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    कश्मीर में कालीन बुनकर की हत्या करने वाले हिजबुल आतंकी को 32 वर्ष बाद सजा, मिला आजीवन कारावास

    जम्मू-कश्मीर के बांडीपोर में अदालत ने 1993 में एक कालीन बुनकर की हत्या के मामले में हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकी अब्दुल वाहिद मीर को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। आतंकी ने बुनकर मोहम्मद शफी हज्जाम की हत्या कर शव जलाने का भी प्रयास किया था। पीड़ित परिवार की शिकायत पर मामला दोबारा खुला और आतंकी को गिरफ्तार किया गया।

    By naveen sharma Edited By: Rahul Sharma Updated: Thu, 21 Aug 2025 05:50 PM (IST)
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    अदालत ने पीड़ित परिवार को मुआवजा देने का भी आदेश दिया है।

    राज्य ब्यूरो, जागरण, श्रीनगर। उत्तरी कश्मीर में जिला बांडीपोर में अदालत ने 32 वर्ष पूर्व एक कालीन बुनकर की हत्या में लिप्त हिजबुल मुजाहिदीन के एक आतंकी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। यह हत्या सात दिसंबर 1993 को ओनगाम बांडीपोर में हुई थी। अातंकियों ने दिवंगत के शव को जलाने का भी प्रयास किया था, लेकिन ग्रामीणों के विरोध पर उन्होने अपना इरादा बदल दिया।

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    दिवंगत के परिजन भी इतने डरे हुए थे कि वह आतंकियों को जानते हुए भी उनका नाम लेने से डरते थे। हत्यारोपित आतंकी ने अपने बचाव में दावा किया कि उसने मुख्यधारा में शामिल होने के लिए सरेंडर किया है और उसे इस दोष से मुक्त किया जाना चाहिए। मौजूदा समय में वह आगरा जेल में बंद है।

    उपलब्ध जानकारी के अनुसार, सात दिसंबर 1993 को आेनगाम में हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकी अब्दुल वाहिद मीर ने अपने साथी संग मिलकर कालीन बुनकर मोहम्मद शफी हज्जाम की हत्या कर दी थी।

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    आतंकियों ने उसके शव को मिट्टी के तेल से भी जलाने का प्रयास किया था। पुलिस ने मामला भी दर्ज किया और जांच शुरू की लेकिन कुछ माह बाद वर्ष 1994 में पुलिस ने हमलावरों केा अज्ञात बताते हुए, मामला बंद कर दिया। लेकिन पीड़ित परिवार ने न्याय के लिए प्रयास जारी रखा और लगभग 10 वर्ष बाद वर्ष 2004में यह मामला दोबारा खुल गया और जांच शुरू हुई।

    पुलिस ने नए सिरे से की मामले की जांच

    अदालत के निर्देश पर पुलिस ने मामले की नए सिरे से जांच की और मोहम्मद शफी की हत्या में लिप्त हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकी अब्दुल वाहिद मीर को पकड़ लिया। उकसे खिलाफ आरपीसी की धारा 302, 201 और सशस्त्र अधिनियम के तहत मामले दर्ज किए गए। पुलिस ने सभी साक्ष्य जुटाने के बाद उसके खिलाफ स्थानीय अदालत में आरोप पत्र दायर किया था। बांडीपोर से मिली जानकारी के अनुसार, इस मामले की सुनवाई अतिरक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश सुशील सिंह की अदालत में हुई।

    हज्जाम के माता-पिता को मिलेगा एक लाख मुआवजा

    उन्होंने आरोपित आतंकी अब्दुल वाहिद मीर को दोषी करार दिया और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई। उसने आरपीसी की धारा 302 के तहत आजीवन कारावास, धारा 201 के तहत तीन साल की कारावास और सशस्त्र अधिनियम के तहत सात साल की सजा सुनाई है। यह सभी सजाएं एक साथ चलेंगी। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर विधिक सेवा प्राधिकरण को 2013 पीड़ित मुआवज़ा योजना के तहत हज्जाम के माता-पिता को एक लाख रुपये का मुआवज़ा देने का निर्देश दिया गया है।

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    कब्रिस्तान ले जाकर मारी गोली

