Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    रुकेगी पानी की बर्बादी, रोशन होंगे उद्योग, बस सरकार को उठाना होगा ये कदम Panipat News

    By Anurag ShuklaEdited By:
    Updated: Wed, 26 Jun 2019 06:26 PM (IST)

    पानीपत शहर को जेडएलडी का इंतजार है। इससे हर रोज बर्बाद होने वाले 13 करोड़ लीटर पानी को दोबारा प्रयोग में लाया जा सकता है।

    रुकेगी पानी की बर्बादी, रोशन होंगे उद्योग, बस सरकार को उठाना होगा ये कदम Panipat News

    पानीपत, [जगमहेंद्र सरोहा]। शहर के उद्योगों से निकल रहे रंगीन पानी को अगर दोबारा से उपयोग में लाना है तो जीरो लिक्विड डिस्चार्ज (जेडएलडी) प्लांट लगाना ही होगा। इस प्रोजेक्ट के लिए प्लान भी बना। तत्कालीन डीसी चंद्रशेखर खरे ने कई बार प्रयास भी किए लेकिन प्रोजेक्ट फाइल से बाहर नहीं निकल सका। जेडएलडी के सिरे नहीं चढ़ पाने की वजह है बजट का अभाव। उद्यमियों से भी 25 प्रतिशत लिया जाना था। 

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    सेक्टर-29-2 में अलग से डाइंग यूनिट आने के बाद जीरो लिक्विड डिस्चार्ज लगाने पर विचार उठने लगे। शहरी स्थानीय निकाय विभाग ने 2015 में करीब 837 करोड़ का प्रस्ताव बनाकर भेजा। इसके अंतर्गत 50 प्रतिशत पैसा केंद्र और 25 प्रतिशत प्रदेश सरकार को देना था। बाकी 25 प्रतिशत उद्योगों से लिया जाना था। अधिकारियों ने उद्यमियों के सामने प्रस्ताव को रखा तो वे पीछे हटने लगे। उद्यमियों ने साफ कह दिया कि वे इतना बजट नहीं जुटा सकते। डायर्स एसोसिएशन के प्रधान भीम राणा ने बताया कि उद्यमी इस प्रतिस्पर्धा के दौर में मुश्किल से अपने काम धंधे चला पा रहे हैं। ऐसे में किसी स्पेशल प्रोजेक्ट की मोटी राशि दे पाना मुश्किल है। उद्यमी तो सरकार को राजस्व जमा कराते हैं। ऐसे में सुविधा देना सरकार का फर्ज बनता है। 

    22 एकड़ में बनना है जेडएलडी 
    जेडएलडी के ड्रॉप होने का दूसरा बड़ा कारण सेक्टर के आसपास जमीन न मिल पाना है। इस प्रोजेक्ट के लिए 20 से 22 एकड़ जमीन की जरूरत है। सेक्टर-29 के आसपास इतनी जतीन उपलब्ध भी नहीं है। दूसरा सरकार इसका एक्वायर करने की भी स्थिति में नहीं थी। 2015 का प्रोजेक्ट धीरे-धीरे ठंड पड़ता चला गया। अब प्रोजेक्ट का नाम तक नहीं लिया जा रहा। 

    ये भी पढ़ें: एक काला पानी की सजा यहां भी, पीढि़यां माफ नहीं करेंगी

    यह प्रोजेक्ट था 
    शहर में 20 हजार के करीब छोटे-बड़े उद्योग हैं। इनमें एक हजार डाइंग यूनिट हैं। ये यूनिट हर रोज करीब आठ करोड़ लीटर पानी प्रयोग करती हैं। डाइंग यूनिटों से निकलने वाले पानी में केमिकल भारी मात्रा में होता है। इस पानी के लगातार प्रयोग में लाने से जमीन की उर्वरा शक्ति कमजोर होने के साथ हानिकारण तत्वों की मात्रा बढ़ती जाती है। जेडएलडी में पानी को पूरी तरह से ट्रीट किया जाता है। इसको फाइनल स्टेज में दोबारा उसी तरह से प्रयोग करने लायक बना जाता है। यह प्रोजेक्टर सिरे चढ़ जाता है तो आने वाले समय में पानी की किल्लत नहीं होगी। इसके साथ पानी को जहर होने से बचाया जा सकेगा। 

    सूरत में लगा है प्लांट 
    केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने इसी वर्ष माह महीने में सूरत में करंज टेक्सटाइल पार्क का उद्घाटन किया था। तीन सौ करोड़ के इस टेक्सटाइल पार्क में जीरो लिक्विड डिस्चार्ज प्लांट भी लगाया गया है। जिस तरह पानीपत में सीईटीपी लगा है, ठीक उसी तरह सूरत में भी लगे हैं। सीईटीपी से निकलने वाले पानी का कोई इस्तेमाल नहीं हो पाता। अगर जेडएलडी से सीईटीपी का पानी निकाला जाए तो उसे दोबारा प्रयोग कर सकते हैं। सूरत में 92 फीसद पानी का दोबारा उपयोग किया जा रहा है।

     ये भी पढ़ें: काला पानी और काले ही हालात, चौंकाने वाली रिपोर्ट आई सामने 

    इतना पानी व्यर्थ बह रहा 
    चार करोड़ लीटर के दो सीईटीपी लगे हैं। 9 करोड़ लीटर के चार एसटीपी लगे हैं। यानी, 13 करोड़ लीटर पानी व्यर्थ बह रहा है। अगर जेएडएलडी लगे तो इस पूरे पानी का फिर से उपयोग कर सकते हैं।

    ये भी पढ़ें: पानी पर इस शहर का नाम, वहीं पर करोड़ों लीटर इस तरह बर्बाद हो रहा

    ये भी पढ़ें: हकीकत हैरान कर देने वाली, हर जगह जहरीला और बदबूदार पानी 

    लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप