रास्ते में ही सड़ गया, कईयों को माल वापस आया है। आप बताएं कि यह घाटा कैसे पूरा होगा। व्यापारियों की आप छोड़ो,किसानों की सोचो,उन्हें बीमा लाभ मिलना चाहिए जो नहीं मिल रहा है। हमने एक बार नहीं कई बार यह मसला उठाया है,लेकिन हमे समझ में नहीं आ रहा है कि बागवानी केा यह लाभ क्यों नहीं मिल रहा है।

    बीमा होता तो नुकसान से बच जाता

    मोहम्मद युसूफ डग्गा ने कहा कि मेरे बाग में चार दिन पहले तक पानी भरा हुआ था। मेरी फसल तबाह हो गई है। मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मैं किससे मदद मांगू। अगर यहां धान की तरह सेब और नाशपति के लिए भी बीमा होता तो मैं इस नुकसान से किसी हद तक बच जाता। कृषि एवं बागवानी मंत्री जावेद अहमद डार ने कहा कि बागवानी को नुकसान हुआ है ,लेकिन 500-600 करोड़ का दावा सही नहीं है। इससे कम है और अभी नुकसान का जायजा लिया जा रहा है।

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    बागवानी को बीमा योजना में लाने का हो रहा प्रयास

    बागवानी को फसल बीमा योजना के दायरे में लाने के लिए हम सभी आवश्यक कदम उठा रहे हैं। हमने इसकी प्रक्रिया भी शुरु की थी,लेकिन किन्हीं कारणों से यह प्रक्रिया रुक गई थी,अब इसे नए सिरे से शुरु किया जा रहा है। इस बीच, बागवानी विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि बागवानी के लिए फसल बीमा योजना को उच्च प्रीमियम दरों और बीमाकर्ताओं की भागीदारी की कमी ने अव्यावहारिक बना दिया है। उन्हाेंने बताय कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) और पुनर्गठित मौसम-आधारित फसल बीमा योजना (आरडब्ल्यूबीसीआईएस) को 2016 में जम्मू-कश्मीर में औपचारिक रूप से अपनाया गया था, लेकिन इन्हें बागवानी फसलों के लिए लागू नहीं किया गया था।

    बीमा कंपनियों से बोलियां आमंत्रित की गई थीं

    उन्होंने बताया कि नवंबर 2024 में, कश्मीर और जम्मू दोनों प्रांतों में आरडब्ल्यूबीसीआईएस लागू करने के लिए सूचीबद्ध बीमा कंपनियों से बोलियां आमंत्रित की गई थीं। कश्मीर के लिए, सेब और केसर की फसलों के लिए एआईसी आफ इंडिया और इफ्को-टोकियो से बोलियां प्राप्त हुईं। इफ्को-टोकियो सबसे कम बोली लगाने वाली कंपनी के रूप में उभरी। उनके प्रीमियम उदाहरण 15.15 प्रतिशत से लेकर लगभग 30 प्रतिशत तक थे, जिन दरों को सरकार के लिए उचित ठहराना मुश्किल था।

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    मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एलएलसीसीसीआई ने की समीक्षा

    इस वर्ष मई में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय फसल बीमा समन्वय समिति (एसएलसीसीसीआई) ने इस मामले की समीक्षा की थी। समिति ने सभी पहलुओं का संज्ञान लिया और इस प्रक्रिया को रद कर दिया गया और प्रतिस्पर्धी दरों पर अधिक बोलीदाताओं को आकर्षित करने की उम्मीद में पुनः निविदाएं जारी की गईं है। शोपियां के फल उत्पादक और विक्रेताओं प्रतिनिधि शब्बीद अहमद ने कहा कि कश्मीर के फल उत्पादकों ने सरकार से लगातार फसल बीमा और सेब के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू करने की मांग कर रहे हैं लेकिन दोनों ही मांगें पूरी नहीं हुई हैं।