जम्मू की सुरक्षा का नया सिंबल: तवी रिवर फ्रंट ने बाढ़ के समय दिखाया दम, पढ़ें इंजीनियरिंग-मजबूती की कहानी
जम्मू में तवी रिवर फ्रंट परियोजना बाढ़ से सुरक्षित है। 530 करोड़ की लागत वाली इस परियोजना का उद्देश्य तवी नदी के किनारों को संरक्षित करना है। हाल ही में भारी बारिश के दौरान रिवर फ्रंट सुरक्षित रहा जिससे पता चलता है कि तटबंधों और डायफ्राम वाल्वों ने प्रभावी रूप से काम किया। विशेषज्ञों का मानना है कि भगवती नगर पुल का हिस्सा डायाफ्राम वाल्व न होने से टूटा।

राज्य ब्यूरो, जागरण, जम्मू। मौसम बदल गया है, बारिश थम चुकी और सिर्फ बाढ़ की तबाही के निशान बाकी रह गए हैं। तवी रिवर फ्रंट परियोजना को भी बाढ़ ने नुक्सान पहुंचाया है,लेकिन बाढ़ के थपेड़ों की मार सहते हुए तवी रिवर फ्रंट ने आस-पास के इलाकों को डूबने से बचाया। उसने तवी के अपनी हद पार नहीं करने दी।
बैराज से लेकर एक किलोमीटर तक का क्षेत्र पूरी तरह सुरक्षित रहा।जलस्तर में अचानक हुई वृद्धि के बावजूद कहीं भी मिट्टी का कटाव नहीं हुआ और न ही किनारे की दीवारों को कोई क्षति पहुंची। क्योंकि तटबंधों को मजबूत बनाने के लिए डायफ्राम वाल (दीवार) तैयार की गई है। तवी नदी का चौथा तवी पुल इसी दीवार के अभाव में क्षतिग्रस्त हुआ है।
पुल की मुरम्मत में शामिल एजेंसियों केा टूटे हिस्से के पुनर्निर्माण में डायाफ्राम वाल्व लगाने का निर्देश दिया गया ताकि ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
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सुरक्षा और सौंदर्य का नया मॉडल
आपको बता दें कि 530 करोड़ रूपये की लागत वाली तवी रिवर फ्रंट परियोजना जम्मू स्मार्ट सिटी मिशन के अंतर्गत बनाई गई एक महत्वाकांक्षी और रणनीतिक परियोजना है, जिसका मुख्य उद्देश्य तवी नदी के दोनों किनारों को संरक्षित करना, उन्हें सुंदर बनाना और शहर को बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से स्थायी सुरक्षा प्रदान करना है।
परियोजना से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि वर्ष 2014 में आई विनाशकारी बाढ़ के बाद जब जम्मू शहर के बड़े हिस्से में जलभराव और तटों के कटाव से भारी नुकसान हुआ, तब इस परियोजना की आवश्यकता को गंभीरता से महसूस किया गया।
उसी समय यह निर्णय लिया गया कि तवी नदी के तटों को न केवल सौंदर्यीकरण किया जाएगा बल्कि उन्हें आधुनिक इंजीनियरिंग तकनीक के माध्यम से स्थायी और मज़बूत बनाया जाएगा। इस परियोजना के तहत नदी किनारे पर वॉकवे, पक्की सीढ़ियां, बैठने की जगहें और प्रकाश व्यवस्था के साथ-साथ सबसे महत्वपूर्ण सुरक्षा संरचना — डायाफ्राम वाल्व का निर्माण किया गया।
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बाढ़ के थपेड़ों को सहने वाला सुरक्षा कवच
हाल ही में भारी बारिश और तवी में आए उफान ने तवी रिवर फ्रंट परियाजना के तहत हुए काम, इसके तहत तैयार किए गए तटबंधों व अन्य ढांचों की गुणवत्ता, उनकी मजबूती की वास्तविक परीक्षा ली। भगवती नगर पुल का एक हिस्सा ढह जाने से पूरे शहर में डर का माहौल बन गया था और आशंका थी कि नदी का प्रवाह रिवर फ्रंट को नुकसान पहुंचा सकता है। लेकिन बैराज से लेकर एक किलोमीटर तक का पूरा स्ट्रेच बिल्कुल सुरक्षित रहा। जलस्तर में अचानक हुई वृद्धि के बावजूद कहीं भी मिट्टी का कटाव नहीं हुआ और न ही किनारे की दीवारों को कोई क्षति पहुंची।
कई चरणों में पूरा किया गया फ्रंट
तवी रिवर फ्रंट का निर्माण कई चरणों में पूरा किया गया। पहले चरण में तटबंधों को मजबूत करने और डायफ्राम वसल डालने का कार्य किया गया। यह वसल 10 से 12 मीटर गहराई तक जाती है और लगभग दो फुट चौड़ी है। इसकी डिजाइन इस प्रकार की गई है कि यह अत्यधिक जलदबाव को सह सके और बाढ़ के समय मिट्टी के धंसने या किनारे के बह जाने से बचाए।