    अभियोजन पक्ष के अनुसार, यह वारदात की सुबह हिजबुल मुजाहिदीन का आतंकी अब्दुल वाहिद मीर अपने एक अन्य आतंकी साथी अली मोहम्मद ख्वाजा उर्फ़ खान संग मोहम्मद शफी हज्जाम के घर में घुस आया। दोनों आतंकियों ने मोहम्मद शफी का स्कूटर छीन लिया और उसे अपने साथ चलने के लिए मजबूर किया। वह उसे लेकर निकटवर्ती कब्रिस्तान में गए, जहां उन्होंने उसके माथे पर गोली मार दी। इससे मोहम्मद शफी हज्जाम मौके पर ही मारा गया। वहां उस समय मोहम्मद शफी हज्जाम के परिजनो के साथ कुछ ग्रामीण भी थे। आतंकियों ने उसके शव को भी जलाने का प्रयास किया,लेकिन ग्रामीणों के हस्तक्षेप पर उन्होंने अपना इरादा बदल लिया।

    वाहिद व उसके साथी ने इलाके में फैलाया था आतंक

    मामले की सुनवाई के दौरान दिवंगत के भाईयों ने अदालत में गवाही देते हुए बताया कि आतंकी वाहिद व उसके साथियों ने पूरे इलाके में आतंक फैलाया हुआ था। उन्होंने पूरे गांव में धमकी दे रखी थी कि अगर कोई मोहम्मद शफी हज्जाम के परिजनों की मदद करेगा,वह भी मारा जाएगा। उन्होने मोहम्मद शफी हज्जाम को सुरक्षाबलों का मुखबिर बताया था। आतंकियों के डर से पीड़ित परिवार शोक भी नहीं मना सका,क्येांकि आतंिकयों ने पूरे इलाके में मोहम्मद शफी के मुखबिर होने के पोस्टर बांट रखे थे।

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    डर के मारे नहीं दे रहा था कोई गवाही

    मोहम्मद शफी की हत्या की रिपोर्ट सबसे पहले गांव के चाैकीदार ने ही दर्ज कराई थी। आतंकियों के डर का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सभी उन्हें जानते थे, लेकिन कोई नाम नहीं ले रहा था। पीड़ित परिवार भी डर से चुप था। जांच में कोई नतीजा नहीं निकला और पुलिस ने 1994में मामला बंद कर दिया। लगभग एक दशक बाद जब कुछ स्थिति संभली तो पीड़ित परिवार ने अपराधियों के नाम बताने का साहस जुटाया। इसके बाद पुलिस ने मामले की जांच दोबारा शुरू की, गवाहों के बयान दोबारा दर्ज किए गए गए।

    मीर ने माना वह आतंकी गतिविधियों में रहा है संलिप्त

    आतंकी अब्दुल वाहिद मीर और उसके साथी ख्वाजा उर्फ खान को गिरफ्तार किया गया। मीर ने स्वीकार किया कि वह आतंकी गतिविधियों में सलिंप्त रहा है। उसने अपने बचाव में दलील दी कि वह गुमराह हो गया था और जब उसे समझ आया ताे उसने सरेंडश्र कर दिया। इसलिए उसे इस मामले में शामिल न किया जए। लेकिन पुलिस ने उसके खिलाफ जांच जारी रखी और अदालत में उसके व उसके साथी के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया।

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    अधिक उम्र होने की वजह से नहीं सुनाई मौत की सजा

    न्यायाधीश सुशील सिंह ने अब्दुल वाहिद मीर को सजा सुनाते हुए कहा कि यह अपराध "जघन्य था और समाज की अंतरात्मा को झकझोर देने वाला था। अब्दुल वाहिद मीर की उम्र 55 वर्ष है और वह लंबे समय से कारावास में है,इसलिए उसे मृत्युदंड की सजा नहीं दी जा रही है,लेकिन उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती है। उसके साथी अली मोहम्मद ख्वाजा को सभी आरोपों से बरी किया गया है। अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष उसकी संलिप्तता को संदेह से परे साबित करने में विफल रहा, और हत्या में उसकी संलिप्तता साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत भी नहीं मिला।