5 अगस्त 2019: आतंक-अलगाववाद की जननी अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण पर आंतक के जख्मों पर सरकारी नौकरी का मरहम
श्रीनगर में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के छह साल पूरे होने पर आतंकी हिंसा से पीड़ित 250 परिवारों को सरकारी नौकरी के नियुक्ति पत्र सौंपेंगे। 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 के हटने के बाद कश्मीर घाटी में स्थिति सुधरी है पत्थरबाजी घटी है और आतंकी हिंसा कम हुई है। आतंकी संगठनों में युवाओं की भर्ती भी कम हुई पीड़ितों को न्याय मिलने की उम्मीद जगी है।

नवीन नवाज,जागरण, श्रीनगर। जम्मू कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद को पोषण देने वाले अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के छह वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में मंगलवार को उपराज्यपाल मनोज सिन्हा आतंकी हिंसा से पीड़ित 250 परिवारों के पात्र सदस्यों को सरकारी नौकरी के नियुक्ति पत्र सौंपेंगे।
आपको बता दें कि पांच अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 के उन सभी प्रविधानों को समाप्त कर दिया था जो जम्मू कश्मीर को विशेष संवैधानिक दर्जा देते हुए अलगाववाद औरआतंकवाद को बढ़ावा दे रहे थे।
केंद्र सरकार द्वारापांच अगस्त 2010 को लिए गए फैसले के बाद कश्मीर घाटी में स्थिति में लगातार सुधार आया और पत्थरबाजी व सिलसिलेवार हिंसक प्रदर्शनों का दौर अतीत की बात हो गया। आतंकी हिंसा भी अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है।
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आतंकी संगठनों में स्थानीय युवाओं की भर्ती लगभग समाप्त हो चुकी है। प्रदेश में आद्योगिक निवेश लगातार बढ़ रहा है। रोजगार के नए अवसर पैदा हो रहे हैं। आतंकियों और अलगाववादियों व उनके समर्थकों को अब किसी भी स्तर पर संरक्षणनहीं मिल रहा है बल्कि आतंकी हिंसा के पीड़ितों को न्याय प्रदान करने की प्रक्रिया को लगातार गति दी जा रही है।
संबधित अधिकारियों ने बताया कि कश्मीर में आए सुखद बदलाव का जश्न मनाने के लिए , आतंकवाद-अलगाववाद की जननी अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के छह वर्ष पूरे होने पर मंगलवार को उपराज्यपाल मनोज सिन्हा कश्मीर घाटी के 250 आतंकवाद पीड़ित परिवारों को नियुक्ति पत्र सौंपेंगे।
इन परिवारों में से कईयों का एक तो कई परिवारों के दो-तीन सदस्यों को आतंकियों ने इस्लाम और आजादी के नाम पर बेरहमी से कत्ल किया है। नियुक्ति पत्र प्रदान करने का समारोह शेरे कश्मीर इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर एसकेआइसीसी में आयोजित किया जा रहा है।
जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम), हिजबुल मुजाहिदीन (एचएम), लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) और अन्य आतंकवादी संगठनों द्वारा किए गए हिंसक कृत्यों में यह अपने परिवार के सदस्यों को गंवाने वाले यह पीड़ित परिवार विगत एक लंबे अर्से से न्याय के लिए दरदर भटक रहे हैं।
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आतंकी हिंसा से कश्मीर का सिर्फ कोई एक कस्बा या जिला प्रभावित नहीं है, उत्तरी कश्मीर के बारामुला, बांडीपोर और कुपवाड़ा से लेकर मध्य कश्मीर के बडगाम, गांदरबल और श्रीनगर तक, दक्षिण कश्मीर के कुलगाम, अनंतनाग, पुलवामा और शोपियां तक हर शहर और हर गांव, हर गली-मोहल्ले में आतंकी हिंसा से प्रभावित परिवार हैं।
कईयों के प्रियजनों केा आतंकियों ने सरेआम गोलियों से भूना तो कईयों को सरेआम फांसी पर लटकाया गया। कईयों के शवों के साथ जानवरों से भी बदतर सुलूक किया गया। यहां तक कि लोगों को आतंकियों ने फरमान सुना रखा था कि वह किसी के जनाजे में शामिल न हों, किसी का शव न उठाएं।
आतंकियों द्वारा कत्ल किए गए नागरिकों में से कई अपने परिवार में एकमात्र कमाने वाले थे। उनकी हत्या से संबधित परिवार न सिर्फ भावनात्मक रूप से जख्मी हुआ बल्कि वह सामाजिक रूप से भी अलग -थलग हुआ और आर्थिक तंगी का शिकार हो गया।
इन परिवारों को अलगाववादिों और आतंकियों ने बहिष्कृत कराया, उनके दर्द को सुनने वाला कोई नहीं था। उनकी आवाज, उनकी पीड़ा वर्षाें तक अनुसुनी रही। कई मामलों में एफआईआर दर्ज होने के बावजूद किन्हीं खास कारणों से पुलिस जांच भी बंद कर दी गई है।
पीड़ितों को न्याय देने के नाम पर पांच अगस्त 2019 से पहले जम्मू कश्मीर में सत्तासीन रही विभिन्न सरकारों ने सिर्फ आश्वासन दिए। उन्हें सरकारी औपचारिकताओं के फेर में फंसाए रखा। कई मामलों में कथित तौर पर जिन लोगों केा उनकी आतंकी व अलगाववादी गतिविधियों के कारण जेल मे होना चाहिए था, वह सरकारी नौकरी का लाभ प्राप्त करते हुए, पीड़ितों के जख्मों पर नमक छिड़क रहे थे। इससे कश्मीर में राष्ट्रवादी ताकतों का मनोबल जहां कमजोर होता था वहीं अलगाववादी और आतंकी हिंसा के समर्थकों केा बल मिल रहा था।
दशकों से उपेक्षा का शिकार इन परिवारों के बलिदान और त्याग को मान्यता नहीं दी जा रही थी। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के नेतृत्व में प्रदेश सरकार ने इस पीड़ा का ेसमझा और इनके बलिदान कोमान्यता दी।
अब पीड़ित परिवारों को एक नयी उम्मीद और नया विश्वास मिला है। वह अब सामने आ रहे हैं और अपनी पीड़ा अपने साथ हुए अन्याय की कहानी सुनाते हुए,उन लोगों को भी कठघरे में खड़ा कर रहे हैं जो कश्मीर और कश्मीरियत का झंडाबरदार होने, कश्मीर का नुमायंदा होने का दावा करते हैं।
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उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने 13 जुलाई को आतंकी हिंसा से पीड़ित 40 परिवारों को और उसके बाद 28 जुलाई को उन्होंने जम्मू में एक कार्यक्रम में 80 परिवारों को नियुक्ति पत्र सौंपे। प्रतयेक पीड़ित परिवार के एक ही सदस्य को सरकारी राेजागार दिया जा रहा है। उपराज्यपाल यह सुनिश्चित कर रहे हैं इन परिवारों को न्याय, मान्यता और समर्थन मिले जिसका वह वर्षाें से इंतजार कररहे हैं।
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