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    बड़गाम के रमहामा गांव में मधुमक्खी पालन की सफलता की कहानी, शहद उत्पादन में कश्मीर का यह गांव बना मॉडल

    Updated: Wed, 24 Sep 2025 05:50 PM (IST)

    बडगाम जिले का रमहामा गांव शहद उत्पादन का केंद्र बन रहा है जहाँ कई लोग मधुमक्खी पालन से जुड़ रहे हैं। मुश्ताक अहमद मीर ने 2010 में 10 बक्सों से शुरुआत की और कृषि विभाग से प्रशिक्षण प्राप्त किया। आज वे 500 से अधिक कालोनियों से 7000-8000 किलो शहद का उत्पादन करते हैं और बारामूला अनंतनाग में आपूर्ति करते हैं।

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    युवाओं को मधुमक्खी पालन अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया, जिससे 100 से अधिक लोगों को रोजगार मिला।

    जागरण संवाददाता,श्रीनगर। बडगाम ज़िले की बीरवाह तहसील का रमहामा गांव तेज़ी से शहद उत्पादन का एक प्रमुख केंद्र बनता जा रहा है।

    पूरी घाटी में बडगाम के शहद गांव के नाम से मशहूर इस इलाके में कई निवासी मधुमक्खी पालन की ओर रुख कर रहे हैं, जिससे उन्हें स्थायी आजीविका मिल रही है और साथ ही दूसरों को रोज़गार भी मिल रहा है।

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    स्थानीय किसान और मधुमक्खी पालन के क्षेत्र में अग्रणी, मुश्ताक अहमद मीर ने 2010 में सिर्फ़ 10 मधुमक्खी बक्सों से अपनी यात्रा शुरू की थी। उन्होंने बताया, करीब पाँच सालों तक, मेरे मधुमक्खी पालन व्यवसाय से बहुत कम मुनाफ़ा हुआ।

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    पाँच साल बाद कृषि विभाग और राष्ट्रीय शहद बोर्ड से मिला प्रशिक्षण 

    शुरुआती चुनौतियों के बावजूद, मुश्ताक अपने दृढ़ निश्चय पर अड़े रहे। उन्होंने कहा, पाँच साल बाद, मुझे कृषि विभाग और राष्ट्रीय शहद बोर्ड से प्रशिक्षण मिला। तभी मैंने मधुमक्खी कालोनियों का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करना सीखा।

    आज, मुश्ताक 500 से ज़्यादा मधुमक्खी कालोनियों की देखरेख करते हैं और सालाना 7,000 से 8,000 किलोग्राम शहद का उत्पादन करते हैं। वह अपनी इस सफलता का श्रेय सरकारी मदद को देते हैं।

    बड़गाम सहित बारामूला, अनंतनाग में कर रहे शहद की आपूर्ति

    उन्होंने कहा, कृषि विभाग ने उपकरण उपलब्ध कराकर और कृषि प्रसंस्करण इकाई स्थापित करके महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अब हम बडगाम से बारामूला, अनंतनाग और उसके आसपास के जिलों में शहद की आपूर्ति करते. हैं।

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    मधुमक्खी कालोनियों की प्रवासी प्रकृति इस वृद्धि का एक प्रमुख कारण है। मुश्ताक ने बताया, हम बेहतर फूलों के मौसम के लिए राजस्थान में मौसमी प्रवास करते हैं, जिससे हमें सरसों, जंगली शहद और बेशकीमती कश्मीरी बबूल जैसे विविध प्रकार के शहद का उत्पादन करने में मदद मिलती है।

    उन्होंने बेरोजगार युवाओं से मधुमक्खी पालन को एक व्यवहार्य करियर विकल्प के रूप में अपनाने का आग्रह किया।

    100 से अधिक युवाओं ने मधुमक्खी पालन में रोजगार हासिल किया

    उन्होंने कहा, सहकारी समूहों के माध्यम से 100 से अधिक युवाओं ने मधुमक्खी पालन में रोजगार हासिल किया है। इस पहल को समग्र कृषि विकास कार्यक्रम (एचएडीपी) का समर्थन प्राप्त है, जो केवल 35 मधुमक्खी बक्सों से शुरुआत करने वाले उद्यमियों को सब्सिडी प्रदान करता है।

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    भविष्य को देखते हुए, मुश्ताक ने आशा व्यक्त की। जैसे ही दूधपथरी जैसे स्थान फिर से खुलेंगे, स्थानीय शहद की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि होने की उम्मीद है।