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डायाफ्राम वाल्व का मुख्य लाभ यह है कि यह पूरी तरह जलरोधी होती है। जब नदी का जलस्तर बढ़ता है, तब यह दीवार पानी को किनारे के नीचे से रिसने से रोकती है और इस प्रकार तटबंध को कमजोर नहीं होने देती। यही कारण है कि इस बार की बारिश और तेज प्रवाह में भी तवी रिवर फ्रंट अडिग रहा।
इस तकनीक का इस्तेमाल भारत और विदेश में अन्य रिवर फ्रंट परियोजनाओं में भी किया गया है, जैसे साबरमती रिवर फ्रंट (अहमदाबाद), लखनऊ रिवर फ्रंट और भूटान के नदी तटीय संरक्षण प्रोजेक्ट। इन सभी जगहों पर यह तकनीक बाढ़ प्रबंधन और शहरी सुरक्षा के लिए अत्यंत प्रभावी साबित हुई है।
तवी रिवर फ्रंट पूरी तरह से सुरक्षित
तेज बारिश के बाद जैसे ही पानी का बहाव कम हुआ, स्मार्ट सिटी मिशन के इंजीनियरों और अधिकारियों की टीम ने मौके पर जाकर विस्तृत निरीक्षण किया। प्रत्येक सेक्शन की जांच की गई और पाया गया कि कहीं भी दरार, रिसाव या संरचना को नुकसान का कोई प्रमाण नहीं है। इस रिपोर्ट ने न केवल तकनीकी टीम को राहत दी बल्कि इस परियोजना में लगाए गए निवेश और परिश्रम को भी सार्थक साबित कर दिया। इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया कि तवी रिवर फ्रंट अब जम्मू शहर के लिए एक मजबूत बाढ़-रोधी ढांचा है।
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डायाफ्राम वाल्व न होने की वजह से टूटा पुल
विशेषज्ञों का मानना है कि भगवती नगर पुल का टूटा हिस्सा इसलिए ढहा क्योंकि वहां पर डायाफ्राम वाल्व जैसी सुरक्षा संरचना नहीं थी। इस घटना ने यह भी सिखाया कि भविष्य में पुलों और तटीय संरचनाओं के निर्माण के समय इस तकनीक को अनिवार्य रूप से अपनाया जाना चाहिए। अब निर्माण एजेंसियों को यह निर्देश दिए गए हैं कि टूटे हिस्से के पुनर्निर्माण में डायाफ्राम वाल्व लगाई जाएं, ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
तवी रिवर फ्रंट सुरक्षा का ही नहीं सौंदर्यीकरण का भी उदाहरण
तवी रिवर फ्रंट केवल बाढ़ प्रबंधन का साधन ही नहीं, बल्कि शहरी सौंदर्यीकरण का भी उदाहरण है। इसके बनने से जम्मू शहर को एक नया आकर्षण मिला है। वसकवे और सीढ़ियों के कारण लोग यहां आकर नदी के किनारे समय बिता सकते हैं, जिससे शहर में पर्यटन को भी बढ़ावा मिलता है। लेकिन इस परियोजना का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसने तटवर्ती इलाकों में रहने वाले हजारों लोगों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को बाढ़ के खतरे से बचाया है। पहले जहां थोड़ी सी बारिश में जलभराव हो जाता था, वहीं अब बड़े उफान में भी पानी सुरक्षित तरीके से नदी के भीतर ही नियंत्रित रहता है।
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आधुनिक इंजीनियरिंग प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षित बना सकती है
रिवर फ्रंट जैसी परियोजनाएं यह दिखाती हैं कि आधुनिक इंजीनियरिंग, शहरी योजना और दीर्घकालिक दृष्टिकोण मिलकर किस प्रकार किसी शहर को प्राकृतिक आपदाओं से अधिक सुरक्षित बना सकते हैं।
जम्मू जैसे बढ़ते शहर के लिए यह न केवल सौंदर्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि आपदा प्रबंधन का एक मजबूत उदाहरण भी है। यह परियोजना आने वाले समय में अन्य शहरों के लिए भी एक माडल बन सकती है कि कैसे नदी किनारे के विकास को पर्यावरणीय दृष्टिकोण, तकनीकी मजबूती और सार्वजनिक सुविधा को ध्यान में रखकर संतुलित तरीके से किया जा सकता है।
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