Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    काला पानी और काले ही हालात, चौंकाने वाली रिपोर्ट आई सामने Panipat News

    By Anurag ShuklaEdited By:
    Updated: Sun, 23 Jun 2019 11:41 AM (IST)

    पानीपत में दैनिक जागरण की टीम ने 20 से अधिक जगहों पर पानी की सैंपल भरे। हकीकत चौकाने वाली थी। जो रिपोर्ट आई उससे साफ था कि पानीपत का पानी जहरीला हो चुका।

    काला पानी और काले ही हालात, चौंकाने वाली रिपोर्ट आई सामने Panipat News

    पानीपत, जेएनएन। शदीद प्यास थी, फिर भी छुआ न पानी को। मैं देखता रहा दरिया तेरी रवानी को। 
    शदीद यानी, बेहद ज्यादा। शहर में एक छोर से दूसरे छोर तक चले जाइये। ड्रेन में बहता दूषित पानी। सड़कों और खाली प्लाटों में बहता पानी। कहीं-कहीं डाई हाउस से सीधे ही छोड़ा जा रहा पानी। यानी, पानी का दरिया तो हर जगह है, पर क्या ये पीने तो दूर, छूने के भी स्तर से बेहद खराब है। ऊपरी तौर पर चमकीला दिखता औद्योगिक शहर जमीनी स्तर पर कितना खोखला हो चुका है, ये हमारे घरों में पहुंच रहा पानी ही सब बयां कर रहा है। टीडीएस दो हजार तक पहुंच चुका है। दैनिक जागरण की टीम ने शहर में 20 से अधिक जगहों से पानी के सैंपल जुटाए और इनकी निजी लैब में जांच कराई। 

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    जितना पानी का रंग काला था, उतने ही तथ्य भी निराशा भरे ही रहे। काबड़ी फाटक, जहां आसपास फैक्ट्रियां ही फैक्ट्रियां हैं, वहां पानी में फ्लोराइड  1.31 मिला। यानी, यह पानी इतना खराब है कि अगर इसे पी लिया जाए तो दांत खुद ब खुद गिरने लग जाएंगे। पढ़िए ओवरऑल रिपोर्ट। साथ ही, जानिये कि क्या हो सकते हैं समाधान। उद्योगों, सरकार और आम लोगों को क्या करना चाहिए। 

    पीएच : हमारी त्वचा हो रही प्रभावित, रोग बढ़ते जा रहे
    पीएच का पूरा मतलब होता है-पावर ऑफ हाइड्रोजन यानी हाइड्रोजन की शक्ति। हाइड्रोजन के अणु किसी भी वस्तु में उसकी अम्लीय या क्षारीय प्रवृत्ति को तय करते हैं। हम पीएच को इस तरह समझ सकते हैं, जैसे कि अगर घोल या उत्पाद में पीएच 1 या 2 है तो वो अम्लीय है और अगर पीएच 13 या 14 है तो वो क्षारीय है। अगर पीएच 7 है तो वह न्यूट्रल है। पानी का पीएच 7 होता है यानी कि पानी में अम्ल और क्षार दोनों ही नष्ट हो जाते हैं। हमारी त्वचा का पीएच 5 से नीचे हो तो त्वचा की प्रकृति थोड़ी अम्लीय है। इसमें पीएच का सही माप और संतुलन काफी अहमियत रखता है। इसीलिए त्वचा की देखभाल से संबंधित प्रोडक्ट्स पीएच संतुलन का फॉम्र्युला अपनाते हैं, ताकि त्वचा स्वस्थ रहे।

    क्या आप जानते हैं
    इसकी अवधारणा सबसे पहले 1909 में सामने आयी जब कार्ल्सबर्ग लेबोरेट्री के रसायनशास्त्री सॉरेन पेडर लॉरिट्ज़ सॉरेनसेन ने इसे प्रस्तुत किया।

    इस तरह असर पड़ रहा
    अगर पसीने में सीबम (पसीने की ग्रंथियों में तैलीय स्नाव) का मिश्रण हो जाता है तो यह त्वचा पर एक परत बना लेता है, जिसे एसिड मेंटल कहा जाता है, क्योंकि इसका पीएच 5 से नीचे होता है। शरीर में जब ज़्यादा अम्लीय स्थिति बन जाती है तो कोशिकीय स्तर पर ऑक्सीजन की कमी होने लगती है। रक्त द्वारा ऑक्सीजन का शरीर में संचार 7.4 पीएच पर किया जाता है। लेकिन जब शरीर में पीएच लेवल 7.4 (एल्कलाइन) से नीचे गिर जाता है तो रक्त के लिए ऑक्सीजन का सही तरीके से संचार कर पाना संभव नहीं हो पाता जिससे ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और शरीर में बैक्टीरिया, वायरस और फंगस इन्फेक्शन होने लगते हैं।

