स्वतंत्रता के सारथी: संघर्ष से धो डाला पाकिस्तानी कहलाने का दाग, अनुच्छेद 370 था बाधक, प्राप्त की नागरिकता
1947 में विभाजन के दौरान पाकिस्तान से आए हिंदुओं को जम्मू-कश्मीर में नागरिकता नहीं मिली जिससे वे कई अधिकारों से वंचित रहे। लब्बा राम गांधी ने वेस्ट पाक रिफ्यूजी एक्शन कमेटी के माध्यम से इन शरणार्थियों के अधिकारों के लिए 15 वर्षों तक संघर्ष किया। अनुच्छेद 370 हटने के बाद इन 5764 परिवारों को नागरिकता मिली वे विधानसभा चुनावों में मतदान और अन्य नागरिक अधिकार प्राप्त करने में सक्षम हुए।

जागरण संवाददाता, जम्मू। 1947 में देश विभाजन के समय पाकिस्तान से हिंदुओं को भारत में आना पड़ा। इन लोगों की जिंदगी सामान्य तो हो गई, लेकिन जम्मू-कश्मीर में आए हिंदू फंस गए। क्योंकि, तत्कालीन सरकारों की ओर से कहा गया कि जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा है। इसलिए यहीं बस जाएं।
सभी अधिकार दिए जाएंगे, जो जम्मू कश्मीर में नागरिकों को मिल रहे हैं। मगर, बाद में सरकारों ने अनुच्छेद 370 की आड़ लेकर कन्नी काट ली। केंद्र सरकार ने हक दिए, लेकिन पाकिस्तान से आए 5764 परिवारों को जम्मू-कश्मीर की सरकारों ने यहां की नागरिकता नहीं दी।
इससे यह हिंदू लोग दिन प्रतिदिन कमजोर पड़ते गए और गरीबी में पिसते रहे। लेकिन, लब्बा राम गांधी ने वेस्ट पाक रिफ्यूजी एक्शन कमेटी की कमान संभालकर संघर्ष को गति दी और पाकिस्तानी कहलाने के दाग को धोते हुए अधिकार प्राप्त किए।
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लब्बा राम गांधी 2005 में सेना से सेवानिवृत होने के बाद अपने गांव नंदपुर (रामगढ़) में पहुंचे। एक दिन स्थानीय क्षेत्र में वेस्ट पाक रिफ्यूजी एक्शन कमेटी की हुई बैठक में पाकिस्तान से आए हिंदुओं ने अपना दुख बयां किया।
उन्होंने कहा कि दशकों बाद भी जम्मू-कश्मीर सरकार ने नागरिकता नहीं दी। इससे प्रदेश में रह रहे इन लोगों को न तो नौकरियां मिलीं और न ही विधानसभा चुनाव में वोट डालने का अधिकार और न ही जमीन खरीदने का हक। ऐसे में सेवानिवृत सैनिक लब्बा राम गांधी को वेस्ट पाक रिफ्यूजी एक्शन कमेटी का प्रधान इस उम्मीद से बनाया कि वह हक दिलाएंगे।
इसके बाद लब्बा राम गांधी ने फिर पीछे मुड़कर ही नहीं देखा और इन संघर्षरत लोगों को हक दिलाने का बीड़ा उठा लिया। लब्बा राम गांधी का परिवार भी भुगत भोगी रहा है।
पाकिस्तान के स्यालकोट स्थित नरवाल तहसील से उनका परिवार भी जम्मू कश्मीर आया था और नागरिकता नहीं मिलने से परेशान था। लब्बाराम गांधी ने तब कसम ली थी कि जब तक इंसाफ नहीं होता, वह रुकने वाले नहीं हैं।
इसके बाद उन्होंने संघर्ष शुरू किया। फिर वेस्ट पाक रिफ्यूजी एक्शन कमेटी के बैनर तले आए दिन धरने-प्रदर्शन होने लगे। सरकार के समक्ष लोगों की पीड़ा को उठाया गया।
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...यहां की सरकारों ने दिया था पाकिस्तान से आए हिंदुओं को धोखा
लब्बा राम गांधी का कहना है कि देश विभाजन के समय पाकिस्तान से हिंदुओं को भारत की ओर आना पड़ा। इसी कड़ी में हमारे बुजुर्ग भी जम्मू-कश्मीर आ गए, लेकिन यहां की सरकारों ने बाद में धोखा दिया। इसलिए, आवाज बुलंद करते हुए केंद्र सरकार पर इंसाफ की गुहार लगाई। पाकिस्तान से आए हिंदू नागरिकों को एकजुट किया और संघर्ष को गति दी। आखिर, 15 वर्ष के संघर्ष के बाद पाकिस्तानी हिंदुओं को इंसाफ दिलाया। वर्ष 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटते ही यह लोग जम्मू-कश्मीर के नागरिक बन गए।
सात दशक बाद नागरिकता मिलने से खुश
आज लब्बा राम गांधी खुश हैं कि उनका संघर्ष रंग लाया। अब उनके लोगों को कोई पाकिस्तानी नहीं कह पाएगा। क्योंकि सात दशक बाद ही सही, इन हिंदू लोगों को जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल चुकी है, विधानसभा में वोट डालने का अधिकार मिल चुका है। पिछले विधानसभा चुनाव में इन लोगों ने बढ़-चढ़ कर वोट डाला। जम्मू-कश्मीर में अब इन परिवारों की संख्या बढ़कर 22 हजार हो चुकी है।
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