    बीओडी और सीओडी...यमुना के जलीय जीव इसलिए दम तोड़ रहे
    बीओडी को जैविक ऑक्सिजन मांग कहते हैं। सीओडी को रासायनिक ऑक्सीजन मांग कहते हैं। इन्हें अपशिष्ट जल में मापा जाता है। इससे ये पता लगाया जाता है कि अपशिष्ट जल में कितनी मात्रा में जैविक तत्व मौजूद हैं, जिन्हे की जीवाणुओं के द्वारा अपने भोजन के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा। रासायनिक ऑक्सीजन मांग की मात्रा को माप कर यह अनुमान लगाया जाता है की अपशिष्ट जल में कितनी मात्रा में रसायन मौजूद हैं जिनका ऑक्सीकरण किया जाएगा या होगा। इन दोनो मापदंडों का इस्तेमाल पानी की अशुद्धता मापने के लिए किया जाता है।

    जरूरत क्या है
    जलीय जीवों को भी ऑक्सीजन की जरूरत होती है। दूषित पानी में जब बीओडी का स्तर बढ़ जाता है तो जीवों को उतनी ही ज्यादा ऑक्सीजन की जरूरत पड़ जाती है। सामान्य तौर पर बीओडी का स्तर 30 मिलीग्राम प्रति लीटर होना चाहिए लेकिन यह 70 तक दर्ज की गई। यानी यह पानी अगर नदी में जाएगा तो मछली जैसे जीव जीवित नहीं रह पाएंगे।

    आयरन : पथरी बढ़ रही 
    पानी में आयरन ज्यादा दर्ज किया गया। इसकी वजह से ही पथरी बढ़ रही है। पानी में तीन मिलीग्राम प्रति लीटर आयरन होना चाहिए लेकिन इसका स्तर चार तक दर्ज किया गया।

     water pollution

    कहां-कहां से लिए गए सैंपल
    अर्जुन नगर, काबड़ी रोड, सनौली रोड, सेक्टर 29 पार्ट 2 से चार, भैंसवाल रोड, बरसत रोड, ओल्ड इंडस्ट्रियल एरिया मॉडल टाउन। 

    मैग्नीशियम : कठोर हो जाता है पानी, सीवर तक जाम हो जाते हैं
    किसी भी पेजयल में आर्सेनिक, लेड, सेलेनियम, मरकरी, नाईट्रेट आदि बिल्कुल नहीं होने चाहिए। इनका हेल्थ पर गंभीर असर पड़ता है।  पानी में फ्लोराइड, ऑयरन, कैल्शियम और मैग्नीशियम की एक लिमटेड मात्रा ही होनी चाहिए। इनकी ज्यादा मात्रा से पानी में कठोरता बढ़ती है। ऐसा जल जिसमें साबुन के साथ अधिक झाग उत्पन्न नहीं होता है, कठोर जल कहलाता है। जल की कठोरता दो प्रकार की होती है- अस्थायी कठोरता एवं स्थायी कठोरता। जल में अस्थायी कठोरता कैल्शियम एवं मैग्नीशियम के बाइकार्बोनेट एवं कार्बोनेट लवणों के कारण होती है, जिसे उबालकर दूर किया जा सकता है। जबकि स्थायी कठोरता को उबालकर दूर नहीं किया जा सकता। उबालने से इन लवणों की सान्द्रता और बढ़ जाती है जो जल को विशिष्ट उपयोग हेतु अनुपयोगी बनाती है।

    पानी में ये भी मिला पढ़कर दंग रह जाएंगे
    हार्डनेस
    पानी में हार्डनेस 200 से 600 एमजी प्रति लीटर होती है। शहर के ट्यूबवेलों में यह 500 से ऊपर है। हार्डनेस अधिक होने पर पानी में झाग नहीं बन पाते। इससे चमड़ी में एलर्जी होने लगती है। 

    फ्लोराइड
    पानी में फ्लोराइड 1 एमजी प्रति लीटर होनी चाहिए। यह 1.5 है। इससे स्केलटल फ्लोरोसिस यानी हड्डियों के टेडे-मेढे होने की बीमारी होती है। दाांतों की बीमारी आ जाती हैं। 

    आर्सेनिक
    पानी में आर्सेनिक 0.01 होना चाहिए। मानव शरीर में एक निर्धारित मात्रा (0.05 मिग्रा. प्रति लीटर) से अधिक पहुंच जाने पर मानव शरीर के लिए जहरीला हो जाता है। कैंसर हो सकता है।

    लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप